Friday, October 1, 2021

कब मिलेगा छुटकारा महामारी के इस दानव से?

कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी को इस साल के अंत तक दो साल पूरे हो जाएंगे, पर लगता नहीं कि इससे हमें छुटकारा मिलेगा। अभी तो तीसरी और चौथी लहरों की बात हो रही है। वैज्ञानिकों की मोटी राय है कि यह रोग सबको करीब से छू लेगा, तभी जाएगा। छूने का मतलब यह नहीं है कि सबको होगा। इसका मतलब है कि या तो वैक्सीनेशन से या संक्रमण से प्राप्त इम्यूनिटी ही सामान्य व्यक्ति को इस रोग का मुकाबला करने लायक बनाएगी। कुछ लोगों को दूसरी बार संक्रमण भी होगा। वैक्सीन लगने के बाद भी होगा। वायरस नहीं मिटेगा, पर उसका असर काफी कम हो जाएगा। हमारे शरीरों का प्राकृतिक प्रतिरक्षण बढ़ जाएगा।

डब्ल्यूएचओ के यूरोप मामलों के प्रमुख हैंस क्लूग ने महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों के परिणामों पर निराशा जाहिर की है। उनका मानना ​​​​है कि वायरस का कोई तत्काल इलाज नहीं है, क्योंकि वायरस के नए वेरिएंट हर्ड इम्युनिटी को हासिल करने की उम्मीदों को धराशायी कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक ने मई में कहा था कि जब टीकाकरण 70 प्रतिशत तक पूरा हो जाएगा तो ज्यादातर देशों में कोरोना वायरस महामारी खत्म हो जाएगी। ऐसा नहीं हुआ है और एक नई लहर का खतरा खड़ा है।

सहारा टीके का

विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया की 90-95 फीसदी आबादी को टीका लग जाए, तो इसे रोका जा सकता है। ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार करीब छह अरब डोज़ दुनिया भर में लगाई जा चुकी हैं। अमेरिका में 64, ईयू 67, ब्रिटेन 73, जर्मनी 67, फ्रांस 77, इटली 73, यूएई 84,  दक्षिण कोरिया 71, रूस 32, जापान 66 और भारत में करीब 44 फीसदी आबादी को कम से कम एक टीका लग गया है। अब दूसरी तरफ देखें। म्यांमार 9.4, बांग्लादेश 13.5, वियतनाम 28.6, इराक 10.7, अफगानिस्तान 2.6, सूडान 1.5, यमन 1.0, केमरून 1.5। बहुत से देशों में टीकाकरण शुरू ही नहीं हुआ है।

अफ्रीका के ज्यादातर देशों में यह प्रतिशत 5 से कम है। यानी जिन देशों के पास साधन हैं वहाँ वैक्सीनेशन बेहतर है और बीमारी के हमले को कमोबेश रोक लिया गया है। ऑक्सफोर्ड विवि में मेडिसिन के इतिहास की प्रोफेसर एरिका चार्टर्स के अनुसार अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय पर खत्म होगी। ऐसा ही अतीत में हुआ है। यह बहुत कुछ उन देशों की सरकारों और साधनों पर निर्भर करेगा। प्रतिष्ठित विज्ञान नेचर के एक सर्वे का भी यही निष्कर्ष है कि सम्भव है कि किसी एक क्षेत्र से इसका सफाया हो जाए और दूसरे क्षेत्र में जारी रहे।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में इंफैक्शस डिज़ीज़ेज़ के चीफ डॉ. फहीम युनुस का कहना है कि वैक्सीनेशन ही सबसे बड़ा हथियार है। उन्होंने कोई तारीख तो नहीं बताई है, इतना कहा है कि कम से कम 40 फीसदी से ज्यादा आबादी के टीका लगने के बाद कोरोना की घातक लहरों को रोका जा सकेगा। 70 फीसदी को लग गया, तो उसकी शिद्दत वैसी नहीं रह जाएगी, जैसी आज है। वैक्सीन के अलावा दूसरा बड़ा मसला है वेरिएंट का।

