घोटालों की बाढ़ में फँसी भारत की जनता असमंजस में है। व्यवस्था पर से उसका विश्वास उठ रहा है। सबको लगता है कि सब चोर हैं। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री के टीवी सम्मेलन के बाद स्थिति बेहतर होने के बजाय और बिगड़ गई। अगले तीन-चार दिनों में रेल बजट, आर्थिक समीक्षा और फिर आम बजट आने वाले हैं। इन सब पर हावी है टू-जी घोटाला और काले धन का जादू। बाबा रामदेव और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बीच चले संवाद की मीडिया कवरेज पर क्या आपने ध्यान दिया? इस खबर को अंग्रेजी मीडिया ने महत्व नहीं दिया और हिन्दी मीडिया पर यह छाई रही। इसकी एक वजह यह है कि बाबा रामदेव की जड़ें जनता के बीच काफी गहरी है। उनकी सम्पत्ति से जुड़े संदेहों का समाधान तो सरकार के ही पास है। उसकी जाँच कराने से रोकता कौन है? उन्हें दान देने वालों ने काले पैसे का इस्तेमाल किया है तो सिर्फ अनुमान लगाने के बजाय यह बात सामने लाई जानी चाहिए।
रामदेव स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में जमा भारतीय काले धन का सवाल क्यों उठा रहे हैं? हमने बजाय उनके सवाल पर ध्यान देने के इस बात पर ध्यान दिया कि उन्हें भाजपा का समर्थन मिल रहा है। बाबा की कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वाकांक्षा है भी तो इसमें आपत्तिजनक क्या है? कांग्रेस ने यहाँ तीर गलत निशाने पर साधा है। मामले को रामदेव की सम्पत्ति की ओर ले जाने के बजाय काले धन को बाहर लाने तक सीमित रखना बेहतर होता।
तकरीबन दो साल पहले जब स्विस बैंकों में जमा काले धन का सवाल उठा था, तब यह बड़ा मुद्दा नहीं था। सन 2009 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की थी, पर तब इसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। बल्कि कांग्रेस की ओर से कहा गया कि छह साल एनडीए की सरकार रही उसने इस दिशा में कुछ क्यों नहीं किया। पर तब से भारतीय आकाश में अनेक बदलाव हो चुके हैं। कॉमनवैल्थ गेम्स, आदर्श सोसायटी, टू-जी और एस बैंड मामले उठने के बाद स्वाभाविक रूप से जनता की निगाहें काले धन की ओर हैं। इसके पहले कि पहाड़ी चोटियों से चट्टानों का लुढ़कना शुरू हो, सरकार को अपनी रक्षा के रास्ते खोज लेने चाहिए। इसे राजनैतिक रंग दोना आत्मधाती होगा।
प्रधानमंत्री ने सम्पादक सम्मेलन में कहा था कि मुझे विश्वास है कि यह व्यवस्था इन समस्याओं के समाधान खोज लेगी। उस विश्वास को पुख्ता करने का तरीका यह नहीं है। संसद के बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा कि सरकार काले धन के बाबत दूसरे देशों से सूचनाओं के आदान-प्रदान की व्यवस्था करेगी। दुनियाभर में बदलाव की बयार है। हाल में मिस्र और ट्यूनीशिया में जनांदोलन हुए। उसके पहले कोस्टारिका में बदलाव हुआ। इन सब जगहों पर जनता की पहली माँग थी कि तानाशाहों के स्विस बैंक खाते जाम किए जाएं। सब समझते हैं कि बेईमानी का पैसा स्विट्ज्रलैंड जाता है। मोटा अनुमान है कि स्विट्जरलैंड, लाइशेंस्टाइन, बर्जिन आयलैंड, पनामा, बहामास और मॉरीशस जैसी तमाम जगहों पर करीब 18 ट्रिलियन डॉलर(18 हजार अरब) कालाधन जमा है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी काउंसिल का ताजा अनुमान है कि इसमें से 450 अरब डॉलर यानी करीब बीस से बाईस लाख करोड़ रुपया भारतीय है। यह रकम इससे भी काफी ज्यादा हो सकती है। संयोग है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और गैर-कानूनी कारोबार के धन के स्रोत एक जगह से ही खुलते हैं।
स्विस राष्ट्रपति मिकेलाइन कामी-रे का कहना है कि हम यह कलंक अपने माथे पर रखना नहीं चाहते। वहाँ के बैंकिंग कानून में संशोधन भी हुए हैं। वहाँ की कैबिनेट ज़रूरी होने पर किसी खाते को जाम कर सकती है। काला पैसा सिर्फ हमारी समस्या नहीं है। अमेरिका की समस्या भी है। बावजूद इसके कि वहाँ के कानून काफी सख्त है। सन 2009 में अमेरिका ने टैक्स में गड़बड़ियों के कारण स्विस बैंक यूबीएस से 78 करोड़ डॉलर वसूले थे। दो देशों के बीच टैक्स को लेकर पिछले साल अमेरिकी संसद ने फॉरेन एकाउंट्स टैक्स कम्प्लायंस एक्ट पास किया। भारतीय संसद को भी इस मसले पर आम सहमति बनानी होगी।
