जम्मू-कश्मीर में
सुरक्षाबलों ने हिज्बुल मुज़ाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी को मार गिराया। बुरहान
कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन का पोस्टर बॉय था। उसकी मौत के साथ आतंकवाद का एक
अध्याय खत्म हुआ तो दूसरा शुरू हो गया है। बुरहान को हिज्ब का टॉप कमांडर माना
जाता था, जिसने सोशल मीडिया के जरिए आतंकवाद को दक्षिणी कश्मीर में फिर से जिंदा कर
दिया है। उसकी मौत के बाद उसे अब शहीद के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। अब तक
माना जाता था कि दक्षिण एशिया आतंक से मुक्त है, पर अब लगता है कि यहाँ आतंक का
जहर फैलाने की कोशिशें बढ़ रहीं हैं।
पहले ढाका के एक
कैफे में और फिर ईद की नमाज के मौके पर हुए आत्मघाती हमलों ने इस बात को उजागर किया
है कि इस इलाके में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद किसी बड़ी योजना के साथ प्रवेश कर रहा
है। अंदेशा इस बात का है कि इस्लामिक स्टेट यानी दाएश और पाकिस्तान के कुछ चरमपंथी
गिरोह बांग्लादेश के रास्ते पश्चिम बंगाल और असम में अपनी जगह बनाने की फिराक में
हैं। पिछले साल पश्चिम बंगाल में हुए एक बम विस्फोट में बांग्ला गिरोह जेएमबी का
हाथ होने का अंदेशा व्यक्त किया गया था।
बांग्लादेश में
भारत–समर्थक सरकार होना पाकिस्तान के जेहादी गिरोहों को मंजूर नहीं है। अमेरिका ने
अपने नागरिकों को सलाह दी है कि बांग्लादेश की यात्रा करते हुए सावधानी बरतें।
उसके अनुसार बांग्लादेश में आतंकवाद का खतरा ‘‘सही और वास्तविक’’ है। वहाँ बढ़ रही
आतंकी हिंसा का सीधा मतलब है भारत को निशाना बनाना। इसी खतरे को भाँपते हुए भारत
के नेशनल सिक्योरिटी गार्ड की टीम बांग्लादेश जा रही है। यह कमांडो टीम वहां
पहुंचकर आतंकवादियों के तौर तरीकों की पड़ताल करेगी।
इस्लामिक स्टेट
भारत पर हमले करने का एलान कर चुका है। इसके अलावा खबरें यह भी हैं भारत की
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी की टीम 7 जुलाई को ईद के दिन किशोरगंज में आतंकवादी हमले की
भी समीक्षा करेगी। बांग्लादेश सरकार अभी तक सारे मामले को हल्का मानकर चल रही थी।
वह इस बात को नहीं मानती थी कि आइसिस की इन आतंकी हमलों में भूमिका है, पर अब यह
भी स्पष्ट होता जा रहा है कि जमातुल-मुजाहिदीन-बांग्लादेश (जेएमबी) ने आईएस की
शागिर्दी स्वीकार कर ली है।
बांग्लादेश में आईएस
और ‘अल कायदा इन द इंडियन पेनिनसुला’ दोनों सक्रिय हैं। और इनका रिश्ता पाकिस्तानी
चरमपंथी संगठनों के साथ है। जेएमबी और पाकिस्तानी आईएसआई का सम्पर्क भी धीरे-धीरे
साफ होता जा रहा है। वहाँ हाल में कट्टरपंथियों, खासतौर से 1971 की लड़ाई में
पाकिस्तान का साथ देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। इसका बहाना बनाकर
अंतरराष्ट्रीय गिरोह वहाँ एकताबद्ध होने लगे हैं। मुसलमानों को वैश्विक जेहाद के लिए
आईएस, अल-और बोको हरम जैसे गिरोह अलग-अलग देशों में स्थानीय नाराजगी का फायदा
उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
इन संगठनों की
हिम्मत का पता मदीना में पैगंबर की मस्जिद के बाहर हुए आत्मघाती
विस्फोट से लगता है। इस सिलसिले में 12 पाकिस्तानियों और सात सउदी नागरिकों की
गिरफ्तारी हुई है। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि इस दौरान जेद्दाह में हुए एक विस्फोट
