अफगानिस्तान से जो खबरें मिल रही हैं, उनसे लगता है कि तालिबान काबुल में प्रवेश कर गए हैं। समाचार-एजेंसियों ने खबर दी है कि तालिबान हर तरफ से काबुल शहर में प्रवेश कर रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तानी राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी अमेरिका के विशेष दूत ज़लमय ख़लीलज़ाद और शीर्ष नेटो अधिकारियों के साथ वार्ता कर रहे हैं। यह बैठक तालिबान के काबुल में दाखिल होने की रिपोर्टों के बीच हो रही है। शनिवार को गनी ने एक संक्षिप्त बयान में कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा को मज़बूत करने और सेना को संगठित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
तालिबान सैनिक आज सुबह काबुल के दरवाज़ों पर
पहुंच गए थे। इससे पहले जलालाबाद में बिना किसी प्रतिरोध के सेना ने तालिबान के
सामने समर्पण कर दिया। उधर कतर में तालिबान के आधिकारिक प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने
कहा है कि हमने अभी काबुल में प्रवेश नहीं किया है, हम शहर के बाहर हैं। उनका यह
भी कहना है कि हमारी योजना जबरन कब्जा करने की नहीं है। हम शांतिपूर्ण सत्ता-हस्तांतरण
चाहते हैं।
भारतीय मीडिया में खबर है कि देश के पूर्व
गृहमंत्री अली अहमद जलाली अंतरिम
राष्ट्रपति बन सकते हैं। वे अमेरिका में रहते हैं और कम से कम तालिबानी नहीं
हैं। क्या वे तालिबान को स्वीकार होंगे? यह अंतरिम व्यवस्था किसकी होगी,
तालिबान की या वर्तमान सरकार की?
लगता यह भी है कि उन्हें सरकार ने भी काबुल में प्रवेश करने दिया है। शायद इसी वजह से कल मज़ारे-शरीफ में सेना ने तालिबान को कब्जा करने दिया। सरकार चाहती, तो वहाँ लड़ाई हो सकती थी, क्योंकि दो ताकतवर क्षेत्रीय सरदार सरकार के साथ थे। फिलहाल ये सब कयास हैं, पर यदि यह सच है, तो इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं। पहला यह कि अफगान सरकार और तालिबान भी खून-खराबा नहीं चाहते और दूसरे यह कि उनकी तालिबान के साथ किसी स्तर पर सहमति हुई है, क्योंकि अल जजीरा खबर दे रहा है कि तालिबान प्रतिनिधि राष्ट्रपति के महल में हैं।
देश के गृहमंत्री ने कहा है कि तालिबान काबुल
पर हमला नहीं करेंगे। ऐसी बात वे तभी कह सकते हैं, जब किसी स्तर पर सहमति हो। उधर
अमेरिकी दूतावास के अधिकारी हेलीकॉप्टर पर बैठकर काबुल से बाहर चले गए हैं। दूसरी
तरफ़ अमेरिका अपने नागरिकों और दूतावास कर्मचारियों को काबुल से तेज़ी से निकाल भी
रहा है.
सहमति से हो या ज़बरिया, मान लीजिए कि अफगानिस्तान
में सत्ता परिवर्तन हो गया या एकदम करीब है। अब हमें उसके निहितार्थ पर विचार करना
होगा। सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि तालिबान यह क्यों कह रहे हैं कि हम काबुल
पर ज़बरन कब्जा नहीं करेंगे। साथ ही वे राष्ट्रपति के महल में क्या बातें कर रहे
हैं और क्यों कर रहे हैं।
शनिवार की रात अशरफ ग़नी ने अपने सलाहकारों तथा
देश के राजनेताओं के साथ मिलकर किसी अंतरिम व्यवस्था पर बात की थी। सम्भव है कि अब
सब कुछ उसी अंतरिम व्यवस्था के तहत हो रहा हो। शायद इसीलिए तालिबान कह रहे हैं कि
हम ज़बरिया कब्जा नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि ऐसी सरकार को
वैश्विक-मान्यता नहीं मिलेगी। अब यदि वे वैश्विक-मान्यता प्राप्त सरकार बनानी है,
तो इसका मतलब है कि उनके तौर-तरीके वही नहीं होंगे, जैसे नब्बे के दशक की तालिबानी
सरकार के थे।
बहरहाल लगता है कि दोहा में 10 और 12 अगस्त को
हुई बातचीत में किसी स्तर पर सहमतियाँ बनी हैं। फिलहाल प्रारम्भिक खबरों से यह
संकेत मिल रहा है। पुष्ट समाचारों के लिए अभी कुछ देर इंतजार करना होगा।
उन्होंने बीबीसी से कहा, 'मैं नहीं जानती...वे कहीं नहीं जा सकते हैं। कोई जगह नहीं बची है।
काबुल से उड़ने वाले सभी विमान आज भरे हुए हैं। लोग काबुल से भागकर भारत या किसी
भी पड़ोसी देश जाना चाहते हैं, जहां भी जगह मिले।'' फ़रज़ाना ने कहा, ''लोग बता रहे हैं कि फ्लाइट्स भरी हुई
हैं और वे फंसे हुए हैं। उन लोगों के पास बहुत से विकल्प भी नहीं है।''
उनके मुताबिक़ तालिबान के नियंत्रण में आने
वाले इलाक़ों में महिलाओं ने काम पर जाना बंद कर दिया है। वे स्कूल या दफ्तर नहीं
जा रही हैं। फ़रज़ाना कोचाई ने कहा, ''महिलाओं के लिए
हालात ऐसे ही ख़राब है जैसी की आशंका ज़ाहिर की गई थी। महिलाओं को उनके घरों में
क़ैद कर दिया जाएगा। अभी तो ऐसा ही लग रहा है, आगे
देखते हैं, क्या बदलता है।''
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