भारत और अमेरिका के बीच कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) होने से लगता है कि दोनों देश आगे बढ़े हैं। इसे दोनों देशों के रिश्तों में मील का पत्थर बताया गया है। कोमकासा उन चार समझौतों में से एक है जिसे अमेरिका फौजी रिश्तों के लिहाज से बुनियादी मानता है। इसके पहले दोनों देशों के बीच जीएसओएमआईए और लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ़ एग्रीमेंट (लेमोआ) पर दस्तखत हो चुके हैं। इन तीन समझौतों के बाद अब 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फ़ॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन (बेका) की दिशा में दोनों देश बढ़ेंगे। दोनों देशों ने अपने रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का फैसला भी किया है। सितंबर 2018 में अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पिओ ने संयुक्त ब्रीफिंग में कहा था कि हम वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उभरने का पूरी तरह से समर्थन करते हैं तथा हम अपनी साझेदारी के लिए भारत की समान प्रतिबद्धता का स्वागत करते हैं। कोमकासा के तहत भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा संचार उपकरण हासिल करने का रास्ता साफ हो गया और अमेरिका तथा भारतीय सशस्त्र बलों के बीच अंतर-सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण संचार नेटवर्क तक उसकी पहुंच होगी।
इसमें दो राय
नहीं कि पिछले 20 साल में अमेरिका ने पाकिस्तान से पैदा होने वाली आतंकवादी
गतिविधियों के खिलाफ भारत का साथ दिया है। अमेरिका ने न केवल लश्करे तैयबा और जैशे
मोहम्मद पर प्रतिबंध लगाएं हैं, बल्कि हाफिज सईद जैसे लोगों पर इनाम भी घोषित किए हैं।
भारत को कई प्रकार की खुफिया जानकारियाँ अमेरिका के माध्यम से मिलती हैं और भारत
भी अमेरिका को जानकारियाँ मुहैया कराता है। इसके बावजूद यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए
कि वह पाकिस्तान के खिलाफ कोई निर्णायक कार्रवाई करेगा। पाकिस्तान पश्चिम एशिया के
साथ रिश्ते बनाए रखने में अमेरिका के लिए सेतु का काम करता है।
‘टू प्लस टू वार्ता’ को तीन हिस्सों में बाँटा गया था। पहले हिस्से में अगले दस
साल का खाका खींचा गया। इसमें एच1बी वीजा और पूँजी निवेश जैसे
मुद्दे भी उठे। दूसरे भाग में दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते हुए। तीसरे में अन्य
देशों से रिश्तों को लेकर बात हुई। यहाँ रूस और ईरान के मुद्दे भी उठे। अमेरिकी
पाबंदियों के कारण भारत और ईरान के रिश्ते अब उस धरातल पर नहीं हैं, जिस धरातल पर
दो साल पहले थे।
भारत की एनएसजी
सदस्यता चीन के विरोध के कारण खटाई में पड़ी है। सितंबर 2018 में ‘टू प्लस टू वार्ता’ के बाद तत्कालीन विदेशमंत्री
सुषमा स्वराज ने बताया था कि अमेरिका के साथ इस बात के लिए भी सहमति बनी है कि वह
मिलकर भारत को एनएसजी सदस्यता दिलवाने की दिशा में प्रयास करेगा। चीन पर अमेरिका असर
डाल पाएगा या नहीं, यह अलग सवाल है। अलबत्ता पिछले कुछ महीनों में भारत और चीन
के रिश्तों में जबर्दस्त कड़वाहट पैदा हुई है, इसलिए उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि
चीन का अड़ियल रवैया खत्म होगा। चीन की प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है।
अमेरिका अपने रक्षा सहयोगियों के साथ चार बुनियादी समझौते
करता है। इनमें पहला है जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिटरी इनफॉर्मेशन एग्रीमेंट
(जीएसओएमआईए)। यह समझौता दोनों देशों के बीच सन 2002 में हो गया था। इसके बाद 2016
में दोनों के बीच लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लेमोआ) हुआ। फिर
2018 में कोमकासा पर दस्तखत हुए। अब चौथा समझौता बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन
एग्रीमेंट (बेका) होने जा रहा है। इसके बाद दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधी तमाम
गोपनीय जानकारियों का आदान-प्रदान होने लगेगा।
26-27 अक्तूबर को होने वाली टू प्लस टू वार्ता में शामिल
होने के लिए अमेरिका के विदेशमंत्री माइक पॉम्पियो और रक्षामंत्री मार्क एस्पर
भारत आ रहे हैं। उनके साथ हमारे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस जयशंकर
की वार्ता होगी। यह बातचीत अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले और भारत-चीन
टकराव की पृष्ठभूमि में हो रही है। यह तीसरी वार्ता है। दूसरी वार्ता 18-19 दिसंबर
2019 को अमेरिका में हुई थी।
दोनों देशों के रिश्ते केवल सामरिक क्षेत्र में ही नहीं
हैं। इस साल फरवरी में डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच
आर्थिक समझौते की बातें भी हुई थीं। भारत को अमेरिका के वीज़ा कानून को लेकर
दिक्कतें हैं। अमेरिका ने भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस से बाहर कर दिया
है। इसके अलावा अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार अमेरिकी माल के लिए खोले।
बदले में हमें क्या मिलेगा, यह भी स्पष्ट होना चाहिए।
वो बात अलग है कि पर्यावरण खराब है कह रहे हैं हजूर ट्रंप।
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