भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने हाल में अपनी अमेरिका-यात्रा के दौरान कुछ कड़ी बातें सही थीं। वे बातें अनायास नहीं थीं। पृष्ठभूमि में जरूर कुछ चल रहा था, जिसपर से परदा धीरे-धीरे हट रहा है। यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर भारतीय नीति से अमेरिका और यूरोप के देशों की अप्रसन्नता इसके पीछे एक बड़ा कारण है। अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16 विमानों के लिए उपकरणों को सप्लाई करके इसे प्रकट कर दिया और अब जर्मन विदेशमंत्री के एक बयान से इस बात की पुष्टि भी हुई है।
अमेरिका और जर्मन सरकारों की प्रतिक्रियाओं को
लेकर भारतीय विदेशमंत्री ने गत सोमवार और मंगलवार को फिर करारे जवाब दिए हैं।
उन्होंने सोमवार 10 अक्तूबर को ऑस्ट्रेलिया में एक प्रेस-वार्ता को दौरान कहा कि
हमारे पास रूसी सैनिक साजो-सामान होने की वजह है पश्चिमी देशों की नीति।
स्वतंत्र विदेश-नीति
अपनी विदेश-नीति की स्वतंत्रता को साबित करने के
लिए भारत लगातार ऐसे वक्तव्य दे रहा है, जिनसे महाशक्तियों की नीतियों पर प्रहार
भी होता है। उदाहरण के लिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस यूक्रेन युद्ध से
जुड़े एक ड्राफ्ट पर पब्लिक वोटिंग के पक्ष में मतदान किया है। यह ड्राफ्ट यूक्रेन
के चार क्षेत्रों को मॉस्को द्वारा अपना हिस्सा बना लिए जाने की निंदा से जुड़ा है।
इस प्रस्ताव पर भारत समेत 100 से ज्यादा देशों ने सार्वजनिक रूप से मतदान करने के
पक्ष में वोट दिया है, जबकि रूस इस मसले पर सीक्रेट वोटिंग
कराने की मांग कर रहा था।
जयशंकर ने यह भी साफ कहा कि आम नागरिकों की जान लेना भारत को किसी भी तरह स्वीकार
नहीं है। उन्होंने रूस और यूक्रेन, दोनों से आपसी टकराव को कूटनीति व
वार्ता के जरिए सुलझाने की राह पर लौटने की सलाह दी है।
भारत इससे पहले यूक्रेन युद्ध को लेकर संरा
महासभा या सुरक्षा परिषद में पेश होने वाले प्रस्तावों पर वोटिंग के दौरान
अनुपस्थित होता रहा है। इस बार भी निंदा प्रस्ताव के मसौदे पर मतदान को लेकर भारत
ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया था। विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि यह विवेक और
नीति का मामला है, हम अपना वोट किसे देंगे, यह पहले से नहीं बता सकते। हालांकि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने
सोमवार को ही कहा था कि रूस-यूक्रेन के बीच तनाव घटाने वाले सभी प्रयासों का
समर्थन करने के लिए भारत हमेशा तैयार है।
पश्चिम की नीतियाँ
एस जयशंकर ने सोमवार को ऑस्ट्रेलिया में कहा कि पश्चिमी देशों ने दक्षिण एशिया में एक सैनिक तानाशाही को सहयोगी बनाया था। दशकों तक भारत को कोई भी पश्चिमी देश हथियार नहीं देता था। ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग के साथ प्रेस-वार्ता में जयशंकर ने कहा कि रूस के साथ रिश्तों के कारण भारत के हित बेहतर ढंग से निभाए जा सके।
हालांकि, जयशंकर
ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन साफ़ है कि उनका संकेत पाकिस्तान
की ओर था। शीत-युद्ध के दौर में अमेरिका का निकट सहयोगी था पाकिस्तान। हाल के वर्षों
में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच संबंधों में तेज़ी से बदलाव भी आया।
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों के
समीकरण बदले। पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में भी इसका असर दिखाई पड़ा। पाकिस्तान
के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने खुलेआम आरोप लगाया कि उन्हें अपदस्थ करने के
पीछे अमेरिका का हाथ है।
एक ऑस्ट्रेलियाई रिपोर्टर ने जयशंकर से पूछा था
कि यूक्रेन में चल रही लड़ाई के कारण क्या भारत को रूसी तेल पर अपनी निर्भरता कम
कर देनी चाहिए और रूस के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करना चाहिए। जयशंकर ने
कहा, हम वही फ़ैसले करते हैं जो हमारे देश के
वर्तमान और भविष्य के हितों की रक्षा करते हों, और
मेरे विचार से मौजूदा (रूस-यूक्रेन) संघर्ष अन्य सैन्य संघर्षों की तरह हमें अहम
सबक़ सिखाएगा।
संरा सुधार
जयशंकर ने मंगलवार को लोवी इंस्टीट्यूट में कहा
कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार मुश्किल कार्य है, लेकिन इसे किया जा सकता है। उन्होंने साथ ही आगाह किया कि अगर बिना