खतरा वेरिएंट का

अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने इस वायरस को चार वर्गों में बाँटा है अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा। फिर इनकी तमाम उप शाखाएं हैं। यदि टेस्ट कराएंगे, तो पता लग जाएगा कि कोविड-19 का संक्रमण है, पर यह पता नहीं लगेगा कि किस वैरिएंट का है। अलबत्ता अब यह बात स्थापित हो चुकी है कि वैक्सीनेशन की गति बढ़ने से महामारी का प्रसार रुका है और मौतों की संख्या काफी कम हो गई है।

मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंफैक्शस डिज़ीज़ रिसर्च एंड पॉलिसी में डायरेक्टर और राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार माइकल ओस्टरहोम के अनुसार कोरोना वायरस महामारी का खतरा पांचवीं कैटेगरी के चक्रवाती तूफान जैसा है। इसमें कमी आएगी, पर साल के अंत तक या सर्दियों के बाद फिर से तेजी आ सकती है। हम ऊँची चोटी पर चढ़ाई कर रहे हैं। हमें चोटियाँ मिलेंगी और तलहटियाँ भी। अगले कई साल तक हमें यही करना है। इस बीच कई और वैक्सीनों की ईज़ाद होगी जो मदद करेंगी, लेकिन चुनौतियां कम नहीं होंगी।

उनका कहना है कि हम कब सफल होंगे, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन इतना कह सकता हूं कि यह जंगल की आग है, जो तब तक नहीं रुकेगी जब तक कि इंसान रूपी लकड़ियों को पूरी शिद्दत से फूँक न दे। यह बयान एकबारगी भयानक लगता है, पर इसके पीछे सार्वजनिक-स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक संदेश छिपा है। स्कूल खुल रहे हैं, विमान सेवाएं शुरू हो रही हैं, सार्वजनिक परिवहन अपने ढर्रे पर वापस आ रहा है। इसलिए खतरा बढ़ रहा है। अब परीक्षा अनुशासन और एहतियात की है। याद रखिए आपके शरीर में इम्यूनिटी हो सकती है, पर नवजात शिशुओं के शरीर में वह नहीं होगी। वैश्विक वैक्सीनेशन की गति यों भी बेढंगी है। अमीरों को लगी, गरीब बैठे रह गए।

पाँच साल?

पिछले 130 वर्षों में कई बार इनफ्लुएंज़ा महामारी बनकर दुनिया पर टूटा है। डेनमार्क की रोसकिल्डे विश्वविद्यालय की एपिडेमोलॉजिस्ट प्रोफेसर लोन सिमॉनसेन ने बताया है कि कोविड-19 किस तरीके से हम पर असर डाल सकता है। उनके अनुसार अतीत का सबसे लम्बी वैश्विक फ्लू पाँच साल तक चला था। दो से चार लहरें आती रही हैं और दो से तीन साल तक चलती हैं। कोविड-19 पिछली महामारियों से ज्यादा सख्त है। अभी दूसरा साल है और हम तीसरी लहर का खतरा सामने देख रहे हैं।

हो सकता है कि यह वायरस अतीत जैसा साबित नहीं हो। आखिरकार यह पिछले वायरसों से काफी फर्क है। पहले से ज्यादा तेजी से संक्रमण फैलाने वाला। सन 1918 के स्पेनिश फ्लू के मुकाबले ज्यादा घातक। पहले के मुकाबले कहीं तेज वैक्सीनेशन के बावजूद अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और इसराइल जैसे देशों में रिकॉर्ड संख्या में केस हुए हैं। टीकाकरण से उसकी मार हल्की पड़ी है, पर जिन्हें टीका नहीं लगा, उनपर खतरा बना हुआ है। जिन देशों में टीके की रफ्तार धीमी है, जिनमें मलेशिया, मैक्सिको, ईरान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, वहाँ नई लहरें हैं। वायरस अभी काबू से बाहर है।

