रामपुर की जेल में कैद शबनम को अब जल्द ही फाँसी पर चढ़ाए जाने की खबरें आने के बाद से देश में फाँसी की सजा को लेकर बहस फिर से शुरू हो गई है। दुनिया में मानवाधिकारवादियों का एक बड़ा तबका मानता है कि मृत्युदंड समाप्त होना चाहिए। शबाना ने अब फाँसी की सजा टलवाने की आखिरी कोशिशें शुरू कर दी हैं। यदि उसे फाँसी हुई, तो वह स्वतंत्र भारत में फाँसी पाने वाली पहली महिला होगी। उसे फाँसी दी गई, तो वह मथुरा में होगी, क्योंकि देश में महिला कैदी को फाँसी देने की व्यवस्था केवल मथुरा की जेल में है।
नेशनल लॉ
युनिवर्सिटी, नई दिल्ली की सन 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 12 स्त्रियाँ
फाँसी की सजा का इंतजार कर रही हैं। ये सभी महिलाएं पिछड़े वर्गों या धार्मिक
अल्पसंख्यकों से ताल्लुक रखती हैं। फाँसी की सजा प्राप्त एक और मामला दो बहनों रेणुका
शिंदे और सीमा मोहन गवित का है। इनकी दया याचिका भी राष्ट्रपति के दफ्तर से
अस्वीकार की जा चुकी है। इनपर 1990 से 1996 के बीच महाराष्ट्र के अनेक बच्चों के
अपहरण और उनकी हत्या करने का आरोप है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले की हसनपुर तहसील के बावनखेड़ी गाँव में रहने वाली शबनम सैफी समुदाय से थी और उसका प्रेमी पठान। इस वजह से उनके परिवार इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे। अंग्रेजी और भूगोल दो विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाली शबनम शिक्षा मित्र (सरकारी स्कूलों में अध्यापिका) का काम करती थी।
शबनम का बेटा ताज
भी राष्ट्रपति से फांसी की सजा कम
करने की अपील कर रहा है। शबनम बिन ब्याही गर्भवती थी। घरवाले नाराज थे तो उसने
मां-बाप, समेत परिवार के सात
लोगों का कत्ल कर दिया था। उसने जेल में जिस बेटे ताज को जन्म दिया था उसे
पत्रकार उस्मान सैफी पाल रहे हैं जो शबनम पर किताब लिखने उससे जेल में मिलते थे।
सैफी उसे एक नई जिंदगी देना चाहते थे। सैफी कहते हैं कि मां गुनाहगार होगी लेकिन
बेटा बहुत मासूम है। ताज की मां ने चाहे जो गुनाह किया हो लेकिन बेटा तो हमेशा चाहेगा
ही कि उसकी मां हमेशा जिंदा रहे लिहाजा वह उसकी फांसी की सजा में कमी की फरियाद कर
रहा है।
नन्हा ताज कहता है,
'मैं प्रेसीडेंट अंकल जी से ये चाहता
हूं कि जो मेरी मम्मा शबनम हैं उन्हें फांसी की सजा नहीं दी जाए।' ताज अब शहर के एक बड़े स्कूल में पढ़ता है,
उस्मान वैसे तो उस शबनम की कहानी पर
किताब लिखने के लिए जेल जाते थे, जिसने मां-बाप समेत घर के सात लोगों का कत्ल कर दिया लेकिन जेल में शबनम के बच्चे
पर उन्हें इतना प्यार आया कि उसे कानूनी तौर पर घर ले आए। ताज को अपनाने वाले
पिता उस्मान कहते हैं, यही
सोचकर कि उसको अच्छी जिंदगी मिले तो मैंने यहां से जो एक किताब लिखने का प्रोग्राम
था, उसे टालकर ताज को एक बेहतर
जिंदगी देने का फैसला किया। ये लगभग छह साल, सात महीने और सात दिन जेल में रहा और उसके बाद वहां
से रिलीज होने के बाद से यह हमारे साथ है।'
शबनम का बेटा ताज
अपने नए घर में खुश है। जेल में बच्चे नहीं थे लेकिन यहां तमाम बच्चे उसके दोस्त
हैं। ताज के नए घर में उस्मान ने उससे उसके नाम का एक पेड़ भी लगाया है। ताज हर
महीने अपनी मां से मिलने जेल जाता है, वे उसे गला लगाकर चूमती है। ताज कहता है, 'जब भी जाता हूं तो गले लगती हैं फिर पूछती हैं बेटा
कैसे हो? क्या कर रहे थे?
