Sunday, November 7, 2021

खतरा! नशे की संस्कृति का


आर्यन खान के मामले की जाँच एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेड़े के हाथ से लेकर एक दूसरी टीम को देने का फैसला करने से और कुछ हो या नहीं हो, इसके राजनीतिकरण की शिद्दत कुछ कम होगी। खबर है कि नवाब मलिक के दामाद समीर खान के केस से भी समीर वानखेड़े को हटा दिया गया है। दिल्ली की टीम अब आर्यन खान केस, समीर खान केस, अरमान कोहली केस, इकबाल कासकर केस, कश्मीर ड्रग केस और एक अन्य केस की जांच करेगी।

ऐसा क्यों किया गया है, यह स्पष्ट नहीं है, पर जिस तरह से देश का सारा ध्यान समीर वानखेड़े पर केंद्रित हो गया था, उससे हटने की जरूरत थी। नशे के बढ़ते कारोबार और नौजवानों के बीच फैलती नशा-संस्कृति पर ध्यान देने के लिए यह जरूरी है। हो सकता है कि यह मामला भी अंततः एनआईए को सौंपा जाए, क्योंकि कुछ समय पहले गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई तीन हजार किलोग्राम हेरोइन का मामला एनआईए को सौंपा गया है।

राजनीतिक रंग

सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद मीडिया में वह मामला आत्महत्या या कुछ और जैसे सवालों में उलझा रहा, पर खतरनाक तरीके से बढ़ती नशाखोरी की ओर हमारा ध्यान नहीं गया। कुछ समय पहले उड़ता पंजाबने इस तरफ ध्यान खींचा, पर हम उसे जल्द भूल गए। इस समय भी हमारा ज्यादातर ध्यान इसलिए है, क्योंकि इसके साथ बॉलीवुड के सितारों का नाम जुड़ा है। पर मामले को राजनीतिक रंग देने से इसकी दिशा बदल गई है।

गुजरात के मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई 21 हजार करोड़ रुपये की तीन हजार किलोग्राम 'हेरोइन' के मामले को भी हम उस गहराई के साथ देखने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, जिसकी जरूरत है। उसमें भी राजनीतिक-रंग ज्यादा है, आपराधिक विवेचन कम। बहरहाल शुरुआती जांच में कुछ गिरफ्तारियों के बाद उस मामले की जाँच एनआईए को सौंप दी गई है।  सवाल है कि क्या इन सब घटनाओं की तह पर पहुँचने में कामयाबी मिलेगी? कौन लोग हैं, जो इस कारोबार को चला रहे हैं? 21 हजार करोड़ रुपये की इतनी बड़ी मात्रा में हेरोइन मँगाने वाला कौन है?

सवाल ही सवाल

इस कारोबार के अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन हैं। क्या हम उन्हें पकड़ पाएंगे? नशाखोरी और आतंकवाद के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों की कोई साठगाँठ तो नहीं? हेरोइन की इतनी बड़ी खेप में अफ़ग़ानिस्तान का कनेक्शन क्या है? नशाखोरी से लड़ने वाली हमारी व्यवस्था क्या पर्याप्त कुशल है? या वह वसूली करके अपनी जेब भर रही है? फिल्मी सितारों के यहां छापे मारकर सुर्खियां बटोरने वाली 'एनसीबी' के पास 18 महीने से स्थायी डीजी नहीं है, क्यों नहीं है? क्या अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है? क्या हमारे कानून अपर्याप्त हैं?

इस मामले को कम से कम तीन अलग-अलग शीर्षकों में देखा जाना चाहिए। नशे क वैश्विक नेटवर्क, उसके साथ भारतीय नेटवर्कों का सम्पर्क और भारतीय कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की अकुशलता। इन सबसे अलग एक चौथे विषय पर भी विचार करना होगा। हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था में ऐसी क्या खराबी है, जो युवा वर्ग में नशे की पलायनवादी प्रवृत्ति जन्म ले रही है।  

नशे की संस्कृति

आईआईएम, रोहतक के एक सर्वे में पता लगा है कि लगभग 78 प्रतिशत लोग ड्रग का प्रयोग करते-करते इसके कारोबार में आ गए। यह सर्वे तीन राज्यों की जेल में बंद 872 लोगों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया था। उन्होंने बताया कि अपने कारोबार के लिए उन्हें कालेज, यूनिवर्सिटी और स्कूल जैसी जगहें सबसे उपयुक्त लगीं। इसमें शामिल 84 फीसदी लोग मानते हैं कि मादक पदार्थ पाकिस्तान की तरफ से आते हैं। पाकिस्तान की सीमा से सटे राजस्थान और पंजाब के साथ ही मुंबई उसके गंतव्य होते हैं।

