मुंबई कांग्रेस के नव-निर्वाचित प्रमुख अशोक उर्फ भाई जगताप ने रविवार 20 दिसंबर को संकेत दिया कि पार्टी 2022 के मुंबई नगर निकाय चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ेगी। उनका यह बयान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस बयान के बाद आया है कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सभी स्थानीय निकाय-चुनावों में मिलकर लड़ेगा। इसमें उन्होंने मुंबई नगर महापालिका भी शामिल है। उनका यह बयान नवंबर के अंतिम सप्ताह में तब आया था, जब अघाड़ी सरकार ने एक साल पूरा किया था। उन्होंने कहा था कि महा विकास अघाडी (एमवीए) के सहयोगी दल बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव सहित सभी चुनाव मिलकर लड़ेंगे।
हाल में हुए विधान परिषद में एमवीए के दलों ने मिलकर बीजेपी को शिकस्त भी दी है। अब कांग्रेस के मुंबई अध्यक्ष का यह बयान कुछ सवाल खड़े करता है। इससे कांग्रेस के भीतर भ्रम और दुविधा की स्थिति का पता भी लगता है। जगताप ने पुणे जिले के जेजुरी में पत्रकारों से कहा, "सीटों का बंटवारा करना एक मुश्किल काम है, इसलिए, हमें एक पार्टी के रूप में उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए, जो पार्टी के झंडे को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के आगामी चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ना चाहिए।"
मुंबई क्षेत्रीय
कांग्रेस कमेटी (एमआरसीसी) के अध्यक्ष के रूप में उनकी प्राथमिकताओं के बारे में
पूछे जाने पर, जगताप ने कहा कि पिछले चुनावों में कांग्रेस की
सीटों की संख्या कम हो गई है और वह सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए सभी अनुभवी
नेताओं को एकजुट करने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस ने शनिवार को चरण सिंह सपरा को
मुंबई कांग्रेस का नया कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया।
इससे पहले, एआईसीसी के महासचिव के सी वेणुगोपाल के बयान के अनुसार, "कांग्रेस अध्यक्ष ने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के नए
अध्यक्ष के रूप में अशोक अर्जुनराव जगताप की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी
है। चरण सिंह सपरा एमआरसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे।"
पर्यवेक्षक मानते
हैं कि कांग्रेस आलाकमान ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मराठी
कार्ड खेला है। भाई जगताप मौजूदा मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष एकनाथ गायकवाड़ का
स्थान लेंगे। आमतौर पर मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर गैर-मराठी
और प्रदेश अध्यक्ष का पद मराठी भाषी को देने की परंपरा रही है। इस मामले में मुंबई
में रह रहे करीब 40 लाख उत्तर भारतीय और अन्य पर-प्रांतीय वोट
बैंक को ध्यान में रखा जाता रहा है। लगता है कि कांग्रेस आलाकमान ने इस बार सीधे
तौर पर मराठी भाषी भाई जगताप को अध्यक्ष बनाकर शिवसेना मुकाबले का मन बनाया है।
दूसरे पर्यवेक्षक इस परिवर्तन को एक और तरीके से देख रहे
हैं। उनका कहना है कि मुंबई कांग्रेस की नई कोर टीम का ऐलान तो कर दिया गया, लेकिन चुपके से उसकी स्वायत्तता
छीन ली गई। अब तक महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) और मुंबई रीजनल
कांग्रेस कमेटी (एमआरसीसी) दो स्वायत्त इकाइयों की तरह काम करती आ रही हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है जब एमपीसीसी के अध्यक्ष को एमआरसीसी की स्क्रीनिंग
और स्ट्रैटजी कमेटी का चेयरमैन बनाकर मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष के अधिकार कम कर दिए
गए हैं।
