सोमवार 22 फरवरी को पुदुच्चेरी में वी नारायणसामी के इस्तीफे के बाद दक्षिण भारत में कांग्रेस की एकमात्र सरकार का पतन हो गया। अब केवल पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। इनके अलावा महाराष्ट्र और झारखंड के सत्तारूढ़ गठबंधनों में वह शामिल है। एक साल के भीतर उसकी दूसरी सरकार का पतन हुआ है। उसके पहले कर्नाटक की सरकार गई थी और पिछले साल सचिन पायलट के असंतोष के कारण राजस्थान में सरकार पर संकट आया था।
पर्यवेक्षकों के सामने अब दो-तीन सवाल हैं। अगले कुछ महीनों में पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं। इनमें पुदुच्चेरी के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं। सवाल है कि इन चुनावों में कांग्रेस की सम्भावनाएं क्या हैं और उनसे आगे पार्टी की राजनीति किस रास्ते पर जाएगी? दूसरा सवाल पार्टी संगठन को लेकर है। पार्टी अध्यक्ष का चुनाव फिलहाल जून तक के लिए टाल दिया गया है। तबतक इन पाँचों राज्यों के चुनाव परिणाम आ जाएंगे, जिनसे पार्टी की दिशा और साफ होगी।
नेतृत्व का
सवाल
पिछले कुछ समय से
संसद के दोनों सदनों में कांग्रेसी रणनीति के अंतर्विरोध दिखाई पड़ रहे थे। लोकसभा
में राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी अपेक्षाकृत आक्रामक रही है। उनका साथ दिया
अधीर रंजन चौधरी, गौरव गोगोई, के सुरेश, मणिकम टैगोर और रवनीत सिंह बिट्टू ने। राज्यसभा
में पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद और उनके सहायक आनंद शर्मा की भूमिका से हाईकमान
संतुष्ट नजर नहीं आया। ये दोनों 23 उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने पिछले साल
अपना असंतोष व्यक्त करते हुए पार्टी अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी थी।
मई 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष हैं, पर व्यावहारिक रूप से राहुल गांधी ही सर्वेसर्वा हैं। उन्होंने अपने विश्वासपात्र जितेन्द्र सिंह को असम की, तारिक अनवर को केरल की, जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल की और दिनेश गुंडूराव को तमिलनाडु और पुदुच्चेरी की जिम्मेदारी दी है। पाँचों गठबंधनों पर राहुल गांधी की मुहर ही होगी।
विधानसभा चुनावों
के परिणामों का असर पार्टी संगठन और उसके आंतरिक चुनाव पर भी होगा। असम, केरल और
पुदुच्चेरी के साथ कांग्रेस की भविष्य की राजनीति जुड़ी है। केरल के बारे में माना
जाता है कि वहाँ हरेक पाँच साल में सरकार बदलती है, पर क्या इसबार भी बदलेगी? यदि नहीं बदली, तो यह एक नई परम्परा होगी। पुदुच्चेरी छोटा राज्य है, और
दक्षिण में केरल के बाद कांग्रेसी राजनीति का दूसरा महत्वपूर्ण ध्वजवाहक। दोनों
राज्यों में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दाँव पर है। कांग्रेस की दिलचस्पी केवल अपने
प्रदर्शन पर केंद्रित नहीं रहेगी। बीजेपी के प्रदर्शन से भी कांग्रेस की प्रतिष्ठा
जुड़ी है।
पुदुच्चेरी के
मायने
पुदुच्चेरी में बीजेपी
का अद्रमुक और एनआर कांग्रेस एनआर (नमतु राज्यम) कांग्रेस के साथ गठबंधन होगा।
एनआर कांग्रेस के नेता एन रंगासामी पहले मुख्यमंत्री भी रहे हैं। कांग्रेस से
इस्तीफे देने वाले पाँच विधायकों में से तीन बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। सम्भव
है कि पार्टी छोड़कर कुछ और लोग बाहर जाएं। प्रश्न यह है कि इस केंद्र शासित राज्य
में क्या यह गठबंधन नई ताकत बनेगा और कांग्रेस को राज्य से अपदस्थ करने में कामयाब
होगा?
