Friday, May 21, 2010

English Skills तेज़ करें और BPO में नौकरी पाएं

'English Skills तेज़ करें और BPO में नौकरी पाएं', इस शीर्षक का विज्ञापन आपको इंटरनेट की साइटों पर मिलेगा। टाटास्काई खोलें तो सबसे पहले अंग्रेजी सिखाने वाली उनकी सेवा का विज्ञापन आता है। हर छोटे-बड़े शहर में आपको अमेरिकन इंग्लिश सिखाने वाले इंस्टीट्यूट मिल जाएंगे। ऐसी कोई जगह नहीं मिलेगी, जहाँ हिन्दी सिखाई जाती है।


हाल में मेरे पास एक सुझाव आया कि आप हिन्दी सिखाने का काम क्यों नहीं करते। मुझे लगा, भला आज के ज़माने में हिन्दी का क्या काम ? ऐसा नहीं है, किसी कोरियन कम्पनी को, ऐसे लोगों की ज़रूरत थी, जो उनके अधिकारियों को कामकाज़ी हिन्दी सिखा सकें। सीनियर अधिकारी को कोई सानियर व्यक्ति ही सिखाए, ऐसा आग्रह भी था। कोई अमेरिकन महिला टॉप एक्ज़िक्यूटिव भारत आ रहीं हैं। क्या आप एक-दो रोज़ के लिए अपना समय दे सकेंगे? वे हिन्दी के अलावा भारत के बारे में जानना चाहतीं हैं। भारत के बारे में प्रकाशित  गाइडों में वैसी जानकारी नहीं है, जो व्यावहारिक हो। आपने सोचा वह जानकारी क्या हो सकती है? यहाँ की राजनीति के बारे में राजनेताओं के बारे में। एकदम बुनियादी खानपान के बारे में। लोगों के शौक क्या हैं, वे पढ़ते क्या हैं, सोचते क्या हैं वगैरह। 


हिन्दी पत्रकार से उम्मीद की जाती है कि वह ज़मीनी जानकारी रखता है। मैनेजमेंट के टॉप लीडर भारत के बारे में जानना नहीं चाहते। अमेरिकन जानना चाहते हैं। गाँव-कस्बों के हमारे बच्चे हागड़-बिल्लू अंग्रेजी सीख कर बहुत सस्ते में बीपीओ की नौकरी करने को राज़ी हैं। अंग्रेजी इसलिए नहीं सीखनी कि उसमें ज्ञान है। आज भी पूरे विश्वास से लूली-लँगड़ी अंग्रेजी बोलकर आप भारत के काले अंग्रेजों को जितना प्रभावित कर सकते हैं, उतना अपनी भाषा बोलकर नहींकर सकते, भले ही आपका ज्ञान उच्चस्तरीय हो। 


कुछ साल पहले चीन यात्रा करके आए एक सज्जन बता रहे थे कि चीन में सॉफ्टवेयर अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए ज्यादा बनता है। चूंकि घरेलू काम चीनी भाषा में होता है, इसलिए सॉफटवेयर के काम में चीनी भाषा का इस्तेमाल खूब होता है। आज भी इंटरनेट पर अंग्रेजी के बाद दूसरे नम्बर की भाषा चीनी है। उच्च स्तरीय साइंस, मेडिसन, टेक्नॉलजी, अर्थ शास्त्र और अन्य विषयों पर चीनी भाषा में सामग्री उपलब्ध है। हाँ वे लोग अंग्रेजी में हमसे पीछे हैं। इसपर हमें गर्व है। हाल में खबर थी कि चीन में अंग्रेजी शब्दों के निरर्थक इस्तेमाल पर सजा दी जाती है। बात अलोकतांत्रिक है, पर विचारणीय भी। 


