गत 9 जून को, नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लेकर एक कीर्तिमान बनाया था, जो 1962 में जवाहर लाल नेहरू के दौर के बाद पहली बार स्थापित हुआ है। उसके एक दिन बाद, उन्होंने अपनी सरकार के चार प्रमुख विभागों-रक्षा, गृह, वित्त और विदेश के मंत्रियों को उनके पुराने पदों पर फिर से नियुक्त करके न केवल निरंतरता का, बल्कि दृढ़ता का संदेश भी दिया। विरोधी इसे बैसाखी पर टिकी सरकार बता रहे हैं, पर नरेंद्र मोदी तकरीबन उसी सहज तरीके से काम कर रहे हैं, जैसे करते आए थे।
भारतीय जनता पार्टी के पास
240 सीटें हैं, जिनसे भले ही पूर्ण बहुमत साबित
नहीं होता है, पर 1984 के बाद यह किसी भी एक पार्टी को प्राप्त तीसरा सबसे बड़ा
जनादेश है। तीनों जनादेश नरेंद्र मोदी के नाम हैं। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इस
चुनाव-परिणाम को मोदी की पराजय बताया है, पर सच यह है कि पिछले तीन लोकसभा
परिणामों में कांग्रेस को प्राप्त सीटों को एकसाथ जोड़ लें, तब भी वे इन 240 सीटों
के बराबर नहीं हैं।
आक्रामक-विपक्ष
बावजूद इसके, मानना यह भी होगा कि मोदी की पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं। कम से कम उत्तर प्रदेश, बंगाल और महाराष्ट्र में उसे अपमानित भी होना पड़ा है। यानी वोटर ने किसी को कुछ ढील दी और दूसरे को कुछ कसा। कुल मिलाकर बीजेपी देश के 29 में से 13 प्रदेशों में सत्ता में है, और उसके सहयोगी दल छह प्रांतों में शासन कर रहे हैं। बेशक केंद्र में सरकार पहले की तुलना में कुछ कमजोर है, पर वैसी लाचार नहीं है, जैसी मनमोहन सिंह अपनी सरकार को बताते थे। उनके ही आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने उनके दौर को ‘पॉलिसी पैरेलिसिस’ बताया था।