हिन्दू में प्रकाशित सुरेन्द्र का कार्टून जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर व्याप्त तनाव को अच्छी तरह व्यक्त करता है। दोनों देशों के लाउडस्पीकर तोप के गोलों का काम कर रहे हैं। यह भी एक सच है कि दोनों देश तनाव के किसी भी मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकते। बहरहाल जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तनाव का पहला असर हॉकी इंडिया लीग पर पड़ा है। पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खेलने से रोक दिया गया है। लगता है कुछ दिन तनाव दूर करने में लगेंगे। हमें इसे स्वीकार करना चाहिए कि हमारा मीडिया तमाम सही मसलों को उठाता है, पर हर बात के गहरे मतलब निकालने के चक्कर में असंतुलन पैदा कर देता है। भारत-पाक मसलों पर तो यों भी आसानी से तनाव पैदा किया जा सकता है। नियंत्रण रेखा पर तनाव कम होने में अभी कुछ समय लगेगा। बेशक हमारे सैनिकों की मौत शोक और नाराज़गी दोनों का विषय है। उससे ज्यादा परेशानी का विषय है सैनिक की गर्दन काटना। यह मध्य युगीन समझ है और पाकिस्तान को अपनी सेना के अनुशासन पर ध्यान देना चाहिए। अलबत्ता इस समय दोनों देशों के बीच झगड़े और तनाव का कोई कारण नहीं है। यह बात अगले दो-तीन हफ्ते में स्पष्ट हो जाएगी। भारत सरकार पर भी लोकमत का भारी दबाव है।
जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पिछले
दस-बारह दिन से गोलियाँ चल रहीं हैं। भारत के दो सैनिकों की हत्या के बाद से देश में
गुस्से की लहर है। सीमा पर तैनात सैनिक नाराज़ हैं। वे बदला लेना चाहते हैं। फेसबुक
और ट्विटर पर कमेंट आ रहे हैं कि भारत दब्बू देश है। वह कार्रवाई करने से घबराता है।
हालांकि भारत ने पाकिस्तान के सामने कड़े शब्दों में अपना विरोध व्यक्त किया है, पर
जनता संतुष्ट नहीं है। सैनिकों की हत्या से ज्यादा फौजी की गर्दन काटने से जनता नाराज़
है। पर हमें समझना होगा कि यह घटना क्या जान-बूझकर की गई है? क्या पाकिस्तानी
सेना या सरकार का इसमें हाथ है? या यह स्थानीय स्तर पर नासमझी में हुई घटना है? भारत को एक
ज़िम्मेदार देश की भूमिका भी निभानी है। केवल आवेश और भावनाओं से काम नहीं होता।
नवम्बर 2003 में दोनों देशों के बीच जो
समझौता हुआ था, वह नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले ग्रामीणों के लिए राहत का संदेश
लेकर आया था। नीलम घाटी के इलाके में इस गोलाबारी से जीवन नरक हो गया था। तब से यह
समझौता चला आ रहा है। दोनों ओर का जीवन सामान्य है। पर पिछले कुछ समय से जो हालात पैदा
हो रहे हैं, उनसे चिन्ता पैदा हो रही है। 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए हमले के
बाद से नियंत्रण रेखा पर चौकसी भी बढ़ा दी गई थी। भारतीय सेना का कहना है कि जम्मू-कश्मीर
के दक्षिणी हिस्से में नियंत्रण रेखा पार करके आतंकवादी कश्मीर आते हैं। 26/11 के बाद
सीमा रेखा पर अतिक्रमण बढ़ा है। पिछले साल अतिक्रमण के 117 मामले हुए जिनकी संख्या
2011 में 61 और 2010 में 57 थी। दूसरी ओर स्थितियाँ सामान्य बनाने की कोशिशों के तहत
नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच व्यापार शुरू हुआ है। लोगों का आना-जाना बढ़ा
