Tuesday, November 10, 2020

कट्टरपंथी कवच में पड़ती दरार

फ्रांस और ऑस्ट्रिया में हुई आतंकी घटनाओं के बाद मुस्लिम देशों की प्रतिक्रियाएं कुछ विसंगतियों की ओर इशारा कर रही हैं। अभी तक वैश्विक मुस्लिम समाज की आवाज सऊदी अरब और उनके सहयोगी देशों की तरफ से आती थी, पर इसबार तुर्की, ईरान और पाकिस्तान सबसे आगे हैं। जबकि सऊदी अरब ने संतुलित रुख अपनाया है। संयुक्त अरब अमीरात ने फ्रांस सरकार का समर्थन किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे 'इस्लामिक आतंकवादी' हमला कहा था और यह भी कहा कि इस्लाम संकट में है। उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों पर कार्रवाई का भी ऐलान किया है।

भारतीय दृष्टिकोण से इन बातों के सकारात्मक पक्ष भी हैं। आतंकवाद के विरुद्ध किसी भी लड़ाई में भारत की भूमिका होगी, क्योंकि भारत इसका शिकार है। इन गतिविधियों में पाकिस्तानी शिरकत दुनिया के सामने खुल चुकी है। उसका हिंसक रूप सामने है। उसे अब सऊदी अरब जैसे देश और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का सहारा भी मिलने नहीं जा रहा है। इस्लामिक जगत में उसने अब तुर्की का दामन थामा है, जिसकी अर्थव्यवस्था पतनोन्मुख है। पाकिस्तान के भीतर विरोधी दलों ने इमरान सरकार के खिलाफ मुहिम चला रखी है। पहली बार सेना के खिलाफ राजनीतिक दल खुलकर सामने आए हैं।

तुर्क पहलकदमी

इस्लामी देशों की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि विरोध की कमान तुर्की ने अपने हाथ में ले ली है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनसे सुर मिला रहे हैं। मैक्रों के बयान की प्रत्यक्षतः मुस्लिम देशों ने भर्त्सना की है, पर तुर्की, ईरान और पाकिस्तान को छोड़ दें, तो शेष इस्लामिक मुल्कों की प्रतिक्रियाएं औपचारिक हैं। जनता का गुस्सा सड़कों पर उतरा जरूर है, पर सरकारी प्रतिक्रियाओं में अंतर है।

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की प्रतिक्रियाओं ने आम मुसलमान को मन में आग भड़काने का काम किया है, पर एक नया विमर्श भी शुरू हुआ है, जिसमें फ्रांस के मुसलमान भी शामिल हैं। फ्रांस में करीब 85 लाख मुसलमान रहते हैं, जो यूरोप में इस समुदाय की सबसे बड़ी आबादी है।

एर्दोआन ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से कहा है कि अपने दिमाग की जांच कराओ। उन्होंने मुसलमानों का आह्वान किया है कि वे फ्रांसीसी सामान का बहिष्कार करें। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुस्लिम देशों के नाम दो पेज का खर्रा लिखकर कहा कि पश्चिमी देश इस्लाम, पैग़ंबर और मुसलमानों के संबंध को नहीं समझ सकते। उन्हें कोई समझ नहीं है।

हैरतंगेज प्रतिक्रिया 95 वर्षीय महातिर मोहम्मद की है। उन्होंने एक लम्बे ट्वीट में कहा कि अतीत में फ्रांसीसियों ने लाखों लोगों की हत्याएं की हैं। अब मुसलमानों को लाखों फ्रांसीसियों की हत्या करने का अधिकार है। महातिर अपने देश की राजनीति में विफल होने के बाद अपनी वैश्विक भूमिका देख रहे हैं, जिसमें उन्हें कुछ भी नहीं मिलने वाला। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अली हुसेनी खामनेई ने गत 3 नवंबर को अपने राष्ट्रीय प्रसारण में मैक्रों की जबर्दस्त भर्त्सना की और कहा कि मुसलमानों का प्रतिरोध साबित कर रहा है कि वे जिन्दा हैं। ईरान मुश्किलों से घिरा देश है।

पिछलग्गू पाकिस्तान

पाकिस्तान और ईरान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर मैक्रों की आलोचना की है। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने फ़्रांस से अपना राजदूत वापस बुलाने की माँग की। बाद में पता लगा कि फ्रांस में पाकिस्तान का राजदूत है ही नहीं, वापस किसे बुलाएंगे। संसद ने अपने प्रस्ताव में सरकार से अपील की है कि वह दूसरे मुस्लिम देशों से फ़्रांसीसी सामान के बहिष्कार के लिए कहे।

