देश के कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिकों के लिए 20
लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है| इस पैकेज के माध्यम से सरकार ने समाज के अलग-अलग वर्गों की सहायता का प्रयास
किया है। उद्यमियों, कारोबारियों, श्रमिकों और विभिन्न सामाजिक वर्गों की सहायता
करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन का सभी वर्गों
पर प्रभाव पड़ा था। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने 1.70 लाख
करोड़ रुपये के जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की, उसमें गरीबों, मजदूरी करने वाली महिलाओं, शारीरिक और मानसिक
चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्तियों और वृद्धों के लिए अलग से व्यवस्थाएं की गई
हैं। ये योजनाएं विभिन्न
कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। इनमें केंद्र और राज्यों की योजनाएं भी शामिल हैं।
कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत असहाय व्यक्तियों का सहारा भी राज्य है।
बेशक उन्हें सामाजिक संस्थाएं और निजी तौर पर अपेक्षाकृत सबल व्यक्ति कमजोरों,
वंचितों और हाशिए पर जा चुके लोगों की सहायता के लिए आगे आते हैं, पर सबसे बड़ी
जिम्मेदारी राज्य की होती है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 41 कहता है, ‘राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और
विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी
और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को
प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।’ इसके साथ अनुच्छेद 42 और 43 भी सामाजिक वर्गों की सहायता के लिए राज्य की
भूमिका की ओर इशारा करते हैं।
राज्य का कर्तव्य
ये अनुच्छेद राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का हिस्सा हैं, जिन्हें कानूनन
लागू नहीं कराया जा सकता, पर आदर्श राज्य के कर्तव्य माना जाता है। भारतीय राष्ट्र
राज्य की आर्थिक सामर्थ्य जैसे-जैसे बेहतर होती जा रही है, वैसे-वैसे वह असहाय
सामाजिक वर्गों की सहायता का अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है। वित्तमंत्री श्रीमती
निर्मला सीतारमण ने जिन सहायता कार्यक्रमों की पिछले दिनों घोषणा की उनमें देश के
बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए आने वाले तीन महीनों तक 1000 रुपये की अतिरिक्त
पेंशन भी शामिल है।
सहायता पाने वालों में गरीब और वृद्ध विधवाएं भी शामिल हैं, जिनका कोई सहारा
नहीं है। यह लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से दिया जा रहा है। इस योजना
के अंतर्गत लाभ उठाने वाले करीब तीन करोड़ लाभार्थी हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण
योजना के तहत लाभ पाने वाले करीब 30 करोड़ लाभार्थियों की तुलना में यह संख्या
छोटी है, पर बहुत महत्वपूर्ण है। समाज के इस वर्ग को सबसे असहाय मानना चाहिए। इनके
लिए ही भारत सरकार का राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) बनाया गया है।
यह कार्यक्रम अभावों से जूझ रहे व्यक्तियों और उनके परिवारों तक नकद हस्तांतरण की
सुविधा, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा समेत समग्र सामाजिक सुरक्षा का एक
महत्वपूर्ण भाग है।
वरिष्ठ नागरिक
भारत में वरिष्ठ नागरिकों की
संख्या लगातार बढ़ रही है। नागरिकों की औसत आयु बढ़ रही है। सामान्य स्वास्थ्य का
स्तर बेहतर हुआ है। सन 1951 में जहाँ 60 वर्ष से ऊपर की आयु के 1.98 करोड़ सीनियर
सिटिजन थे, वहीं सन 2011 की
जनगणना में उनकी संख्या 10.4 करोड़ हो गई। अनुमान है कि सन 2021 में यह संख्या
14.3 करोड़ और 2026 में 17.3 करोड़ होगी। हमारी संस्कृति में वृद्धों का सम्मान
होता है और बच्चे अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी की देखरेख करते हैं, फिर
भी राज्य का दायित्व है कि वह वरिष्ठ नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा का प्रबंध करे।
वे स्वस्थ, सुरक्षित और सानंद रहें। इसीलिए वरिष्ठ नागरिकों को भोजन, आवास, परिवहन
