भारत सरकार ने इस साल से 22 अक्तूबर को कश्मीर का ‘काला दिन’ मनाने की घोषणा की है। 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोला था। पाकिस्तानी लुटेरों ने कश्मीर में भारी लूटमार मचाई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। बारामूला के समृद्ध शहर को कबायलियों, रज़ाकारों ने कई दिन तक घेरकर रखा था। इस हमले से घबराकर कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिसके बाद भारत ने अपने सेना कश्मीर भेजी थी। इस बात के प्रमाण हैं कि स्वतंत्रता के फौरन बाद पाकिस्तान ने कश्मीर और बलोचिस्तान पर फौजी कार्रवाई करके उनपर कब्जे की योजना बनाई थी।
पाकिस्तान अथवा
तथाकथित आजाद कश्मीर सरकार, जो पाकिस्तान की
प्रत्यक्ष सहायता तथा अपेक्षा से स्थापित हुई,
आक्रामक के रूप
में पश्चिमी तथा उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में कब्जा जमाए बैठी है। भारत
ने यह मामला 1 जनवरी, 1948 को ही संरा चार्टर
के अनुच्छेद 35 के तहत उठाया। उसके बाद जो प्रस्ताव पास हुए थे, उनसे भारत और
पाकिस्तान दोनों की सहमति थी। पर वे बाध्यकारी भी नहीं थे। वे प्रस्ताव लागू नहीं
हुए। क्यों लागू नहीं हुए, वह एक अलग कहानी है। अलबत्ता जम्मू-कश्मीर के भारत में
विलय की वैध संधि की पाकिस्तान तो अनदेखी करता है, भारत में भी उसपर सवाल उठाने
वाला एक बड़ा तबका मौजूद है।
पाकिस्तान में कश्मीर राष्ट्रीय राजनीति का महत्वपूर्ण मसला
है। पाकिस्तान सरकार हर साल 5 फरवरी को कश्मीर एकजुटता दिवस मनाती है। यह चलन 2004
से शुरू हुआ है। उस दिन देशभर में छुट्टी रहती है। ज़ाहिर है कि इसका उद्देश्य जनता
के मन में लगातार कश्मीर के सवाल को सुलगाए रखना है। अब भारत सरकार ने ‘काला दिन’ मनाने की घोषणा करके एक तरह से जवाबी कार्रवाई की है। इस
अवसर पर कश्मीर में दो दिन का एक सिम्पोज़ियम आयोजित किया जाएगा जिसका विषय है ’22 अक्तूबर 1947 की यादें।’ इसका आयोजन नेशनल म्यूज़ियम इंस्टीट्यूट करेगा।
पाकिस्तानी सेना के पूर्व मेजर जनरल अकबर खान की पुस्तक ‘रेडर्स इन कश्मीर’ का
पुनर्प्रकाशन भी किया जा रहा है। इस किताब में पाकिस्तानी हमले का दस्तावेजी
विवरण है और यह किताब एक पाकिस्तानी जनरल ने लिखी है। भारत सरकार
कश्मीर के मसले पर भारतीय जनता के बीच जानकारियाँ बढ़ानी चाहती है साथ ही
पाकिस्तानी प्रचार तंत्र का जवाब भी देना चाहती है।
इस दौरान लगाई जा रही प्रदर्शनी में बारामूला मिशन अस्पताल
की तस्वीरें और वीडियो भी रखे जाएंगे। इसी अस्पताल में सन 1947 में कश्मीरी लोगों
ने शरण ली थी। इस अस्पताल में ननों, नर्सों और मरीज स्त्रियों के साथ बलात्कार
किया गया। इसमें हिंदू-मुसलमान का फर्क भी हमलावरों ने नहीं किया था। कश्मीरियों
की उस पीढ़ी ने उस हमले के दर्द को सहन किया था। आज की पीढ़ी को भी वे बातें बताई
जानी चाहिए।
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