Thursday, June 6, 2024

बीजेपी के नाम ‘अमृतकाल’ पहला कटु-संदेश


भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए 400 पारनहीं कर पाई, यह उसकी विफलता है, पर व्यावहारिक सच यह भी है कि उसे सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत मिल गया है. जवाहर लाल नेहरू की तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी.  

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन ने बीजेपी की अपराजेयता को एक झटके में ध्वस्त किया है. इससे पार्टी और उसके नेतृत्व का रसूख कम होगा. अमृतकाल का यह कड़वा अनुभव है. चुनाव-प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि उन्हें नेपथ्य से आवाजें सुनाई पड़ रही हैं. 

पहली नज़र में जो भी परिणाम आए हैं, उनके अनुसार केंद्र में एनडीए की सरकार बन जाएगी, पर इस जीत में भी कई किस्म की हार छिपी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन अपनी सफलता से खुश भले ही हो ले, पर इसमें उसकी  विफलता छिपी है. 295+ का उनका दावा भी सही साबित नहीं हुआ. और बीजेपी के पास अगले पाँच साल के लिए राजदंड आ गया है.

मतदाता का असमंजस

इस चुनाव में बीजेपी किसी सकारात्मक संदेश को जनता तक पहुँचाने में कामयाब नहीं हुई, पर इंडिया गठबंधन ने जिस नकारात्मक आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई थी, वह भी कामयाब नहीं हुई. उनका अभियान नरेंद्र मोदी हटाओ तक ही सीमित था. उन्होंने खुद जीत हासिल नहीं कि, बस मोदी के नेतृत्व को नुकसान पहुँचाया है.  

खबरें हैं कि वे भी जुगाड़ लगा कर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हं, पर इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी. ये चुनाव-परिणाम मतदाता की उम्मीदों से ज्यादा उसके असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं.

मतदाता ने कुछ उम्मीदों से 2014 और 19 में गठबंधन-राजनीति के मकड़जाल को तोड़कर नरेंद्र मोदी को स्पष्ट बहुमत दिया था. ऐसा इसबार संभव नहीं हो पाया. पार्टी के नेतृत्व पर अब इस बात की जिम्मेदारी है कि वह नए रास्ते, नए मुहावरे और नए कार्यक्रम खोजे. 

परिणामों को एकरेखीय नहीं पढ़ा जा सकता. उसमें कई तरह के संदेश हैं. मोदी के नेतृत्व में एनडीए को वैसी शानदार जीत नहीं मिली, जिसका इमकान था. पर दस साल की एंटी इनकंबैंसी के देखते हुए यह नहीं कह सकते कि यह जीत नहीं है.   

इस चुनाव में पिछली बार का तकरीबन वोट प्रतिशत हासिल करने के बावजूद बीजेपी को करीब 65 सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं पिछली बार के मुकाबले करीब दो प्रतिशत वोट ज्यादा पाकर कांग्रेस को करीब 45 सीटों का फायदा हुआ है.

गठबंधन का हानि-लाभ

पिछली बार वाराणसी से नरेंद्र मोदी को अपनी निकटतम प्रत्याशी सपा की शालिनी यादव से 4,79,405 वोट ज्यादा मिले थे. इसबार उन्हें केवल 1,52,513 वोटों से ही जीत मिल पाई. इसकी एक वजह यह भी थी कि तब कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय तीसरे नंबर रहे थे, जिन्हें 1,52,548 वोट मिले थे. इसबार सपा ने प्रत्याशी खड़ा नहीं किया और यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी थी.

इन परिणामों का एक संदेश है कि तमाम किंतु-परंतु के बावजूद जनादेश एनडीए के नाम है. केंद्र में उसकी ही सरकार बननी चाहिए और बनेगी. पर यह सरकार पिछली दो सरकारों जैसी शक्तिमान नहीं होगी. उसे गठबंधन सहयोगियों की शर्तों को भी स्वीकार करना होगा.

