नफ्ताली बेनेट (बाएं) और नेतन्याहू
इसराइल का नवगठित राजनीतिक गठजोड़ आगामी रविवार तक टूटा नहीं, तो 71 वर्षीय
बिन्यामिन नेतन्याहू की 12 साल पुरानी सरकार का गिरना लगभग तय नजर आ रहा है। उनकी
सरकार गिराने के लिए जो गठजोड़ बना है, उसमें विचारधाराओं का कोई मेल नहीं है। यह
गठजोड़ नेतन्याहू के साथ पुराना हिसाब चुकाने के इरादे से एकसाथ आए नेताओं ने
मिलकर बनाया है, जो कब तक चलेगा, कहना मुश्किल है। खासतौर से यदि विपक्ष का
नेतृत्व नेतन्याहू जैसे ताकतवर नेता के हाथ में होगा, तो इसका चलना और मुश्किल
होगा। फिलहाल लैपिड-बेनिट गठबंधन यदि विश्वास मत नहीं जीत पाया, तो इसराइल में फिर
से चुनाव होंगे।
इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक
पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है। इसी वजह से वहाँ पिछले दो
साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं। मार्च में हुए चुनाव में बिन्यामिन नेतन्याहू
की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी सबसे आगे रही थी, लेकिन वह सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा सकी जिसके
बाद दूसरे नंबर की मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया
गया था। उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि
तक बहुमत साबित करना था। उनकी समय-सीमा खत्म होने ही वाली थी कि नेतन्याहू-विरोधी नेता
येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब हम सरकार बनाएँगे।
अभी तक देश में ऐसा गठबंधन असम्भव लग रहा था, जो सरकार बना सके।
बेमेल गठजोड़
आठ पार्टियों के गठबंधन के लिए हुए समझौते के तहत बारी-बारी से दो अलग दलों के नेता प्रधानमंत्री बनेंगे। सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे। उसके बाद 27 अगस्त को वे यह पद मध्य येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड को सौंप देंगे। फलस्तीनी मुसलमानों की पार्टी इसराइल में किंगमेकर बनकर उभरी है। मंसूर अब्बास का कहना है कि समझौते में कई ऐसी चीज़ें हैं, जिनसे अरब समाज को फ़ायदा होगा।
इस गठबंधन में धुर दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी और इस्लामी पार्टियाँ शामिल हैं। इन सभी के बीच
जबर्दस्त वैचारिक मतभेद हैं, पर इन सबका मक़सद नेतन्याहू के शासन का अंत करना है। नेतन्याहू
ने दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट पर "लोगों को गुमराह करने"
का आरोप लगाया था। बेनेट ने चुनाव के दौरान वायदा किया था कि वे लेपिड के साथ
जुड़ी ताक़तों के साथ नहीं जाएँगे।
पश्चिम एशिया पर नजर रखने वाले पर्यवेक्षक कहते हैं कि नेतन्याहू की हार
उनके वामपंथी विरोधियों की वजह से नहीं बल्कि उन्हीं के दक्षिणपंथी सहयोगियों के
कारण हुई, जिन्हें उन्होंने अपने सख़्त रवैए की वजह से दुश्मन बना लिया था। नए
गठबंधन से किसी को भी बड़े या नए फ़ैसलों की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। गठबंधन के
नेताओं का सारा ध्यान अभी नेतन्याहू को मात देने के बाद अपनी सरकार को बचाने पर
रहेगा।
कब तक चलेगा?
