पिछले साल मतुआ समाज की बोरो मां वीणापाणि देवी से आशीर्वाद लेते नरेंद्र मोदी |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते बांग्लादेश की दो दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा का दो देशों के रिश्तों से जितना वास्ता है, उतना ही पश्चिमी बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव से भी है। हो सकता है कि भविष्य के तीस्ता जैसे समझौतों से भी हो। बांग्लादेश में इस साल मुजीब वर्ष यानी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। इसके साथ ही बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता संग्राम के 50 वर्ष भी इस साल पूरे हो रहे हैं। दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 50 साल भी।
बांग्लादेश में
मोदी तुंगीपाड़ा स्थित बंगबंधु स्मारक में जाएंगे। इसके अलावा वे ओराकंडी स्थित
हरिचंद ठाकुर के मंदिर में भी जाएंगे। नरेंद्र मोदी 27 मार्च को ओराकंडी में मतुआ
मंदिर जाएंगे। यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री इस मंदिर का दौरा करेगा।
वे बारीसाल जिले के शिकारपुर में सुगंध शक्तिपीठ में भी जाएंगे। इसके अलावा वे
कुश्तिया में रवीन्द्र कुटी बाड़ी और बाघा जतिन के पैतृक घर में भी जा सकते हैं।
इन सभी जगहों का राजनीतिक महत्व है।
ओराकंडी मतुआ समुदाय
के गुरु हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का जन्मस्थल है। इसकी स्थापना 1860 में एक
सुधार आंदोलन के रूप में की गई थी। इस समुदाय के लोग नामशूद्र कहलाते थे और
अस्पृश्य माने जाते थे। हरिचंद ठाकुर ने इनमें चेतना जगाने का काम किया। उनके
समुदाय के लोग उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। मतुआ धर्म महासंघ समाज के
दबे-कुचले तबके के उत्थान के लिए काम करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम
बंगाल में कुल आबादी के 23.5 प्रतिशत दलित और 5.8 प्रतिशत आदिवासी हैं। बंगाल के
दलित एवं आदिवासी मतुआ धर्म महासंघ के स्वाभाविक समर्थक माने जाते हैं।
उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव स्थित मतुआ धर्म महासंघ के मुख्यालय में मतुआ माता वीणापाणि देवी के साथ गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की थी। वीणापाणि देवी के दबाव में ही ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार को मतुआ कल्याण परिषद का गठन करना पड़ा। वीणापाणि देवी का गत वर्ष निधन हो गया। अब उनके पुत्र और पौत्र मतुआ आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।
नागरिकता कानून के
कारण बीजेपी को इस समुदाय का समर्थन हासिल हुआ है। सन 2019 के चुनाव में मोदी ने नागरिकता
कानून में संशोधन का वायदा किया था, जिसे उन्होंने पूरा किया। इसका लाभ उन्हें
2019 के चुनाव में मिला। मतुआ समुदाय को नेतृत्व देने वाले परिवार के भीतर भी दो
गुट हैं। बीजेपी ने इसके बड़े तबके को अपने पक्ष में कर रखा है। मतुआ वोटरों की इस
चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका है। उत्तर बंगाल में की 51 और नदिया, उत्तर और दक्षिण
24 परगना की 70 से ज्यादा सीटों पर करीब पौने चार करोड़ लोग मतुआ समुदाय से जुड़े
हैं। ये लोग पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भागकर यहाँ आए हैं। विभाजन के बाद
से मतुआ समुदाय को नागरिकता की समस्या से जूझना पड़ रहा है। पहले ये लोग सीपीएम को
समर्थन देते थे, फिर इन्होंने ममता का साथ दिया।
साल 2016 विधानसभा
चुनाव में मतुआ बहुल 21 सीटों में से 18 पर टीएमसी को जीत मिली थी लेकिन साल 2019
में सीएए-एनआरसी लागू करने के एलान के बाद ही गेम बदल गया और बीजेपी को लोकसभा
चुनाव में 21 में से 9 सीटों पर बढ़त हासिल हो गई। मतुआ समाज खुलकर सीएए-एनआरसी
लागू करने की वकालत कर चुका है। मतुआ, हिंदू, और बंगाली संस्कृति
के जरिए बीजेपी को यकीन है कि उसे लाभ मिलेगा।
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