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Sunday, October 9, 2022

वैश्विक मंदी की छाया में भारत


ब्रिटिश साप्ताहिक ‘इकोनॉमिस्ट’ ने कहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था करवट ले रही है। मुद्रास्फीति ने दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों का ध्यान खींचा है। वैश्विक मुद्रास्फीति 9.8 प्रतिशत हो गई है। अभी तक इसका आसान हल माना जाता है ब्याज दरों को बढ़ाना, पर यह कदम मंदी को बढ़ा रहा है। केंद्रीय बैंकों को मॉनिटर करने वाली एक संस्था ने पाया है कि जिन 38 बैंकों का उसने अध्ययन किया उनमें से 33 ने इस साल ब्याज दरें बढ़ाई हैं। आईएमएफ ने भी चेतावनी दी है कि देशों की सरकारें महंगाई को रोकने में नाकाम रहीं तो दुनियाभर में आर्थिक मंदी का खतरा है। दूसरी तरफ अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह नीति चलेगी नहीं। अमेरिकी फेडरल बैंक दरें बढ़ा रहा है, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है।

भारत पर असर

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर पिछले दो हफ्तों की खबरें इस बात की पुष्टि कर रही हैं। रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाया है, जिससे ब्याज की दरें बढ़ेंगी। ज्यादातर संस्थाओं ने भारतीय जीडीपी के अपने अनुमानों को घटाना शुरू कर दिया है। रुपये की कीमत गिर रही है और विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। कोविड-19 का असर पहले से था, अब यूक्रेन की लड़ाई ने ‘कोढ़ में खाज’ पैदा कर दिया है। पेट्रोलियम की कीमतें गिरने लगी थीं, पर इस गिरावट को रोकने के लिए ओपेक और उसके सहयोगी संगठनों ने उत्पादन में कटौती का फैसला किया है। इसका असर अब आप देखेंगे। 

मुद्रास्फीति

इस महीने का डेटा अभी आया नहीं है, पर सितंबर के डेटा के अनुसार अगस्त में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7 फीसदी हो गई, जो जुलाई में 6.71 प्रतिशत और पिछले साल अगस्त में 5.3 प्रतिशत थी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने हाल में उम्मीद जाहिर की थी, यह दर गिरकर 6 फीसदी से नीची हो जाएगी, पर उनका अनुमान गलत साबित हुआ। जुलाई के महीने में देश का खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई-सी) 6.71 हो गया था, जो पिछले पाँच महीनों में सबसे कम था। अच्छी संवृद्धि और मुद्रास्फीति में क्रमशः आती गिरावट से उम्मीदें बढ़ी थीं, पर अब कहानी बदल रही है। लगता है कि रिजर्व बैंक को पहले महंगाई से लड़ना होगा।

जीडीपी संवृद्धि

गुरुवार 6 अक्तूबर को विश्व बैंक ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय जीडीपी की संवृद्धि के 7.5 फीसदी के अपने अनुमान में एक फीसदी की कटौती करते हुए उसे 6.5 प्रतिशत कर दिया है। रिज़र्व बैंक ने 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। सबसे कम अनुमान अंकटाड का 5.7 फीसदी है। दूसरी तरफ मूडीज़ ने हाल में 7.7 फीसदी अनुमान लगाया था, जो इन सबसे ज्यादा है। विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि शेष दुनिया से भारत की स्थिति बेहतर रहेगी। भारत में अधिक बफर हैं, विशेष रूप से केंद्रीय बैंक में बड़े भंडार हैं। बैंक के दक्षिण एशिया से संबद्ध मुख्य अर्थशास्त्री हैंस टिमर के मुताबिक, भारत पर कोई बड़ा विदेशी कर्ज नहीं है। उसकी मौद्रिक नीति विवेकपूर्ण रही है। इसके बावजूद हमने अनुमान को घटाया है, क्योंकि वैश्विक माहौल बिगड़ रहा है। उधर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन मानते हैं कि हम अब भी 7 फ़ीसदी की रेस में शामिल है। ऐसे दौर में जब दुनिया के तमाम देशों की जीडीपी ग्रोथ निगेटिव होने की आशंका है ऐसे में भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए 7 फ़ीसदी ग्रोथ रेट शानदार प्रदर्शन होगा।

ब्याज दरें

महंगाई बढ़ रही है, जीडीपी और रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है। मुद्रास्फीति का सीधा असर बैंकों की ब्याज दरों पर पड़ा है, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता कम होगी, निवेश घटेगा और रोजगारों पर उल्टा असर होगा। यह वात्याचक्र है, जो बवंडर बन सकता है। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट 50 आधार अंक बढ़ाकर 5.9 प्रतिशत और संवृद्धि अनुमान 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है। रेपो रेट पर निर्णय आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) करती है। आमतौर पर वित्त मंत्रालय के साथ व्यापक परामर्श के बाद यह तय होता है। एमपीसी के तीन सदस्य सरकार ही नियुक्त करती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि दिसंबर में संभवतः 35 आधार अंक की एक और वृद्धि हो सकती है। वित्तवर्ष समाप्त होने से पहले मुद्रास्फीति की नीतिगत दर को 6.5 प्रतिशत के स्तर पर ले जाने के लिए फरवरी 2023 में एमपीसी की बैठक हो सकती है।

