Friday, June 25, 2021

जम्मू-कश्मीर में अब तेज होगी चुनाव-क्षेत्रों के परिसीमन की व्यवस्था


कश्मीर में पहले परिसीमन, फिर चुनाव और पूर्ण राज्य का दर्जा। सरकार ने अपना रोडमैप स्पष्ट कर दिया है। संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद मार्च  2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक साल का समय दिया गया था, जिसे इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है।

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव होंगे। 6 मार्च, 2020 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में आयोग का गठन किया। जस्टिस देसाई के अलावा चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर राज्य के चुनाव आयुक्त केके शर्मा आयोग के सदस्य हैं। इसके अलावा आयोग के पाँच सहायक सदस्य भी हैं, जिनके नाम हैं नेशनल कांफ्रेंस के सांसद फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी। ये तीनों अभी तक आयोग की बैठकों में शामिल होने से इनकार करते रहे हैं। अब आशा है कि ये शामिल होंगे। इनके अलावा पीएमओ के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह और भाजपा के जुगल किशोर शर्मा के नाम हैं।

इस आयोग को एक साल के भीतर अपना काम पूरा करना था, जो इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। कोरोना के कारण आयोग निर्धारित समयावधि में अपना काम पूरा नहीं कर पाया। यदि लद्दाख की चार सीटों को अलग कर दें, तो पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र की सीटों को मिलाकर इस समय की कुल संख्या 107 बनती है, जो जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत 111 हो जाएगी। बढ़ी हुई सीटों का लाभ जम्मू क्षेत्र को मिलेगा।  

परिसीमन का अर्थ है चुनाव क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण। लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को तय करने की व्यवस्था को परिसीमन कहते हैं। आमतौर पर यह प्रक्रिया मतदान के लिए होती है। संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत केंद्र सरकार द्वारा हर जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है। परिसीमन में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि राज्य के सभी चुनावी क्षेत्रों में विधानसभा सीटों की संख्या और क्षेत्र की जनसंख्या का अनुपात समान रहे। साथ में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य तौर पर एक से अधिक ज़िले नहीं हो।

जहां तक ​​लोकसभा सीटों का सवाल है, जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन अन्य राज्यों के साथ हुआ, लेकिन विधानसभा सीटों का सीमांकन उस अलग संविधान के अनुसार किया गया, जो जम्मू-कश्मीर को अपनी विशेष स्थिति के आधार पर मिला था। वहाँ पहले परिसीमन आयोग का गठन साल 1952 में किया गया। इसके बाद 1963, 1973 और 1995 में परिसीमन हुआ। अंतिम परिसीमन 1995 में जस्टिस केके गुप्ता की अध्यक्षता में बने आयोग के नेतृत्व में हुआ था।

सन 1995 में जो परिसीमन हुआ था, उसका आधार 1981 की जनगणना थी। इसके आधार पर 1996 में विधानसभा चुनाव हुए थे। राज्य में आतंकी गतिविधियों के कारण 1991 की जनगणना नहीं हो पाई थी। सन 2001 में जनगणना हुई, पर 2005 में होने वाला अगला परिसीमन नहीं हुआ, क्योंकि 2002 में फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू कश्मीर जन-प्रतिनिधित्व कानून-1957 में संशोधन करके परिसीमन को 2026 तक के लिए फ़्रीज़ कर दिया था। उधर राष्ट्रीय स्तर पर सन 2002 में संविधान के 84वें संशोधन के बाद परिसीमन को 2026 तक के लिए रोक दिया गया। परिसीमन की प्रक्रिया को रोकने के पीछे सरकार का तर्क यह था कि साल 2026 तक सभी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का औसत समान हो जाएगा।

अनुच्छेद 370 के हटने के पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या 87 थी, जिसमें जम्मू क्षेत्र की 37, घाटी की 46 और लद्दाख की चार सीटें थीं। इनके अलावा 24 सीटें पाकिस्तान-अधिकृत क्षेत्र के नाम पर हमेशा खाली रहती थीं।

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