सरकार में गठबंधन सहयोगी पहले भी थे, पर उनका दबाव नहीं था. अब होगा. ऐसे में अर्थव्यवस्था और राजनीति से जुड़े उसके कार्यक्रमों को लेकर सवाल खड़े होंगे. भारतीय जनता पार्टी के कर्णधारों की यह परीक्षा की घड़ी है कि वे भँवर में फँसी अपनी नैया को किस तरह से बाहर निकाल कर लाएंगे.

दक्षिण का द्वार

असमंजस की इस परिस्थिति के बावजूद बीजेपी को दक्षिण में मिली सफलताएं ध्यान खींचती है. केरल में थ्रिसूर सीट पर विजय प्राप्त करके पार्टी ने राज्य में एक नया अध्याय खोला है.

तमिलनाडु में पार्टी के प्रत्याशी नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे. ये सीटें हैं चेन्नई मध्य, चेन्नई दक्षिण, कोयंबत्तूर, कन्याकुमारी, मदुरै, नीलगिरि, तिरुनेलवेली, तिरुवल्लूर और वेल्लूर. तेलंगाना में आठ और आंध्र में तीन सीटों पर मिली जीत बीजेपी की अविश्वसनीय सफलताएं हैं. पर इस कमाई को उसने कर्नाटक में गँवा दिया. कांग्रेस ने नारा लगाया था,दक्षिण में साफ और उत्तर में हाफ. यह पूरा सच साबित नहीं हुआ.  

उत्तर प्रदेश में धक्का

राज्यवार परिणामों में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ है. उसके अलावा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और पश्चिम बंगाल में पहले के मुकाबले सीटें कम हुई हैं.  

पूरे परिणामों पर नज़र डालें, तो साफ ज़ाहिर है कि यूपी, बंगाल और महाराष्ट्र को लेकर एग्ज़िट पोल बुरी तरह गलत साबित हुए. भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में झटका लगा है. बीजेपी का 33 सीटों के आसपास सिमट जाना न केवल प्रधानमंत्री मोदी के लिए, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी अशनि-संकेत है.

माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. कम से कम 2014 और 19 में ऐसा ही हुआ. पार्टी का अनुमान था कि कम से कम 2014 की 62 की संख्या को वह प्राप्त कर लेगी, पर ऐसा हुआ नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी ने उसे दूसरे नंबर पर धकेल दिया है.

यह बात सोशल इंजीनियरी में बीजेपी की विफलता को रेखांकित कर रही है. इस चुनाव में सबसे बड़ा नुकसान बहुजन समाज पार्टी का हुआ है, जिसके भावी परिणामों का अलग से विश्लेषण करना होगा.

बंगाल में वह 2019 के स्तर को भी छू नहीं पाई है, तब उसे 18 सीटें मिली थीं. इससे दो बातें साफ हुईं. एक, उसके पास बंगाल में मजबूत संगठन नहीं है और दूसरे वह ममता बनर्जी की आक्रामकता का मुकाबला करने में असमर्थ रही है.

महाराष्ट्र में पार्टी ने सरकार बनाने और गिराने में जो भूमिका निभाई, उसका लाभ उसे मिला नहीं, बल्कि उसकी अपनी सीटें कम हो गईं. 2019 के चुनाव में उसे 23 सीटें मिली थीं. इसबार के परिणामों का असर अब वहाँ की सरकार पर भी पड़ेगा.

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. लोकसभा चुनाव का यह धक्का विधानसभा चुनाव में भी महसूस किया जाएगा. यही स्थिति हरियाणा में भी है, जहाँ बीजेपी की सरकार पर अब खतरा है. वहाँ भी चुनाव होने वाले हैं.

राजनीतिक-विसंगतियाँ

ये परिणाम देश की राजनीति के अंतर्विरोधों को एकबार फिर से खोलने जा रहे हैं. इन परिणामों के साथ अनेक अनिश्चय जन्म ले रहे हैं, जो धीरे-धीरे सामने आएंगे. लगता है कि इसबार पूरे परिणाम घोषित होने में विलंब हो रहा है. पर उनके रुझान से स्थिति काफी सीमा तक स्पष्ट हो चुकी है.

एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है, बावजूद इसके खबरें हवा में हैं कि 2004 की तरह इंडिया गठबंधन की सरकार बनाने के प्रयास भी हो सकते हैं. खबरें हैं कि सोनिया गांधी और शरद पवार ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से संपर्क किया है.

राजनीति में हर तरह की संभावनाओं को टटोला जाता है. पर सवाल है कि एनडीए के गठबंधन सहयोगी क्या आसानी से उसका साथ छोड़ देंगे?  इसकी उम्मीद तो नहीं है, पर राजनीति में किसी भी वक्त, कुछ भी हो सकता है.

आंध्र प्रदेश में तेलुगु देसम पार्टी को भारी विजय मिली है. तेलुगु देसम एनडीए का घटक दल है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक लगता है कि तेदेपा के 16 और जेडीयू के 15 सांसद जीतकर आएंगे. इन दो घटक दलों से इंडिया गठबंधन ने संपर्क किया है.

चूंकि बीजेपी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, इसलिए उसे अब अपने गठबंधन को बनाए रखने के लिए प्रयत्न भी करने होंगे. उसके सहयोगी टूटेंगे या नहीं टूटेंगे, यह अलग बात है, पर अंदेशा बना रहेगा.

इंडियाकी एकता

गठबंधन राजनीति अब और निखरेगी. इंडिया गठबंधन की एकता की भी कोई गारंटी नहीं है. समाजवादी पार्टी के रूप में उसके भीतर एक नई ताकत उभरी है. वह अब अपना हिस्सा माँगेगी.

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन की विफलता के बाद उसके भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े होंगे. आम आदमी पार्टी को केवल पंजाब में तीन सीटें मिली हैं. इसका मतलब है कि पंजाब में उसकी सरकार एंटी इनकंबैंसी की शिकार है.

कांग्रेस और आप का दिल्ली और हरियाणा में गठबंधन था. हरियाणा में उसका लाभ कांग्रेस को तो मिला, पर आप कुछ हासिल नहीं कर पाई. दिल्ली में दोनों को कुछ नहीं मिला. अगले साल दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं. लगता नहीं कि यह गठबंधन तब भी काम करेगा. केजरीवाल कह चुके हैं कि हमारा गठबंधन स्थायी नहीं है.

इस दौरान आप के पदाधिकारियों के खिलाफ ईडी के मुकदमों की भी दबाव बढ़ेगा. महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की नजरें अब राज्य विधानसभा के चुनाव पर हैं. इसलिए अगले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नज़र रखनी होगी.

इंडिया गठबंधन को, खासतौर से समाजवादी पार्टी को जो सफलता मिली है, वह आने वाले समय की उसकी राजनीति को भी प्रभावित करेगी. सपा देश में तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है. उसने इस गठबंधन में तृणमूल कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है.

कांग्रेस पार्टी इस बात से खुश हो सकती है कि इंडिया गठबंधन को सफलता मिली है, पर उत्तर प्रदेश में सपा का उदय उसके लिए ही बड़ी चुनौती है. यूपी में कभी राज करने वाली कांग्रेस का काफी बड़ा वोट-आधार आज सपा के पास है.

विधानसभा परिणाम

लोकसभा के परिणामों के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल और सिक्किम विधानसभाओं के परिणाम भी आए हैं. सिक्किम में सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) कुल 32 में से 31 सीटें जीतकर शानदार वापसी की है. वहीं अरुणाचल में भाजपा ने 60 सदस्यीय विधानसभा में 46 सीट जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ओडिशा और आंध्र प्रदेश के परिणाम पूरी तरह आए नहीं थे, पर ओडिशा में बीजेपी की सरकार बनने की संभावना है, जहाँ विधानसभा की 147 सीटों में से 80 के आसपास बीजेपी को मिलती दिखाई पड़ रही हैं.

पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव हारने के बाद से अपनी स्थिति में सुधार जरूर किया है, पर लोकसभा चुनाव में 2019 की सफलता से काफी दूर रह गई. दक्षिण में उसे आंध्र, तेलंगाना और केरल में सफलताएं जरूर मिलीं, पर ये सफलताएं उत्तर, पूर्व और पश्चिम में मिली विफलताओं को कम करने में सहायक नहीं हो पाईं.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

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