जनवरी में डीएमके
के अध्यक्ष ने कहा था कि पुदुच्चेरी में हम सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े
करेंगे। पर अभी दोनों के गठबंधन की सम्भावनाएं भी हैं। इस प्रक्रिया में सम्भव है
कि द्रमुक को भी कुछ लाभ हो, पर उसका निहितार्थ है कांग्रेस का एक कदम पीछे जाना।
यह भी बीजेपी की रणनीति का एक बिंदु है। दूसरे बीजेपी इस राज्य में अपने
प्रभाव-क्षेत्र को बढ़ाना चाहती है, जिससे तमिलभाषी जनता के बीच उसका आधार बने।
नारायणसामी सरकार
के प्रभावशाली सदस्य ए नमस्सिवायन कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
उनका विल्लियानुर चुनाव क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। ऐसे नेता पार्टी के असर को
बढ़ाने में मददगार होंगे। कांग्रेस को उम्मीद है कि चुनाव के ठीक पहले सरकार गिरने
से वोटर के मन में उसके लिए हमदर्दी पैदा होगी। यह उम्मीद पूरी होती है या नहीं,
यह देखना होगा।
तमिलनाडु का
गणित
तमिलनाडु में सीटों
के बँटवारे पर अब बातें शुरू हुई हैं। सन 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहाँ
41 सीटों पर चुनाव लड़ा था, पर उसे केवल आठ पर सफलता मिली, जबकि डीएमके ने 180
सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 88 पर उन्हें सफलता मिली। कांग्रेस 2019 के लोकसभा
चुनाव में तमिलनाडु से मिली सफलता का उल्लेख करती है। उसने नौ सीटों पर चुनाव
लड़ा, जिनमें से आठ पर उसे जीत मिली। इसबार यह गठबंधन ज्यादा बड़ा है। इसमें
कांग्रेस और डीएमके के अलावा वामपंथी दल, विरुथलाई चिरुथाइगल काच्ची (वीसीके)
एमडीएमके, इंडियन मुस्लिम लीग और कुछ और दल हैं। सवाल है कि इसबार सीटों का
बँटवारा किस प्रकार होता है।
राहुल गांधी के
डीएमके के अध्यक्ष एमके स्टैलिन के साथ अच्छे रिश्ते हैं, पर कांग्रेस के साथ
बिहार का अनुभव जुड़ा है। पिछले साल बिहार में हुए चुनाव में कांग्रेस-राजद गठबंधन
की विफलता के पीछे एक कारण यह भी बताया जाता है कि कांग्रेस अपनी सामर्थ्य से
ज्यादा सीटें हासिल करने में सफल रही थी। बिहार की विफलता के कारण अब दूसरे
राज्यों में सीटों के बँटवारे में उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
कांग्रेस ने तमिलनाडु में 75 सीटों को चिह्नित किया है, जिनमें उसे जीत की आशा है।
इसके अलावा वह ऐसे कुछ चुनाव क्षेत्रों की ओर इशारा करती है, जहाँ डीएमके को
कांग्रेस के साथ गठबंधन का लाभ मिलेगा।
केरल की चिंता
कांग्रेस की
ज्यादा बड़ी फिक्र केरल को लेकर है। पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की इज्जत
केरल के वायनाड में बची थी। इतना ही नहीं लोकसभा में राज्य की 20 में से 19 पर
कांग्रेस की जीत से कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों की प्रतिष्ठा बढ़ी थी। पर क्या
विधानसभा चुनाव में भी वही चमत्कार दिखाई पड़ेगा? राज्य में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में वाममोर्चा
को जो सफलता मिली है, उससे कांग्रेस की चिंता बढ़नी चाहिए। केरल का हर बार सरकार
बदलने का इतिहास है। एक चुनाव में सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट
(एलडीएफ) की जीत होती है, तो
अगले में कांग्रेस के अगुआई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की।
कांग्रेस को सफलता नहीं मिली, तो यह चिंता की बात होगी। देखना यह भी होगा कि ई
श्रीधरन के आने से बीजेपी को क्या लाभ मिलेगा।
असम का मोर्चा
असम में सन 2001
के बाद से लगातार 15 साल तक कांग्रेस सत्ता में रही। 2016 के चुनाव में किसी
पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था, पर 60 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी सबसे
बड़े दल के रूप में उभरी थी। इसबार कांग्रेस ने पाँच पार्टियों के साथ महागठबंधन
किया है। इनमें ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (एमएल) और आंचलिक गण मोर्चा शामिल
हैं। गठबंधन में सीटों के बँटवारे की समस्या होगी। कांग्रेस का कहना है कि 126
सीटों वाली विधानसभा में हम 97 सीटों पर लड़ सकते हैं और बाकी सहयोगियों के लिए
छोड़ सकते हैं। पर क्या एआईयूडीएफ इसके लिए तैयार हो जाएगी, जिसे पिछले चुनाव में
कांग्रेस से एक सीट ज्यादा मिली थी?