देर किए सुधारों को अमली-जामा नहीं पहनाया गया तो यह विश्व निकाय ‘अप्रासंगिक’ हो जाएगा।
लोवी इंस्टीट्यूट में ‘ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत
के बढ़ते संबंधों का महत्व और हित, जो दोनों देश सुरक्षा केंद्रित क्वॉड
में साझा करते हैं’ विषय पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत के लिए चीन के
साथ संबंधों में ढाई साल ‘बहुत कठिन’ रहे, जिसमें 40 साल
बाद सीमा पर हुआ पहला रक्तपात भी शामिल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमने बीजिंग
के साथ संवाद माध्यम को खुला रखा, क्योंकि पड़ोसियों को एक-दूसरे से बात
करनी पड़ती है।
उन्होंने कहा, डिप्लोमेसी
डायलॉग से जुड़ी है। यह सिर्फ चीन के साथ संबंधों की बात नहीं है, अन्य देशों के संबंध में भी … यदि राजनयिक एक-दूसरे के साथ संवाद
नहीं करेंगे, तो वे किस तरह की डिप्लोमेसी करेंगे? आखिर में देशों को एक-दूसरे के साथ बात करनी पड़ती है।
राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
पिछले महीने जयशंकर ने अमेरिका में वहां के
विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ एक प्रेस-वार्ता में कहा था कि हथियार ख़रीदने
के मामले में भारत वही करेगा जो उसके राष्ट्रीय हित में होगा। हथियारों के मामले
में रूस भारत का सबसे बड़ा सप्लायर है। यूक्रेन की लड़ाई के बाद रूस पर पश्चिमी
देशों ने कई प्रतिबंध लगाए हैं। भारत और रूस को हथियारों के व्यापार में दिक्कत आ
रही है। दोनों देश इस प्रयास में हैं कि वे भुगतान करने के लिए कोई नया तरीका
अपनाएं।
यूरोप और अमेरिका के लगातार दबाव के बावजूद
भारत ने बार-बार संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन-रूस युद्ध पर अपना अलग पक्ष रखा है।
साथ ही रूस की सीधी आलोचना करने से भी भारत बचता रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा
में जयशंकर ने कहा-हमसे अक्सर पूछा जाता है कि हम किस ओर हैं, तो हर बार हमारा सीधा और ईमानदार जवाब होता है कि भारत शांति के साथ
है और इसी रुख़ पर रहेगा। हम उस पक्ष के साथ हैं जो यूएन चार्टर और इसके संस्थापक
सिद्धांतों का पालन करता है। हम उस पक्ष के साथ हैं जो बातचीत और कूटनीति के ज़रिए
ही इस हल को निकालने की बात करता है।
अमेरिकी रुख
जयशंकर की अमेरिका यात्रा के पहले अमेरिका ने
पाकिस्तान को एफ-16 विमानों के लिए उपकरणों की आपूर्ति को मंज़ूरी दे दी थी।
जयशंकर की यात्रा के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा
का भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की तरह भव्य स्वागत करके एक और संकेत दिया। ऐसा
माना जा रहा है कि अमेरिका को लग रहा है कि पाकिस्तान का झुकाव चीन की ओर बढ़ रहा
है, जिसे रोकने के लिए वह पाकिस्तान को खुश करने की
कोशिश कर रहा है। सच यह है कि इस बात को अमेरिका पाँच दशक पहले से जानता है। सन
1971 में अमेरिका ने पाकिस्तान के मार्फत ही चीन से रिश्ते सुधारे थे।
गत 3 अक्तूबर को पाकिस्तान में अमेरिका के
राजदूत डोनाल्ड ब्लोम ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की यात्रा की। यात्रा के दौरान
उन्होंने उस इलाके को आज़ाद कश्मीर के नाम से पुकारा। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले
75 वर्षों में पाकिस्तान को जब भी जरूरत पड़ी है अमेरिका ने हाथ बढ़ाकर मदद की है।
राजनयिक दृष्टि से यह बड़ा कदम था, जिसकी प्रतिक्रिया भारत में होनी ही
थी।
अमेरिका के इस झुकाव के अलावा गत 8 अक्तूबर को
पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो और जर्मन विदेशमंत्री एनालीना बेयरबॉक की
प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कश्मीर को लेकर जो बातें कही गईं, उनपर भी भारत सरकार ने
कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जर्मनी की विदेशमंत्री
से जम्मू-कश्मीर समस्या के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, मैं कह सकती हूँ कि कश्मीर के बारे में जर्मनी की भूमिका और
ज़िम्मेदारी है। हम शांतिपूर्ण समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र की बातचीत का समर्थन
करते हैं। उनके साथ मौजूद पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने
भारत पर कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया।
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