पिछले गुरुवार को ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम के छह साल पूरे हो गए। पिछले छह साल में सरकार ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी), कॉमन सर्विस सेंटर, डिजिलॉकर और मोबाइल-आधारित ‘उमंग’ सेवाओं जैसी कई डिजिटल पहल इसके तहत शुरू की हैं। इस साल सीबीएसई की परीक्षाएं स्थगित होने के बाद मूल्यांकन की केंद्रीय-व्यवस्था में तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। बहरहाल ‘डिजिटल इंडिया’ के छह साल पूरे होने पर इसके सकारात्मक पहलुओं के साथ उन चुनौतियों पर नजर डालने की जरूरत भी है जो रास्ते में आ रही हैं।
डिजिटल-विसंगतियाँ
सबसे बड़ी चुनौती गैर-बराबरी यानी डिजिटल डिवाइड की है। दूसरी चुनौती उस
इंफ्रास्ट्रक्चर की है, जिसके कंधों पर बैठकर इसे आना है। जनता का काफी बड़ा
हिस्सा या तो इस तकनीक का इस्तेमाल करने में असमर्थ है या न चाहते हुए भी उससे दूर
है। छह साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वनिधि योजना के लाभों तथा
स्वामित्व योजना के माध्यम से मालिकाना हक की सुरक्षा का उल्लेख किया। ई-संजीवनी
की चर्चा की और बताया कि राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत एक प्रभावी
प्लेटफॉर्म के लिए काम जारी है। विश्व के सबसे बड़े डिजिटल कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप
में से एक आरोग्य सेतु ने कोरोना संक्रमण को रोकने में काफी मदद की है। टीकाकरण के
लिए भारत के कोविन ऐप में बहुत से देशों ने दिलचस्पी दिखाई है।
दूसरी तरफ भारत की
कहानी विसंगतियों से भरी है। हमारे पास दुनिया का दूसरे नम्बर का ई-बाजार है।
कोरोना काल में खासतौर से इसका विस्तार हुआ है, पर देश की करीब आधी आबादी कनेक्टेड
नहीं है। संसद के पिछले सत्र में बताया गया कि जहाँ देश में मोबाइल कनेक्शनों की
संख्या 116.3 करोड़ हो गई है, वहीं देश के 5.97 लाख गाँवों में से 25,000 गाँवों
में मोबाइल या इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है। इनमें से 6099 गाँव अकेले ओडिशा में
हैं। ग्यारह राज्यों के 90 जिले वामपंथी-उग्रवाद के शिकार हैं। देश में इस साल 5-जी सेवाएं
शुरू करने की योजना है, पर जब हम ब्रॉडबैंड पर नजर डालते हैं, तब खास प्रगति नजर
नहीं आती।
ऊकला स्पीडटेस्ट ग्लोबल के अनुसार वैश्विक स्तर पर जनवरी 2021 में भारत की ब्रॉडबैंड स्पीड पिछले साल में एक प्रतिशत ही बढ़ी है। हम पिछले साल भी दुनिया के 65वें पायदान पर थे और इस साल भी वहीं पर हैं। जनवरी 2021 में ब्रॉडबैंड की औसत स्पीड 54.73 एमबीपीएस थी, जबकि पिछले साल वह 53.90 एमबीपीएस थी। सिंगापुर 247.54, हांगकांग 229.45 और थाईलैंड 220.59 के साथ हमसे काफी ऊपर थे। मोबाइल इंटरनेट डेटा की स्पीड में जनवरी 2021 में भारत 131 की पायदान पर था, जबकि दिसंबर 2020 में 129 पर था। जनवरी में भारत की औसत मोबाइल डाउनलोड स्पीड 12.41 एमबीपीएस थी, जबकि संयुक्त अरब अमीरात में 183.03 और दक्षिण कोरिया में 171.26 थी।
‘जैम’ की त्रिशक्ति
इस कार्यक्रम की बुनियाद है ‘आधार’ जिसके सहारे
देश के 129 करोड़ लोगों को डिजिटल पहचान प्रदान की है। जनधन बैंक खातों, आधार और मोबाइल
फोन (जैम) ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान करने
में सरकार की मदद की है। महात्मा
गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना वर्ष 2006 से शुरू हुई थी। उसके
क्रियान्वयन से जुड़ी कई तरह की शिकायतें थीं। वर्ष 2015 में इसके साथ
प्रौद्योगिकी को जोड़ने से इसके क्रियान्वयन में कुशलता आती चली गई है। इसमें
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के कार्यान्वयन को सम्मिलित किया गया और इसे आधार
सम्बद्ध भुगतान (एएलपी) से जोड़ दिया गया। इस प्रकार जन-धन, आधार और मोबाइल फोन (जैम) की त्रिशक्ति
(ट्रिनिटी) ने काम को आसान और बेहतर बना दिया।
सन 2015 तक देश की
करीब पचास फीसदी आबादी के पास बैंक खाते नहीं थे। इनमें से ज्यादातर लोग मनरेगा के
लक्षित समूह में शामिल थे। मार्च 2014 तक ग्रामीण क्षेत्र में कुल बैंक कार्यालयों
की संख्या 1,15,350 थी। तब से मार्च 2018 तक इन कार्यालयों की संख्या पाँच गुना
बढ़कर 5,69,547 हो गई। दिसम्बर 2015 तक देश में आधार नामांकन की कुल संख्या एक अरब
से अधिक थी, जो अब 1.29 अरब के आसपास है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के लिए सक्रिय बैंक खातों
