Monday, November 22, 2021

आंदोलन फिर से जागेंगे, राजनीतिक अंतर्विरोध अब और मुखर होंगे

आंदोलन को जारी रखने की घोषणा करते हुए बलवीर सिंह राजेवाल

देश में चल रहे किसान आंदोलन, उसकी राजनीति और अंतर्विरोध अब ज्यादा स्पष्ट होने का समय आ गया है। तीन कानूनों की वापसी इसका एक पहलू था। इसके साथ किसानों की दूसरी माँगें भी जुड़ी हैं। ये माँगे फिलहाल पंजाब और हरियाणा के किसानों की नजर आती हैं, क्योंकि इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की माँग भी शामिल है।

कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर भी आंदोलन फिर से शुरू करने की सुगबुगाहट है। अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' के अनुसार असम में सीएए के ख़िलाफ़ कई समूह फिर से जागे हैं और 12 दिसंबर को प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।

उधर केंद्रीय कैबिनेट 24 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मंजूरी पर विचार करेगी। इसके बाद कानूनों को वापस लेने वाले बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाएंगे। संसद का सत्र 29 नवंबर से शुरू होने वाला है।

आंदोलन जारी रहेगा

संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) का आंदोलन फिलहाल जारी रहेगा। रविवार को यह फैसला मोर्चे की बैठक में लिया गया। भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलवीर सिंह राजेवाल और जतिंदर सिंह विर्क ने बताया- 22 नवंबर को लखनऊ में महापंचायत बुलाई गई है। 26 नवंबर को काफी किसान आ रहे हैं। 27 को आंदोलन के अगले कदम के बारे में विचार किया जाएगा।

इसके पहले संयुक्त किसान मोर्चा की नौ सदस्यीय कोऑर्डिनेशन कमेटी की शनिवार बैठक हुई, जिसमें मोर्चा के शीर्ष नेता बलवीर सिंह राजेवाल, डॉ. दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्काजी), युद्धवीर सिंह आदि उपस्थित थे।

कुछ और माँगें

राजेवाल के मुताबिक, प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखा है, जिसमें कुछ मांगें की जाएंगी। ये हैं- एमएसपी-गारंटी बिल के लिए कमेटी बनाई जाए, बिजली के शेष बिल को रद्द किया जाए और पराली जलाने के लिए लाए गए कानून को रद्द किया जाए। पत्र में अजय मिश्र टेनी को लखीमपुर मामले का मास्टरमाइंड मानते हुए कहा गया है कि उन्हें पद से हटाकर गिरफ्तार किया जाए।

राजेवाल ने कहा, प्रधानमंत्री घोषणा के बाद अब तक सरकार ने बातचीत की अपील नहीं की है। प्रधानमंत्री का ऐलान अभी स्वागत के लायक नहीं है, क्योंकि अभी कानून रद्द करने का सिर्फ ऐलान हुआ है। जब तक एमएसपी-गारंटी बिल नहीं लाया जाता और दूसरी मांगें नहीं मानी जातीं, तब तक स्वागत नहीं किया जाएगा।

अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव और संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमेटी के सदस्य हन्नान मोल्ला ने कहा कि हमने तीन अन्य माँगों को पहले ही दर्ज करा दिया था। इनमें व्यापक लागत मूल्य (सी2+50%) के आधार पर एमएसपी को कानूनी रूप देने की माँग भी शामिल है।  

लखनऊ-महापंचायत

संयुक्त किसान मोर्चा लखनऊ में सोमवार को अपना पहला शक्ति-प्रदर्शन करने जा रहा है। इसका नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चे के सभी वरिष्ठ नेता करेंगे और इसमें मोर्चे की प्रदेश भर की इकाइयों से जुड़े संगठन किसानों की भीड़ लखनऊ लेकर आएंगे। लखनऊ के कांशीराम ईको पार्क में "एमएसपी अधिकार महापंचायत" का आयोजन हो रहा है।

भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने बताया, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और लखीमपुर खीरी की घटना के मद्देनज़र हमने घोषणा की थी कि हम लखनऊ में किसान महापंचायत करेंगे। लखीमपुर मामले की जांच भी सही दिशा में नहीं बढ़ रही है। उस जांच में अब किसानों को फँसाने का काम हो रहा है।

मुंबई-महापंचायत

28 तारीख को 100 से अधिक संगठनों के साथ संयुक्त शेतकरी कामगार मोर्चा के बैनर तले मुंबई के आजाद मैदान में एक विशाल महाराष्ट्र व्यापी किसान-मजदूर महापंचायत का आयोजन किया जाएगा। घोषणा के मुताबिक, 29 नवंबर से प्रतिदिन 500 प्रदर्शनकारियों का ट्रैक्टर ट्रॉलियों में संसद तक शांतिपूर्ण और अनुशासित मार्च योजनानुसार आगे बढ़ेगा।

स्वरूप बदलेगा

दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसानों की बैठक में तय किया गया कि संसद में कानून रद्द होने तक आंदोलन खत्म नहीं किया जाएगा। इस बैठक में किसान संगठनों के 70 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें राकेश टिकैत की तरफ से युद्धवीर सिंह शामिल हुए। बैठक में शामिल पंजाब के ज्यादातर संगठन इस बात पर सहमत हुए हैं कि 26 तारीख के बाद दिल्ली की सरहदों से प्रदर्शनकारी हटा लिए जाएं और नए तरीके से आंदोलन चलाया जाए।

योगेंद्र यादव को रोका

बैठक में मौजूद रहे एक सूत्र के मुताबिक, जब योगेंद्र यादव बोलने आए तो कुछ किसान नेताओं ने उन्हें बोलने से रोकने की कोशिश की गई। किसान नेताओं को योगेंद्र यादव के लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के घर जाने पर आपत्ति थी। उनका कहना था कि किसानों को कुचलने वालों का समर्थन कैसे किया जा सकता है। कई किसान नेताओं को लगता है कि योगेंद्र यादव का जनाधार नहीं है, लेकिन वे आंदोलन को लीड करने की कोशिश कर रहे हैं।

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