भूकम्प और सुनामी से तबाह हुए इलाके में किसी बालक को मिले पुरस्कार प्रमाणपत्र के चिथड़े को पढता एक बालक। |
मैने यह लेख जब लिखा था तब न्यूक्लियर रिएक्टरों वाली बात उभरी नहीं थी। रेडिएशन के खतरे ने जापानी त्रासदी को इंसानियत के सामने सबसे बड़े खतरों की सूची में दर्ज कर दिया है। शायद अब यह सोचना होगा कि जिन इलाकों में भूकम्प इतने ज्यादा आते हों वहाँ नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प खारिज करना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि आपदाओं से जूझने के मामले में हमें जापान से सीखना चाहिए।
सुनामी से जूझते जापान पर नज़र डालें तो आपको उससे सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। दुनिया का अकेला देश जिसने एटम बमों का वार झेला। तबाही का सामना करते हुए इस देश के बहादुर और कर्मठ नागरिकों ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद सिर्फ दो दशक में जापान को आर्थिक महाशक्ति बना दिया। तबाहियों से खेलना इनकी आदत है। सुनामी शब्द जापान ने दिया है। यह देश हर साल कम से कम एक हजार भूकम्पों का सामना करता है। सैकड़ों सुनामी हर साल जापानी तटों से टकरातीं हैं। पर इस बार उनके इतिहास का सबसे जबर्दस्त भूकम्प आया है।
कहना मुश्किल है कि वहां जान-माल का कितना नुकसान हुआ होगा। जापान सरकार की पहली प्रतिक्रिया थी, हम माल के नुकसान को गिन ही नहीं रहे हैं। हमें सबसे पहले अपने लोगों की जान की फिक्र है। बेशक मरने वालों की संख्या हजारों में होगी। इतनी बड़ी आपदा में मरने वालों की तादाद छोटी नहीं होती। पर आप देख लीजिएगा यह संख्या उतनी बड़ी नहीं होगी, जितना बड़ा अंदेशा तस्वीरों को देखने से होता है। दिसम्बर 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी में करीब सवा दो लाख लोग मरे थे।
बीसवीं सदी में जापान के दो भूकम्प सबसे ज्यादा याद किए जाते हैं। एक था 1923 का कांतो भूकम्प जिसमें तोक्यो के एक लाख 40 हजार से ज्यादा निवासी मरे थे। उसके बाद दूसरा था 1995 का कोबे का भूकम्प जिसमें मरने वालों की आधिकारिक संख्या 6434 थी। कोबे के भूकम्प के बाद जापानी सरकार की आलोचना इस बात के लिए हुई थी कि उसने राहत का काम देर से शुरू किया। इस बारभूकम्प और सुनामी के बाद सरकारी कारवाई बेहद तेज गति से हुई है। पिछले पचास साल में जापान ने भूकम्प का सामना करने के लिए अद्भुत काम किए हैं। उनसे हमें कुछ सीखना चाहिए।
1960 के बाद से जापान हर साल 1 सितम्बर को विध्वंस-निरोध दिवस मनाता है। 1923 में 1 सितम्बर को ही तोक्यो शहर में वह विनाशकारी भूकम्प आया था। इस रोज जापानी लोग प्रकृतिक आपदा से बचने का ड्रिल देश भर में करते हैं। यों भी यह ड्रिल उनके दिल-दिमाग पर काफी गहरी से छपा है। स्कूल में जाते ही बच्चों को सबसे पहले दिन यही सिखाया जाता है। 1923 के भूकम्प के बाद तोक्यो शहर की पुनर्रचना हुई, पर जापान पर भूकम्पों का हमला ही नहीं हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध में उसने जबर्दस्त बमबारी का सामना भी किया। 6 और 9 अगस्त को हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराने के पहले अमेरिका, इंग्लैंड और चीन के विमान छह महीने तक जापान के 67 शहरों पर बमबारी करते रहे थे।
जापान की विशेषता है राख के ढेर को गुलशन में बदल देना। दूसरे विश्व युद्ध की तबाही के बाद जापानी पुनर्रचना का एक दौर और चला। 1964 के तोक्यो ओलिम्पिक में इस देश ने जो कुछ शोकेस किया उसे जापानी मिरेकल कहा जाता है। जापान के पास इमारतों के निर्माण की सर्वश्रेष्ट टेक्नॉलजी है। 1995 के कोबे भूकम्प के बाद वहां गगनचुम्बी इमारतें इस तरह की बनने लगीं जो भूकम्प के दौरान लहरा जाएं, पर गिरें नहीं। फाइबर रिइनफोर्स्ड पॉलीमर की भवन सामग्री का इस्तेमाल बढ़ रहा है जो कपड़े की तरह नरम और फौलाद जैसी मजबूत होती है। इन्हें पुलों और बहुमंजिला इमारतों के कॉलमों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