राजनीतिक फैसले

सवाल अर्थव्यवस्था के साथ राजनीति का भी है। इस साल गुजरात, हिमाचल और अगले साल कुछ दूसरे विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर सरकार कड़े कदमों को उठाने से बचेगी। हाल के फैसलों पर नजर डालें। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त भोजन कार्यक्रम तीन महीने और आगे बढ़ाना और गैर-मिश्रित ईंधन पर टैक्स लगाने के फैसले को टालना इसमें शामिल है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्याज दरें बढ़ाना भी ऐसा ही कदम है। इससे लगता है कि महंगाई रोकने के लिए कुछ किया जा रहा है। गैर-मिश्रित ईंधन (जो इथेनॉल मिश्रित नहीं होता है) पर टैक्स बढ़ाने की घोषणा इस साल आम बजट में की गई थी। वित्तमंत्री ने कहा था, ईंधन सम्मिश्रण को प्रोत्साहित करने के लिए गैर-मिश्रित ईंधन पर 1 अक्तूबर 2022 से 2 रुपये प्रति लिटर का अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगेगा। तेल आयात पर निर्भरता घटाने के लिए ईंधन में इथेनॉल का मिश्रण जरूरी है। इसे प्रोत्साहित करने के लिए गैर-मिश्रित ईंधन पर टैक्स एक प्रभावी तरीका है।

सुधारों पर प्रभाव

विशेषज्ञ मानते हैं कि रेपो रेट और मुद्रास्फीति को लेकर पिछले एक दशक का विश्लेषण बताता है कि जरूरी नहीं कि रेपो रेट में बढ़ोतरी के बाद मुद्रास्फीति में गिरावट आए या रेपो रेट में कटौती से मुद्रास्फीति बढ़ जाए। भारत की मुद्रास्फीति काफी हद तक आयात पर निर्भर करती है। पिछले साल भारत ने खनिज तेल की जरूरत का करीब 86 प्रतिशत आयात किया। तेल की कीमतें चुकाना मजबूरी है जो यूक्रेन युद्ध के बाद से बढ़ गई हैं। आरबीआई और पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) का डेटा बताता है कि पिछले एक दशक में भारत में खनिज तेल की कीमतों और खुदरा मुद्रास्फीति के बीच संबंध जरूर है। ब्याज की ऊँची दरें आर्थिक सुधारों को धीमा कर देंगी, जबकि जरूरत निवेश बढ़ाने की है।

विदेशी मुद्रा-भंडार

रिज़र्व बैंक के गवर्नर के बयान में मुद्रास्फीति, नकदी की स्थिति और विदेशी मुद्रा-भंडार के संबंध में काफी चीजों को स्पष्ट किया गया है। पिछले एक साल में भारत के विदेशी मुद्रा-भंडार में 100 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट के बावजूद रिजर्व बैंक इस सिलसिले में चिंतित नहीं है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत का विदेशी ऋण और जीडीपी अनुपात सबसे कम है। भारत का आर्थिक सुधार दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में तेज है। पर पेट्रोलियम की कीमतें सवाल खड़ा करती हैं। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में खनिज तेल की कीमत करीब 104 डॉलर प्रति बैरल थी। दूसरी छमाही में 100 डॉलर प्रति बैरल मानते हुए, वर्ष 2022-23 में मुद्रास्फीति 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसे दूसरी तिमाही में 7.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत के स्तर पर माना गया। वित्त वर्ष 23-24 की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति में कमी आने के साथ इसके 5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। अगस्त में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 7 प्रतिशत था, जो लगातार आठ महीनों तक आरबीआई की स्वीकार्य सीमा (4 प्रतिशत +/-2 प्रतिशत) के ऊपर है। कानूनन मुद्रास्फीति लगातार नौ महीने तक उच्च स्तर पर रहेगी, तब आरबीआई को सरकार के सामने सफाई पेश करनी होती है। रिज़र्व बैंक के गवर्नर का कहना है कि खनिज तेल सहित वैश्विक जिंसों की कीमतों में गिरावट जारी रही तो दबाव कम हो सकता है। पर इसी हफ्ते पेट्रोलियम की कीमतों को लेकर हुआ फैसला क्या गुल खिलाएगा, इसे देखना होगा।

पेट्रोलियम की कीमतें

बुधवार 5 अक्तूबर को पेट्रोलियम निर्यात करने वाले देशों के संगठन (ओपेक) और रूस समेत उसके सहयोगी देशों ने खनिज तेल के उत्पादन में 20 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती करने का फैसला किया है। यह फैसला नवंबर से लागू होगा। यह कटौती दुनिया की कुल तेल खपत की करीब दो फीसदी है। इससे तेल की सप्लाई में कमी आएगी और उसकी कीमतें बढ़ेंगी, जिनमें जून के महीने से गिरावट का रुख है। पिछले हफ्ते ये कीमतें 82 डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं और अब इस घोषणा के फौरन बाद 93 डॉलर हो गईं। ओपेक का अनुमान है कि अब न्यूनतम कीमत करीब 90 पर रहेगी। इस वृद्धि के आर्थिक मायने तो हैं ही, राजनीतिक मायने भी हैं। इस वृद्धि से अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होने वाली है, इसलिए उसने वेनेज़ुएला पर लगी पाबंदियाँ कम करने पर विचार करना शुरू कर दिया है। अभी तक ओपेक के मुखिया सउदी अरब को अमेरिका का दोस्त माना जाता था, पर वह इस समय रूस के साथ खड़ा नज़र आ रहा है और अमेरिका ने वेनेज़ुएला का सहारा लेने पर विचार करना शुरू कर दिया है, जिसे दुश्मन माना जाता था। अमेरिका और यूरोप में सर्दियों की जरूरत को देखते हुए वेनेज़ुएला का पेट्रोलियम ज़रूरी है। भारत जैसे देशों के लिए कीमतें बढ़ना अशनि संकेत है। इसका सीधा असर मुद्रास्फीति और विदेशी मुद्राकोष पर पड़ेगा।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

 

 

 

 

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