उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार और संगठन को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है, वह लखनऊ से अब दिल्ली पहुँच गया है। बुधवार को प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद यह स्पष्ट हो गया कि केंद्रीय नेतृत्व ने इसे गंभीरता से लिया है। इसके एक दिन पहले चौधरी और राज्य के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की थी।
हाल में हुए लोकसभा-चुनाव में बीजेपी की सीटों
की संख्या 62 से गिरकर 33 रह जाने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या संगठनात्मक कारण
भी इस विफलता के पीछे रहे हैं? केशव मौर्य बार-बार यह क्यों कह रहे हैं कि ‘संगठन, सरकार से बड़ा है, कार्यकर्ता का दर्द मेरा दर्द
है, संगठन से कोई बड़ा नहीं, कार्यकर्ता ही गौरव है।’ इस आशय की
बातें उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखी हैं और उन्हें हटाया भी है।
मीडिया स्रोतों के अनुसार केंद्रीय नेतृत्व ने मौर्य से कहा है कि उन्हें ऐसे बयानों से बचना चाहिए, जिनसे पार्टी की राजनीतिक संभावनाओं को धक्का लगे। राज्य में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी संगठन स्थिति के बिगड़ने से रोकने की दिशा में सक्रिय हो गया है। उधर नकारात्मक खबरों के दबाव में सरकार ने अपने दो फैसलों को वापस ले लिया है। कुकरैल परियोजना के प्रस्तावित तोड़फोड़ को रोकने और अध्यापकों की हाजिरी को डिजिटाइज करने के फैसले।
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जो सरकार
पिछले सात साल से मजबूती के साथ खड़ी दिखाई पड़ रही थी, अब अचानक लड़खड़ाती नज़र
आने लगी है. इसकी वजह है एक अरसे से पनप रहा असंतोष, जो मौका देखकर अब बाहर आना
चाहता है.
लगता है कि पार्टी ने इस मसले को काफी गंभीरता
लिया है. प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
से मुलाकात से लगता है कि मामला काफी बढ़ गया है. बुधवार को ही गृहमंत्री अमित शाह
भी प्रधानमंत्री से मिलने के लिए गए. कहना मुश्किल है कि वे उत्तर प्रदेश के मसले
पर बात करने गए थे या नहीं, पर घटनाक्रम से लगता है कि कहीं कुछ हो रहा है.
लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद
के मुताबिक सफलता नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण था, उत्तर प्रदेश. पहली नज़र में
लगता है कि संगठन के स्तर पर कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है, अन्यथा ऐसे परिणाम नहीं
आते.
बहरहाल दिल्ली में सरकार बनने के एक महीने बाद,
पार्टी ने पराभव के कारणों को समझने के लिए अंतर्मंथन शुरू किया है, तो अंतर्विरोध
भी खुलने लगे हैं. बयानबाज़ी ज्यादा नहीं है, पर प्रतीकों में बातें तो हो ही रही
हैं.
पहली नज़र में दिखाई पड़ रहा है कि गुटबाज़ी गहराई
पकड़ रही है. लोकसभा चुनाव-परिणामों को लेकर पार्टी का अंतर्मंथन चल रहा है. इसी
प्रक्रिया में यह असंतोष भी बाहर निकल कर आया है. पिछले रविवार को प्रदेश की
विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने 'संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है' कहकर
इन हलचलों को तेज कर दिया. वे पिछले एक महीने में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में
हुई कई कैबिनेट बैठकों में शामिल नहीं हुए हैं.
शायद इसी वजह से मंगलवार को केशव मौर्य और पार्टी-अध्यक्ष
भूपेंद्र चौधरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से बातचीत के लिए अलग-अलग दिल्ली बुलाया
गया. भीतर क्या बातें हुईं, इसे लेकर भी कयास हैं, पर मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राष्ट्रीय
अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के हित में इस मसले पर बयानबाज़ी नहीं की जानी चाहिए. औपचारिक
रूप से केंद्रीय नेतृत्व अभी तक कुछ कहा नहीं है.
बहरहाल केशव प्रसाद मौर्य ने नड्डा जी से मिलने
के बाद फिर कहा, 'संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है.' ज़ाहिर है कि सरकार से उनका आशय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. योगी
जी के दोनों उपमुख्यमंत्री, यानी केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, इस वक्त एक
साथ उनके खिलाफ खड़े नज़र आ रहे हैं.
राज्य में पार्टी के भीतर की उमड़-घुमड़ काफी
पहले से सुनाई पड़ रही है, पर अब वह खुलकर सामने आती जा रही है. इस खींचतान के
समानांतर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की सद्य-स्थापित एकता पहले से ज्यादा मजबूत
होती जा रही है, क्योंकि उन्हें बीजेपी के भीतर के टकराव में अपने लिए बेहतर
संभावनाएं नज़र आ रही हैं. इतना ही नहीं बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी अपने स्वरों
को मुखर करना शुरू कर दिया है.