सिमॉनसेन के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि समय के साथ वायरस कमजोर पड़ता जाता है। यह धारणा गलत है। हालांकि म्युटेशन हमेशा ज्यादा खतरनाक नहीं होते, पर होते भी हैं। डेल्टा वेरिएंट का उदाहरण सामने हैं। कुछ शोधकर्ताओं का अंदेशा है कि हो सकता है कि कुछ समय बाद पहली पीढ़ी की वैक्सीन वायर पर प्रभावी न रहे। खतरा यह भी है कि इस दौरान कोई नया वायरस किसी जानवर के शरीर से निकल इंसानों के शरीर में प्रवेश न कर जाए।

 

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भारत में क्या आएगी तीसरी लहर?

कुछ का कहना है आ चुकी है। कुछ कहते हैं कि अगले महीने से खतरा है। अलबत्ता नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (एनसीडीसी) के निदेशक सुजीत सिंह के अनुसार भारत में अगले छह महीनों में कोरोना स्थानिक बीमारी की शक्ल ले लेगा। यानी कि संक्रमण आबादी में बना रहेगा, लेकिन फ्लू की तरह इसे संभालना आसान हो जाएगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य की बुनियादी संरचना के लिए इसका सामना करना आसान हो जाएगा। उन्होंने एक समाचार चैनल से कहा कि केरल, अति-संवेदनशील राज्य था। पर वह भी उस उग्र संकट से उभर रहा हैं, जिससे कुछ सप्ताह पहले तक जूझ रहा था।

उन्होंने जोर देकर कहा कि टीकाकरण सबसे बड़ी सुरक्षा है। देश में 80 करोड़ लोगों से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। उनकी बात से मन खुश होता है, पर उनकी दूसरी बात भी महत्वपूर्ण है। टीकाकरण के बाद भी लोगों को मास्क और डिस्टेंसिंग जैसे कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन करना चाहिए। निर्णायक संक्रमण, या पूरी तरह से टीकाकरण वाले लोग भी संक्रमित हो रहे हैं।  20-30 प्रतिशत मामलों में ऐसा होना तय है। वैज्ञानिकों के अनुसार टीकाकरण के 70 से 100 दिनों के भीतर प्रतिरक्षा स्तर गिरना शुरू हो जाता है।

हालांकि दुनिया में इस समय डेल्टा वेरिएंट को लेकर हंगामा है, पर सुजीत सिंह के अनुसार, भारत में कोई नया वेरिएंट नहीं है। और यों भी एक नया वेरिएंट तीसरी लहर पैदा नहीं कर सकता। अलबत्ता त्योहारों का मौसम आने के कारण चिंता है। उसमें सावधानी बरतने की जरूरत है।

आईआईटी कानपुर के मणीन्द्र अग्रवाल ने पिछले महीने कहा था, ‘भारत में कोविड की तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में आ सकती है। ऐसा तब होगा जब मौजूदा वायरस से ज्यादा घातक वायरस बढ़ने लगे। इसकी तीव्रता भी दूसरी लहर के समान नहीं होगी।’ उन्होंने अपने गणितीय मॉडल से यह अनुमान लगाया था। उनका यह भी कहना है कि डेटा में बदलाव हो रहा है क्योंकि टीकाकरण तेजी से हुआ है, जिससे आर वैल्यू पर फर्क पड़ा है। टीकाकरण ही है जो इस लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार है।

एसबीआई के एक अध्ययन में कहा गया था कि तीसरी लहर भारत में मध्य अगस्त में दस्तक दे सकती है और सितंबर में पीक आ सकता है। ऐसा हुआ नहीं। केरल में जरूर संक्रमण बढ़ा, पर अब उसमें भी गिरावट है। अब चूंकि स्कूल खुल रहे हैं और उत्तर भारत में पितृ-पक्ष के बाद त्योहारों की शुरुआत होने वाली है, इसलिए अंदेशा है। सावधानी बरतेंगे, तो सम्भव है कि उसका नकारात्मक असर नहीं हो।

नवजीवन में प्रकाशित

 

 

 

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