पाकिस्तानी संसद ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) से 15 मार्च को इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करने की अपील भी की है। ओआईसी के सदस्य देशों से फ्रांस की बनी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए भी कहा गया है। ये अपीलें सऊदी अरब के सहयोग के बिना क्या लागू हो सकेंगी? तुर्की का पिछलग्गू बनकर क्या पाकिस्तान सऊदी समर्थन हासिल कर पाएगा? पाकिस्तान अब जिस रास्ते पर चला आया है, उससे न तो वापस लौट सकता है और न आगे कुछ हासिल कर पाएगा। अब वह खुद इस्लामी दुनिया का नेता बनना चाहता है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान अपने इस्लामी समर्थन के कार्ड का इस्तेमाल करता रहा है। पर उसके सारे कार्ड बेकार होने की घड़ी आ गई है। बहुत जल्द वह मुँह के बल गिरने वाला है।

सऊदी अरब की प्रतिक्रिया का संतुलन आने वाले समय का संकेत कर रहा है। सऊदी अरब सरकार ने शार्ली एब्दो के कार्टूनों की भर्त्सना की और इस्लाम को आतंकवाद के साथ जोड़ने की भी निन्दा की, पर विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने यह भी कहा कि हम हर तरह के आतंकवाद की निन्दा करते हैं। जाहिर है उनका आशय फ्रांसीसी हत्याओं से भी था।

यूएई का समर्थन

यूएई के विदेश मंत्री अनवर गार्गाश ने एक इंटरव्यू में कहा कि मुसलमानों को मैक्रों की पश्चिमी समाज के अनुकूल ढलने की बात मान लेनी चाहिए। जर्मन दैनिक डाई वेल्ट को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, मैक्रों ने अपने भाषण में जो कुछ भी कहा है, मुसलमानों को उसे ध्यान से सुनना चाहिए। मुसलमानों को पश्चिमी देशों के अनुरूप ढालने की जरूरत है। यह फ्रांस का अधिकार है।  

इससे पहले, रविवार 1 नवंबर को अबूधाबी के क्राउन प्रिंस और यूएई सेना के उप सुप्रीम कमांडर मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान ने फ्रांस के नीस शहर में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की थी। क्राउन प्रिंस ने फ्रांस के मैक्रों से टेलीफोन पर बातचीत की और आतंकी हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना जाहिर की।

क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद ने कहा कि इस तरह की गतिविधियां शांति, सहिष्णुता और प्यार का पाठ पढ़ाने वाले सभी धर्मों के सिद्धांतों और मूल्यों के खिलाफ हैं। शेख मोहम्मद ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद के लिए मुसलमानों के मन में अपार आस्था है, लेकिन इस मुद्दे को हिंसा से जोड़ना और इसका राजनीतिकरण करना बिल्कुल अस्वीकार्य है।

एर्दोआन के सपने

मिस्री मीडिया हाउस अल अहराम की वैबसाइट पर अला थाबेत के आलेख में कहा गया है कि तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, जिन्हें उस्मानिया साम्राज्य के सपने को फिर से जगाने की गलतफहमी है, इस मौके का फायदा उठाकर पश्चिम के खिलाफ कट्टरपंथियों को खड़ा कर रहे हैं। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने कहा कि मुसलमानों को दया, करुणा, न्याय और सम्मान के उदाहरण पेश करने चाहिए। पैगम्बर की छवि बहुत विशाल है, उसे ठेस नहीं लगाई जा सकती।

एर्दोआन ने पिछले दस साल में कट्टरपंथी इस्लाम का रास्ता अपनाकर लोकप्रियता अर्जित करने की कोशिश की है। अर्थव्यवस्था से लेकर मुद्रा की गिरावट और तमाम दूसरे मोर्चों पर उनके हाथ सिर्फ नाकामी है और उसका जवाब वे धार्मिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों में उग्र तेवरों से देना चाहते हैं। हाल के वर्षों में एर्दोआन ने अपने देश में सैनिक बगावत का दमन किया है।

अमेरिकी डॉलर की तुलना में तुर्की के लीरा की कीमत लगातार गिरती जा रही है। बुधवार 4 नवंबर को एक डॉलर में 8.44 लीरा मिल रहे थे। अगस्त में यह विनिमय दर 7.6 थी। बोलीविया की मुद्रा बोलीविया बोलिवियानो के बाद शायद लीरा ही इस वक्त दुनिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है।

दस साल पहले तुर्की के तत्कालीन विदेशमंत्री अलमत दावुतुगोलू ने पड़ोसी देशों के साथ जीरो प्रॉब्लम्स नीति पर चलने की बात कही थी। पर आज यह देश पड़ोसियों के साथ जीरो फ्रेंडली रह गया है। तुर्की की नई विदेश नीति पश्चिम विरोधी है। एर्दोगान को यक़ीन है कि पश्चिमी देशों का प्रभाव अब घट रहा है और तुर्की को चीन और रूस जैसे देशों के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाने चाहिए। जर्मनी, ग्रीस और दूसरे यूरोपीय देशों के साथ उसकी तनातनी चल ही रही थी, अब फ्रांस से भी दुश्मनी मोल ले ली है।

अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका फॉरेन अफेयर्स में निक डैनफर्थ ने लिखा है कि एर्दोआन को अंतरराष्ट्रीय भर्त्सना पसंद है। देश के भीतर और विदेशी प्रतिस्पर्धियों के साथ निरंतर टकराव से उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ती है। पिछले दिनों हागिया सोफिया के प्रसिद्ध संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करना अपनी सम्प्रभुता को साबित करना था। उन्होंने प्रतीक रूप में हागिया सोफिया जाकर नमाज पढ़ी। वे आस्था, राष्ट्रवाद और आर्थिक प्रगति के सहारे भीतर और बाहर अपने प्रतिस्पर्धियों से लड़ रहे हैं। पर अभी तक वे विफल हैं। न तो वे इस्लामिक देशों के सिरमौर बने हैं और न यूरोपीय संघ और नेटो से अलग हुए हैं।

मैक्रों की कार्रवाइयाँ

फ्रांस के खिलाफ मुस्लिम देशों में तेज हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच अल जजीरा को दिए इंटरव्यू में मैक्रों ने कहा, मैं कार्टून को लेकर मुसलमानों की भावनाओं को समझता हूँ और उनका सम्मान भी करता हूँ। पर उन्हें भी अपनी भूमिका को समझना चाहिए। मुझे अपने देश में शांति भी कायम रखनी है और लोगों के अधिकारों की सुरक्षा भी करनी है। मैं हमेशा अपने देश में लिखने, पढ़ने, बोलने और सोचने की आजादी का बचाव करता रहूंगा। मैं मुसलमानों का दुश्मन नहीं हूँ। वे मेरे देश के नागरिक हैं। मैं केवल इतना चाहता हूँ कि वे हमारे मिजाज को समझें।

मैक्रों ने इस्लाम के पुनर्गठन और फ्रांसीसी इस्लाम जैसी बातें कहकर एकबारगी चौंकाया, पर गहराई से देखें, तो उन्होंने उम्मत के नाम पर मुसलमानों को भड़काने की मुहिम पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, मैं आतंकवाद और कट्टरपंथ के विरुद्ध हूँ। मैक्रों की यह कोशिश देश में दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश भी है। जिसे इस्लामोफोबिया कहा जा रहा है, उसे रोकने का एक रास्ता यह भी है कि मुसलमान आत्ममंथन करें और अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी हवाओं से प्रभावित होना बंद करें।

मैक्रों की सरकार अब एक ऐसा बिल भी लाने जा रही है जिसके तहत इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई संभव होगी और अलगाववादी गतिविधियों पर नकेल कसी जा सकेगी। कई कट्टरपंथी संगठनों पर पहले से ही बैन लग चुका है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों का एक तबका देश में प्रति-संस्कृति को जन्म देना चाहता है, जिसकी हम अनुमति नहीं देंगे।प्रति-संस्कृति से उनका आशय है, जैसा उनके देश का चलन नहीं है।

धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में यूरोप के शेष देशों के मुकाबले फ्रांसीसी व्यवस्थाएं बहुत कड़ी हैं। देश में सन 1905 में चर्च और राज्य को अलग करने का कानून लागू हुआ, जो धर्म को राज्य का विषय नहीं मानता। सेक्युलर सिद्धांतों को लागू करने की दिशा में 15 मार्च 2004 को एक और कानून पास किया गया, जिसके तहत स्कूलों में ऐसे परिधान नहीं पहने जा सकते, जिनसे किसी धर्म का प्रदर्शन होता हो। धर्मनिरपेक्षता से जुड़े कुछ और कानूनी बदलाव सरकार अब करने जा रही है। इसके तहत बच्चों को स्कूल भेजने और संदेहास्पद धर्मस्थलों को बंद करने का विचार है।

सरकार ने बुधवार 28 अक्तूबर को फ्रांसीसी मुस्लिम चैरिटी बराकासिटी पर पाबंदी लगाने की घोषणा भी की है। देश के गृहमंत्री गेराल्ड दार्मेनी इस चैरिटी का संबंध रेडिकल इस्लामिस्ट मूवमेंट से है। सैमुअल पाटी की हत्या की छानबीन करते हुए इस संस्था को लेकर कुछ संदेह पैदा हुए थे। यह संस्था 26 देशों में सक्रिय है। हालांकि इसके संस्थापक इदरीस सिहामेदी ने आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों को गलत बताया, पर यह भी सच है कि सन 2016 में एक टीवी इंटरव्यू के दौरान सिहामेदी ने इस्लामिक स्टेट की भर्त्सना करने से इनकार कर दिया था।  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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