कहा जा रहा है कि योगी-प्रशासन में अफसरशाही
हावी है, जिसके कारण भाजपा कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान
नहीं मिल पा रहा है, पार्टी के विश्वस्त कार्यकर्ताओं का
अपमान हो रहा है, वगैरह. पर यह मूल कारण नहीं है.
2017 में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने
थे, तबसे ही असंतोष की चिंगारी एक वर्ग के भीतर बैठी हुई है. कहना मुश्किल है कि
यह असंतोष बड़ी ज्वाला की शक्ल ले पाएगा या नहीं. पर हालात यहाँ तक पहुँचे हैं, यह
भी कम नहीं है.
लोकसभा चुनाव में विफलता के कारण असंतुष्टों को
विरोध व्यक्त करने का मौका मिला है. हैरत इस बात पर ज़रूर है कि केंद्रीय नेतृत्व
ने समय रहते इस टकराव को पढ़ा नहीं. या फिर यह माना जाए कि केंद्रीय नेतृत्व कुछ
सोचकर कोई बड़ा फैसला नहीं करना चाहता है.
वस्तुतः नेतृत्व को समझदारी के साथ पहले इस
टकराव को टालना या कालीन के नीचे डालना होगा, फिर धीरे-धीरे परिवर्तन करना होगा.
उसके साथ ही कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश भेजना भी जरूरी है कि सरकार में उनकी
बात सुनी जाएगी और उन्हें सम्मान मिलेगा.
दिल्ली में मंगल को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ हुई
बैठकों के बाद बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में विधानसभा की 10
सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए लखनऊ में बैठक बुलाई.
बैठक में उन्होंने जो रणनीति बनाई है, उससे
दोनों उपमुख्यमंत्रियों को अलग रखा गया है. इस रणनीति के अनुसार इन दसों
चुनाव-क्षेत्रों में सघन प्रचार के लिए उन्होंने 30 मंत्रियों की एक टीम बनाई है,
जिसमें दोनों डिप्टी सीएम नहीं हैं. यह एक प्रकार की जवाबी कार्रवाई
है.
हाल हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के नौ
विधायकों ने लोकसभा की सदस्यता प्राप्त करके अपने पद से इस्तीफा दे दिया. प्रदेश
की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद,
मझवाँ, मीरापुर, मिल्कीपुर,
करहल, कटेहरी और कुंदरकी यानी नौ सीटें खाली
हुई हैं. दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी को अयोग्य करार दिए जाने से खाली
हुई है.
जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से
पाँच पर समाजवादी पार्टी के विधायक थे, भाजपा के तीन और राष्ट्रीय लोक दल तथा निषाद
पार्टी के एक-एक. यानी इंडिया गठबंधन और एनडीए की पाँच-पाँच सीटें हैं. अब दोनों
गठबंधन अपने महत्व और वर्चस्व को साबित करने के लिए चुनाव में उतरेंगे. ऐसे में
बीजेपी के भीतर से बर्तनों के खटकने की आवाज़ों का आना शुभ लक्षण तो नहीं है.
पार्टी के सहयोगियों की आवाजें भी अब मुखर हो
रही हैं. पिछले सोमवार को निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने कहा, गरीब को
उजाड़ेंगे, तो वह हमें उजाड़ेगा राजनीति में. उन्होंने उत्तर प्रदेश की ‘बुलडोज़र राजनीति’ पर भी
टिप्पणी की है. हाल में लखनऊ में चले बुलडोज़रों को लेकर भी टिप्पणियाँ हो रही
हैं.
मंगलवार को
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ की कुकरैल नदी के आसपास की बस्तियों के
नागरिकों को आश्वासन दिया कि उनके घर तोड़े नहीं जाएंगे. इससे योगी जी के नाम का
जैकारा लगा, पर पार्टी के भीतर का असंतोष इससे कम नहीं हुआ है. कुछ समय पहले इस
इलाके के अकबर नगर में बड़े स्तर पर बुलडोजर चलाकर मकान तोड़े गए थे.
इसके पहले अपना दल
(एस) की नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा
था कि राज्य में ओबीसी और अजा के कोटे की सीटों पर सामान्य कैटेगरी के लोगों की
नियुक्तियाँ की जा रही हैं. जो बातें पहले दबे-छिपे कही जा रही थीं, वे अब मुखर होकर
कही जा रही हैं.
लोकसभा चुनाव में
बीजेपी की सोशल इंजीनियरी की विफलता, प्रत्याशियों के चयन में नासमझी और विरोधी
दलों के प्रचार की काट कर पाने में विफलता को लेकर अब सवाल किए जा रहे हैं. इन
सवालों के जवाबों में ही पक्ष और प्रतिपक्ष पढ़े जा सकते हैं.
न्यूज़18 में प्रकाशित आलेख का संवर्धित संस्करण
No comments:
Post a Comment