इसी तरह चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन की एक और रिपोर्ट बताती है कि देश में नशाखोरी करने वाले 65 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 वर्ष से भी कम है। इसके अनुसार फिल्में और साहित्य युवाओं के मन-मस्तिष्क पर अत्यधिक प्रभाव छोड़ते हैं। नेटफ्लिक्स जैसे कई ओटीटी प्लेटफॉर्म हमारे घरों में प्रवेश कर चुके हैं, जिनमें नशीले पदार्थों के सेवन को दिखाया जाता है। पंजाब इसका बहुत बड़ा केंद्र बन चुका है। अब जो खबरें आ रही हैं उनसे लगता है कि बॉलीवुड के अभिनेता-अभिनेत्री इसके शिकार हैं।

वैश्विक नेटवर्क

थिंकटैंक ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी की वैश्विक अपराधों से जुड़ी रिपोर्ट के अनुसार सन 2014 में नशे का यह आपराधिक कारोबार 426 से 652 अरब डॉलर के बीच था। आज यह करीब एक ट्रिलियन डॉलर के आसपास हो, तो कोई आश्चर्य नहीं। इसका सेवन सारी दुनिया में होता है और वह बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया में अफीम की अवैध खेती का सबसे बड़ा केंद्र अफ़ग़ानिस्तान है। वहाँ से हेरोइन यूरोप और एशिया के तमाम देशों में जाती है। हाल में मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई हेरोइन भी संभवतः अफ़ग़ानिस्तान से आई थी।

तालिबान ने पिछले बीस साल में जो लड़ाई लड़ी, उसके लिए काफी धनराशि अफीम की इस अवैध खेती से मिली थी। इसी नेटवर्क का रिश्ता दुनिया में हथियारों के अवैध कारोबार से भी है, जो चिंता का ज्यादा बड़ा विषय है। इसी नेटवर्क के सहारे हवाला जैसी अवैध बैंकिंग व्यवस्था चलती है। इस आपराधिक-दुनिया की तमाम परतें हैं। इटली, अमेरिका, जापान और न जाने कहाँ-कहाँ इन माफिया गिरोहों के सरदार बैठे हैं।

और पहरेदार

कौन रोकेगा इन गिरोहों को? इसके लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन, संधियाँ और समझौते हैं। मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई हेरोइन कहाँ से आई और कौन उसका सूत्रधार है, उसका पता लगाने के लिए देश के बाहर देखना होगा। युनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) इसका समन्वय करता है। यह बहुत मुश्किल लड़ाई है। अंतरराष्ट्रीय समुद्र में बहुत सी गतिविधियों को नियंत्रित करना मुश्किल होता है। द्वीपों में स्थित बहुत से छोटे-छोटे देश अपने फौरी लाभ के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। जटिलताएं कितनी हैं, इस बात को आप नीरव मोदी या विजय माल्या के प्रत्यर्पण की प्रक्रियाओं में देख सकते हैं।

भारतीय प्रयास

हाल में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने जानकारी दी कि नशे के अवैध कारोबार को रोकने के लिए भारत ने 26 द्विपक्षीय समझौते, 15 एमओयू तथा दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा इंटेलिजेंस के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों से समन्वय करता है। गृह मंत्रालय ने कानूनों के प्रभावी अनुपालन के लिए 2016 में नार्को कोऑर्डिनेशन सेंटर (एनकॉर्ड) की स्थापना की है, जो जिला स्तर तक चार-सतहों पर काम कर रहा है। डायरेक्टरेट ऑफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस के अलावा बीएसएफ, सशस्त्र सीमा बल, भारतीय तटरक्षक और एनआईए को नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंसेज़ एक्ट-1985 के तहत छापे मारने का अधिकार है।  

एनडीपीएस कानून  

जब यह कानून बनाया गया था, तब ऐसा करना जरूरी था, क्योंकि 1961 की संयुक्त राष्ट्र की एक संधि पर हस्ताक्षर करने के 25 वर्षों के भीतर कानून बनाना था और समय समाप्त हो रहा था। हाल में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इसमें कुछ संशोधनों की पेशकश की है। सन 2001 में इसमे मृत्युदंड की व्यवस्था भी जोड़ दी गई थी, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2011 में अवैध करार दिया था। इसके बाद 2014 में एक और संशोधन करके मृत्युदंड को अदालत के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

कानून में बदलाव से जुड़ा सुझाव है कि थोड़ी सी मात्रा में नशीला पदार्थ मिलने से व्यक्ति को अपराधी न माना जाए। उसे अपराधी नहीं पीड़ित माना जाए। पहले गिरफ्तार करो और फिर जाँच करो की नीति बदली जाए। इस बहस के आयाम बहुत व्यापक हैं, पर सबसे पहले हमें नशे की इस प्रवृत्ति की भयावहता पर विचार करना चाहिए।

हरिभूमि में प्रकाशित

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