भला चीनी अपनी भाषा के माध्यम से आधुनिक कैसे होंगे? उससे बड़ा सवाल यह है कि आधुनिक हो गए तो क्या होगा? तब अंग्रेजी की ज़रूरत कम हो जाएगी। शायद चीनी की ज़रूरत बढ़ जाएगी। तब हम क्या करंगे? हम तो अपनी भाषा का श्राद्ध कर चुके होंगे। शायद तब हम चीनी भाषा सीखना शुरू करेंगे। तब बीपीओ चीनी में काम करने लगेंगे। पता नहीं ऐसा होगा या नहीं। और होगा भी तो कब होगा, अपुन लोग ज्यादा सोचते नहीं। जैसा होगा देखा जाएगा। 



9 comments:

  1. वैसे आजकल चीन में भी अंग्रेजी सीखने का बोलबाला है/

    ReplyDelete
  2. जी हाँ इसे आप बोलबाला कह सकते हैं, पर वह काफी छोटे स्तर पर है। दूसरे वे लोग अपने सारे काम अपनी भाषा में करते हैं। उनका स्पेस रिसर्च भी चीनी भाषा में होता है।

    ReplyDelete
  3. Anonymous10:14 AM

    आभार

    ReplyDelete
  4. भाषा सीखना बुरी बात नहीं,,,,पर अपनी मातृभाषा छोङ दूसरी भाषा के पीछे दौङना नालायकी है....मूर्खता है....गधापना है....ये है...वो है....बस बेवकूफी है...

    ReplyDelete
  5. yes sir, when i was in Kolkata some one ask me to teach HINDI to his son. wo Bengali the aur bade businessman. Bengali pariwaaron me bhi ab Hindi ka kaafi chalan ho raha hai...kai baar Chandigarh me bhi fone aa jata hai Kolkata se...ki iski Hindi kya hogi...its nice...

    ReplyDelete
  6. यहां तो हिंदी भाषा बेइज्जती वाली बात बनती जा रही है। मुझे याद है कि पहले हम लोगों की स्थानीय भाषाएं बेइज्जती वाली बात बनी। आज के हिंदी भाषी इलाकों से उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषाएं छीन ली गईं। अब अंग्रेजी, हिंदी को छीन रही है। आपका यह भी तर्क सही है कि लोग चीनी सीखने लगेंगे... बेरोजगारों का इतना बड़ा फौज रखने वाले देश में जहां भी सुकून से दो रोटी का इंतजाम हो, लोग सीख ही लेते हैं। आज अंग्रेजी सम्मानजनक ढंग से रोटी देने लगी है तो लोग अंग्रेजी सीख रहे हैं, इसके पहले हिंदी सीखी गई... कोई आश्चर्य नहीं है कि बाद में चीनी सीखी जाए।

    ReplyDelete
  7. ...मैनेजमेंट में भी आजकल गीता के उपदेश का भी बोलबाला चल रहा है ...फिर भी हिंदी को बढावा न मिल पाना दुखद बना हुआ है ....
    सार्थक लेख के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  8. mamla economic reality ka bhi hai...hindi na aane se roji roti main koi farak nahin padta, magar angreji ke bina kalpana karna mushkil hai. Yadi mere bacche pooche ki hindi seekhun ya mandarin to shayad mera jabab hoga - beta padosi ke bacche matrabhasha ko jinda rakh lenge, tum madarin seekh kar apni yogyata main aur char chand laga lo.

    ReplyDelete
  9. मनोज जी इकोनमिक रियलिटी का मामला ही है। पर बंगाल के लोग अपनी भाषा की इज्जत बचाकर रख पाते हैं तो उसकी वज़ह यह है कि उनकी इकोनमिक रियलिटी में बांग्ला भी शामिल है। चीन के लोग कभी हम हिन्दुस्तानियों की तरह अपनी भाषा की बत्ती गुल करके अंग्रेजी को अपने कंगूरों पर सजाएंगे, इसकी उम्मीद कम है। इसीलिए मैने एक कल्पना की है, जो शायद ज्यादती है कि कभी चीनी भाषा दुनिया की इकोनमिक रियलिटी बनी तो अपुन लोग उसे सीखेंगे। अंग्रेजी को ज्ञान की भाषा के रूप में सीखना अच्छी बात है, पर हमारे मुल्क में अंग्रेजी स्टेटस की भाषा भी है।

    ReplyDelete