और बैंकिग वगैरह में सुविधाओं और संरक्षण की व्यवस्थाएं की गई हैं। बैंकों में
उनकी जमा राशि पर अतिरिक्त ब्याज देने की व्यवस्था है। विशेष बचत योजनाएं हैं और
आयकर में भी उन्हें विशेष छूट प्रदान की गई है। उनकी सबसे बड़ी जरूरत चिकित्सा को
लेकर होती है, जिसके लिए कई तरह की योजनाएं हैं।
बचत, बीमा और निवेश की योजनाएं
मोटे तौर पर
कल्याण योजनाएं गरीब और कमजोर तबकों से जुड़ी हैं। पर अपेक्षाकृत सबल वर्ग के
वरिष्ठ नागरिकों और स्त्रियों को भी सामाजिक सहायता की जरूरत होती है। वरिष्ठ
नागरिकों के मध्य वर्ग से जुड़े कल्याण कार्यक्रम आर्थिक बचत और स्वास्थ्य से
जुड़े हैं। इनमें एक है सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम, जो रिटायरमेंट की बचत
योजना है। इसमें तिमाही आधार पर ब्याज का भुगतान होता है। स्कीम में निवेश पर आयकर
अधिनियम की धारा 80सी के तहत टैक्स छूट मिलती है। इसी तरह प्रधानमंत्री वय वंदना
योजना है। इसमें वरिष्ठ नागरिकों को एक तय दर से गारंटी शुदा पेंशन मिलती है। इसकी
अवधि 31 मार्च, 2020 तक थी। अब इसे और
तीन साल के लिए बढ़ाकर 31 मार्च, 2023 कर दिया गया
है। इसका क्रियान्वयन जीवन बीमा निगम के जरिए किया जा रहा है।
स्वास्थ्य रक्षा योजनाएं
साल 2018 में आयुष्मान
भारत योजना शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य देश की 40 फीसदी आबादी यानी करीब 50
करोड़ गरीबों को निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराना था। हाल में आरोग्य
संजीवनी योजना को शुरू किया गया है। इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी
ने बीमा कंपनियों के लिए स्टैंडर्ड हैल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट शुरू करने की
अनिवार्यता कर दी है। नए निर्देशों के अनुसार सभी जनरल और हैल्थ इंश्योरेंस कंपनियों ने 1 अप्रैल 2020 से
एक यूनिफॉर्म हैल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट शुरू किया है। इस पॉलिसी का समान नाम
आरोग्य संजीवनी पॉलिसी होगा। यह सशुल्क पॉलिसी सभी आयु वर्गों के लिए है।
वृद्धों से
संबंधित कार्यों का संचालन करने वाले स्वैच्छिक संगठनों को सामाजिक न्याय और
अधिकारिता विभाग के एक कार्यक्रम के तहत सहायता दी जाती है। इसमें वृद्धों के लिए
डे-केयर चलाने और उनके रखरखाव के लिए परियोजना लागत के 90 प्रतिशत तक की सहायता दी
जाती है।
वृद्धावस्था पेंशन
मध्य वर्ग के वरिष्ठ नागरिकों के कार्यक्रमों से ज्यादा
महत्वपूर्ण गरीब बुजुर्गों के कार्यक्रम हैं, पर उसके पहले राष्ट्रीय सामाजिक
सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) का जिक्र करना बेहतर होगा। केंद्रीय ग्रामीण
विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) की
शुरुआत 15 अगस्त 1995 को हुई थी। इसका क्रियान्वयन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में किया जा रहा है। वर्ष 2016
में एनएसएपी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण योजना (कोर ऑफ़ कोर) के तहत लाने का जबसे
रणनीतिक फैसला किया गया है, तब से केन्द्र सरकार योजना की शत-प्रतिशत जरूरतें पूरी
करने के लिए वित्तीय प्रतिबद्धता को लगातार बढ़ा रही है।
इस कार्यक्रम के तहत ही वृद्धों के
लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय
वृद्धावस्था पेंशन योजना (आईजीएनओएपीएस) का संचालन होता है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित इस पेंशन योजना में 60 से
79 वर्ष तक की आयु के व्यक्तियों को 200 रुपये तथा 80 या उससे ऊपर के व्यक्तियों
को 500 रुपये की सहायता प्रतिमाह दी जाती है। केंद्रीय योजना के अलावा राज्य
सरकारें भी इसमें योगदान करती है। ऐसे में हर राज्य में योजना में पेंशन की राशि
अलग-अलग होती है। इस योजना की शुरुआत 1995 में हुई थी। देश में वृद्धावस्था पेंशन
योजना के तहत 3.5 करोड़ लोगों को लाभ मिल रहा है। पहले यह योजना 65 साल से ऊपर के
व्यक्तियों के लिए बनाई गई थी, जिसे 2011 में घटाकर 60 साल कर दिया गया।
पेंशन
योजना के आवेदक को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार से संबंधित होना
