कोरोना का सबसे बड़ा सबक है कि दुनिया को जीवन-रक्षा पर निवेश की कोई प्रणाली विकसित करनी होगी, जो मुनाफे और कारोबारी मुनाफे की कामना से मुक्त हो। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्तूबर में विश्व व्यापार संगठन में कोरोना वैक्सीनों को पेटेंट-मुक्त करने की पेशकश की थी। इसे करीब 100 देशों का समर्थन प्राप्त था। हालांकि अमेरिका ने केवल कोरोना-वैक्सीन पर एक सीमित समय के लिए छूट देने की बात मानी है, पर वैक्सीन कम्पनियों को इसपर आपत्ति है। यूरोपियन संघ ने भी आपत्ति व्यक्त की है।
भारत ने डब्ल्यूटीओ की ट्रिप्स (TRIPS) काउंसिल से सीमित वर्षों के लिए कोविड-19 की रोकथाम और उपचार के लिए ट्रिप्स समझौते के विशिष्ट प्रावधानों के कार्यान्वयन, आवेदन और प्रवर्तन से छूट देने का आग्रह किया है। यूरोपीय संघ ने प्रस्तावित कोविड-19 वैक्सीन के वास्तविक मुद्दे को संबोधित करने के बजाय, पेटेंट पूल के विषय को लाकर मुद्दे को भटकाने की रणनीति अपनाई है। इसके पहले सन 2003 में डब्लूटीओ ने गरीब देशों के हितों की रक्षा के लिए दवाओं के मामले में अपने कुछ नियमों में बदलाव किया था।
डब्लूटीओ की निर्णय-प्रक्रिया
बहुत सुस्त है। उसे फैसला करने में ही महीनों लगेंगे। दुनिया के गरीब देशों के
सामने इस समय सबसे बड़ा संकट वैक्सीन प्राप्ति का है। ट्रेड रिलेटेड इंटलेक्चुअल
प्रॉपर्टी राइट्स (ट्रिप्स) इसमें बाधा बनते हैं। औषधि कम्पनियों का कहना है कि
अनुसंधान-कार्यों को आकर्षक बनाए रखने के लिए पेटेंट को बनाए रखना जरूरी है। भारत
समेत विकासशील देशों का कहना है कि यह वैश्विक आपदा है। इस खास अवसर पर वैक्सीनों और
महामारी से जुड़ी दवाओं को पेटेंट-मुक्त करने की माँग की जा रही है।
शुरू में अमेरिका ने
इस माँग का समर्थन नहीं किया था, पर बाद में डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर से यह
माँग उठने पर मई में जो बाइडेन ने इस माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। अब यह प्रस्ताव
फिर से डब्लूटीओ के सामने गया है। इसके प्रस्तावकों में भारत भी शामिल है। अक्तूबर
में जब भारत और दक्षिण अफ्रीका ने यह प्रस्ताव रखा था, तब अमेरिका के केंटकी राज्य
का उदाहरण दिया था, जहाँ के गवर्नर एंडी बैशेयर ने एन-95
रेस्पिरेटरों की कमी होने पर उसके निर्माताओं से कहा था कि वे उत्पादन बढ़ाने
के लिए उसे पेटेंट-मुक्त कर दें।
हालांकि आपातकाल में
सरकारों के पास कम्पनियों को किसी उत्पाद का पेटेंट न होने पर भी उसे बनाने की
अनुमति देने का अधिकार होता है, पर वह लम्बी प्रक्रिया है और उसमें कानूनी
दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। पेटेंट-मुक्ति पहला कदम है। उसके बाद भी बहुत से देशों
में वैक्सीन नहीं बन पाएगी, क्योंकि उनके पास तकनीकी जानकारी नहीं है।
यह सुझाव भी दिया जा
रहा है कि अमेरिका अपने यहाँ वैक्सीन का भंडारण करने के बजाय दूसरे देशों को दे।
साथ ही ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, फ्रांस, जापान और ब्रिटेन जैसे देश अपने यहाँ
वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाएं और गरीब देशों को दें।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-06-2021को चर्चा – 4,085 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
"हालांकि आपातकाल में सरकारों के पास कम्पनियों को किसी उत्पाद का पेटेंट न होने पर भी उसे बनाने की अनुमति देने का अधिकार होता है, पर वह लम्बी प्रक्रिया है।"- यही आवश्यक लम्बी प्रक्रिया आम इंसान की आवश्यकता नहीं समझ पाती है .. शायद ...
ReplyDeleteनमन आपको ...