है। भारत और पाकिस्तान के बीच अभी अच्छी तरह से कारोबारी रिश्ते बने ही नहीं हैं। रुपयों
के लेन-देन की कोई बैंक-प्रणाली विकसित नहीं हुई है इसलिए कश्मीर में ज्यादातर व्यापार
बार्टर की शक्ल में हैं। फिर भी वह तेजी से बढ़ रहा है।
पर कहीं न कहीं कोई ताकत है जिसे यह पसंद
नहीं है। पिछले साल सितम्बर में पाकिस्तान के अखबार ‘डॉन’ में मुज़फ्फराबाद
डेटलाइन से बच्चों के एक जुलूस की खबर छपी थी। विश्व शांति दिवस पर पाक अधिकृत कश्मीर
के झुंझठ गाँव के बच्चों ने एक जुलूस निकाला जिसमें भारत और पाकिस्तान से अपील की गई
थी कि वे नियंत्रण रेखा पर युद्ध-विराम के समझौते को मजबूती से लागू करते रहें। उनके
हाथों में तख्तियाँ थीं, ‘हमें किताबें चाहिए, बम नहीं।’ सीमा पर अनेक गाँव ऐसे हैं जो एकदम आमने-सामने
हैं। पिछले हफ्ते हिन्दू में प्रवीन स्वामी की क खबर प्रकाशित हुई है, जिससे इस बात
पर रोशनी पड़ती है कि किस तरह एक मामूली सी घटना ने सीमा रेखा पर बड़ा रूप ले लिया
है। रपट के अनुसार सितम्बर के महीने में उड़ी सेक्टर में सीमा पर भारत की ओर के गाँव
चरोंडा की रहने वाली 70 वर्षीय रेशमा बी अपने नाती-पोतों से मिलने पाकिस्तानी गाँव
में चली गईं। इसकी जानकारी मिलने पर भारतीय सुरक्षा अधिकारियों ने अपने इलाके में बंकर
बनाने शुरू कर दिए। युद्ध विराम समझौते के तहत रेखा के दोनों और 500 मीटर के इलाके
में कोई निर्माण नहीं होने चाहिए। भारतीय बंकरों के बनने की खबर मिलने पर पाकिस्तानी
सेना ने विरोध करना शुरू किया। उन्होंने लाउडस्पीकरों से इस आशय की घोषणा भी की। भारतीय
सेना के अफसरों का कहना है कि ये बंकर हम गाँव के पीछे बना रहे थे, नियंत्रण रेखा के
सामने नहीं। और पाकिस्तानी भी अपने इलाके में बंकर बनाते हैं। बहरहाल यह मामला बढ़ता
गया और आए दिन गोलियाँ चलने लगीं। अभी इतना समझ में आता है कि यह निचले स्तर पर असावधानी
के कारण हुआ है। दोनों ओर से उच्चस्तर पर किसी का इरादा भड़काने वाली कार्रवाई का नहीं
है।
पाकिस्तानी सेना इस समय अपनी पश्चिमी
सीमा पर फँसी है, वह भारतीय सीमा पर नए बवाल में अपने पैर फँसाना नहीं चाहेगी। उसके
सोच में बुनियादी बदलाव के संकेत भी हैं। पाकिस्तानी सेना की ग्रीन बुक में उसकी सैन्य
नीतियों की दिशा दिखाई पड़ती है। यह सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है, पर सीनियर अफसरों
में वितरित होने के नाते सार्वजनिक जानकारी में आ जाता है। इसी महीने के शुरू में करीब
200 पन्नों का दस्तावेज़ पाकिस्तान में फौजी अफसरों केबीच में बांटा गया है। इसमें एक
बड़ा बदलाव करते हुए माना गया है कि पाकिस्तान की सुरक्षा को भारत से नहीं बल्कि देश
के भीतर से ज़्यादा बड़ा ख़तरा है। अभी तक पाकिस्तान भारत को दुश्मन नम्बर एक मानता रहा
है। इसमें यह नहीं कहा गया है कि भारत दुश्मन नहीं है, पर पाकिस्तानी सेना अपने अंदरूनी
शत्रु को भी स्वीकार करने लगी है। यह अंदरूनी शत्रु उसके वे अतिवादी संगठन हैं जो पाकिस्तान
राष्ट्र राज्य को सीधी चुनौती दे रहे हैं। नए सैन्य डॉक्ट्रिन में कहा गया है कि देश
