Monday, March 9, 2015

बलात्कार को लेकर भारत के खिलाफ क्या कोई वैश्विक साजिश है?

निर्भया मामले को लेकर बीबीसी की डॉक्यूमेट्री पर पाबंदी के विरोध में मेरे एक लेख का लिंक फेसबुक पर प्रकाशित करने पर कई पाठकों की प्रतिक्रिया से लगा कि वे इस देश की प्रतिष्ठा का प्रश्न मानते हैं। एक पाठक ने लिखा, 'जोशी जी कभी अपने समाज और देश के हित में भी सोचें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि देश के खिलाफ बोलने लगें।'  इस आशय के विचार उन सब लोगों ने व्यक्त किए हैं जो डॉक्यूमेंट्री पर पाबंदी लगाने के पक्षधर हैं। मेरी धारणा शुद्ध रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल्यों पर आधारित है। मैं मानता हूँ कि यह स्वतंत्रता हमारे समाज के हित में है। 

इधर नीति सेंट्रल वैबसाइट ने एक विश्लेषण पेश किया है कि  क्या वजह है कि भारत में रेप की एक घटना सारी दुनिया में चर्चा का विषय बन जाती है। दिल्ली में एक कैब में हुआ बलात्कार न्यूयॉर्क टाइम्स की सुर्खी बन जाता है। वह भी तब जब दुनिया में बलात्कार के मामलों में भारत का स्थान काफी नीचा यानी 94 वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका का नम्बर 14वाँ है। नीति सेंट्रल का विश्वास है कि यह सब वैश्विक ईसाई समुदाय से भारत के नाम पर चंदा वसूली के वास्ते हो रहा है। इस लेख के अनुसार भारत धर्मांतरण अभियान का महत्वपूर्ण देश है। इसने अपनी बात के पक्ष में वील ऑफ टियर्स फिल्म का हवाला भी दिया है।   

यह इस बात का एक दूसरा पहलू है। मेरे पास इस आरोप की पुष्टि या खंडन करने के आधार नहीं हैं और न मैं इस आरोप का समर्थन करता हूँ। बीबीसी की फिल्म पर पाबंदी लगाने के लिए यह उचित आधार भी नहीं है। अलबत्ता इस बात को पढ़ने और छानबीन करने लायक मानता हूँ। यह स्पष्ट करना भी जरूरी है कि नीति सेंट्रल, मीडिया क्रुक्स और अंग्रेजी दैनिक पायनियर बीजेपी के पक्षकार हैं। मैं यह भी नहीं कहता कि बीजेपी के पक्ष को पढ़ा या सुना नहीं जाना चाहिए। हमें अपनी जानकारी का स्तर बढ़ाना चाहिए और ऑब्जेक्टिव तरीके से चीजों को देखना चाहिए। इस विषय पर और भी पढ़ना चाहें तो कुछ लिंक नीचे दिए हैं।

नीति की साइट पर इस विषय को लेकर विश्लेषण

3 comments:

  1. .... नहीं तो .... फिर होंगे अपराध
    यौनदुष्कर्म के ।

    यह शर्त नहीं
    एक विचार है
    एक अपराधी का ।

    उसके विचारों की जनस्वीकृति
    कोई अर्थ नहीं रखती उसके लिये
    क्योंकि
    विकारों को घटित होने के लिये
    नहीं होती आवश्यकता
    जनस्वीकृति की ।
    यह मनोविज्ञान है
    अपराध का,
    और
    जिसे बदल नहीं सकते
    आपके आदर्श ।

    आपको
    उसकी बात सुननी ही होगी ।
    नहीं सुनेंगे
    तो फिर से तैयार रहना होगा
    पुनरावृत्तियों के लिये,
    चीखों के लिये
    और
    वैसे ही अमानवीय कुकृत्यों के लिये ।

    उसने तो सच कहा है
    अपने हिस्से का,
    और कर दी है घोषणा
    अपने विचारों की
    अपने जैसे लोगों के इरादों की ।
    उसकी मान्यतायें
    भिन्न हो सकती हैं
    आपकी मान्यताओं से
    किंतु वे “हो” सकती हैं
    क्योंकि उन्हें “होने” से रोकने का उपाय
    नहीं खोजा जा सका है अभी तक ।

    बलपूर्वक
    संस्कारित नहीं की जा सकती
    किसी की रुग्ण मानसिकता
    किंतु
    उस रुग्ण मानसिकता की ध्वनि
    गुंजित होने से
    रुक सकें बलात्कार
    फिर कभी न सुनायी दें चीखें
    तो निश्चित ही
    प्रतिबन्धित कर दो
    अपराधी की आवाज़ ।

    और सुनो !
    तब
    चोरी रोकने
    नहीं रहेगी ज़रूरत
    घरों में ताले लगाने की,
    आपके आदर्शों के आगे
    शरीफ़ हो जायेंगे
    शहर भर के चोर
    और हो जायेगी समाप्त
    दण्ड व्यवस्था ।

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  2. समस्या जब घर के भीतर हो तो औरों को दोष देना सरल भी होता और अपने से ध्यान हटाने का एक अच्छा तरीका भी होता है.

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