पाकिस्तान के इतिहास में सम्भवतः सैनिक शासकों पर आजतक का यह
सबसे भीषण हमला है। नवाज शरीफ लम्बे अर्से से खामोश थे। पर अब वे बगावत की मुद्रा में हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने यह तीसरा भाषण दिया है। उनका हमला इमरान खान पर उतना नहीं था, जितना सेना पर था। उन्होंने सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा और आईएसआई के डीजी ले.जन. फैज़ हमीद का नाम लेकर कहा कि आपने मेरी सरकार गिराई और मेरे खिलाफ साजिश की। उन्होंने अदालत पर भी हमला बोला। उनका कहना है कि मैं अब वीडियो भी दिखाऊँगा। शरीफ ने क्या कहा इसे समझने के लिए बीबीसी उर्दू की रिपोर्ट के इस अंश को उसी भाषा
में पढ़ें:
‘ख़िताब में नवाज़ शरीफ़ का कहना था कि 'कुछ लोगों की ख़ाहिश है कि मेरी आवाज़ अवाम तक ना पहुंचे और उनकी आवाज़ मुझ तक ना पहुंचे, लेकिन वो अपने मज़मूम मक़ासिद में कामयाब नहीं होंगे।
नवाज़ शरीफ़ ने अपनी तक़रीर में कहा कि तमाम सियासतदानों को 'ग़द्दार कहलाया जाता है और शुरू से फ़ौजी आमिर सियासतदान जैसे फ़ातिमा जिनाह, बाचा ख़ान, शेख़ मुजीब अलरहमान और दीगर रहनुमाओं को ग़द्दार क़रार देते रहे हैं।
नवाज़ शरीफ़ ने सियासतदानों पर ग़द्दारी के इल्ज़ामात लगाए जाने पर कहा कि 'पाकिस्तान में मुहिब-ए-वतन कहिलाय जानेवाले वो हैं जिन्होंने आईन की ख़िलाफ़वरज़ी की और मुल्क तोड़ा।
नवाज़ शरीफ़ ने अपनी तक़रीर में आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा पर इल्ज़ामात आइद करते हुए कहा कि ये सब कुछ आपके हाथों से हुआ है, आपको नवाज़ शरीफ़ को ग़द्दार कहना है ज़रूर कहिए, इश्तिहारी कहना है ज़रूर कहिए, नवाज़ शरीफ़ के असासे जायदाद ज़ब्त करना है ज़रूर करें, झूठे मुक़द्दमात बनवाने हैं बनवाइए लेकिन नवाज़ शरीफ़ मज़लूम अवाम की आवाज़ बनता रहेगा, नवाज़ शरीफ़ अवाम को उनके वोट की इज़्ज़त दिलवा कर रहेगा।
इन्होंने अपनी तक़रीर में इल्ज़ाम लगाया कि पाकिस्तान में इंतिख़ाबात में मैंडेट को 'चोरी किया गया और 'धांधली की गई।
इन्होंने इल्ज़ाम आइद करते हुए कहा कि 'अवाम का वोट किस ने चोरी किया, इंतिख़ाबात मैं किस ने धांधली की? जो वोट आपने डाला था वो किसी और के डिब्बे में कैसे पहुंच गया? रात के अंधेरे में आरटीएस किस ने बंद किया? नताइज क्यों रोके रखे गए? और हारी हुई पी टी आई को किस ने जितवाया? अवाम के वोट की अमानत में किस ने ख़ियानत की? किस ने सिलेक्टेड हुकूमत बनाने के लिए हार्स ट्रेडिंग का बाज़ार दुबारा किस ने गर्म किया?’
नवाज शरीफ ने एक तरह से पाकिस्तान के पिछले 73 साल में सेना
की भूमिका को उजागर किया है। उनकी बातों से यह भी स्पष्ट है कि उन्होंने सारे डर
निकाल कर खुलकर लड़ने का मन बना लिया है। हालांकि उस रैली में मौजूद दूसरे दलों के
नेताओं ने इतनी कटु बातें नहीं की। इसकी वजह शायद यह भी है कि सबको डर है कि सेना
कहीं ज्यादा बड़ी बदले की कार्रवाई न कर दे। अलबत्ता इमरान खान ने नवाज शरीफ की
बातों पर गहरे गुस्से का इजहार किया है। वे शायद नवाज शरीफ और सेना के टकराव का
ज्यादा से ज्यादा फायदा लेना चाहते हैं।
हालांकि पाकिस्तान के दूसरे दल इसे इमरान के साथ अपने टकराव
को देख रहे हैं, पर वस्तुतः पाकिस्तानी लोकतंत्र का मुकाबला सेना से ही है। पर देश
की जनता और समाज के बीच राजनीति की छवि खराब है और सेना की छवि अच्छी है। इसकी वजह
वह सामाजिक संरचना भी है, जिसमें हर समय युद्ध की स्थिति बनी रहती है। यह भी सच है
कि राजनीतिक दलों के नेताओं ने भ्रष्टाचार का सहारा लिया है, पर उनकी जनता से
जवाबदेही भी है। सेना की कोई जवाबदेही नहीं है। पाकिस्तानी सेना ने देश के
संसाधनों पर कब्जा कर रखा है और उसके अफसरों की जीवनशैली शाही है।
गुजराँवाला के इस जलसे के बाद आने वाले समय में कराची,
पेशावर, मुल्तान और लाहौर में भी रैलियाँ होंगी। कराची की रैली में इन पार्टियों
को असुविधा नहीं होगी, क्योंकि सिंध में पीपीपी की सरकार है, पर बाकी जगहों पर
सरकार कड़ाई बरत सकती है। नेताओं की गिरफ्तारी हो सकती है और जुलूसों पर पाबंदियाँ
लगाई जा सकती हैं। राजनीतिक नेताओं पर नए मुकदमे भी चलाए जा सकते हैं। सवाल यह है
कि जनता पर इन रैलियों का प्रभाव क्या होगा।
गुजराँवाला की रैली के अगले रोज पाकिस्तान के अखबारों की कवरेज देखें। अंग्रेजी के अखबारों में रैली की खबर लीड है, पर उर्दू के अखबारों में खबर से ज्यादा जगह उन विज्ञापनों ने घेरी है, जिनमें सरकार का समर्थन किया गया है।
इस रैली पर नजम सेठी की टिप्पणी देखें
https://www.youtube.com/watch?v=Zm73nb_j-Ng
पाकिस्तान के नया दौर टीवी पर इस चर्चा को भी देखिए
एक और तंत्र लोक के तंत्र मंत्र।
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