चाहिए। इस योजना के अलावा अन्नपूर्णा योजना भी है, जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को 10
किलो अनाज प्रतिमाह दिया जाता है। वस्तुतः यह योजना उन नागरिकों के लिए है, जो आईजीएनओएपीएस के पात्र तो हैं, पर जिन्हें वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही है। इसके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना
(आईजीएनडब्लूएनपीएस) है। इसके अंतर्गत गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली
40-79 वर्ष आयु की विधवा स्त्रियों को प्रति माह 300 रुपये की सहायता दी जाती है।
जब वे 80 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेती हैं, तो उन्हें आईजीएनओएपीएस में शामिल कर
लिया जाता है, ताकि वे 500 रुपये प्रतिमाह की सहायता प्राप्त कर सकें।
राष्ट्रीय वयोश्री योजना
बुढ़ापे में लाठी ही सहारा होती है। राष्ट्रीय वयोश्री योजना में 60 वर्ष से अधिक उम्र के शारीरिक रूप से अक्षम बुजुर्गों को ह्वीलचेयर तथा अन्य
सहायक उपकरण दिए जाते हैं। यह योजना 2017 में शुरु हुई थी। यह योजना गरीबी रेखा के
नीचे आने वाले वृद्धों को सहारा पहुँचाने के मकसद से शुरू की गई है। यह भी सामाजिक
न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत संचालित होती है। इसका लाभ उठाने के लिए
आवेदक को पंजीकरण कराते समय बीपीएल कार्ड की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें वॉकिंग स्टिक, एल्बो
क्रचेस, ट्राईपॉड्स, क्वैडपॉड, श्रवण यन्त्र, ह्वीलचेयर, कृत्रिम डेंचर्स, चश्मे वगैरह दिए जाते
हैं।
वयोश्रेष्ठ
सम्मान
सन 1992 में संरा
महासभा ने वर्ष 1999 को ‘अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। उसके साथ ही हर वर्ष 1 अक्तूबर को
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष मनाने का निर्णय भी किया गया। भारत सरकार ने वर्ष 2005
में उन प्रतिष्ठित नागरिकों तथा संस्थाओं को वयोश्रेष्ठ सम्मान प्रदान करने का
निर्णय किया, जो वृद्धजन, खासतौर से निराश्रित वरिष्ठ नागरिकों की सेवा के लिए
पहचाने जाते हैं। वयोश्रेष्ठ सम्मान
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया एक राष्ट्रीय पुरस्कार
है। यह पुरस्कार देश में 13 श्रेणियों में पहली अक्टूबर को दिया जाता है।
कोई पीछे न छूटे
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से 17 सतत विकास लक्ष्यों
की ऐतिहासिक योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक अधिक संपन्न, अधिक समतावादी और अधिक संरक्षित विश्व की रचना करना है। सतत विकास के इन 17 लक्ष्यों
और 169 उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सतत विकास के एजेंडा-2030 एजेंडा को
बनाया गया था, जिसे सितम्बर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र
महासभा की शिखर बैठक में 193 सदस्य देशों ने अनुमोदित किया था। संधारणीय विकास के
संयुक्त राष्ट्र एजेंडा-2030 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हाशिए पर जा चुके सामाजिक
समूहों तक सहायता पहुँचाने की जरूरत है। इस वैश्विक एजेंडा का मूल मंत्र है, ‘कोई
पीछे न छूटे।’
दिव्यांगजन के अधिकार
भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी है कि वह
दिव्यांगजन के हितों की रक्षा करे। इस विभाग पर दिव्यांगजन के अधिकारों की रक्षा
के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीआरपीडी) तथा दिव्यांगजन के अधिकारों से जुड़े
अन्य नियमों को लागू करने की जिम्मेदारी है। भारत ने यूएनसीआरपीडी पर हस्ताक्षर
किए हैं। भारत ने देश में विकलांगता की स्थिति पर अपनी पहली रिपोर्ट नवंबर 2015 में
भारत में प्रस्तुत की थी।
पिछले वर्ष सीआरपीडी पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने अपने 22वें सत्र में जिनीवा
के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में 2 और 3 सितंबर 2019 को भारत की पहली राष्ट्रीय
रिपोर्ट पर विचार किया था। दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग में सचिव श्रीमती शकुंतला