की पश्चिमी सीमाओं और कबायली क्षेत्रों में जारी गुरिल्ला युद्ध और तथा कुछ देश के
भीतर लगातार बम हमले को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। अलबत्ता इस दस्तावेज़ में किसी
चरमपंथी संगठन का नाम भी नहीं लिया गया है। पाकिस्तान के सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल
तलत मसूद ने बीबीसी से कहा "इससे तो लगता है कि सेना के अन्दर मूलभूत बदलाव आया
है। जब से पाकिस्तान बना है सबसे बड़ा ख़तरा भारत को माना जाता रहा है। वह ख़तरा अब भी
है लेकिन इतना बड़ा नहीं जितना इन गुरिल्ला युद्ध लड़ने वालों से या उन लोगों और संगठनों
से है जो अफगानिस्तान में पनाह लेते हैं और वहाँ से पाकिस्तान पर हमला करते हैं।"
बहरहाल सीमा पर पिछले हफ्ते की घटनाओं
के बाद न्यूज़ चैनलों के स्टूडियो से लेकर अखबारों की सुर्खियों तक में नाराज़गी का
इज़हार है। हमारे पास विकल्प क्या हैं? पिछले दस दिन में सीमा पर चौथी बार जबर्दस्त
फायरिंग गुरुवार 10 जनवरी को हुई। इस फायरिंग में पाकिस्तानी
हवलदार मोहियुद्दीन के मारे जाने की खबर है। मंगलवार की घटना के पहले 6 जनवरी को एक पाकिस्तानी फौजी की गोलीबारी में मौत हुई थी। जवाबी
गोलीबारी कब तक होगी? सोशल मीडिया में भारतीय राष्ट्र राज्य के कमज़ोर होने की बात
उलाहने के रूप में कही जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका या चीन के साथ ऐसा
होता तो वे करारा जवाब देते। ‘करारा जवाब’ से आशय क्या है? क्या फौज को हमला करने का आदेश दिया जाए? या कोई सर्जिकल स्ट्राइक किया जाए? सर्जिकल स्ट्राइक किसके खिलाफ? पूरे तथ्यों
को हासिल किए बगैर कोई बात कैसे कही जा सकती है।
गुरुवार को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में
हुए बम धमाकों में 150 से भी ज्यादा लोग मरे हैं। सबसे ज्यादा लोग बलूचिस्तान प्रांत
की राजधानी क्वेटा में एक भीड़भाड़ वाले स्नूकर क्लब में हुए दोहरे बम धमाके में मारे
गए। मरने वालों में ज्यादातर शिया लोग हैं। एक सुन्नी चरमपंथी लश्कर-ए-झांगवी ने इन
हमले की जिम्मेदारी स्वीकारी है। कबायली इलाके स्वात घाटी में भी हुए विस्फोट में 20
से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 2012 के अगस्त में राजधानी इस्लामाबाद
के करीब कामरा में वायुसेना के मिनहास बेस पर हमला हुआ था। इसके पहले मई 2011 में कराची
के पास मेहरान हवाई ठिकाने पर हुआ था। मेहरान और कामरा बेस पर हमलों के बाद यह बात
भी समझ में आती है कि हमलावरों को न सिर्फ गहरा फौजी प्रशिक्षण दिया गया था, बल्कि
फौज के भीतर भी हमलावरों की कहीं पहुँच थी। मुम्बई, मेहरान और कामरा के हमलावर क्या एक-दूसरे से
जुड़े हैं? पाकिस्तान सरकार और सेना क्या उन्हें पहचानती है? क्या पाकिस्तानी
व्यवस्था का कोई धड़ा इन बातों को संचालित कर रहा है? उसकी रणनीति
क्या है, और लक्ष्य क्या है? पाकिस्तान अपने अस्तित्व के सबसे महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहा
है। वहाँ पैदा होने वाली अस्थिरता हमारे लिए भी घातक होगी। इसलिए तैश और भावावेश को
कुछ देर के लिए काबू में रखें। सी एक्सप्रेस में प्रकाशित
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