Tuesday, June 8, 2021

फिर से शुरू हुई वायरस के स्रोत की वैश्विक-खोज


अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 26 मई को अपनी खुफिया एजेंसियों से कहा कि वे कोरोना वायरस के मूल-स्रोत की जांच में तेजी लाएं। इसके पहले भी उन्होंने पूछताछ की थी। वह दरयाफ्त गोपनीय थी, पर अब बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से छानबीन की बात करके और 90 दिन की समय-सीमा देकर मसले को गम्भीर बना दिया है।

हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सम्मेलन में भी जाँच की माँग उठाई गई है। यूरोपियन यूनियन ने भी जाँच से जुड़ा एक दस्तावेज डब्लूएचओ की तरफ बढ़ाया है। भारत ने पहली बार आधिकारिक रूप से जाँच का समर्थन किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि डब्लूएचओ-रिपोर्ट इसका पहला चरण था। किसी फैसले तक पहुंचने के लिए और अध्ययन की जरूरत है।

अंदेशा है कि कोविड-19 का वायरस या तो वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलॉजी या उसके पास ही स्थित एक दूसरी प्रयोगशाला से दुर्घटनावश निकला है। पिछले साल कयास था कि वायरस को जैविक हथियार के रूप में विकसित किया जा रहा है। प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने साजिश की उस थ्योरी को खारिज किया था। फरवरी 2020 में लैंसेट में प्रकाशित आलेख में इन वैज्ञानिकों ने लिखा कि यह ज्यादा से ज्यादा ज़ूनॉटिक-स्पिलओवर हो सकता है। यानी कि वायरस किसी जानवर के शरीर से निकल कर किसी मनुष्य को संक्रमित कर गया। सन 2002 में सार्स संक्रमण में भी ऐसा हुआ था।

वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलॉजी नाम की संस्था में चमगादड़ में कोरोना वायरस की मौजूदगी पर दशकों से शोध चल रहा है। वुहान की यह प्रयोगशाला हुआनन 'वेट' मार्केट (पशु बाज़ार) से बस चंद किलोमीटर दूर है। इसी वेट मार्केट में संक्रमण का पहला क्लस्टर सामने आया था।

डब्लूएचओ की जाँच

इस साल जनवरी के अंत में विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम जाँच के लिए वुहान गई थी। टीम ने वहाँ 14 दिन बिताए। इन वैज्ञानिकों ने कहा कि लैब-लीक की संभावना कम है। अब इस टीम के निष्कर्षों पर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट की आलोचना करने वाले वैज्ञानिकों ने साइंस मैग्ज़ीन में लिखा, "जब तक पर्याप्त डेटा नहीं मिलता तबतक हमें दोनों अवधारणाओं को गम्भीरता से लेना होगा।"

चीन के 17 विशेषज्ञों और 17 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के समूह की जाँच के बाद 120 पेज का एक दस्तावेज़ तैयार किया गया। रिपोर्ट में वायरस की उत्पत्ति और उसके इंसानों में फैलने के बारे में चार सम्भावनाएं बताई गईं:

1.जानवर से इंसान में संक्रमण। यह वायरस जिस जंतु से पहुँचा है वह चमगादड़ हो सकता है। चमगादड़ में कई वायरस होते हैं जो इंसानों में फैल सकते हैं। पैंगोलिन या मिंक भी ऐसे जंतु हो सकते हैं। 2.बीच में एक और जंतु की संभावना। जिस जंतु को पहली बार कोरोना हुआ हो, उसने इंसानों से पहले किसी अन्य जानवर को संक्रमित किया हो। उससे फिर इंसान संक्रमित हुए हों।

चमगादड़ में पाए गए सार्स-कोविड-2 वायरस में कुछ भिन्नताएं हैं जो बताती हैं कि बीच में कोई ‘कड़ी ग़ायब’ है। यह ग़ायब कड़ी कोई जानवर हो सकता है जो पहली बार संक्रमित हुए जानवर और इंसान दोनों के संपर्क में आया हो। ऐसे जानवर भी हो सकते हैं, जो खेती के लिए पाले जाते हैं।