डी गैमलिन की अध्यक्षता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल इस रिपोर्ट पर विचार करने की
प्रक्रिया के दौरान संयुक्त राष्ट्र समिति के समक्ष मौजूद था।
दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग की सचिव ने सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का हवाला
दिया और खास तौर पर कांप्रिहैंसिव आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम 2016 को लागू करने, एक्सेसेबल इंडिया अभियान शुरू करने, मानसिक-सामाजिक विकलांगता से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय
मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान (एनआईएमएचआर) की स्थापना, दिव्यांगजन के खेल के लिए केंद्र की स्थापना, सहायता एवं सहायक उपकरणों के वितरण में उपलब्धियों का उल्लेख किया। गत 16
दिसंबर 2016 को लोकसभा ने “विकलांग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक-2016 को पारित
किया था। राज्यसभा इसे पहले ही 14 दिसंबर 2016 को पारित कर चुकी थी।
दिव्यांगता की नई श्रेणियाँ
इस अधिनियम ने पीडब्ल्यूडी अधिनियम-1995
(पर्संस विद
डिसेबिलिटीस एक्ट-1995)। इसके तहत विकलांगता की गतिशील अवधारणा को
स्वीकार किया गया। यानी कि इसके स्वरूप में समय के साथ बदलाव आता रहेगा। इसके तहत
दिव्यांगता के तत्कालीन स्वरूपों की संख्या 7 से बढ़ाकर 21 कर दी गई। साथ ही
भविष्य में केंद्र सरकार को नए स्वरूपों को जोड़ने के लिए अधिकृत कर दिया गया।
इसके कानून के अंतर्गत दिव्यांगता की 21 श्रेणियाँ इस प्रकार हैं: दृष्टिबाधित, कम-दृष्टि, कुष्ठ रोग,
बधिर, लोकोमोटर (अपंग), बौनापन, बौद्धिक विकलांगता, मानसिक रोग, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल
पाल्सी, मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी (पेशी अपविकास), जीर्ण तंत्रिका, विशिष्ट अधिगम (सीखने
की) अक्षमता, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, भाषण और भाषा विकलांगता, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया,
सिकल सेल रोग, एसिड अटैक पीड़ित, पार्किंसंस रोग। इस प्रकार विकलांगता का दायरा
बढ़ा दिया गया। पहली बार भाषण और भाषा विकलांगता और विशिष्ट अधिगम विकलांगता को
जोड़ा गया। एसिड अटैक पीड़ितों को इसमें शामिल किया गया। बौनापन, पेशी अपविकास को निर्दिष्ट विकलांगता के अलग वर्ग के रूप में शामिल किया गया।
नई श्रेणियों में तीन रक्त विकार, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया और सिकल सेल रोग भी शामिल किए गए। इसके अलावा, सरकार को किसी अन्य श्रेणी को इस सूची में रखने के लिए अधिकृत किया गया।
उच्च शिक्षा, सरकारी नौकरियों में आरक्षण, भूमि के आवंटन में आरक्षण, गरीबी उन्मूलन योजना
आदि जैसे अतिरिक्त लाभ दिव्यांग व्यक्तियों और असहाय व्यक्तियों के लिए प्रदान किए
गए हैं। बेंचमार्क विकलांगता वाले कुछ व्यक्तियों या वर्ग के लोगों के लिए सरकारी
प्रतिष्ठानों में रिक्तियों में आरक्षण 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।
इन्हीं कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री सुगम्य भारत अभियान भी शामिल है, जो दिव्यांग
व्यक्तियों की सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता
मंत्रालय के विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग द्वारा शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य दिव्यांग
व्यक्तियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में भागीदारी के समान अवसर एवं आत्मनिर्भर
जीवन प्रदान करना है।
दिव्यांगता पर आधारित केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्ड को केंद्र और राज्य
स्तर पर शीर्ष नीति बनाने वाली संस्थाओं के रूप में कार्य करने के लिए स्थापित
किया जाना है। दिव्यांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त के कार्यालय को सुदृढ़ किया
गया है, जिन्हें अब दो आयुक्तों और एक
सलाहकार समिति द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। इसमें दिव्यांगता से जुड़े विभिन्न विशेषज्ञ
होंगे।
विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य