में शामिल आत्मघाती पाकिस्तानी था। इन विस्फोटों में दाएश का हाथ नजर आ रहा है। दाएश
का उदय इस्लाम के अलग-अलग सम्प्रदायों के अंतर्विरोधों का परिचायक भी है। यह सब
रमज़ान के पवित्र महीने में हुआ है।
सारी बातें घूम-फिरकर एक जगह आ रही हैं। बांग्लादेश सरकार अबतक कह रही है कि
उसके आतंकवादी दाएश के लड़ाके नहीं हैं, जबकि आईएस ने इनकी तस्वीरें जारी की हैं
जिसमें उन्होंने एक जैसे स्कार्फ और कुर्ते पहन रखे हैं। ये नौजवान बांग्लादेश के प्रतिष्ठित
परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। आईएस ने पहले इनकी तस्वीरें जारी कीं, उसके बाद
बांग्लादेश सरकार ने उनके शवों की तस्वीरें जारी कीं। इस दौरान यह जानकारी भी
सामने आई कि इनमें से कम से कम दो युवक भारत के इस्लामी उपदेशक ज़ाकिर नाइक के फैन
थे और उनके उपदेशों से प्रेरित थे।
यह तथ्य सामने न
आया होता तो शायद ज़ाकिर नाइक पर हम ज्यादा ध्यान नहीं देते। हालांकि ज़ाकिर नाइक
ने हिंसा की भर्त्सना की है और यह भी स्पष्ट किया है कि उनका हिंसक विचारधारा के
प्रचार से कोई रिश्ता नहीं है, पर जाँच के घेरे में वे भी आ गए हैं। ज़ाकिर नाइक
का व्यक्तित्व पहले से विवादास्पद है। हालांकि वे इस्लाम का प्रचार करते हैं, पर मुसलमान
ही उनके आलोचक हैं। भारत और पाकिस्तान में दारुल उलूम उनके खिलाफ फतवे जारी कर
चुका है।
इस दौरान खबर यह
भी है कि श्रीनगर में ज़ाकिर नाइक के समर्थन में पोस्टर लगे हैं। हालांकि कश्मीरी
आंदोलन का उनकी बातों से सीधा रिश्ता नहीं है, पर कश्मीरी आतंकवादी हर उस बात का
इस्तेमाल कर रहे हैं जो इस्लामी भावनाओं को भड़का सके। दक्षिण एशिया में सबसे पहले
दाएश के झंडे श्रीनगर में ही लहराए गए थे। सवाल है कि श्रीनगर और बांग्लादेश के
नौजवानों को ज़ाकिर नाइक में ऐसा क्या मिला है जो वे उनका नाम ले रहे हैं?
इस बात की पड़ताल भी कर रही है कि
क्या ढाका हत्याकांड
से जुड़े नौजवान वास्तव में ज़ाकिर नाइक के उपदेशों से मंत्र-मुग्ध थे? ऐसा था तो क्यों? इसके लिए उन्होंने ज़ाकिर
नाइक के भाषणों के वीडियो की पड़ताल शुरू की है। कुछ बातें मोटे तौर पर समझ में
आती हैं। ज़ाकिर नाइक उर्दू-फारसी या अरबी में उपदेश नहीं देते। वे सामान्य
मुस्लिम धर्मगुरुओं जैसा लिबास नहीं पहनते। अंग्रेजी लिबास पहनते हैं और अंग्रेजी
में भाषण देते हैं। उनका संवाद का लहज़ा बड़ा रोचक है और याददाश्त जबर्दस्त है।
धर्मग्रंथों को उधृत करते हैं, तो लगता है कि सब उन्हें कंठस्थ है।
वे नए दौर के प्रचारक हैं। उनका दावा है कि उनके साथ
1.40 करोड़ लोग फेसबुक पर जुड़े हैं और 20 करोड़ लोग उनके ‘पीस-टीवी’ के दर्शक हैं। दक्षिण एशिया में ही नहीं अरब देशों और अफ्रीका
के भी कई इस्लामी देशों में उनके बड़ी संख्या में अनुयायी बताए जाते हैं। अंग्रेजी
के कारण वे अनेक देशों के दर्शकों को, खासतौर से नौजवानों को, सम्बोधित कर सकते
हैं। ढाका हत्याकांड से जुड़े नौजवान सम्पन्न परिवारों से थे और अंग्रेजी पढ़े-लिखे
थे। यह वह पीढ़ी है जिसे परम्परागत शायद मौलवी और उनकी भाषा प्रभावित नहीं करती है
या समझ में नहीं आती है। शायद यह उपदेश उनके मन में ‘मीठा जहर’ घोल रहा है।
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