Monday, October 29, 2012

संज़ीदगी के चक्कर में क़मेडी सर्कस बनती राजनीति


हक़ीक़त में मैं एक बुलबुल हूँ, मगर चारे की ख़्वाहिश में/ बना हूँ मिम्बर-ए-कौंसिल यहाँ मिट्ठू मियाँ होकर
अकबर इलाहाबादी की सिफत थी कि वे अपने आसपास की दिखावटी दुनिया पर पुरज़ोर वार करते थे। आज वे होते तो उन्हें लिखने का जो माहौल मिलता, वह उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के शुरुआती दो दशकों से बेहतर होता, जिस दौर में उन्होंने लिखा। आज आप जिधर निगाहें उठाएं तमाम मिट्ठू मियाँ नज़र आएंगे। जसपाल भट्टी की उलट बाँसियों में भी उसी किस्म का आनंद मिलता था। अपने दौर को किसी किस्म की छूट दिए बगैर महीन किस्म की डाँट लगाने का फन हरेक के बस की बात नहीं। पर ज़माने की रफ्तार है कि पहले से ज्यादा तेज़ हुई जा रही है। फेसबुक में किसी ने हाल के घोटालों की लिस्ट बनाकर पेश की है। पढ़ते जाएं तो खत्म होने का नाम नहीं लेती। आलम यह है कि आज एक लिस्ट बनाओ, कल चार नाम और जुड़े जाते हैं। भारतीय घोटाला-सेनानियों के खुश-खबरी यह है कि इधर दुनिया के कुछ और नाम सुनाई पड़े हैं। पहले लगता था कि घोटालों में नाम जुड़ने से बदनामी होती है, पर अब लगता है कि इससे एक किस्म की मान्यता मिलती है कि आदमी काम का है। संसद के मॉनसून सत्र को सिर पर उठाने वाले भाजपाई नेताओं को अरविन्द केजरीवाल ने नितिन गडकरी के नाम फूलों के गुलदस्ते भेजे तो सबने खुशी जताई कि इत्ती सा बात। हम तो ज्यादा बड़े घोटालों की उम्मीद कर रहे थे। बहरहाल गडकरी जी के करिअर में गतिरोध आ रहा है। हालांकि पार्टी के नेता साथ खड़े हैं, पर कहना मुश्किल है कि वे अगले सत्र के लिए अध्यक्ष चुने जाएंगे या नहीं। उन्हें फिर से अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी ने संविधान में संशोधन तक कर लिया था।