स्कूल आपके कब खुल रहे हैं, पढ़ाई कैसी चल रही है? पापा-मम्मी को परेशान तो नहीं करते? यह सब पूछती हैं।' उस्मान और उनकी पत्नी वंदना की जिंदगी का अब सबसे
बड़ा मकसद है ताज को नई जिंदगी देना। वे इसके लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं। उस्मान
कहते हैं, 'एक बाप और बेटे का
ही रिश्ता है। और उससे बढ़कर है क्योंकि मुझे बहुत उम्मीदें हैं इस बच्चे से।
हमारी कोशिश है कि हम इसे बेहतर एजुकेशन दें, एक अच्छा इंसान बनाएं ताकि समाज में मैसेज जाए कि
हां उसकी मां ने जो अपराध किया है बच्चा अपराधी नहीं है।'
रामपुर जेल में फांसी
का इंतजार कर रही शबनम की चाची फातिमा का कहना है कि उन्हें अपने भतीजी से कोई
संवेदना नहीं है। फातिमा और उनके पति सत्तर अली ने शबनम को मिली सजा के फैसले को
सही बताया है। फातिमा कहती हैं कि उन्हें अपनी भतीजी के अपराध के बाद अब उससे कोई
मोह नहीं। वह चाहती हैं कि शबनम को ऐसी सजा मिले, जैसे की सऊदी अरब में होता है।
शबनम के चाचा
सत्तर अली अपने भाई शौकत अली के घर में ही रहते हैं। उनका कहना है कि उन्हें अपनी
भतीजी के प्रति कोई संवेदना नहीं है। सत्तर अली कहते हैं कि शबनम का फांसी पर
लटकना ही उनके परिवार के उन लोगों को न्याय दिला सकेगा, जिसकी हत्या शबनम और उसके साथी सलीम ने की थी।
वहीं शबनम के साथ
सजा पाने जा रहे सलीम की मां चमन जहां का कहना है कि वह दिन-रात अल्लाह के सामने
दुआ करती हैं। सलीम शबनम के साथ इस कांड में सजा पाने वाला शख्स है। सलीम की मां
का कहना है कि वह अल्लाह के सामने दुआ कर रही हैं और वह जो करेंगे उनका परिवार उसे
स्वीकार करेगा।
विकल्प क्या
हैं?
शबनम ने राज्यपाल
आनंदीबेन पटेल के पास दया याचिका भेजी है। शबनम को उम्मीद है कि शायद उसे इस बार
माफी मिल जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज
हो चुकी है लेकिन इस जघन्य हत्याकांड के दोषी शबनम और सलीम के पास अभी विकल्प
मौजूद हैं।
इस केस में अमरोहा
की जिला अदालत ने 2010 में दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने भी फांसी
की सजा दी थी। 2015 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी लोअर कोर्ट के
फैसले को बरकरार रखा गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से भी 11 अगस्त 2016
को शबनम की दया याचिका को ठुकरा दिया गया था।
साल 2019 में
सुप्रीम कोर्ट से शबनम की फांसी की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई थी। अब शबनम
रामपुर जेल में बंद है और अपनी फांसी की सजा का इंतजार कर रही है। शबनम से
राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास अपनी याचिका भिजवाई है तो वहीं उसके बेटे
ने भी राष्ट्रपति से मां के लिए दया की गुहार लगाई है। शबनम का बेटा नाबालिग है और
मां से मिलने जेल जाता रहता है।
फांसी की सजा
मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी
नागरिक अपराधी के लिए राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता
है। इसके अलावा संबंधित राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकती है।
राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं।
इन दो अपीलों के
बाद शबनम के पास फिलहाल उम्मीद बची है कि शायद उसे राष्ट्रपति से राहत मिल जाए। यदि
राष्ट्रपति रिव्यू पिटीशन में फैसला बरकरार रखते हैं तो शबनम फांसी की सजा पाने
वाली आजाद भारत की पहली महिला होगी। उधर शबनम की फांसी के लिए मथुरा की महिला जेल
में तैयारियां पूरी होने की खबर थी लेकिन जेल प्रशासन का कहना है कि फिलहाल उसके
पास ऐसी जानकारी नहीं है।
शबनम का डैथ वारंट
का कभी भी जारी हो सकता है और शबनम को किसी भी वक्त फांसी पर लटकाया जा सकता है। रामपुर
जेल सुपरिटेंडेंट का कहना है कि शबनम को आभास हो गया है कि मौत का फरमान कभी भी आ
सकता है। आजकल जेल में वह चुपचाप रहती है। किसी से ज्यादा बात नहीं करती है। इससे
पहले वह जेल की महिलाओं को सिलाई सिखाती थी और उनके बच्चों को भी पढ़ाती थी।
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