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Wednesday, July 3, 2024

चुनौती नए आपराधिक कानूनों की


औपनिवेशिक व्यवस्था को बदलने की बातें अरसे से होती रही हैं, पर जब बदलाव का मौका आता है, तो सवाल भी खड़े होते हैं। ऐसा ही तीन नए आपराधिक कानूनों के मामले में हो रहा है, जो गत 1 जुलाई से देशभर में लागू हो गए हैं। स्वतंत्रता के बाद से न्याय-व्यवस्था में परिवर्तन की यह सबसे कवायद है। ये कानून नए मामलों में लागू होंगे। जो मामले भारतीय दंड संहिता के तहत पहले से चल रहे हैं, उनपर पुराने नियम ही लागू होंगे। इसलिए दो व्यवस्थाओं का कुछ समय तक चलना चुनौती से भरा काम होगा।

इस लिहाज से नए कानूनों को लागू करने से जुड़े तमाम तकनीकी-मसलों को चुस्त-दुरुस्त करने में भी चार-पाँच साल लगेंगे। इसका अर्थ यह भी है कि देश में जब 2029 में लोकसभा चुनाव होंगे, तब इन कानूनों की उपादेयता और निरर्थकता भी एक मुद्दा बनेगी। इस लिहाज से इन कानूनों का लागू होना बहुत बड़ा काम है। चूंकि कानून-व्यवस्था संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं, इसलिए राजनीतिक और प्रशासनिक सवाल भी खड़े होंगे। कर्नाटक उन राज्यों में से एक है, जिसने तीन नए कानूनों का अध्ययन करने के लिए औपचारिक रूप से एक विशेषज्ञों की समिति का गठन किया है। संभव है कि कुछ मसले अदालतों में भी जाएं।

इन कानूनों की दो बातें ध्यान खींचती हैं। दावा किया गया है कि अब मुकदमों का फैसला तीन-चार साल में ही हो जाएगा। पुराने दकियानूसी कानूनों और उनके साथ जुड़ी प्रक्रियाओं की वजह से मुकदमे दसियों साल तक घिसटते रहते थे। दूसरे कुछ नए किस्म के अपराधों को इसमें शामिल किया गया है, जो समय के साथ जीवन और समाज में उभर कर आए हैं। इनमें काफी साइबर-अपराध हैं और कुछ नए सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल में उभरी प्रवृत्तियाँ हैं।