प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा भले ही ऐसे वक्त में हुई है, जब राष्ट्रपति जो बाइडेन का कार्यकाल पूरा हो रहा है, फिर भी अमेरिका के साथ द्विपक्षीय-रिश्ते हों या क्वॉड का शिखर सम्मेलन दोनों मामलों में सकारात्मक प्रगति हुई है. ‘बदलते और उभरते भारत’ पर केंद्रित इस दौरे की थीम भी सार्थक हुई.
क्वॉड शिखर-सम्मेलन मूलतः चीन-केंद्रित था, पर,
भारत इसे केवल चीन-केंद्रित मानने से बचता है. इसबार
के सम्मेलन में समूह ने प्रत्यक्षतः भारतीय-दृष्टिकोण को अंगीकार कर लिया. इसे ‘एशियाई-नेटो’ के बजाय, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा-हितों के रक्षक के रूप में
स्वीकार कर लिया गया है. बावजूद इसके चीन का नाम लिए बगैर, जो कहना था, कह दिया
गया.
वृहत्तर-सहयोग
हिंद-प्रशांत देशों के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर, सेमी
कंडक्टर, स्वास्थ्य और प्राकृतिक-आपदाओं के बरक्स राहत-सहयोग जैसे मसलों को इसबार
के सम्मेलन में रेखांकित किया गया. संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुधार और
सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट को लेकर भी इस सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई.
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि क्वॉड
किसी के खिलाफ नहीं है बल्कि यह नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और
संप्रभुता के पक्ष में है. स्वतंत्र, खुला, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत हमारी प्राथमिकता है.
इनके साथ-साथ ‘संरा समिट ऑफ फ्यूचर’ में ‘ग्लोबल साउथ’ के संदर्भ में भारतीय पहल को समझने की जरूरत है. यहाँ भी मुकाबला चीन से है. इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य के खतरों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा. साथ ही उन्होंने विश्वमंच को आइना भी दिखाया, जिसने सुरक्षा-परिषद की स्थायी सीट से भारत को वंचित कर रखा है.