अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के शीर्ष-नेताओं की 12 मार्च को हुई वर्चुअल बैठक को बदलते वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिघटना के रूप में देखा गया है। क्वाड नाम से चर्चित इस समूह को चीन-विरोधी धुरी के रूप में देखा जा रहा है। खासतौर से भारत की विदेश-नीति को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या अब हमारी विदेश-नीति स्वतंत्र नहीं रह गई है? क्या हम अमेरिकी खेमे में शामिल हो गए हैं? क्या हम अपने दीर्घकालीन मित्र रूस का साथ छोड़ने को तैयार हैं? क्या पश्चिमी देशों की राजनीति नेटो से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होने वाली है? ऐसा क्यों हो रहा है? इस सिलसिले में सबसे बड़ा सवाल चीन को लेकर है। क्या वह अमेरिका और पश्चिम को परास्त करके दुनिया की सबसे बड़ी ताकत के रूप में स्थापित होने जा रहा है?
चीन ने इस बैठक को
लेकर अपनी आशंकाएं व्यक्त की हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बैठक से ठीक
पहले कहा कि देशों के बीच विचार-विमर्श और सहयोग की प्रक्रिया चलती है, लेकिन इसका
मकसद आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ाने का होना चाहिए, तीसरे पक्ष को निशाना बनाने या उसके हितों को नुकसान
पहुंचाने का नहीं। क्वाड की शिखर बैठक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि उसे
किसी खास देश के खिलाफ न माना जाए।
इतना ही नहीं, इसे अब सुरक्षा-व्यवस्था की जगह आपसी सहयोग का मंच बनाने की कोशिशें भी हो रही हैं। अब वह केवल सुरक्षा-समूह जैसा नहीं है, बल्कि उसके दायरे में आर्थिक और सामाजिक सहयोग से जुड़े कार्यक्रम भी शामिल हो गए हैं। क्वाड देशों के नेताओं ने शिखर-वार्ता में जिन विषयों पर विचार किया, उनमें वैक्सीन की पहल और अन्य संयुक्त कार्य समूहों के साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग करना शामिल था।
‘स्पिरिट ऑफ क्वाड’ शीर्षक से जारी इस बैठक के संयुक्त बयान में नेताओं
ने खुले, मुक्त एवं दबाव रहित
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के निर्माण पर प्रतिबद्धता जाहिर की। समूह ने अपने पहले शिखर
सम्मेलन में अपनी प्राथमिक-दृष्टि को केवल सैन्य-सुरक्षा के मुद्दे तक सीमित नहीं
रखा है, बल्कि इसे विशाल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के सार्वजनिक हितों तक फैलाया है,
जिससे इसकी दीर्घकालिक राजनीतिक-दृष्टि
स्पष्ट हुई है। अभी तक धारणा थी कि क्वाड केवल एक विचार-प्रक्रिया है, परंतु इस शिखर सम्मेलन से उसका भावी स्वरूप
साफ हुआ है।
‘अमेरिका
इज़ बैक’ नीति: हाल में
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वैश्विक नेतृत्व के संदर्भ में कहा था कि ‘अमेरिका इज़ बैक।’ राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनियाभर से
हाथ खींचने की नीति पर चलने की घोषणा की थी। जो बाइडेन ने क्षेत्रीय गठबंधनों की पुष्टि
करके चीन की चुनौती से पार पाने के अमेरिकी इरादों को व्यक्त किया है। इससे पहले
म्यूनिख सुरक्षा-सम्मेलन में बाइडेन ने चीन का मुकाबला करने के लिए ट्रांस-अटलांटिक
गठबंधन का प्रस्ताव रखकर यूरोपीय सहयोगियों जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम को वापस एक समूह
के रूप में लाने की कोशिश की। इसके पहले डोनाल्ड ट्रंप ने इस गठबंधन की सम्भावनाओं
को खत्म कर दिया था। जो बाइडेन अब यूरोपियन
यूनियन के साथ भी अपने रिश्तों को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि यूरोप