3.खाद्य-सामग्री से संक्रमण। इसमें फ्रोज़न फूड शामिल हैं। फ्रोज़न उत्पादों में सार्स कोविड-2 बना रह सकता है। चीनी मीडिया इसका बार-बार उल्लेख कर रहा है। उसका इशारा विदेशी सामान की ओर है। डब्ल्यूएचओ के दस्तावेज़ के अनुसार खाद्य-सामग्री के माध्यम से सार्स कोविड-2 संचरण के निर्णायक सबूत नहीं हैं।

4.टीम का निष्कर्ष था कि प्रयोगशाला से इंसानों में फैलने की संभावना कम है। यानी कि प्रयोगशाला में हुई दुर्घटना के कारण यह वायरस वहां के कर्मियों में फैला हो। उन्होंने इस संभावना का विश्लेषण नहीं किया कि किसी ने जानबूझकर वायरस फैलाया हो। रिपोर्ट मानती है कि प्रयोगशालाओं में ऐसी दुर्घटनाएं दुर्लभ होती हैं, लेकिन हो सकती हैं।

वॉलस्ट्रीट जरनल का दावा

डब्ल्यूएचओ के अनुसार वुहान की प्रयोगशाला के एक भी कर्मचारी को दिसंबर 2019 से कुछ महीनों या सप्ताह पहले कोविड-19 से संबंधित कोई बीमारी नहीं मिली। पर वॉलस्ट्रीट जरनल की एक रिपोर्ट ने इस तथ्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। अखबार ने अमेरिकी इंटेलिजेंस के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा है कि सन 2019 के नवंबर में संक्रमण की शुरूआत होने के पहले वुहान प्रयोगशाला के तीन शोधकर्ताओं की अस्पताल में चिकित्सा की गई थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि संक्रमण की शुरूआत वुहान प्रयोगशाला के बहुत निकट से हुई है।

बाइडेन की टिप्पणी के फौरन बाद, अमेरिका में चीनी राजदूत ने लैब लीक थ्योरी को साजिश बताया। उन्होंने हालांकि अमेरिका का नाम नहीं लिया, पर इतना कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें वायरस का दोष हमारे मत्थे मढ़ रही हैं। तीन शोधकर्ताओं के बीमार होकर अस्पताल जाने की ख़बर को चीन ने 'पूरी तरह झूठ' बताया।

चीनी घेराबंदी?  

अभी तक जो भी जानकारी है, वह परिस्थितिजन्य है। वैज्ञानिक साक्ष्य किसी के पास नहीं हैं। अमेरिकी खुफिया टीम जाँच कैसे करेगी? खासतौर से तब, जब चीन सरकार उसे कोई जानकारी नहीं देगी। इस दौरान एक बात यह भी निकलकर आई है कि वुहान की प्रयोगशाला को अमेरिका से आर्थिक सहायता भी मिली है और वायरस से जुड़े शोध में सहायता भी। क्या राष्ट्रपति के चिकित्सा सलाहकार एंटनी फाउची के पास कोई ऐसी जानकारी दबी हुई है, जो वे सामने नहीं ला रहे हैं?

वॉलस्ट्रीट जर्नल के अनुसार अमेरिकी ख़ुफ़िया रिपोर्ट में वुहान लैब के बीमार शोधकर्ताओं की संख्या, उनके बीमार पड़ने के समय और अस्पताल जाने से जुड़ी विस्तृत जानकारियाँ हैं। प्रतिष्ठित विज्ञान-सम्पादक निकोलस वेड का कहना है कि इस सिलसिले में चीन सरकार लगातार प्रचार कर रही है। इस मामले को राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए। यह मामला वैज्ञानिक तथ्य का पता लगाने से जुड़ा है। वेड ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ (एनआईएच) को लेकर भी सवाल खड़े किए और कहा कि उसकी जिम्मेदारी है कि वह वायरस के उद्गम का सावधानी से पता लगाए साथ ही वुहान की प्रयोगशाला की फंडिंग से जुड़ी जानकारी भी दे।

