कोविड-19 के ताजा आँकड़ों के अनुसार इस हफ्ते तक इस बीमारी ने दुनियाभर में 48 लाख के आसपास लोगों की जान ले ली है। करीब एक करोड़ 85 लाख लोग अब भी संक्रमण की चपेट में हैं। यह महामारी मनुष्य-जाति के अस्तित्व के सामने खतरे के रूप में खड़ी है, पर यह सबसे बड़ा खतरा नहीं है। इससे भी ज्यादा बड़ा एक और खतरा हमारे सामने है, जिसकी भयावहता का बहुत से लोगों को अनुमान ही नहीं है।
हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु
गुणवत्ता के नए निर्देश जारी किए हैं, जिनमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के
साथ वायु प्रदूषण मानव-स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। डब्लूएचओ
ने 2005 के बाद पहली बार अपने ‘एयर क्वालिटी
गाइडलाइंस’ को बदला है। नए वैश्विक
वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (एक्यूजी) के अनुसार इस बात के प्रमाण मिले हैं कि
प्रदूषित वायु की जो समझ पहले थी, उससे भी कम प्रदूषित वायु से मानव-स्वास्थ्य को
होने वाले नुकसानों के सबूत मिले हैं। संगठन का कहना है कि वायु प्रदूषण से हर साल
70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होती है। यह संख्या कोविड-19 से हुई मौतों से कहीं
ज्यादा है।
बच्चों की मौतें
नए दिशानिर्देश ओज़ोन, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड समेत पदार्थों पर लागू होते हैं। डब्ल्यूएचओ ने आखिरी बार 2005 में वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसका दुनिया भर के देशों की पर्यावरण नीतियों पर प्रभाव पड़ा था।
‘सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल’ की अगुवाई में जारी की गई एक और रिपोर्ट ‘सिटीज4चिल्ड्रन’
में बताया गया है कि हर दिन
दुनिया में 19 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे भारी प्रदूषित हवा में साँस लेते
हैं जो उनके स्वास्थ्य और विकास को खतरे में डालता है। 2019 में वायु प्रदूषण से दुनिया
में लगभग पाँच लाख नवजात-शिशुओं की जन्म के महीने भर के भीतर मौतें हुई। बच्चे
विशेष रूप से वायु प्रदूषण के प्रति संवेदनशील होते हैं। उनका शरीर बढ़ रहा होता
है। वे वयस्कों की तुलना में शरीर के वजन की प्रति इकाई हवा की अधिक मात्रा में साँस
लेते हैं, इसलिए अधिक प्रदूषक उनके शरीर के अंदर जा सकते
हैं।
एक और रिपोर्ट बता रही है कि भारत में वायु
प्रदूषण के कारण उत्तर भारत में लोगों की औसत उम्र में नौ साल तक की कमी आ सकती
है। एक और रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस साल में भारत के लोगों की औसत ऊँचाई में कमी
आई है। शिकागो विवि के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 48 करोड़ यानी कुल जनसंख्या के करीब 40 प्रतिशत लोग गंगा के
मैदानी क्षेत्र में रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर बेहद ज्यादा है
और इनकी औसत आयु में नौ साल तक की कमी आ सकती है।
हैल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार,
बाहर और घर के अन्दर लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के कारण स्ट्रोक,
दिल का दौरा, डायबिटीज, फेफड़ों
के कैंसर और जन्म के समय होने वाली बीमारियों आदि की चपेट में आकर साल 2019 में
भारत में 16,67,000 लोगों की मौत हुई। वायु प्रदूषण की वजह से 2019 में कुल
4,76,000 नवजात शिशुओं की मौत में से 1,16,000 मौतें भारत में हुईं।
वैश्विक विमर्श और भारत
इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा के सालाना
भाषणों में जलवायु परिवर्तन का सवाल आतंकवाद और कोविड-19 के भी ऊपर था। चीन के
राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि हम अब कोयले पर आधारित नए ताप बिजलीघर स्थापित
नहीं करेंगे। इस साल अप्रेल में दक्षिण कोरिया ने कहा था कि हम कोयले से चलने वाले
किसी भी देश के बिजलीघर को आर्थिक सहायता नहीं देंगे। दुनिया में इस समय 70 फीसदी
बिजलीघर चीनी मदद से बन रहे हैं। इनमें पाकिस्तान के सी-पैक के बिजलीघर भी शामिल
हैं। देखना होगा कि इस घोषणा का व्यावहारिक अर्थ क्या है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के
450 गीगावॉट अक्षय-ऊर्जा लक्ष्य का हवाला दिया। साथ ही कहा कि हम भारत को, दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाने के अभियान में भी जुट
गए हैं। भारत ने 2030 तक 450 गीगावॉट (जीडब्ल्यू) अक्षय ऊर्जा क्षमता का एक
महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष जलवायु दूत जॉन
केरी ने सितम्बर के दूसरे सप्ताह में भारत में अलग-अलग मंत्रियों से इस सिलसिले
में मुलाकात की थी।
भारत ने अभी तक ‘शून्य-उत्सर्जन’
अपने लक्ष्य की घोषणा नहीं की है। जॉन केरी कार्बन-उत्सर्जन में कटौती के
महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए दुनियाभर के देशों में जाकर वहाँ के
राजनेताओं तथा अधिकारियों से मुलाक़ात कर रहे हैं। चीन, दुनिया
का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। उसने घोषणा कर चुका है कि वह 2060 तक कार्बन
न्यूट्रल हो जाएगा। दूसरे स्थान पर कार्बन उत्सर्जक देश अमेरिका ने नेट-ज़ीरो तक
पहुंचने के लिए 2050 तक का लक्ष्य रखा है। जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक विमर्श इस
साल नवम्बर में ब्रिटेन में होने वाली कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज की 26वीं बैठक में
होगा। हाल की अपनी भारत-यात्रा पूरी करते समय जॉन केरी ने उम्मीद जाहिर की थी कि
तबतक भारत अपने लक्ष्य निर्धारित कर लेगा। कार्बन उत्सर्जन में चीन और अमेरिका के
बाद भारत तीसरे स्थान पर है। पेरिस जलवायु समझौते के अपने वादे को भारत पूरा करने
को संकल्प-बद्ध है। सन 2005 के बेस-स्तर के बरक्स भारत 2030 तक 33-35% कार्बन
उत्सर्जन कम करेगा।
भारत को ‘शून्य कार्बन उत्सर्जन’ का लक्ष्य
निर्धारित करना चाहिए और इसे भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धताओं (नेशनली
डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन-एनडीसी) का हिस्सा बनाना उचित क़दम होगा। खासतौर से तब और
जब भारत, आने
वाली पीढ़ियों के लिए धरती को संरक्षित करने की वैश्विक लड़ाई का अगुवा बनना चाहता
है। बेशक गरीबी उन्मूलन और संधारणीय विकास के लिए औद्योगीकरण ज़रूरी है, पर खतरा
इंसानों की जिन्दगी पर डोल रहा है।
No comments:
Post a Comment