के साथ चीन की बढ़ती नजदीकियों पर रोक लगाई जा सके।
अमेरिका की कोशिश
एक तरफ अटलांटिक के दोनों ओर के देशों को जोड़ना है, वहीं हिंद-प्रशांत क्षेत्र के
देशों के सहयोग को बढ़ावा देने की है। चीन के साथ व्यापार और दूरसंचार मुद्दों पर
समुद्री तनाव के कारण ऑस्ट्रेलिया और जापान की दिलचस्पी भी क्वाड के दायरे को
बढ़ाने की है। रीजनल कांप्रिहैंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) से भारत के बाहर
रहने के निर्णय पर जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्वाड सहयोगी नाखुश थे। अब यदि क्वाड
एक आर्थिक-सहयोग संगठन के रूप में उभरता है, तो यह संपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक नई
परिघटना होगी।
भारत-चीन टकराव: पूर्वी लद्दाख प्रकरण के बाद से भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। चीन की आक्रामकता
बढ़ने के बाद भारत और चीन के बीच सहयोग की सम्भावनाएं कम होती जा रही हैं। भारत को
क्वाड के मार्फत वैश्विक समर्थन मिलने की सम्भावनाएं ज्यादा हैं, हालांकि रूस जैसे
दोस्त से दूरी बढ़ने का अंदेशा भी है। गत वर्ष 1 सितंबर को जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने चीन पर अपनी
निर्भरता को कम करने के लिए त्रिपक्षीय ‘सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव’ की
शुरुआत की है। अन्य देशों से भी इसमें शामिल होने का आग्रह किया है।
क्वाड देशों ने
भारत-प्रशांत क्षेत्र में वितरण हेतु कोविड-19 वैक्सीन की एक अरब खुराकों का उत्पादन करने के लिए
अपने संसाधनों (अमेरिकी प्रौद्योगिकी, जापानी वित्त, भारतीय
उत्पादन क्षमता और ऑस्ट्रेलिया की रसद क्षमता) को एकत्रित करने का निर्णय लिया। क्वाड
देशों ने पेरिस समझौते के आधार पर उत्सर्जन में कमी सुनिश्चित करने के साथ-साथ
प्रौद्योगिकी आपूर्ति शृंखला, 5 जी नेटवर्क और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग पर सहमति व्यक्त की। इससे
इन चार देशों को क्वाड के लिए एक नया दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलेगी।
क्वाड के
विस्तारित कार्यक्रम से भारत की फार्मास्युटिकल क्षमता, टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप के अवसर तथा विकास परियोजनाओं
पर क्षेत्रीय सहयोग मिलने से इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
केवल सैन्य
गठबंधन नहीं
क्वाड देशों के
चीन के साथ दीर्घ व्यापारिक रिश्ते हैं। वे दो रोज में खत्म नहीं हो जाएंगे। भारत
का ही नहीं जापान और ऑस्ट्रेलिया का चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ब्रिक्स
और एससीओ की सदस्यता के कारण भारत और चीन के रिश्ते बने हुए हैं। क्वाड समूह को
भारत के इन रिश्तों की ध्यान में रखना होगा।
सन 2007 में जब क्वाड के निर्माण की दिशा में पहले
कदम उठाए गए थे, तब चीन ने इसे ‘एशियाई नेटो’ और ‘नए शीत युद्ध’ का अग्रदूत बताया था। सालाना मालाबार
नौसैनिक अभ्यास को लेकर भी चीन की नाराजगी जगजाहिर थी। खासतौर से जापान के शामिल
होने से। अब ऑस्ट्रेलिया के शामिल हो जाने के बाद से इसका सीधा रिश्ता क्वाड से हो
गया है।
विस्तारित
क्वाड: हिंद-प्रशांत
क्षेत्र में कई अन्य सहयोगी देश भी हैं। भविष्य में इसमें वियतनाम, फिलीपींस, दक्षिण
कोरिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों को शामिल करने की बातें भी हैं।
इसके बाद यूके को शामिल करने का विचार भी है। उस स्थिति में इसका दायरा काफी बड़ा
हो जाएगा।
No comments:
Post a Comment