कोष का निर्माण किया जाएगा। विकलांगों के लिए मौजूदा राष्ट्रीय कोष और विकलांग
व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए ट्रस्ट फंड को राष्ट्रीय कोष के साथ सदस्यता दी
जाएगी। इस कानून में ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ अपराध के लिए दंड का प्रावधान है जो दिव्यांगजन
के खिलाफ अपराध करते हैं या कानून के प्रावधानों का भी उल्लंघन करते हैं। विकलांगों
के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए प्रत्येक जिले में
विशेष न्यायालयों का गठन किया जाएगा।
दिव्यांगजन के अधिकारों की रक्षा के प्रावधान तो हुए हैं, पर उनके लिए संसाधन
अभी पर्याप्त नहीं हैं। समिति की सिफारिशों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि
दिव्यांगजन को सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए संसाधनों की व्यवस्था भी करनी
होगी। दूसरी तरफ हम बजट आबंटन पर नजर डालें, तो स्पष्ट होता है कि अभी इस दिशा में
काफी सुधार की जरूरत है। एनएसएपी योजना के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के लिए बजट
का आकार यथेष्ट नहीं है।
स्कीम
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2014-15 वास्तविक
|
2015-16
वास्तविक
|
2016-17
वास्तविक
|
2017-18
वास्तविक
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2018-19
वास्तविक
|
2019-20
बजट
|
2019-20
संशोधित
|
2020-21
बजट
|
एनएसएपी
|
7084
|
8616
|
8854
|
8694
|
8900
|
9200
|
9200
|
9197
|
इसी तरह विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग का बजट देश के कुल बजट के 0.04 प्रतिशत के
आसपास रहता है और कई बार इस राशि का पूरा उपयोग भी वित्त वर्ष में नहीं हो पाता
है। इस स्थिति में बदलाव की जरूरत है। दिव्यांग कल्याण के लिए केंद्र सरकार जिन
प्रमुख कार्यक्रमों का संचालन करती है उनमें कुछ इस प्रकार हैं: सहायक यंत्र-सामग्री के लिए सहायता, दीनदयाल
पुनर्वास योजना, ब्रेल प्रेसों के संस्थापन, आधुनिकीकरण में सहायता, सेवाकालीन
प्रशिक्षण और रोजगार सहायता, स्पाइनल इंजुरी सेंटर, विकलांगता
अधिनियम के कार्यान्वयन की योजना वगैरह। इनके अलावा छात्रवृत्तियों, दिव्यांगता
खेलकूद, मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास तथा शोध से जुड़े कार्यक्रम भी हैं।
|
2018-19
वास्तविक
|
2019-20
बजट
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2019-20
संशोधित
|
2020-21
बजट
|
विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग
करोड़ रुपये
|
1009.11
|
1204.90
|
1100.00
|
1325.39
|
इंदिरा गांधी दिव्यांगता पेंशन
दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण विकास मंत्रालय
के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन कार्यक्रम (आईजीएनडीपीएस) चलाया
जाता है। इस योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले 18-79 वर्ष
की आयु के विविध प्रकार की निशक्तताओं से प्रभावित व्यक्तियों को प्रतिमाह 300
रुपये की सहायता दी जाती है। 80 वर्ष की आयु हो जाने पर उन्हें आईजीएनओएपीएस के
तहत 500 रुपये प्रतिमाह की सहायता मिलने लगती है। अन्य ग्रामीण विकास कार्यक्रमों
में भी दिव्यांग लोगों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। मनरेगा
के तहत कार्यस्थलों पर पेयजल उपलब्ध कराने, पालना घर की व्यवस्था
इत्यादि में दिव्यांग लोगों को काम दिलाने को प्राथमिकता दी गई है। दिव्यांग मज़दूरों
को अन्य मज़दूरों के बराबर ही मजदूरी दी जाती है। दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण
कौशल योजना के तहत लोगों के कौशल को बढ़ाने के लक्ष्य का कम-से-कम तीन प्रतिशत कौशल
विकास लक्ष्य दिव्यांगों के लिए सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है। प्रधानमंत्री आवास
योजना में भी राज्यों के लिए प्रावधान है कि वह कम-से-कम तीन प्रतिशत दिव्यांग लाभार्थी सुनिश्चित करें।
भारत सरकार की ग्रामीण विकास से जुड़ी पत्रिका कुरुक्षेत्र में प्रकाशित
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