दुनिया पर छाई महामारी तीसरे साल में प्रवेश कर रही है। आम राय है कि अब इसका असर कम होना चाहिए, पर तीन बातों ने परेशान कर रखा है। यूरोप में एक नई लहर आई है। पश्चिमी देशों में वैक्सीन-विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है, जिसके कारण बीमारी पर काबू पाने में दिक्कतें पैदा हो रही हैं। और तीसरे वायरस का एक नया वेरिएंट प्रकट हुआ है, जिसने दुनियाभर में दहशत पैदा कर दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसके पहले मामले की जानकारी 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका से मिली थी। बोत्सवाना, बेल्जियम, हांगकांग और इसराइल में भी इस वेरिएंट की पहचान हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस नए वेरिएंट को
ओमिक्रोन नाम दिया है और इसे 'चिंतनीय वेरिएंट' (वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न/वीओसी) की श्रेणी
में रखा है। यह काफी तेज़ी से और बड़ी संख्या में म्यूटेट होने वाला वेरिएंट है। महामारी
का दो साल का अनुभव है कि जितनी तेजी से काम करेंगे, बीमारी पर काबू पाने में उतनी
ही आसानी होगी। सवाल है, क्या इस नए वेरिएंट पर काबू पाया जा सकेगा? क्या यूरोप में इसबार का सर्दी का मौसम शांति से गुजर जाएगा? और क्या इस तीसरे साल यह बीमारी पूरी तरह विदा हो जाएगी?
ज्यादा खतरनाक
शुरूआती अंदेशा था कि मुकाबले डेल्टा के नया
वेरिएंट ओमिक्रोन ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है, पर अब खबरें आ रही हैं कि यह
तेजी से संक्रमित होता है, पर कम
खतरनाक है। इसके लक्षण मामूली हैं और घातक नहीं है। फिर भी एक सवाल है कि डेल्टा
पर तो वैक्सीन प्रभावी थीं, क्या ओमीक्रोन के खिलाफ भी वे प्रभावी होंगी? क्या वैक्सीनों में बदलाव लाना होगा? फायज़र
और बायोएनटेक ने इसकी जाँच शुरू कर भी दी है। उनका कहना है कि जरूरी हुआ, तो हम छह
हफ्ते के भीतर वैक्सीन में बदलाव कर देंगे और 100 दिन के भीतर वैक्सीन के नए बैच
जारी कर देंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर
माइक रयान का कहना है कि दुनिया में इस वक्त लगाए जा रहे कोरोना के टीके,
कोविड के नए वेरिएंट ओमिक्रोन से लड़ने में समर्थ हैं। डब्लूएचओ ने
कहा कि ऐसा कोई
संकेत नहीं है कि ओमिक्रोन वेरिएंट पर वैक्सीन का असर, बाकी
वेरिएंट की तुलना में कम होगा। डॉक्टर रयान ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया,
"हमारे पास बहुत ही प्रभावी टीके हैं जो गंभीर
बीमारी और अस्पताल में भरती होने के मामले में अब तक सभी वेरिएंट के ख़िलाफ़
प्रभावी साबित हुए हैं। यह मान लेने का कोई कारण नहीं है कि ओमिक्रोन पर इनका असर
कम होगा।"
उन्होंने कहा कि शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि ओमिक्रॉन ने डेल्टा और अन्य वेरिएंट की तुलना में कम लोगों को संक्रमित किया है। उनके मुताबिक यह बात इसके कम गंभीर होने की दिशा में इशारा करती है। अमेरिका के शीर्ष वैज्ञानिक डॉ एंटनी फाउची ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 का ओमीक्रोन वेरिएंट 'निश्चित' रूप से डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा घातक नहीं है। बी.1.1.1.529 वेरिएंट ने बहुत बड़ी संख्या में म्यूटेशन दिखाए हैं। उन्होंने कहा कि कुछ संकेत मिले हैं कि यह कम गंभीर हो सकता है क्योंकि जब आप साउथ अफ्रीका की स्थिति देखते हैं तो पाते हैं कि संक्रमण की संख्या और अस्पताल में भरती होने वाले मामलों की संख्या के बीच का अनुपात डेल्टा की तुलना में कम है।
दक्षिण अफ्रीका में 16 नवंबर को 300 से भी कम
नए केस आए थे, जो 25 नवंबर को 1200 से ज्यादा हो गए। इनमें से ज्यादातर मामले
गौतेंग प्रांत में थे, जिसकी राजधानी जोहानेसबर्ग है। संक्रमणों में तेज वृद्धि के
पीछे शुरू में छात्रों के एक कार्यक्रम को सुपरस्प्रैडर माना गया, पर बाद में पता
लगा कि संक्रमण का इलाका अपेक्षाकृत व्यापक है। फिर सीक्वेंसिंग से पता लगा कि यह
वायरस का नया वेरिएंट है।
क्या बाहर फैलेगा?