जापान मेटियोरोलॉजिकल एजेंसी के छह क्षेत्रीय केन्द्र भूकम्पों को निरंतर दर्ज करते रहते हैं। जैसे ही वे जोखिम की सीमा का कम्पन दर्ज करते हैं, पूरे देश को अलर्ट हो जाता है। बुलेट ट्रेन, बसों, कारों और तमाम सार्वजनिक स्थानों पर लगी डिवाइसें ऑटोमेटिक काम करने लगतीं हैं। बुलेट ट्रेन के ब्रेक अपने आप लगते हैं। एनएचके के राष्ट्रीय टीवी नेटवर्क पर अपने आप वॉर्निंग फ्लैश होती है। शहरों में लगीं वेंडिंग मशीनें खुल जाती हैं मुफ्त पानी, ड्रिंक या खाद्य सामग्री मिल सके। पूरा देश राहत में जुटता है। उन्हें हड़बड़ी मचाने के बजाय शांत रहने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जापानी सुनामी की जिस तरह की लाइव फुटेज देखने को मिली उसकी वजह भी यही है कि उन्होनें आपदा से निपटने की हर कोने में व्यवस्था कर रखी है।
11 मार्च को दिन में पौने तीन बजे जब तोक्यो के सबवे सिस्टम की ट्रेनें अचानक ठहरीं, तब यात्रियों में उत्तेजना नहीं थी। गूगल का पीपुल्स फाइंडर टूल बनने के काफी पहले जापान ने राष्ट्रीय आपदा कि स्थिति में लोगों को एक-दूसरे को खोजने में मदद देने वाला डेटा बेस तैयार कर लिया था। इसे देश की टेलीकॉम कम्पनियों का सहारा हासिल है। आप मोबाइल फोन से टेक्स्ट कर सकते हैं कि मैं सकुशल हूं या मुझे मदद चाहिए। सिर्फ सेल फोन नम्बर से किसी व्यक्ति के बाबत पता लगाया जा सकता है। आपदा प्रबंधन जापान में कॉटेज इंडस्ट्री है। वहाँ घड़ी जैसे उपकरण मिलते हैं, जिनसे पता लग सकता है कि भूकम्प की तीव्रता क्या है और अब क्या करना चाहिए। ऐसे जैकेट मिलते हैं, जो जरूरत होने पर तम्बू या स्ट्रेचर का काम कर सकें।
मनुष्य का इतिहास आपदाओं से संघर्ष का इतिहास है। दुनिया के हर समाज से हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं। जापान की यह आपदा बेहद दुखद है। हमें उसकी मदद के बारे में सोचना चाहिए, पर यह ज्ञान हमें संतोष देता है कि जापानी लोग आपदा का सामना करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। इसीलिए यह सिर्फ संयोग नहीं है कि दुनिया में सबसे ज्यादा औसत आयु जापानियों की होती है।
आपने सही कहा है हमारे देशवासियों को जापान से बहुत कुच्छ सीखने की जरूरत है. जापान के शायद तीन प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार में जेल गए;लेकिन हमारा देश तो अपने पी.एम् .को लोकपाल के आधीन भी नहीं ला पा रहा है.
ReplyDeletevery true....
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा आपने....
ReplyDeleteसहमत हूँ.
ReplyDeleteजापान १९४५ से ही पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है.
प्राकृतिक आपदाएं सूचित कर नहीं आती, जापानियों की जिजीविषा तारीफ़ के काबिल है| लेकिन यह विकसित देश भी इस भयंकर आपदा के सामने असहाय हो गया| यहाँ इस बात पर ज्यादा जोर देने की ज़रूरत है कि अब जबकि नाभिकीय संयंत्रों में विस्फोट से रेडिएशन का खतरा उत्पन्न हो चुका है, ऐसी स्थितियों में दुनिया के बाकी देश इसे दोहराने से रोकने के क्या उपाय कर रहे हैं? विकल्पों की तलाश भी ज़रुरी है|
ReplyDeletemy good wishes are for them
ReplyDeleteजापान की विवशता बताती है की अनंत इच्छाओं की पूर्ति पर टिका विकास का मौजूदा मॉडल अंततः आत्मघाती साबित होगा. हमें आखिरकार प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर किफ़ायत से रहने की आदत डालनी ही होगी. जापान जैसा बेहद अनुशाषित समझा जाने वाला देश जब इस हाल पहुँच गया तो ऐसे मौकों पर हम अपने देश की कल्पना ही कर सकते हैं.
ReplyDeleteवाकई जापानियों का हौसला दुनिया के किसी भी अन्य देशों के नागरिकों से हमेशा बेहतर रहा है जिसे इतिहास बार-बार सिद्ध करता चला आ रहा है ।
ReplyDeleteटिप्पणीपुराण और विवाह व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.
बिल्कुल ठीक कहा आपने... हमारे देशवासियों को जापान से बहुत कुच्छ सीखने की जरूरत है.
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