विरोधी नेताओं की उम्मीदों के पीछे एक और वजह है। वह यह कि नेतन्याहू के
विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप हैं। विरोधी दल इस बात के प्रयास कर रहे हैं कि संसद
से ऐसा कानून पास कराया जाए, जिसके तहत यदि किसी नेता पर आपराधिक मुकदमा चले तो
उसकी सदस्यता खत्म हो जाए। बहरहाल अभी वह स्थिति कुछ दूर है। फिलहाल देखना होगा कि
यह गठबंधन कितनी दूर तक चलेगा। इसमें आधे से ज्यादा नेता नेतन्याहू के पुराने
सहयोगी हैं, जो उनकी कठोर कार्यशैली के कारण नाराज हैं।
नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 120 में से
52 सीटों पर विजय मिली। हालांकि लिकुड पार्टी देश के सबसे बड़े दल के रूप में उभरी
है, पर उसे इस चुनाव में पिछली बार की 36 सीटों से भी कम 30 सीटें ही मिलीं। उनके
विरोधी गठबंधन को 57। नेतन्याहू के ही पूर्व सहयोगी नफ्ताली बेनेट की पार्टी को
सात सीटें और मंसूर अब्बास के नेतृत्व वाली अरब इस्लामी पार्टी को चार सीटें
मिलीं। नेतन्याहू की पार्टी छोड़कर बाहर निकले गिडियन सार ने छह सीटें हासिल की
हैं।
नेतन्याहू-विरोधी आठ पार्टियों ने सरकार बनाने के लिए गठबंधन बनाया है। 120 सीटों वाली नैसेट
में 61 का बहुमत
सिद्ध करने के लिए सभी आठ पार्टियों की ज़रूरत होगी। आठ दलों के इस गठबंधन को 61
वोट पाने की उम्मीद है। इनमें से तीन पार्टियाँ (न्यू होप, यामिना और इसराइल
बेतेनु) नेतन्याहू कि लिकुड पार्टी की तुलना में घनघोर दक्षिणपंथी हैं। इनके नेता अतीत
में नेतन्याहू की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। इन तीन के अलावा दो पार्टियाँ (येश
अतीद और ब्लू एंड ह्वाइट) मध्यमार्गी हैं। इनके नेता भी नेतन्याहू की सरकारों में
मंत्री रहे हैं। इनके अलावा दो पार्टियाँ (लेबर और मेरेट्ज) वामपंथी हैं। देश की
अकेली इस्लामिक अरब पार्टी र’आम (या राम) भी इसका
हिस्सा है, जिसे अपनी ओर खींचने की कोशिश नेतन्याहू ने भी की थी।
चुनावी फ्रॉड
नेतन्याहू ने विपक्ष के सरकार बनाने के फैसले को लोकतांत्रिक इतिहास का
सबसे बड़ा चुनावी फ्रॉड करार दिया है। उधर देश के सुरक्षा-प्रमुख ने राजनीतिक
हिंसा होने की आशंका भी व्यक्त की है। नेतन्याहू ने यह आरोप विपक्षी दलों के चुनाव
प्रचार के दौरान किए गए वायदों को लेकर लगाया है।
गठबंधन बनाने में सफलता प्राप्त करने वाले नफ्ताली बेनेट ने चुनाव-प्रचार
के दौरान कहा था कि हम वामपंथियों, मध्यमार्गी पार्टियों और अरब पार्टी के साथ गठबंधन
नहीं करेंगे। अब उन्हीं दलों के साथ उन्होंने गठबंधन किया है। इसी को लेकर
नेतन्याहू ने आरोप लगाया है कि यह इलेक्शन फ्रॉड है। विपक्षी गठबंधन के बीच प्रधानमंत्री
पद को लेकर रोटेशन का फैसला हुआ है। पहले दो साल तक बेनेट प्रधानमंत्री बनेंगे, फिर
अगले दो साल तक येर लैपिड कमान संभालेंगे। नई सरकार के लिए संसद में वोटिंग का दिन
अभी तय नहीं हुआ है, लेकिन माना जा
रहा है कि 14 जून को नए पीएम शपथ ले सकते हैं।
नेतन्याहू ने अपनी लिकुड पार्टी के सांसदों को संबोधित करते हुए कहा, 'हम देश के
इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा चुनावी फ्रॉड देख रहे हैं। मेरी राय में तो दुनिया
के किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं हुआ है।' नेतन्याहू ने कहा कि लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्हें