रॉबर्ट वड्रा, गडकरी जी और अजित पवार से लेकर जगनमोहन रेड्डी तक किसी न किसी किस्म के पेच में हैं, पर उनकी पतंगें उड़ रही हैं। कहा जाता है कि इस देश में 100 रु का अपराध करने पर सजा पाने वालों की तादाद कुल आवादी की डेढ़ सौ फीसदी है और 100 करोड़ से ऊपर के अपराध करने वालों की तादाद .00001 फीसदी भी नहीं। ऐसे में जब यह खबर आई कि इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी को टैक्स चोरी में चार साल की सजा हुई है, तो आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी। इसलिए नहीं कि वे जेल जाएंगे, बल्कि इसलिए कि वे इस फ़ैसले के खिलाफ़ अपील करेंगे और इस प्रक्रिया में कई साल लगेंगे। बर्लुस्कोनी की उम्र 76 साल है और इटली का क़ानून 70 साल से बड़ी उम्र के लोगों के साथ नर्मी से पेश आता है और सिर्फ़ उन्हीं लोगों को जेल भेजा जाता है जो समाज के लिए ख़तरा हो सकते हैं। उनके जेल जाने का अंदेशा नहीं है, पर इस खबर में हमारे लिए एक संदेश है। क्या हम ऐसा कानून अपने यहाँ नहीं बना सकते? इटली में क़ानूनन भ्रष्टाचार या टैक्स हेराफेरी की जांच तय समयसीमा में होनी चाहिए नहीं तो जाँच बंद।
भ्रष्टाचार से जुड़ी एक और रोचक खबर है, जो चीन से आई है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर दी है कि उसके पास इन बातों के पुख्ता सबूत हैं कि चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने पद पर रहते हुए कम से कम पौने तीन अरब डॉलर की संपत्ति बनाई है। यह खबर सही या नहीं, पर इस खबर के प्रकाशित होने के बाद अखबार की वेबसाइट को चीन में ब्लॉक कर दिया गया। अखबार ने लिखा है कि कहा है कि वेन के परिवार के लोग उनके शासनकाल में काफी अमीर हो गए हैं। इन लोगों में वेन जियाबाओ की माँ, बेटा, बेटी और छोटे भाई शामिल हैं। हालांकि अखबार का यह भी कहना है कि इस बात को साबित नहीं किया जा सकता कि वेन जियाओ बाओ को इस बात की जानकारी है या नहीं र वे इन गतिविधियों में शामिल हैं या नहीं। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार,"वेन जियाबाओ का परिवार एक समय में बहुत गरीब था, लेकिन अब ये स्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं और वेन जियाबाओ की नब्बे वर्षीया मां यांग झियुन न सिर्फ गरीबी को बहुत पीछे छोड़ आई हैं बल्कि पूरी तरह से अमीर बन चुकी हैं। कम से कम दस्तावेज तो यही बताते हैं।"
यह खबर कितनी सच है और इसमें बताए गए तथ्य सही हैं या नहीं, पर इसे पढ़कर चीन सरकार को मज़ा नहीं आया और अखबार की वैबसाइट ब्लॉक कर दी गई। वैबसाइट ही नहीं चीन की उन माइक्रोब्लॉगिंग सेवाओं पर भी रोक लगा दी गई, जहां इस खबर की चर्चा हो रही थी। चीनी लोकतांत्रिक व्यवस्था उतनी खुली नहीं है, जितनी भारतीय व्यवस्था खुली है। इंटरनेट पर सोशल मीडिया के विकास ने चीन में भी विचार-विमर्श के दरवाजे खोल दिए हैं। चीन में इंटरनेट सेवाओं पर सरकार की कड़ी निगाहें रहती हैं। पर जैसे-जैसे व्यवस्था खुलेगी वैसे-वैसे इस किस्म की खबरें आम होती जाएंगी। सन 1986 में फिलिपाइंस में हुई बगावत के बाद राष्ट्रपति मार्कोस की पत्नी इमेल्डा मार्कोस अरबों की सम्पदा के साथ देश छोड़कर भागी थीं।
पिछले साल जनवरी में मिस्र में तानाशाह हुस्नी मुबारक के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत अफ्रीका के धुर उत्तर में स्थित छोटे से देश ट्यूनीशिया से छिटकी चिंगारी से हुई थी। देश छोड़कर भागे वहाँ के राष्ट्रपति बेन अली पिछले 23 साल से कुर्सी पर विराजमान थे। उनकी शॉपोहॉलिक पत्नी सरकारी बोइंग 737 में बैठकर मिलान, रोम, पेरिस और जिनेवा के बाजारों से खरीदारी करतीं थीं। बताते हैं कि राष्ट्रपति जनवरी के दूसरे हफ्ते में जब देश छोड़कर भागे थे तो अपने साथ डेढ़ टन सोना लेकर गए थे। इसी किस्म की कहानियाँ पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पराभव के बाद सुनाई पड़ी थीं, जब पता लगा था कि रूमानिया के तानाशाह चौसेस्क्यू के घर के नलों में सोने की टोंटियाँ लगीं थीं।   
न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के बाद चीन सरकार मे जो कार्रवाई की उससे समस्या सुलझने के बजाय उलझेगी। सम्भव है अखबार ने तथ्यों को पेश करने में गलती की हो, पर सिर्फ इस आधार पर अखबार की मंशा पर सवाल नहीं उठाए जा सकते हैं। फिछले दिनों अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने मनमोहन सिंह की निष्क्रियता के बारे में एक खबर छापी तो सूचना मंत्री अम्बिका सोनी ने जल्दबाज़ी में उसे पीत पत्रकारिता घोषित कर दिया। बहरहाल वह मामला ज्यादा बढ़ा नहीं, पर उसका देश की राजनीति पर असर ज़रूर पड़ा। बीजेपी के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने उस वक्त कहा था कि प्रधानमंत्री को अब फौरन इस्तीफा दे देना चाहिए। बीजेपी ने कोल ब्लॉक आबंटन पर सीएजी की रपट के बाद भी प्रधानमंत्री के इस्तीफे पर ज़ोर दिया था। और अब जब उसके अध्यक्ष पर छींटे पड़े हैं, तब पार्टी उनके बचाव में खड़ी है। देश या राज्यों की सत्ता में शामिल हुए ज्यादातर राजनीतिक दलों के सामने ऐसी स्थितियाँ आएंगी। ज़रूरी नहीं की सारे रोप सच हों, पर यह दौर व्यवस्था के खुलने का है। राजनीति के कोयले की कोठरी का रंग उससे जुड़े लोगों पर लगना ही लगना है। इसका इलाज इन पार्टियों को ही खोजना है। आवश्यक है कि पार्टियाँ चुनाव खर्चों और अपने लिए धन मुहैया कराने के तरीकों पर जल्द से जल्द सहमति बनाएं। लोकतांत्रिक और प्रशासनिक संस्थाओं की पारदर्शिता को अब रोका नहीं जा सकेगा, पर इस दौर की तल्खी को कम किया जा सकता है। जनता के सामने ऐसा संदेश जाता है मानो सब चोर हैं। जबकि ऐसा सच नहीं है। हमारा लोकतंत्र विकासशील देशों का सबसे बेहतरीन लोकतंत्र है। इसकी संस्थाओं को बनाने और मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। यह प्रहसन अपने आप संज़ीदगी की शक्ल लेता जाएगा।  

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