को आधार संख्या से जोड़ना जरूरी था। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री जन धन योजना शुरू
की गई, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रत्येक
परिवार के पास कम से कम एक बैंक खाते की सुविधा प्राप्त हो।
समय पर मजदूरी का
भुगतान सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2016 में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि प्रबंधन
प्रणाली (एनईएफएमएस) शुरू हुई। इसके तहत केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों द्वारा खोले गए एक
विशिष्ट बैंक खाते में रियल टाइम कामगारों की मजदूरी जमा करने लगी। डिजिटल इंडिया तीन प्रमुख
क्षेत्रों पर केंद्रित है। 1.प्रत्येक नागरिक के लिए उपयोगी डिजिटल
इन्फ्रास्ट्रक्चर, 2.सरकारी सेवाओं की उस तक पहुँच, 3.डिजिटल सशक्तिकरण। इसके साथ
कुछ दूसरे कार्यक्रम भी जुड़े हुए हैं। भारतनेट, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया,
स्टैंडअप इंडिया, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, भारतमाला, सागरमाला वगैरह-वगैरह।
रोजगारों पर खतरा
अस्सी और नब्बे के दशक
में जब देश में कम्प्यूटराइजेशन की शुरुआत हो रही थी, श्रमिकों की गेट मीटिंगें इस
चिंता को लेकर होने लगी थीं कि कम्प्यूटर हमारी रोजी-रोटी छीन लेगा। उसी दौर में
सॉफ्टवेयर क्रांति हुई और तकरीबन हर क्षेत्र में आईटी-इनेबल्ड तकनीक ने प्रवेश
किया। आप पाएंगे कि अनेक रोजगार खत्म हुए हैं, पर तमाम नए रोजगार उभर कर सामने आए
भी हैं।
ऑनलाइन खरीदारी ने
लॉजिस्टिक्स में जबर्दस्त क्रांति की है। उबर, ओला क्रांति ने न केवल छोटे शहरों
में ड्राइविंग के नए रोजगार को और शहरी परिवहन की एक नई व्यवस्था को जन्म दिया है।
टेली-उपचार एक नया क्षेत्र है। सोशल मीडिया मैनेजरों, एसईओ विशेषज्ञों और नेट
आधारित सेवाओं के तमाम नए क्षेत्रों में रोजगार की सम्भावनाएं हैं।
नागरिक
सुविधाएं
इन सम्भावनाओं के साथ
नागरिक सुविधाओं और ई-प्रशासन में भी सुधार हुआ है। बिजली के बिल, हाउस और वॉटर
टैक्स जमा करना अब उतना मुश्किल काम नहीं रहा, जितना होता था। राजमार्ग से गुजरते
हुए आपकी कार का ब्रेक डाउन हो तो सहायता अपेक्षाकृत जल्दी मिलेगी। अब आपका सब्जी
वाला, काम वाली बाई, रिक्शे वाला, ऑटो वाला, कारपेंटर, मिस्त्री, मिकेनिक इस
सिस्टम से जुड़े हुए हैं। इसमें दोतरफा लाभ हैं।
नब्बे के दशक की आईटी
क्रांति ने बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग की एक नई अवधारणा दी, जिसके कारण विकसित
देशों से कई तरह के रोजगार हमारे यहाँ आए। इस बात को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा
रही हैं कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकें लाखों लोगो को बेरोजगार कर देंगी,
वहीं मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल
अर्थव्यवस्था भारत में सन 2025 तक छह से साढ़े करोड़ तक नए रोजगार पैदा करेगी।
हरेक औद्योगिक क्रांति कुछ पुराने रोजगारों को खत्म करती है तो कुछ नयों को जन्म
देती है।
कृषि-बाजार
भारत सरकार ने अप्रेल
2016 में कृषि उत्पादों के लिए ऑनलाइन बाजार की शुरुआत की थी। इलेक्ट्रॉनिक नेशनल
एग्रीकल्चर मार्केट ई-नाम पोर्टल किसानों को अपनी उपज बेचने का एक नया विकल्प
उपलब्ध कराता है। यह पोर्टल 16 राज्यों और दो केन्द्र शासित राज्यों की कृषि
मंडियों से जुड़ा है। इनमें 585 कृषि मंडियाँ जुड़ी हैं। इनके अलावा 415 मंडियों
के शीघ्र जुड़ने की आशा है। कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार ई-नाम
प्लेटफॉर्म पर इस समय 91,000 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है, जो जल्द ही एक लाख
करोड़ को पार कर जाएगा। इसके साथ 1.65 करोड़ किसान और 1.27 लाख व्यापारी जुड़ चुके
हैं।
यह तकनीकी विस्तार
हमें रोजमर्रा की दिक्कतों से बचा रहा है। सरकारी कामकाज को आसान कर रहा है और
ज्ञान का विस्तार कर रहा है। आयकर रिटर्न दाखिल करने और रिफंड प्राप्त करना अब
ज्यादा आसान है। अपराधियों की पकड़-धकड़ के बेहतर उपकरण हमारे पास हैं। सरकार से
सीधे संवाद का तरीका हमारे पास है। इनके दोष भी सामने आएंगे। उनके परिष्कार पर भी
विचार करना होगा।
हरिभूमि में प्रकाशित
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