हेरात में तालिबान के खिलाफ तैयार इस्माइल खान के सैनिक |
लगातार तालिबानी बढ़त के बाद अफगान सरकार कुछ हरकत में आई है। उसने तालिबान को सरकार में शामिल होने का निमंत्रण दिया है। वहीं अमेरिकी इंटेलिजेंस के एक अधिकारी के हवाले से खबर है कि तीन महीने के भीतर काबुल सरकार गिर जाएगी। सवाल है कि क्या अमेरिका इस सरकार को गिरने देगा? दूसरा सवाल है कि साढ़े तीन लाख सैनिकों वाली अफगान सेना करीब 75 हजार सैनिकों वाली तालिबानी सेना से इतनी आसानी से पराजित क्यों हो रही है? अमेरिका कह रहा है कि तालिबान ने ताकत के जोर पर कब्जा किया तो हम उस सरकार को मान्यता नहीं देंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया के देशों से अपील भी की है कि वे तालिबान को मान्यता नहीं दें, पर क्या ऐसा सम्भव है? क्या रूस, चीन और पाकिस्तान उसे देर-सबेर मान्यता नहीं देंगे? अशरफ ग़नी की सरकार को गिरने से अमेरिका कैसे रोकेगा और सरकार गिरी तो वह क्या कर लेगा?
अमेरिका ने जिस अफगान सेना को प्रशिक्षण देकर
खड़ा किया है, उसके जनरल या तो भाग रहे हैं या तालिबान के सामने समर्पण
कर रहे हैं। एक पुरानी
रिपोर्ट के अनुसार तालिबान का सालाना बजट डेढ़ अरब डॉलर से ज्यादा का होता है।
कहाँ से आता रहा है यह पैसा? बीबीसी के अनुसार तालिबान ने पिछले एक
हफ़्ते में अफ़ग़ानिस्तान की 10 प्रांतीय राजधानियों
को अपने कब्ज़े में ले लिया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार अमेरिकी
ख़ुफ़िया रिपोर्ट में बताया गया है कि 90 दिनों के भीतर तालिबान काबुल को अपने
नियंत्रण में ले सकता है। क्या तालिबान ऐसे ही आगे बढ़ता रहेगा और अफ़ग़ान सरकार
तमाशबीन बनी रहेगी? क्या अफ़ग़ानिस्तान में अशरफ़ ग़नी
सरकार को जाना होगा? पिछले बीस वर्षों में बड़ी संख्या में
अफगान स्त्रियाँ पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और शिक्षक बनी हैं, उनका
क्या होगा? क्या देश फिर से उसी मध्ययुगीन अराजकता के दौर
में लौट जाएगा? क्या वहाँ के नागरिक यही चाहते हैं?
कतर की राजधानी दोहा में आज गुरुवार 12 अगस्त को अमेरिका की पहल पर बैठक हो रही है, जिसमें भारत भी भाग ले रहा है। इसमें इंडोनेशिया और तुर्की भी शामिल हैं। इसके पहले मंगलवार को एक और बैठक हुई थी, जिसमें अमेरिका के अलावा चीन, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ब्रिटेन, संरा और ईयू के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसके बाद बुधवार को रूसी पहले पर ट्रॉयका प्लस यानी चार-पक्षीय सम्मेलन हुआ। चीन, अमेरिका, रूस व पाकिस्तान से आए प्रतिनिधियों ने अफ़गानिस्तान की हालिया स्थिति पर विचार विमर्श किया और शांति-वार्ता के विभिन्न पक्षों से जल्द ही संघर्ष और हिंसा को खत्म कर मूलभूत मुद्दों पर समझौता संपन्न करने की अपील की।
क्या तालिबान
मानेंगे?