क्या ओमिक्रोन वैश्विक-संकट का कारण बनेगा? दुनियाभर में फैल सकता है? जरूरी नहीं। अभी तक वहाँ बीटा वेरिएंट प्रभावी है, जो दुनिया के शेष
हिस्सों में नहीं है। यूरोप में अल्फा वेरिएंट प्रभावी है, जो दक्षिण अफ्रीका में
नहीं है। संक्रमण के फैसले के पीछे कुछ प्राकृतिक और कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक कारण
भी होते हैं। अच्छी बात यह है कि ओमीक्रोन की पहचान बहुत जल्द हुई है। पिछले साल
के अंत में जब भारत में डेल्टा वेरिएंट की पहचान हुई, तब तक काफी देर हो चुकी थी
और उसका प्रसार काफी हो चुका था।
महामारी के तीसरे साल
में प्रवेश करते हुए ओमीक्रोन का प्रकट होना जहाँ दहशत फैला रहा है, वहीं आश्वस्ति
के अनेक कारण भी हैं। जिन देशों या इलाकों में टीकाकरण अच्छा हुआ है, वहाँ बीमारी
का असर कम है। वैक्सीन ने वायरस के लिंक को तोड़ा है। नए केसों और मौतों अंतर बढ़ा
है। यानी संक्रमणों की भयावहता में काफी कमी आई है। गरीब देशों में वैक्सीनेशन
अपेक्षाकृत धीमा होने के कारण प्रगति धीमी है, जो चिंता का विषय है। गेट्स
फाउंडेशन का कहना है कि नए साल में करीब 90 फीसदी विकसित देशों में औसत आय महामारी
से पहले के स्तर पर पहुँच जाएगी, पर यह बात केवल एक तिहाई अल्प विकसित देशों पर ही
लागू हो सकेगी।
टीकाकरण की
सीमाएं
हालांकि 2021 की आखिरी
तिमाही में वैक्सीन की सप्लाई बढ़ी है, फिर भी काफी देशों में 2022 में वैक्सीनेशन
नहीं हो पाएगा। इस आशंका के पीछे सप्लाई की कमी और वैक्सीन-भय दोनों बाते हैं। ऐसे
देशों में आर्थिक-गतिविधियाँ भी प्रभावित होंगी। गरीब देशों में आपूर्ति के साथ ‘लास्ट माइल’ समस्याएं जैसे कि
कोल्ड चेन जैसे मसले भी जुड़े रहते हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी और उन्हें
प्राप्त संसाधनों की कमी दोनों बातें हैं। अब चुनौती गरीब देशों के दूर-दराज
इलाकों तक वैक्सीन पहुँचाने की है।
इस समय वैक्सीन
उत्पादन की जो गति है, उसे बनाए रखने के लिए जरूरी है कि टीकाकरण लगातार होता रहे।
ऐसा नहीं हुआ, तो वैक्सीन का भंडार बड़ा होता जाएगा। नए साल में वैक्सीन के बूस्टर
की प्रक्रिया भी शुरू होगी। चूंकि वायरस के नए वेरिएंट सामने आ रहे हैं, इसलिए
वैक्सीनों में बदलाव की जरूरत भी होगी। इसके अलावा बच्चों के टीकाकरण का काम भी
अगले साल ज्यादा बड़े स्तर पर होगा।
सिकुड़ेगा
महामारी का असर
सब ठीक रहा, तो
महामारी कुछ इलाकों में ही सीमित रह जाएगी और उसका वैश्विक प्रसार थम जाएगा, पर नए
वेरिएंट का खतरा बना रहेगा। अमेरिकी वैक्सीन मॉडर्ना के प्रमुख स्टीफेंन बैंसेल का
कहना है कि हम एक ‘मल्टीवेलेंट’ पर काम कर रहे हैं, जो
कई वेरिएंट के विरुद्ध काम करेगी। इसके अलावा उनकी कंपनी ‘पैन-रेस्पिरेटरी’ वैक्सीन पर भी काम कर रही है, जो श्वसनतंत्र को
प्रभावित करने वाले और फ्लू के लिए जिम्मेदार कई प्रकार के वायरसों के विरुद्ध काम
करेगी।
इनके अलावा त्वचा के
पैच और नाक के माध्यम से दी जाने वाली वैक्सीन भी सामने आ जाएंगी। अमीर देशों में
कोविड-19 की एंटी-बॉडी चिकित्सा भी आम हो जाएगी। मर्क और फायज़र ने एंटी-वायरल
दवाएं भी विकसित कर ली हैं। कुछ और दवाएं सामने आने वाली हैं। इसी तरह बीमारी के
निदान के भी आसान तरीके सामने आ जाएंगे। कुल मिलाकर कोरोना एक मामूली बीमारी के
रूप में रह जाएगा, जिसका आसान इलाज उपलब्ध होगा। सवाल वही है कि क्या यह इलाज गरीब
देशों में भी उपलब्ध होगा, जहाँ कोरोना से ज्यादा बड़ी बीमारी है मुफलिसी। उसका
इलाज दुनिया को खोजना होगा। कब खोजेगी, पता नहीं।
नवजीवन में प्रकाशित आलेख में परिवर्धन के साथ
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