चुप नहीं कराया जा सकता। उनका साफ इशारा बेनेट की ओर से किए गए उन वादों को लेकर
था, जिनमें
उन्होंने कहा था कि वह लैपिड या अन्य लोगों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे।
चुनाव-प्रणाली की देन
बेशक नेतन्याहू सबसे लोकप्रिय नेताओं में हैं, पर देश की आनुपातिक चुनाव
प्रणाली में छोटी से छोटी पार्टी को उसे मिले वोटों के अनुपात में वहाँ की संसद
नैसेट में सीट मिलती है। इस वजह से किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिलना बहुत मुश्किल
होता है। हालांकि हाल में हमस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और वैक्सीनेशन में शानदार
प्रदर्शन के कारण नेतन्याहू की लोकप्रियता बढ़ी है, पर उनके पास 120 सदस्यों वाली
संसद में अब केवल 51 का समर्थन बाकी रह गया है।
संसद के अध्यक्ष ने घोषणा की है कि रविवार 13 जून को संसद में इस बात का
फैसला होगा कि किसके समर्थन में कितने सांसद हैं। कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो नेतन्याहू
सरकार का गिरना अब तय है। उन्हें सत्ताच्युत करने वाले गठबंधन में धुर दक्षिणपंथी,
वामपंथी, मध्यमार्गी और इस्लामिक अरब पार्टी के सांसद शामिल हैं। इसराइल के इतिहास
में पहली बार एक इस्लामिक अरब पार्टी के सांसद शामिल होने जा रहे हैं। यदि इस
गठबंधन की जीत हुई तो धुर दक्षिणपंथी नेता नफ्ताली बेनेट उसी रोज देश के
प्रधानमंत्री पद की शपथ ले लेंगे।
हाल का घटनाक्रम
23 मार्च 2021-इसराइली संसद
नैसेट का चुनाव हुआ। पिछले दो साल में यह चौथा चुनाव था। चुनाव के बाद 120 सीटों
वाली संसद में किसी को भी बहुमत नहीं मिला। संसद में 13 दलों के प्रत्याशी जीतकर आए
हैं। चुनाव के बाद नेतन्याहू की लिकुड पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। येर
लैपिड की पार्टी येश अतिद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। यामिना पार्टी के नेता
नफ्ताली बेनेट को सिर्फ सीटें सीटें मिलीं लेकिन वे किंगमेकर बनकर उभरे।
5 अप्रैल 2021-नेतन्याहू पर लगे
भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकदमा शुरू हुआ। उन्होंने सभी आरोपों से इनकार किया।
6 अप्रैल 2021-राष्ट्रपति
रूवेन रिवलिन ने नेतन्याहू को नई सरकार बनाने के लिए 28 दिन का वक्त दिया। नेतन्याहू
नई सरकार बना पाने में असमर्थ रहे।
5 मई 2021- राष्ट्रपति ने येर लैपिड को न्योता
दिया। यह पार्टी छोटी दक्षिणपंथी पार्टी यामिना के नेता नफ्ताली बेनेट के साथ
गठबंधन करने की लगातार कोशिश में रही, पर बहुमत के लायक सदस्यों का जुगाड़ नहीं हो
पाया।
10 मई 2021- गज़ा में इसराइल और हमस के बीच युद्ध
शुरू।
21 मई 2021-युद्धविराम।
30 मई 2021-नफ्ताली बेनेट ने येर लैपिड को
समर्थन देने की घोषणा की।
2 जून 2021-येर लैपिड ने राष्ट्रपति रूवेन
रिवलिन को सूचना दी कि आधी रात की समय सीमा से ठीक 30 मिनट पहले हम गठबंधन बनाने
में कामयाब हुए हैं। गठबंधन की सरकार में नफ्ताली बेनेट दो साल तक प्रधानमंत्री का
पद संभालेंगे और इसके बाद लैपिड यह पद संभालेंगे।
3 जून 2021-नेतन्याहू ने इस गठबंधन को खतरनाक
बताया और यामिना के सदस्यों से अपील की कि वे इसके खिलाफ मतदान करें।
8 जून 2021- नैसेट के अध्यक्ष येरिव लेविन ने कहा
कि 13 जून को संसद में मतदान होगा।
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