असम में कांग्रेस
दो बातों के सहारे है। गठबंधन के अलावा पार्टी को उम्मीद है कि नागरिकता संशोधन
कानून पर उसका रुख गेम चेंजर होगा। अपने शुरुआती चुनाव अभियान में राहुल गांधी ने
एक गमछा पहना था, जिस पर लिखा
था 'सीएए नहीं।' कांग्रेस कह चुकी है कि सत्ता में आई तो राज्य में सीएए
लागू नहीं होगा। पर तरुण गोगोई के निधन के बाद पार्टी के पास राज्य में कोई
प्रभावशाली नेता नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा को लेकर काफी लोगों
में नाराजगी है।
कांग्रेस ने कहा
है कि हम चुनाव में ‘छत्तीसगढ़
मॉडल’ पर काम करेंगे। इसके
लिए ट्रेनिंग चल रही है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह बघेल असम में
वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाए गए हैं। शिवसागर में 14 फरवरी को रैली के जरिए असम में
प्रचार अभियान की शुरुआत के वक्त राहुल गांधी के साथ बघेल भी थे। उनके प्रयास से
ही पार्टी का एआईडीयूएफ के साथ गठबंधन हो पाया है, हालांकि पार्टी के भीतर काफी
लोगों का कहना है कि यह गठबंधन पार्टी को नुकसान पहुँचाएगा, क्योंकि स्थानीय लोग
पार्टी से दूर चले जाएंगे।
पश्चिम बंगाल
पश्चिमी बंगाल के
प्रभारी जितिन प्रसाद हैं, पर हाईकमान को अधीर रंजन चौधरी पर भरोसा ज्यादा है।
सवाल है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला किससे है? क्या वाम-कांग्रेस मोर्चा, तृणमूल के वोट नहीं काटेगा? सन 2016 में इस गठबंधन को 77 सीटें मिली थीं। अब इन
दोनों पार्टियों के अस्तित्व का सवाल है। खासतौर से करीब 34 साल तक लगातार राज्य
पर शासन करने वाले वाममोर्चा का। इन्हें राज्य में पैर रखने लायक जमीन नहीं मिली,
तो दोनों का भविष्य अंधकार में है।
कांग्रेस की
सम्भावनाओं को समझने के पहले देखना होगा कि बंगाल में बीजेपी तेजी से उभरी है। सन
2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 120 से ज्यादा विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में
बढ़त मिली थी। राज्य के 294 विधानसभा क्षेत्रों में से 260 से ज्यादा में अब
बीजेपी की जबर्दस्त उपस्थिति है। दूसरी तरफ वाममोर्चा 2019 के लोकसभा चुनाव में
बंगाल की 42 में से एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुआ था। उसके प्रत्याशियों की 39
सीटों पर जमानत जब्त हुई थी। कांग्रेस को दो सीटें मिलीं थीं और 38 स्थानों पर
उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। बीजेपी को 18 और तृणमूल कांग्रेस को 22
सीटें मिली थीं।
सन 2016 के
विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा था। कांग्रेस और
वाममोर्चे को कुल 294 में से 76 पर विजय मिली। इनमें कांग्रेस की 44 और वाममोर्चे
की 32 सीटें थीं। दोनों दलों को कुल मिलाकर 38 फीसदी वोट मिले थे, जिनमें से 26.6
फीसदी वाममोर्चे के थे और 12.4 फीसदी कांग्रेस के। बहुमत के लिए 148 सीटों की