हालांकि वैज्ञानिक इस वायरस को प्राकृतिक मानते हैं, पर ऐसे भी हैं, जो मानते हैं कि प्रयोगशाला में ऐसे वायरस तैयार करने की युक्तियों पर काम करना सम्भव है। पिछले 13 मई को प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में वैज्ञानिकों के एक ग्रुप का पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि यह मामला ज़ूनॉटिक-स्पिलओवर और लैब-लीक दोनों में से कोई एक हो सकता है। यह जाँच चीनी सहायता के बगैर सम्भव नहीं। और चीन इस विषय पर किसी भी चर्चा को राजनीतिक साजिश बता रहा है, जबकि वैज्ञानिक समुदाय विज्ञान-सम्मत जाँच की बात कर रहा है।   

राजनीतिक रंग

इसके पहले भी सन 2018 में जब अमेरिकी अधिकारियों ने डब्लूएचओ की गाइडलाइंस के तहत एवियन फ्लू के एच7एन7 स्ट्रेन से जुड़े लैब सैम्पल माँगे थे, तब चीन ने उसे ठुकरा दिया था। सन 2002-04 के बीच सार्स की बीमारी चीन में भड़की थी। उसके पीछे भी इसी किस्म का वायरस था। उसके बाद चीन ने वायरस के प्रसार की आशंकाओं को दूर करने के लिए मॉनिटरिंग की व्यवस्था में सुधार किया था और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने उस काम में सहयोग किया था।

कोई नहीं कह रहा कि लैब-लीक हुआ है। केवल इतना कहा जा रहा है कि एक सम्भावना यह भी है, इसलिए जाँच होनी चाहिए। चीन की अपारदर्शी व्यवस्था के कारण पिछले साल मामला विवादास्पद हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी चीन के साथ लपेट लिया गया। उन्हीं दिनों ताइवान सरकार ने आरोप लगाया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन की चापलूसी कर रहा है। हमने दिसम्बर में ही डब्लूएचओ को संकेत दे दिया था कि कुछ गलत होने जा रहा है, पर हमारी अनदेखी की गई। डब्लूएचओ केवल चीन को मान्यता देता है, ताइवान को नहीं। स्वास्थ्य जैसे मामलों में तो सबकी बात पर ध्यान जाना चाहिए, पर शायद डब्लूएचओ चीन की संवेदनशीलता का सम्मान करता है।

चीन ने 20 जनवरी 2020 को माना कि संक्रमण मनुष्यों से मनुष्यों में हो रहा है, जबकि डब्लूएचओ को जनवरी के मध्य में आंशिक रूप से इस बात के प्रमाण मिल चुके थे कि संक्रमण हो रहा है। चीन के दबाव में वह पलट गया और 14 जनवरी के ट्वीट में उसने कहा कि चीनी अधिकारियों के अनुसार इस बात के प्रमाण नहीं हैं। इसके छह दिन बाद ही चीन को प्रमाण मिल गए।

दिसंबर के अंत में जब वुहान के अस्पताल में वायरस का पहला मामला सामने आया था, तो ह्विसिल ब्लोवर डॉक्टर ली वेन लियांग ने अपने सहकर्मियों और अन्य लोगों को चीनी सोशल मीडिया ऐप वीचैट पर बताया कि देश में सार्स जैसे वायरस का पता चला है। इसपर पुलिस ने वेन लियांग को धमकियाँ दीं। कोरोना की चपेट में आने से फरवरी में उनकी मौत भी हो गई। बाद में कम्युनिस्ट पार्टी की अनुशासन समिति ने माना कि हमसे गलती हुई है।

नवजीवन में प्रकाशित

 

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