प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा के दौरान ‘हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम’ संगठन के नेतृत्व में हुई हिंसा ने ध्यान खींचा है। यह संगठन सन 2010 में खड़ा हुआ था और परोक्ष रूप से प्रतिबंधित संगठन जमाते-इस्लामी के एजेंडा को चलाता है। इस संगठन से जुड़े लोगों ने न केवल सरकारी सम्पत्ति, रेलवे स्टेशन, रेल लाइन, ट्रेन, थानों और सरकारी भवनों को नुकसान पहुँचाया गया। हिंदू-परिवारों पर और मंदिरों पर भी हमले बोले गए। खुफिया रिपोर्ट यह भी बताती हैं कि जमात, हिफाजत और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शेख हसीना की सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं।
हिंसा की शुरुआत ढाका के बैतूल मुकर्रम इलाके से हुई थी, पर सबसे ज्यादा मौतें ब्राह्मणबरिया जिले में हुईं। इसके अलावा चटगाँव में भी हिंसा हुई, जहाँ ‘हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम’ का मुख्यालय है। ब्राह्मणबरिया प्रशासन, पत्रकारों और चश्मदीदों के मुताबिक़ हिंसा सुबह 11 बजे से शुरू हुई थी। ज़िला मुख्यालय, नगर पालिका परिषद, केंद्रीय पुस्तकालय, नगरपालिका सभागार, भूमि कार्यालय और प्रेस क्लब समेत टी-ए रोड के दोनों तरफ स्थित अनेक सरकारी इमारतों को आग लगा दी गई थी।
खुफिया रिपोर्ट यह भी बताती हैं कि जमात, हिफाजत और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शेख
हसीना की सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं। नरेंद्र मोदी की यात्रा से दो दिन
पहले खुफिया विभाग की ओर से बड़े पैमाने पर हिंसा की चेतावनी दी गई थी। बांग्लादेश
की खुफिया रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस, मीडिया और सरकारी प्रतिष्ठानों पर व्यापक रूप से
रक्तपात और बड़े पैमाने पर हमले की तैयारी की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि
प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी ने बड़े पैमाने पर हमले करने के लिए
भारी मात्रा में पैसा लोगों के बीच बाँटा है। जमात की कोशिश थी कि मोदी की यात्रा
के दौरान शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार पर कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर
सवाल उठाए जा सके।
जुमे की नमाज के बाद राजधानी ढाका के बैतूल मुकर्रम इलाके में लोगों ने
प्रदर्शन किया। इस दौरान भी पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प हुई। ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ ने नरेंद्र मोदी
के दौरे का विरोध करने की घोषणा पहले से कर रखी थी। उग्र भीड़ ने थाने में जमकर
तोड़फोड़ की और पत्थरबाजी के बाद थाने को आग लगाने का भी प्रयास किया। सोशल मीडिया
पर बांग्लादेश के काफी लोगों ने ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ को सत्ता का भूखा और धर्म
का व्यापार करने वाला संगठन करार दिया है। आरोप यह भी है कि ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ पाकिस्तानी खुफिया
एजेंसी आईएसआई के इशारे पर काम कर रहा है।
जो जो कट्टरपंथी सड़कों पर उतरे हैं, उन्होंने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति का विरोध किया
था। वे देश को धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर ले जाने के भी विरोधी हैं। ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ का गठन सन 2010 में
हुआ था। उस समय देश ने सत्तर और अस्सी के दशक में हुए इस्लामीकरण के धब्बों को
मिटाना शुरू किया था। यह संगठन
अब धीरे-धीरे जमाते-इस्लामी की जगह लेता जा रहा है, जिसपर प्रतिबंध है।
यह देश के अनेक कट्टरपंथी संगठनों का अम्ब्रेला संगठन है, जो देशभर में तमाम
मदरसों को चलाता है। इसका मुख्यालय चटगाँव में है। सन 2017 में इकोनॉमिस्ट की एक
रिपोर्ट में बताया गया था कि हिफाजत के मदरसों को सऊदी अरब के सलाफी-वहाबी
इस्लामिस्टों से आर्थिक सहायता मिलती है।
इनकी माँग है कि देश में इस्लामी शासन हो और ईशनिंदा (ब्लास्फेमी) के खिलाफ
वैसा ही कानून बनाया जाए जैसा पाकिस्तान में है। देश में प्रतिमाएं लगाने जाने पर
रोक लगे। सार्वजनिक स्थलों पर स्त्रियों और पुरुषों के एकसाथ जाने पर रोक लगे।
अहमदियों को गैर-मुसलमान घोषित किया जाए और स्त्रियों के विकास का कानून रद्द किया
जाय। अवामी लीग सरकार ने शुरू में इन्हें नजरंदाज किया। इससे इनके हौसले बढ़े। सन 2017
में, इनकी माँग को मानते हुए सरकार ने आँख पर पट्टी और हाथ में तराजू लिए ग्रीक
देवी थेमिस की उस प्रसिद्ध प्रतिमा को सुप्रीम कोर्ट के परिसर से हटा दिया, जो
दुनियाभर की अदालतों में देखी जा सकती है।
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने 1971 के मुक्ति-संग्राम के दौरान हुए अपराधों की
जांच के लिए 2009 में अंतर्राष्ट्रीय युद्ध अपराध न्यायाधिकरण की स्थापना की थी।
इस अदालत ने अब तक कई लोगों की मौत की सजाएं दी हैं। खासतौर से जमात-ए-इस्लामी
पार्टी के नेताओं की सजाएं महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कई आदेशों को लागू किया जा
चुका है।
हालांकि शेख हसीना की सरकार ने कट्टरपंथियों को काबू में कर रखा है, पर वे जब
भी मौका लगता है, सिर उठाते हैं। हाल में एक अदालत ने सन 2000 में शेख हसीना की हत्या
की साजिश में 14 इस्लामी आतंकवादियों को मौत की सजा सुनाई है। ये सारे अपराधी प्रतिबंधित
हरकत-उल-जिहाद बांग्लादेश के सदस्य हैं। सन 2014 में बांग्लादेश मूल के अमेरिकी
लेखक अविजित रॉय की हत्या ढाका के वार्षिक पुस्तक मेले के द्वार पर की गई थी। एक
के बाद कई ऐसे ब्लॉगरों को निशाना बनाया गया जो तर्क-बुद्धि की बात करते थे। ये
हमले ढाका से बाहर दूर-दराज इलाकों तक होने लगे। हत्याएं क्रूर मध्य युगीन क्रूर
तरीके से कुल्हाड़ी, दरांती या गोश्त
काटने वाले कटारों से की गईं। 2015 में ब्लॉगर निलय नील की हत्या हुई। सन 2016 में
अनेक हत्याएं हुईं। सन 2013-14 में देश के बीस जिलों में हिन्दुओं के खिलाफ फसाद
हुए।
ज्यादातर चरमपंथी प्रतिबंधित जमातुल-मुजाहिदीन-बांग्लादेश (जेएमबी) के सदस्य
हैं। जेएमबी के अलावा अंसारुल बांग्ला टीम यानी (एबीटी) नाम का एक और संगठन यहाँ
सक्रिय है। एबीटी के बारे में माना जाता है कि यह अल-कायदा के करीब है।
कट्टरपंथियों के साथ कड़ा रवैया न अपनाने के कारण ही यह सब हुआ है। अगर बांग्लादेश को विकसित होता है तो ऐसे संगठनों पर रोक लगानी ही पड़ेगी वहीं जनता को भी शिक्षित होना पड़ेगा।
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