दरकार होगी। पार्टी ने अपने संगठनात्मक आधार का भी विस्तार किया है।
पिछले लोकसभा
चुनाव में तृणमूल को 22 सीटें और 43 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी को 18 सीटें
और 40.3 फीसदी वोट मिले। बीजेपी का वोट प्रतिशत 2016 के 10.28 से बढ़कर 2019 में
40.3 पर जा पहुँचा वहीं, वाममोर्चे का 26.6 से घटकर 7.5 प्रतिशत पर आ गया।
कांग्रेस का वोट प्रतिशत 12.4 से घटकर 5.6 प्रतिशत हो गया।
मुसलमान वोटर
बंगाल के मुसलमान
वोटर आमतौर पर तृणमूल कांग्रेस का साथ देते हैं। पर अब वे संशय में हैं। अम्फान
चक्रवात के बाद सहायता-कुप्रबंध और जमीनी स्तर पर तृणमूल कार्यकर्ताओं की बेईमानी
से मुसलमान वोटर भी नाराज हैं। इन्हें कांग्रेस और वाममोर्चा लुभाने की कोशिश
करेंगे, पर असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रवेश से इनका सीन भी बदला है।
उधर फुरफुरा शरीफ
के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) बनाकर धमाका किया है।
शुरू में लगा था कि उनका असदुद्दीन ओवेसी के ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तहादुल
मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ गठबंधन होगा, पर अब खबरें हैं कि कांग्रेस और
वाममोर्चे के गठबंधन के साथ भी वे जा सकते हैं। फुरफुरा शरीफ को ममता सरकार का
करीबी माना जाता था। ओवेसी ने अपने पिछले बंगाल दौरे में अब्बास से सम्पर्क साधा और
कहा कि हमारी पार्टी वही करेगी, जो पीरजादा कहेंगे। बाद में अब्बास सिद्दीकी ने अपनी नई पार्टी इंडियन सेकुलर
फ्रंट बना ली।
बिहार में ओवेसी
की रणनीति से कांग्रेस को नुकसान हो चुका है। बंगाल में मुस्लिम वोट की दिशा क्या
होगी, अभी स्पष्ट नहीं है। जब अब्बास सिद्दीकी से पूछा गया कि नया संगठन बनाने और
चुनाव लड़ने से क्या अल्पसंख्यक वोटों का बँटवारा होगा, जिससे तृणमूल कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है,
सिद्दीकी ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी
की चुनाव संभावनाओं के बारे में चिंता करना हमारा काम नहीं है। ओवेसी को बांग्ला
भाषा का ज्ञान नहीं है। अब्बास सिद्दीकी
से जुड़ने पर उनका असर बढ़ सकता था। फिलहाल अभी साफ नहीं है कि मुस्लिम वोट का रुख
क्या होगा।
पाँच राज्य एक
नजर में
राज्य |
कुल सीटें |
2016 में कांग्रेस की सीटें वोट प्रतिशत |
अन्य प्रमुख दल |
असम |
126 |
12 (30.9) |
भाजपा 60 (29.5) एआईयूडीएफ 13 (13) |
पश्चिमी बंगाल |
294 |
44 (12.4) |
तृणमूल 211 (44.91) वाममोर्चा 32 (26.6) भाजपा 03 (10.16) |
तमिलनाडु |
234 |
08 (6.47) |
अद्रमुक 136 (40.88) द्रमुक 89 (31.39) भाजपा 00(2.86) |
पुदुच्चेरी |
30 |
15 (30.60) |
अद्रमुक 04 (16.8) द्रमुक 02 (8.9) एनआर कांग्रेस 8 (28.1) भाजपा 00 (1.08) |
केरल |
140 |
22 (23.8) |
वाममोर्चा 91 (43.48) यूडीएफ 47 (38.81) एनडीए 01 (14.96) |
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