कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से 18 चुनावी वायदों को एक समय-सीमा में पूरा करने को कहा है। वायदों को पूरा करने के निर्देश में कुछ गलत नहीं है, पर इस बात की सार्वजनिक घोषणा के मायने हैं। दूसरे अमरिंदर सिंह दिल्ली आए, दो दिन रहे और सोनिया गांधी या राहुल गांधी से उन्हें मिलने का अवसर नहीं मिला। बुधवार को राहुल गांधी ने हरीश रावत, पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़, सांसदों मनीष तिवारी और प्रताप सिंह बाजवा, राज्य के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल और विधायक इंदरबीर बुलारिया से मुलाकात की।
ऐसा लगता है कि पार्टी हाईकमान पंजाब को लेकर सक्रिय जरूर है, पर समाधान
आसान नहीं है। कैप्टेन की अनदेखी नहीं हो सकती और सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं को
रोका नहीं जा सकता। दूसरी तरफ राजस्थान में सचिन पायलट के खेमे की सुनवाई उस स्तर
पर नहीं हो रही है, जिस स्तर पर नवजोत सिद्धू खेमे की है। सिद्धू प्रदेश के पार्टी
अध्यक्ष बनना चाहते हैं, ताकि अगले चुनाव में ज्यादा से ज्यादा विधायक उनके समर्थक
हों। पर वे बाहर से पार्टी में आए हैं और संगठन में मामूली पैठ और सीमित जानकारी
ही उनके पास है। यह स्पष्ट है कि वे राहुल गांधी के सम्पर्क से पार्टी में आए हैं
और उनका वह बयान प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने कहा था, कौन कैप्टेन, मेरे कैप्टेन
राहुल गांधी हैं।
पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने कहा है कि पार्टी अध्यक्ष जुलाई के
पहले या दूसरे हफ्ते तक इस मामले में कोई फैसला करेंगी। अलबत्ता पार्टी ने
मुख्यमंत्री से 18 मामलों पर काम करने को कहा है। मुख्यमंत्री इस विषय पर प्रेस
कांफ्रेंस करके जानकारी देंगे। दूसरी तरफ हाईकमान ने सिद्धू के हाल के बयानों को
लेकर भी अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बनी तीन
सदस्यीय समिति ने सिद्धू को दिल्ली बुलाया है और अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा
है।
सूत्रों के मुताबिक हाईकमान ने माना है कि सिद्धू को किसी भी तरह के मतभेद की बात पार्टी फोरम में ही रखनी चाहिए थी। पार्टी के पैनल ने अमरिंदर सिंह को ही 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए कैप्टन बनाए रखने पर सहमति जताई है और उन्हें टीम चुनने के लिए फ्री-हैंड दिया है।
पिछले दिनों सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर पर निजी हमला बोलते हुए कहा था कि वह
दो परिवारों के सिस्टम के खिलाफ हैं। उनका सीधा इशारा प्रकाश सिंह बादल के परिवार
और कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर था। लगता है कि उन्हें डिप्टी सीएम या फिर प्रदेश
अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलना मुश्किल है। इससे पहले उन्हें डिप्टी सीएम का पद देने
का प्रस्ताव दिया गया था। पार्टी सूत्रों का कहना था कि सिद्धू ने डिप्टी सीएम
बनने से इनकार कर दिया है और प्रदेश अध्यक्ष का ही पद चाहते हैं।
दूसरी तरफ अमरिंदर सिंह को जिस तरह से समिति के सामने पेश होकर सफाई देनी
पड़ी है, उससे यह भी जाहिर होता है कि उनकी बातों पर बहुत भरोसा नहीं है। उन्होंने
समिति के सामने कुछ तथ्य रखे हैं, जिनकी अब पड़ताल होगी। अमरिंदर सिंह ने समिति से
कहा है कि सिद्धू पर लगाम लगाना जरूरी है, क्योंकि उनके बयानों से स्थिति बिगड़
रही है।
पार्टी ने 2017 के चुनाव में जो वायदे किए थे, उनमें बरगाड़ी बेअदबी प्रकरण
में कार्रवाई करने, नशे के कारोबार, रेत और ट्रांसपोर्ट माफिया के खिलाफ कार्रवाई
करने, शहरी परिवारों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने, बिजली के दोषपूर्ण समझौतों को
रद्द करने, अनुसूचित जाति के बच्चों को छात्रवृत्तियाँ देने और दलितों के कर्जों
को माफ करने के वायदे शामिल हैं।
पंजाब में कांग्रेस की सत्ता आने के एक साल के बाद ही कैप्टन और सिद्धू के
बीच मतभेद शुरू हो गए थे। सन 2017 के विधानसभा चुनावों के पहले जब सिद्धू पार्टी में
शामिल हुए थे, तब उन्हें अच्छे ओहदे की उम्मीद थी, पर वे कैप्टेन की आँखों में
खटकते रहे। सिद्धू को पर्यटन और स्थानीय निकाय जैसे मंत्रालय दिए गए थे, लेकिन बाद
में वे सिद्धू के बयानों से नाराज हो गए। इन मतभेदों की वजह से सिद्धू ने जून 2019
में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
हाल ही में सिद्धू ने बरगाड़ी मामले और कोटकपुरा फायरिंग की जांच में ढिलाई
बरतने का आरोप लगाया था। यह जांच मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय कर
रहा है। प्रेक्षकों का अनुमान है कि सिद्धू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद चाहते
हैं। अभी पार्टी के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ अध्यक्ष हैं, जो कैप्टेन के करीबी हैं।
विधानसभा चुनाव के टिकट देने में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होगी, जिससे भविष्य
की सरकार बनाने में मदद मिलेगी। कैप्टेन को निशाना बनाने वाले अब अकेले सिद्धू ही
नहीं हैं। सुखजिंदर रंधावा जैसे कुछ सीनियर मंत्री भी अब सिद्धू के साथ हैं। कुल
मिलाकर एक दर्जन से ज्यादा विधायक और मंत्री कैप्टेन से नाराज हैं।
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