Thursday, February 24, 2011

भारत के टाइम्स की खबर छापी मर्डोक के संडे टाइम्स ने

भारत की पेड न्यूज़ धोखाधड़ी (India's dodgy 'paid news' phenomenon) शीर्षक से लंदन के प्रतिष्ठित अखबार गार्डियन के लेखक रॉय ग्रीनस्लेड ने अपने व्लॉग में टाइम्स ऑफ इंडिया के पेड न्यूज़ प्रकरण को उठाया है। उन्होंने संडे टाइम्स में प्रकाशित एक रपट के आधार पर यह लिखा है, यह याद दिलाते हुए कि भारत सरकार ने पेड न्यूज़ की भर्त्सना की है। पिछले साल प्रेस काउंसिल ने इस मामले की जाँच भी की थी, जिसकी रपट काफी काट-छाँट कर जारी की गई थी। 


बावजूद इसके टाइम्स ऑफ इंडिया में रकम लेकर मन पसंद सम्पादकीय सामग्री का प्रकाशन सम्भव है। पेड न्यूज़ की परिभाषा बड़ी व्यापक है। इसमें गिफ्ट लेने से लेकर मीडिया हाउस और कम्पनियों के बीच प्रचार समझौते भी शामिल हैं। यह समझौते शेयर ट्रांसफर के रूप में होते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की मन पसंद पब्लिसिटी के बदले अखबारों ने पैसा लिया, ऐसी शिकायतें थीं।



लंदन के संडे टाइम्स के संवाददाता ने मीडियानेट नामक कम्पनी के दफ्तर में फोन किया। उसने ऐसा जाहिर किया कि वह एक पीआर कम्पनी का प्रतिनिधि है और दिल्ली के एक शॉपिंग मॉल में होने वाली पार्टी की एक्सक्ल्यूसिव पब्लिसिटी चाहता है। उस संवाददाता को दिल्ली टाइम्स सप्लीमेंट में स्पेस की दरें बता दीं गईं। 
लंदन टाइम्स की इस खबर से यह जाहिर नहीं होता कि यह पेड न्यूज़ है या नहीं। 
लंदन टाइम्स की संवाददाता ने इस खबर को अपने तरीके से छापा है। इस खबर में केवल टाइम्स ऑफ इंडिया का जिक्र ही नहीं है, बल्कि प्रेस काउंसिल की रपट के अंश उद्धृत कर हिन्दी के कुछ अखबारों के नाम भी हैं। लंदन टाइम्स का लेख ऑनलाइन पढ़ पाना सम्भव नहीं है, क्योंकि उसकी सेवा फीस देने पर ही उपलब्ध है। मीडिया ब्लॉग सैंस सेरिफ ने उस रपट को छापा है। उसे पढ़ना चाहें तो मैने उसका लिंक नीचे दिया है। 
विस्मय इस बात पर है कि इस बीच ऐसा क्या हो गया कि रूपर्ट मर्डोक के अखबार को ऐसी रपट छापनी पड़ी। ऐसी खबरें खोजी पत्रकारिता की परिचायक हैं। पर मेरे विचार से पत्रकारिता का मूल तत्व है मंतव्य। यह मंतव्य यदि जनहित है तभी पत्रकारिता पूर्ण होती है। अखबारों के कारोबारी मॉडल की सफलता तभी सम्भव है जब सार्वजनिक हित सर्वोपरि हो। बहुत अच्छा लिखना या बहुत खोज कर लिखना अच्छी पत्रकारिता का एक पहलू है। कहना मुश्किल है कि मर्डोक के अखबार को भारतीय पत्रकारिता की पड़ताल की प्रेरणा क्यों और कहाँ से मिली।कभी अवसर मिला तो बताना चाहूँगा कि मर्डोक शुद्ध कारोबार करते हैं। उनके दामन में पत्रकारिता के मूल्यों के दाग नहीं हैं।

रॉय ग्रीनस्लेड का ब्लॉग पढ़ें

सैंन सेरिफ में पढ़ें रपट

द हूट में प्रकाशित लेख टीएनएन अगेन...

हिन्दू में प्रकाशित एन भास्कर राव का जनवरी 2010 का एक लेख

2 comments:

  1. पेड़ न्यूज़ वाले चेनल या अख़बार के मालिक व संपादक को टीन का डब्बा लेकर पूरे देश में लोगों से भीख मांगना चाहिए....पैड न्यूज़ जैसे जघन्य अपराध पूरी मानवता के प्रति शर्मनाक साजिश है...

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  2. shamim ekbal5:03 PM

    paid newes sabse kharab karya hai up aur bihar me lakho berozgar ped newes ki wajah se chhale ja rahe hai ham log iske khilaf लड़ाई लड़ rahe hai parantu अखबारों की बेशर्मी ख़त्म नहीं हो रही है

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