संसद का बजट-सत्र 31 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। दो कारणों से इस बजट के सामने चुनौतियाँ हैं। एक तो महामारी की तीसरी सबसे ऊँची लहर सामने है। दूसरे पाँच राज्यों में चुनाव हैं, जिसके कारण सरकार के सामने अलोकप्रियता से बचने और लोकलुभावन रास्ता अपनाने की चुनौती है। देश का कर-राजस्व बढ़ रहा है, फिर भी जीएसटी अब भी चुनौती बना है। आयकर को लेकर मध्यवर्ग आस लगाए बैठा है। रेल बजट अब आम बजट का हिस्सा होता है। उसे लेकर घोषणाएं संभव हैं। ग्रामीण विकास, खेती, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और ग्रामीण महिलाओं से जुड़े कार्यक्रम भी सामने आएंगे। ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि कोविड-19 की लहर के दौरान यह सत्र चलेगा कैसे? पर सबसे बड़ी उत्सुकता यह जानने में है कि अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है और उत्तर-कोरोना व्यवस्था कैसी होगी? बढ़ती बेरोजगारी को कैसे रोका जाएगा, सामाजिक कल्याण के नए उपाय क्या होंगे और उनके लिए संसाधन कहाँ से आएंगे?
राजस्व-घाटा
सरकार 2021-22 बजट के
अनुमानित ख़र्च के ऊपर, 3.3 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यय कर रही
है, जिसे ग़रीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने, एयर इंडिया का निजीकरण की प्रक्रिया के तहत उसके कर्ज़
की अदायगी, निर्यात को बढ़ावा देने की विभिन्न स्कीमों
के तहत प्रोत्साहन उपलब्ध कराने, और महात्मा गांधी
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम के अंतर्गत ज़्यादा पैसा देने पर ख़र्च
किया जा रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 16.6
लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है, जो जीडीपी का करीब 7.1 फीसदी होगा। राज्यों
का राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के अपेक्षाकृत कम स्तर पर रहने का अनुमान है। इस तरह
केंद्र एवं राज्यों का सामान्य राजकोषीय घाटा जीडीपी के करीब 10.4 प्रतिशत तक
पहुंचेगा।
बेहतर कर-संग्रह
अर्थव्यवस्था की पहली झलक सत्र के पहले दिन आर्थिक समीक्षा से मिलेगी। सरकार पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने प्रत्यक्ष कर-संग्रह के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि 16 दिसंबर तक नेट कलेक्शन 9.45 लाख करोड़ रुपये है। एक साल पहले इसी अवधि में यह 5.88 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह 60.8 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वेतनभोगी और पेंशनधारक आयकर-राहत की आस में बैठे हैं। उन्हें उम्मीद है कि 50,000 रुपये की मानक कटौती की सीमा को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। जिन्होंने नई कर-व्यवस्था का विकल्प चुना है, वे स्टैंडर्ड डिडक्शन के लिए पात्र नहीं हैं। कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को देखते हुए इस सीमा को 30-35 प्रतिशत बढ़ाने की मांग की जा रही है। घर से काम करने के कारण बिजली और इंटरनेट पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। कोविड मरीजों को भी छूट देने की माँग है।
जीएसटी में भी सुधार
जीएसटी-संग्रह में सुधार को लेकर सरकार उत्साहित
है। मई और जून में कोविड-19 की दूसरी लहर ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया
था, उन्हें छोड़ दिया जाए तो बीते 15 महीनों से
जीएसटी का मासिक संग्रह एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर है। अक्टूबर से दिसंबर तक तीन महीनों में
यह 1.3 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा जो उसके पिछले साल के इन्हीं तीन महीनों से 13
से 26 फीसदी तक अधिक था। 2019 के इन तीन महीनों के मुकाबले 26 से 37 फीसदी ज्यादा।
पिछले पांच वर्षों में, महामारी के वर्ष को छोड़कर, सरकार आमतौर
से नवंबर तक अपने कर-संग्रह लक्ष्य का 56-58 प्रतिशत तक हासिल कर लेती थी। इस
वित्त वर्ष में नवंबर तक,
सरकार ने अपने लक्ष्य
का तक़रीबन 70 प्रतिशत कर वसूल लिया था।
वापसी का
संकेत?