भारत ने हाल में बहामास, बरमूडा, ब्रिटिश बर्जिन आइलैंड्स और आइल ऑफ मैन के साथ टैक्स इनफॉर्मेशन संधियाँ की हैं। इसके अलावा करीब 22 और देशों के साथ बातचीत चल रही है। व्यावहारिक बात यह है कि पिछले साल स्विटज़रलैंड के साथ हुई संधि अभी तक लागू नहीं हो पाई है। उसे इस साल 1 जनवरी से लागू हो जाना चाहिए था, पर स्विट्जरलैंड की संसद से उसकी पुष्टि इस साल के अंत तक हो पाएगी। फिर पालिर्यामेंट ऑफ युरोपियन नेशंस से पास होते-होते ऐसी स्थिति आ जाएगी कि यह 1 अप्रेल 2012 के बाद ही लागू हो सकेगी।
विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के सिलसिले में एक पीआईएल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसमें सरकार की ओर से कहा गया है कि हमारे 79 देशों के साथ डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट हैं, जिनके कारण दूसरे देशों के सहयोग से ही हमें सूचना मिल सकती है। सरकार ने साथ ही यह भी कहा कि हमारी सजगता के कारण करीब 34,000 करोड़ रुपया बाहर जाने से रोक लिया गया। इस याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि भारत ने अभी तक यूएन कन्वेंशन ऑन करप्सन की ही अभी तक पुष्टि नहीं की है।
आम जनता संधियों और समझौतों के बारे में नहीं जानती। उसे सीधे-सीधे परिणाम चाहिए। सरकार फिलहाल दो काम करने जा रही है। पहला काम है जिन लोगों के पास काला धन है उन्हें एक मौका देना। उम्मीद है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस साल के बजट में इसकी घोषणा करेंगे। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज ने एक मसौदा भेजा है जिसमें पेनाल्टी के साथ अघोषित आय की घोषणा का मौका मिलेगा। इसके पहले देश में 1951, 1956, 1965, 1975, 1985-87 और 1997 में इस तरह की स्कीमें लाई जा चुकीं हैं। कहना मुश्किल है कि इस योजना का क्या बनेगा। पता नहीं यह योजना आ भी पाएगी या नहीं। अलबत्ता सरकार पर अब इस बात के लिए दबाव बढ़ेगा कि संसद कानून बनाए कि विदेश में मौजूद सारी अघोषित भारतीय राशि जब्त कर ली जाए। ऐसा कानूनन सम्भव है, पर भारतीय राजनीति इस प्रकार के कदम उठा लेगी, यह कहना मुश्किल है।
भारतीय राज्य को सॉफ्ट स्टेट इसीलिए कहा जाता है कि यह कानूनों पर अमल नहीं कर पाती। राष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त अराजकता के पीछे सबसे बड़ा कारण है पार्टियों की आय और व्यय की व्यवस्था न हो पाना। हम अभी तक पार्टियों को मिलने वाले चन्दे का सिस्टम नहीं बना पाए हैं। सब जानते हैं कि पैसा कहां से आता है, पर उसे रोकना कोई नहीं चाहता। पार्टियों की इस कमाई पर कोई टैक्स नहीं पड़ता। इस काली कमाई के पीछे सिर्फ पूँजीपति होते तो शायद कुछ हो भी पाता। इसके पीछे राजनैतिक शक्तियाँ हैं। सबसे पहले राजनैतिक अर्थ-व्यवस्था ठीक करने की ज़रूरत है। इन पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र पर भी नज़र डालनी चाहिए। इनके भीतर लोकतंत्र नहीं होगा तो देश में लोकतंत्र की स्थापना कौन करेगा।
पश्चिम एशिया के जनांदोलन के पीछे विकीलीक्स-फैक्टर भी है। पिछले महीने एक स्विस बैंक के पूर्व कर्मचारी रडॉल्फ एल्मर ने विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को एक सीडी में कुछ सूचनाएं दी थीं। वे अभी जारी नहीं हुईं हैं। शायद इसमें कुछ जानकारी भारत के सिलसिले में भी है। बदलती दुनिया में जानकारी नए के रास्ते भी खुल रहे हैं। बेहतर हो कि व्यवस्थाएं पारदर्शी हों। उम्मीद है कि हमारी व्यवस्था सही रास्ते पर जाएगी और यह असमंजस दूर होगा। आमीन।
मेरठ से प्रकाशित जनवाणी में 25 फरवरी
संसद में सबसे पहले काले धन की वापिसी की मांग का.गुरुदास दासगुप्ता ने उठाई थी.उस समय मामला दब गया था अब विक्कीलीक्स खुलासे के बाद से भाजपा और रामदेव इस मांग के पीछे इस लिए आ गए हैं कि एन.डी.ए.शासन के घोटाले छिपे रहें.भाजपा और कांग्रेस दोनों दल से इस पक्ष में नहीं है .राष्ट्र मंडल खेलों में कांग्रेस सांसद और भाजपा ठेकेदार मिल जुल कर काम करते पकडे गए हैं.
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