अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार में नव नियुक्त उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर की अनुपस्थिति को लेकर कयास जारी हैं। पिछले हफ्ते तालिबान सरकार की घोषणा होने के पहले तक माना जा रहा था कि वे नई सरकार में प्रधानमंत्री बनेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। उनकी जगह मोहम्मद हसन अखुंद को प्रधानमंत्री बनाया गया, जिन्होंने कभी बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को तोड़ने के काम का नेतृत्व किया था। बताया जाता है कि तालिबान सरकार के पदों को तय करने में पाकिस्तान की भूमिका है।
इस ऑडियो संदेश में मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर
ने कहा, 'कई दिनों से सोशल मीडिया पर ये ख़बरें गर्दिश
कर रही हैं, मैं उन्हीं दिनों में सफ़र में था और कहीं गया
हुआ था। अलहम्दुलिल्लाह मैं और हमारे तमाम साथी ठीक हैं। अक्सर औक़ात मीडिया हमारे
ख़िलाफ़ ऐसे ही शर्मनाक झूठ बोलता है।'
बीबीसी हिंदी ने इस सिलसिले में इस्लामाबाद से ख़ुदा-ए-नूर
नासिर की एक रिपोर्ट
प्रकाशित की है। यह रिपोर्ट बीबीसी की उर्दू वैबसाइट पर भी है।
इससे पहले 12 सितंबर को मुल्ला अब्दुल ग़नी
बरादर के एक प्रवक्ता मूसा कलीम की ओर से एक पत्र जारी हुआ था जिसमें कहा गया था,
जैसे कि वॉट्सऐप और फेसबुक पर अफ़वाह चल रही थी कि अफ़ग़ानिस्तान के
राष्ट्रपति भवन में तालिबान के दो गिरोहों के बीच गोलीबारी में मुल्ला अब्दुल ग़नी
बरादर बुरी तरह ज़ख़्मी हुए और फिर इसके कारण उनकी मौत हो गई। ये सब झूठ है।
अलबत्ता बीबीसी की रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है, लेकिन दोहा और काबुल में तालिबान के दो ज़राए (सूत्रों) ने बीबीसी को बताया है कि गुज़श्ता जुमेरात या जुमे की रात को अर्ग में मुल्ला अब्दुल ग़नी बिरादर और हक्कानी नेटवर्क के एक वज़ीर ख़लील अलरहमान के दरम्यान तल्ख़-कलामी हुई और उनके हामियों में इसी तल्ख़-कलामी पर हाथापाई हुई थी, जिसके बाद मुल्ला बिरादर नई तालिबान हुकूमत से नाराज़ हो कर क़ंधार चले गए। ज़राए के मुताबिक़ जाते वक़्त मुल्ुला अबदुलग़नी बिरादर ने हुकूमत को बताया कि उन्हें ऐसी हुकूमत नहीं चाहिए थी।
इन ख़बरों ने उस वक़्त ज़्यादा ज़ोर पकड़ा जब
रविवार को राष्ट्रपति भवन अर्ग से जारी हुए वीडियो में क़तर के विदेश मंत्री के
साथ तालिबान नेतृत्व की मुलाक़ात में मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर नज़र नहीं आए थे।
तालिबान आंदोलन के एक और सूत्र के मुताबिक़,
हक़्क़ानी नेटवर्क और कंधारी या उमरी तालिबान के बीच मतभेद काफ़ी
अरसे से थे, लेकिन अब उमरी या कंधारी तालिबान के अंदर भी
मुल्ला मोहम्मद याकूब और मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के अलग-अलग धड़े हैं और दोनों
तालिबान आंदोलन के नेतृत्व के दावेदार हैं।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं|
ReplyDeleteजोशी जी आपको भी शुभकामनाएं.
ReplyDelete