जीएसटी में वृद्धि क्या अर्थव्यवस्था की वापसी का
संकेत है? वस्तुतः 2018-19 में जीएसटी संग्रह जीडीपी का
6.22 फीसदी था, जो 2019-20 में 6 फीसदी, 2020-21 में 5.75 फीसदी रह गया और चालू
वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों की प्रवृत्ति को अगले तीन महीनों में भी जारी मानें
तो यह 6.1 फीसदी होगा। इस लिहाज से इसमें और सुधार की जरूरत है। संभावना जताई जा रही है कि वित्त मंत्रालय
कर-संग्रह का महत्वाकांक्षी लक्ष्य नहीं रखेगा। मंत्रालय का दृष्टिकोण है कि उपलब्धि,
अनुमान से ज़्यादा होनी चाहिए। पुरानी रणनीति में सरकार ऊँचा लक्ष्य रखती थी, पर हर
बार 7-8 फीसदी की कमी रह जाती थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ अधिकारी ने
संकेत दिए कि कर राजस्व में वृद्धि होने के बावजूद, वित्त
मंत्रालय लक्ष्यों को कंजर्वेटिव रखेगा।
बेरोजगारी और महंगाई
देश में इस समय
बेरोजगारी दर ऊंचे स्तर पर है। 2018-19 में यह दर 6.3 प्रतिशत और 2017-18 में 4.7
प्रतिशत थी। इस साल यह 7 प्रतिशत से ऊपर है। अक्तूबर-दिसंबर 2021 की तिमाही में यह
7.6 और उससे पहले जुलाई-सितंबर में 7.3 प्रतिशत थी। थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई)
नवंबर 2021 में 14.23 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है और उपभोक्ता मूल्य
सूचकांक (सीपीआई) 4.91 प्रतिशत पर। अप्रैल से लगातार नौवें महीने थोक मूल्य
सूचकांक दहाई में है। दिसंबर में यह कुछ कम होकर 13.56 प्रतिशत हो गई है। बेरोजगारी
की दर 7 प्रतिशत से ज्यादा और महंगाई की दर 5
प्रतिशत होना अच्छा संकेत नहीं है। महंगाई के बढ़ने का ही अंदेशा है और बेरोजगारी कम
होने की उम्मीद नहीं है। उपभोक्ता सामग्री की मांग में कमी चल ही रही है, जिसके
कारण कंपनियाँ निवेश नहीं कर रही हैं। इस वात्याचक्र को तोड़ने की कोशिश बजट में
होनी चाहिए।
भारी कर्ज
सरकारी खर्च की उम्मीद काफी लोग करते हैं, पर
उसके खतरे को नहीं समझते। महामारी से निपटने के प्रयास में राजस्व-घाटा सामने है। हालांकि
भारत सरकार ने काफी हद तक हाथ रोका है, फिर भी बजट पर उसका असर नजर आएगा। इस वक्त केंद्र
और राज्यों पर कर्ज जीडीपी के 90 फीसदी के आसपास है, जो महामारी के पहले 70 फीसदी
था। इसे 60 फीसदी होना चाहिए। कर्ज के कारण सरकारी प्राप्तियों पर ब्याज का बोझ
बढ़ेगा, जो अब 41 फीसदी के आसपास है, जबकि महामारी के पहले यह 35 फीसदी के आसपास
था। अनुमान है कि इस वित्तवर्ष में 1.20 करोड़ रुपये अतिरिक्त ब्याज पर देने
होंगे। कर्ज नहीं होता, तो यह पैसा जनता के काम पर लगता।
टैक्स-जीडीपी अनुपात
अर्थव्यवस्था के आकार के लिहाज से हमारे देश
में कर-राजस्व काफी कम है। 2015-16 में यह जीडीपी का 10.6 प्रतिशत था, जो उसके
अगले दो वर्षों में बढ़कर 11.2 प्रतिशत हो गया, पर 2018-19 में 10.9 और 2019-20
में 9.9 और 2020-21 में 9.8 प्रतिशत। चालू वर्ष का अनुमान 9.9 प्रतिशत है। सरकार
तभी ज्यादा पैसा लगा सकती है, जब उसके पास पैसा हो। हम यूरोप और अमेरिका जैसी
सार्वजनिक सुविधाएं चाहते हैं, पर टैक्स नहीं देते। 2019 में ओईसीडी देशों में
टैक्स-जीडीपी अनुपात 33.8 फीसदी था। कर राजस्व कम होगा और उसका बड़ा हिस्सा ब्याज
में चला जाएगा, तो सरकार के पास जो बचेगा, उससे ज्यादा उम्मीदें नहीं करनी चाहिए। राजस्व
बढ़ने की सबसे बुनियादी शर्त है तेज संवृद्धि। कारोबार बढ़ेगा, तो टैक्स ज्यादा
मिलेगा।
जीडीपी संवृद्धि
पहले अग्रिम अनुमान के
अनुसार चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 9.2 प्रतिशत की संवृद्धि होगी। कोविड-19
की लहर के कारण अर्थशास्त्री प्रोजेक्शन में सावधानी बरत रहे हैं। 9.2 प्रतिशत की
संवृद्धि रिजर्व बैंक और आईएमएफ दोनों के 9.5 फीसदी के अनुमान की तुलना में कम है।
सिटीग्रुप ने इसे और कम करके 9 प्रतिशत माना है। बहरहाल उम्मीद की जा रही है कि
वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी की संवृद्धि दर ऊंची रहेगी। नए साल
के पहले कुछ सप्ताह मुश्किल भरे नजर आ रहे हैं, लेकिन बाद में
सुधार की आशा है।
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