बातचीत का क्रम जारी है, पर सवाल है कि क्या तालिबान किसी समझौते के लिए तैयार होंगे? इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि तालिबान वर्तमान काबुल सरकार के साथ किसी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं हैं। न्यूज़ चैनल अल-जज़ीरा से अफ़ग़ानिस्तान के गृहमंत्री ने कहा है कि तालिबान को हराने के लिए हमारी सरकार प्लान बी पर काम कर रही है। गृहमंत्री जनरल अब्दुल सत्तार मिर्ज़ाकवाल ने बुधवार को अल-जज़ीरा से कहा कि तालिबान को पीछे धकेलने के लिए तीन स्तरीय योजना के तहत स्थानीय समूहों को हथियारबंद किया जा रहा है।
सत्तार ने कहा कि अफ़ग़ान बल अहम हाइवे को
सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसके अलावा बड़े शहरों और बॉर्डर
क्रॉसिंग को बचाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है। मिर्ज़ाकवाल के पास एक लाख 30
हज़ार पुलिस बलों की कमान है। उन्हें पाँच दिन पहले ही गृह मंत्रालय की कमान मिली
है। मिर्ज़ाकवाल ने कहा कि सरकार स्थानीय लोगों को तैयार कर रही है।
सरकार की योजना
मिर्ज़ाकवाल ने कहा, ''हम
तीन-स्तर की योजना पर काम कर रहे हैं। पहला यह कि हमारे सैनिकों को पीछे नहीं हटना
पड़े। दूसरा, अपने सुरक्षाबलों को फिर से जुटाया जाए और शहरों की सुरक्षा कड़ी की
जाए। जिन्होंने भी सेना की नौकरी छोड़ दी है, उन्हें
हम फिर से लाने की कोशिश कर रहे हैं। तीसरी योजना है कि हमला किया जाए। अभी हम
दूसरे चरण पर हैं।
मिर्ज़ाकवाल ने कहा, सरकारी
बलों की हार इसलिए हो रही है क्योंकि मुख्य मार्गों और हाइवे पर तालिबान का
नियंत्रण हो गया है। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से देश के 400 हिस्सों में जंग
छिड़ गई। हमारे पास वायु सेना का बहुत सीमित सपोर्ट है। हेलिकॉप्टर आपूर्ति
पहुँचाने के साथ मृतकों और घायलों को निकालने में व्यस्त हैं। हमारी सरकार स्थानीय
नेताओं को नई भर्तियां और लोगों को हथियारबंद करने का अधिकार दे रही है ताकि
तालिबान से लड़ा जा सके।
तालिबान-विरोधी मोर्चेबंदे
सरकार ने स्थानीय कबीलों को अपने साथ जोड़ने का
काम शुरू किया है, उन्हें आश्वासन दिया गया है कि बाद में उन्हें सेना में शामिल
कर लिया जाएगा। हेरात के 'शेर' कहे
जाने वाले बुजुर्ग नेता इस्माइल
खान ने तालिबानी आतंकियों और उन्हें मदद दे रहे पाकिस्तानियों का खात्मा करने
का ऐलान किया है। खान ने कहा कि यह जंग तालिबान और अफगान सरकार के बीच नहीं बल्कि पाकिस्तानी
आतंकियों और अफ़ग़ानिस्तान के बीच है। इस्माइल खान के लड़ाके और अफगान सेना हेरात
शहर में डटी हुई है और कई बार तालिबानी आतंकियों को युद्ध का मैदान छोड़कर भागने
के लिए मजबूर कर दिया है। खुद इस्माइल खान भी हाथ में एके-47 लेकर शहर में घूम रहे
हैं और लोगों का भरोसा बढ़ा रहे हैं। उनके आह्वान पर देश में अब तालिबान के खिलाफ अल्लाह
हू अकबर के नारे लग रहे हैं।
अफगान राष्ट्रपति बुधवार को बल्ख प्रांत की
राजधानी मज़ारे-शरीफ में पहुँचे। वहाँ भी सरकार सरदारों के साथ मिलकर
तालिबान-विरोधी गठबंधन बना रही है। उन्होंने वहाँ जमीयत-ए-इस्लामी के नेता और बल्ख
के पूर्व गवर्नर अता मोहम्मद नूर से बात की है। इस इलाके के महत्वपूर्ण नेताओं में
अब्दुल रशीद दोस्तम का नाम भी है, जो देश के पूर्व राष्ट्रपति रह चुके हैं और अतीत
में नॉर्दर्न अलायंस का हिस्सा रहे हैं, जो तालिबान के खिलाफ सबसे ताकतवर मोर्चा
था।
गजनी का गवर्नर गिरफ्तार
इधर गज़नी शहर पर भी तालिबान के कब्जे की खबरें
हैं, वहाँ के गवर्नर शहर छोड़कर भाग गए हैं। उनके इस पलायन से नाराज सरकार ने
उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। हाल के महीनों में अफ़ग़ान सेना के कई अधिकारियों ने
अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। सरकार का कहना है कि सभी वापस आ रहे हैं और फिर
से उन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है। अप्रैल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने
अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी की घोषणा की थी और उसके बाद ही तालिबान ने
हमले बढ़ा दिए हैं।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
इमरान ख़ान ने तालिबान के हवाले से कहा है कि जब तक अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में
अशरफ़ ग़नी रहेंगे तब तक तालिबान सरकार से बात करने के लिए तैयार नहीं है। इमरान
ख़ान ने विदेशी पत्रकारों से कहा कि अभी जो हालात हैं, उनमें
किसी राजनीतिक समाधान की उम्मीद कम ही है। अफ़ग़ानिस्तान की सरकार चाहती है
अमेरिका कुछ करे, लेकिन अमेरिका 20 साल में कुछ नहीं कर
पाया तो अब क्या कर लेगा।
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