स्क्रीनिंग और स्ट्रैटजी कमेटी का काम चुनावों के दौरान उम्मीदवारों का चयन करना टिकटों का बंटवारा करना और चुनाव जीतने की रणनीति बनाना होता है। मूलतः बीएमसी चुनावों के लिए यह काम एमआरसीसी यानी मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष करता रहा है, लेकिन इस बार यह अधिकार मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष को न होकर महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को दे दिए गए हैं और मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष को एमपीसीसी अध्यक्ष के अधीनस्थ कर दिया गया है।
नई कोर टीम में उत्तर भारतीयों को कोई प्रतिनिधित्व दिए जाने से न सिर्फ उत्तर
भारतीय समाज बल्कि कांग्रेस पार्टी के उत्तर भारतीय कार्यकर्ता भी काफी नाराज हैं।
मुंबई कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी विश्वबंधु राय ने तो सीधे कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में हिंदू उत्तर भारतीयों की हो रही उपेक्षा
के कारण आगामी बीएमसी चुनाव में होने वाले नुकसान के प्रति आगाह किया है। पार्टी
अध्यक्ष को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि मुंबई कांग्रेस की नई टीम समझौता
राजनीति का एक उदाहरण है और इसमें भी हिंदू उत्तर भारतीयों को प्रतिनिधित्व न दिया
जाना उत्तर भारतीय समाज को कांग्रेस पार्टी से और दूर कर सकता है।
एक विश्लेषक की राय में
मुंबई कांग्रेस की नई टीम में सामाजिक संतुलन गड़बड़ा गया है। बहुसंख्यकों पर अल्पसंख्यक
भारी पड़ गए हैं। 25 लाख उत्तर भारतीय दरकिनार कर दिए गए हैं, 15 लाख राजस्थानियों
में से कोई नहीं है। 20 लाख गुजरातियों से भी दूरी बना ली गई है। इन तीन बड़े
मतदाता वर्ग की उपेक्षा बीएमसी चुनाव में कांग्रेस को भारी पड़ेगी। नई टीम के रूप
में सिर्फ नेताओं को एडजस्ट किया गया है।
बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) में कांग्रेस
पार्टी ने सन 1992 में रिपब्लिकन पार्टी (आठवले) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 227
में से 112 सीटें जीती थीं। उसके बाद उसका ह्रास होता चला गया और सन 2017 में उसे
केवल 31 सीटें मिलीं। दूसरी तरफ बीजेपी को उत्तरोत्तर बढ़त मिलती गई, जिसे 2017
में 82 सीटें मिलीं, जबकि शिवसेना को 84। उस वक्त विधानसभा में दोनों दल एकसाथ
होने के बावजूद बीएमसी में शिवसेना और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
ऐसा नजर आ रहा है कि मुंबई में
उत्तर भारतीय वोटरों का आधार कांग्रेस से हटकर बीजेपी की तरफ जा रहा है। मुंबई में
उत्तर भारतीयों की आबादी कुल आबादी की 27 फीसदी है। अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस
पार्टी मराठी-भाषियों से जुड़ने का प्रयास कर रही है। भाई जगताप की जड़ें मुंबई के
ट्रेड यूनियन आंदोलनों से जुड़ी हैं। वे मराठी अस्मिता की बात कहते रहे हैं। उधर
बीजेपी उत्तर भारतीय वोटरों के साथ-साथ मराठी वोटरों को भी अपनी तरफ खींचने की
कोशिश करेगी। इस तरह से कांग्रेस और बीजेपी दोनों शिवसेना के जनाधार को प्रभावित
करेंगे। बीएमसी चुनाव में एनसीपी को दस फीसदी से ज्यादा वोट कभी नहीं मिले। इसलिए
वह बड़ी दावेदार नहीं है। उसे गठबंधन में रहना मुफीद लगेगा।
हालांकि एमवीए के भीतर अभी किसी
प्रकार के औपचारिक गठबंधन की बात नहीं हुई है, पर सूत्र बताते हैं कि शिवसेना का
प्रस्ताव है कि कांग्रेस अपनी जीती 31 सीटों के अलावा जिन सीटों पर बीजेपी जीती
है, उन्हें गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ शेयर करे। पर ज्यादातर कांग्रेसी नेता
ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने के पक्ष में हैं। वे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश और
बिहार में हमारी पार्टी अब दूसरों की पिछलग्गू बनकर रह गई है, वैसा नहीं होना
चाहिए। अलबत्ता राज्य स्तर पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट गठबंधन को
चलाए रखने के पक्ष में हैं। जगताप का कहना है कि स्थानीय निकाय चुनावों में
स्वतंत्र रूप से उतरने से राज्य स्तर के गठबंधन को कोई खतरा पैदा नहीं होगा।
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