इधर कॉमनवैल्थ खेलों को लेकर काफी फ़ज़ीहत हो रही है। ज्यादातर निर्माण कार्य़ समय से पीछे हैं। उनमें घपलों की शिकायतें भी हैं। हमारा अराजक मीडिया जब मैदान में उतरता है तो उसका एकसूत्री कार्यक्रम होता है। वह पिल पड़ता है। इसके बाद वह सब कुछ भूल जाता है। जब फ़जीहत ज़्यादा हो गई तो कुछ लोगों ने कहा, देश की प्रतिष्ठा के लिए कुछ कम करो। इसपर मीडिया अचानक खामोश हो गया।
यह सब मीडिया के लिहाज से ही नहीं हो रहा है। जिसे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा कहते हैं वह दिखावटी चीज़ नहीं है। हम जापान के लोगों को कर्तव्यनिष्ठ मानते हैं, तो किसलिए? उन्होंने अपने मीडिया से इसका प्रचार तो नहीं किया। प्रतिष्ठा न तो प्रचार से मिलती है और न दुष्प्रचार से बिगड़ती है। हमारी छवि कहीं खराब हो रही है तो उसके सूत्र हमारे काम-काज के तरीके में ही छिपे हैं। उन्हें ठीक करने की ज़रूरत है।
कॉमनवैल्थ गेम्स के लिए पचास हजार करोड़ रुपए तक खर्च करने वाले देश में गरीबों के भोजन, गाँवों की सड़कों, स्कूलों और सरकारी अस्पतालों का क्या हाल है? इससे हमारी प्राथमिकताएं नज़र आती हैं। जो समाज अपने व्यवहार में असंतुलित है वह दुनिया में अच्छी छवि का हकदार क्यों है?
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