सीमा पर पिछले हफ्ते की घटनाओं के बावज़ूद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बैरोमीटर से ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा है जो कहे कि दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ने चाहिए। इस मामले को दोनों देशों की सरकारों और सेना पर छोड़ देना चाहिए। न्यूज़ चैनलों के स्टूडियो इन मामलों पर बहस के लिए उपयुक्त नहीं हैं। आवेशों और भावनाओं को फिलहाल दबाकर रखना चाहिए।
पिछले मंगलवार 8 जनवरी को जम्मू-कश्मीर
के मेंढर सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर 13 राजपूताना रायफल्स के दो जवानों की मौत
के बाद देश में और खासतौर से सीमा पर तैनात फौजियों के भीतर उबाल है। सवाल है कि
इसके बाद किया क्या जाए। पिछले दस दिन में सीमा पर चौथी बार जबर्दस्त फायरिंग
गुरुवार 10 जनवरी को हुई। इस फायरिंग में पाकिस्तानी हवलदार मोहियुद्दीन के मारे
जाने की खबर है। मंगलवार की घटना के पहले 6 जनवरी को एक पाकिस्तानी फौजी की गोलीबारी में
मौत हुई थी। जवाबी गोलीबारी से समस्या का हल नहीं निकलता। सोशल मीडिया में भारतीय
राष्ट्र राज्य के कमज़ोर होने की बात उलाहने के रूप में कही जा रही है। यह भी कहा
जा रहा है कि अमेरिका या चीन के साथ ऐसा होता तो वे जवाब देते। ऐसा कहने वालों का ‘जवाब’ से आशय क्या है? क्या
फौज को हमला करने का आदेश दिया जाए? या कोई सर्जिकल स्ट्राइक
किया जाए? सर्जिकल स्ट्राइक किसके खिलाफ? कहा जा रहा है कि इस मामले में लश्करे तैयबा जैसे संगठन का हाथ है। हाथ
हो तब भी फौजी सहायता के बगैर यह सम्भव नहीं है, क्योंकि यह नियंत्रण रेखा का
मामला है, जहाँ तक फौज की निगाह में पड़े बगैर नहीं पहुँचा जा सकता। पर पूरे
तथ्यों को हासिल किए बगैर कोई बात कैसे कही जा सकती है।
पाकिस्तान ने कहा है कि वह इस मामले
की अंतरराष्ट्रीय जाँच कराने को तैयार है। पर भारत इसे ठीक नहीं समझता। दोनों
देशों की ओर से अभी तक तल्ख बयान नही आए हैं। इसके अलावा दोनों ओर से कहा गया है
कि हम अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाने की दिशा में काम करते रहेंगे। गुरुवार को
भारतीय सुरक्षा से जुड़ी कैबिनेट कमेटी की बैठक हुई। सामान्यतः इसकी बैठक के बाद
ब्रीफिंग नहीं होती। पर इसमें शामिल मंत्रियों और सुरक्षा सलाहकार के लग-अलग दिए
गए वक्तव्यों का मतलब इतना ही है कि सरकार इस घटना को तूल देना नहीं चाहती।
नियंत्रण रेखा पर अक्सर ऐसी घटनाएं हो जाती हैं। इन्हें सामान्य दुर्घटनाएं मान
लिया जाता है। अलबत्ता इस घटना के बाद यहाँ तैनात सैनिकों में रोष है। उस रोष को
समझने और समझाने की ज़रूरत है। सेना के सूत्र बताते हैं कि फौजियों के मन में यह इज्जत
का मामला बन गया है। फौजियों के मनोबल बनाए रखने की ज़रूरत है और यह काम उनके अधिकारियों
पर छोड़ना चाहिए, पर मीडिया को कोशिश करनी चाहिए कि मसले ऐसे मुकाम पर न पहुँचे
जहाँ से वापस लौटना मुश्किल हो जाए।
इस किस्म की तानाकशी नहीं होनी
चाहिए कि हम दब्बू देश हैं, कार्रवाई नहीं कर सकते वगैरह। ऐसी बातें जनता के
गुस्से को भड़काती हैं। ऐसा नहीं कि अतीत में हमने कार्रवाई न की हो। फिर यह भी
देखना होगा कि ताज़ा घटनाक्रम के पीछे पाकिस्तान सरकार या सेना की कोई साज़िश है
या यह अनायास हो गई घटना है। इस घटनाक्रम से सीमा पर माल से लदे तकरीबन 60 ट्रक
खड़े हो गए हैं, क्योंकि पाकिस्तान ने रास्ता बंद कर दा है। यह ऐहतियातन किया गया
है। पाकिस्तान के व्यापार मंत्री मकदूम अमीन फहीम इस महीने भारत आने वाले हैं और
भारत को तरजीही मुल्क का दर्जा देने के बारे में औपचारिक घोषणा करने वाले हैं। हाल
में दोनों देशों ने वीज़ा नियमों में बदलाव करके प्रक्रिया को आसान बनाया है।
नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के
जिस समझौते के उल्लंघन का आरोप इस वक्त दोनों देशों की सेनाएं लगा रहीं हैं, वह
2003 में लागू हुआ था। याद करें उसके पहले इस इलाके के गाँवों में सीमा के दोनों
ओर जीवन दूभर हो गया था। इस समझौते के कारण दोनों ओर जीवन सामान्य हुआ है। इसे फिर
से बिगाड़ कर दोनों देशों को कुछ नहीं मिलने वाला। आम धारणा है कि भारत को पाकिस्तान
अजली दुश्मन मानता है। उसका जन्म ही दुश्मनी बरतने के लिए हुआ है। इस बात में सत्य
का अंश है, पर केवल यही सत्य नहीं है। अंततः पाकिस्तान को भी बने रहना है। केवल
दुश्मनी के सहारे कोई जीवित नहीं रह सकता।सीमा के दोनों ओर ऐसी समझ वाले लोग हैं
जो मानते हैं कि आपस में मिल-जुलकर रहने से दोनों का फायदा है। पाकिस्तान की सेना
के लिए यह युद्ध का उचित समय नहीं है। वह अपने देश के पश्चिमी मोर्चे पर फँसी है।
उसे पूर्व में मोर्चा खोलकर क्या मिलेगा? यह
भी कहा जा रहा है कि वहाँ की सेना नागरिक सरकार पर हावी है। यह भी सच होगा, पर
सेना और नागरिक सरकार दोनों को अपने देश के हितों की कोई न कोई समझ होगी। हाल में
पाकिस्तानी सेना की नई अवधारणाएं बदलीं हैं। अब वे मानते हैं कि भारत नम्बर 1दुश्मन नहीं है। इसलिए सारे अनुमान हवा में नहीं लगाए जाने चाहिए। पाकिस्तान अपने
अंतर्विरोधों से घिरा हुआ है। हमें उसे इन अंतर्विरोधों का समाधान खोजने में मदद
करनी चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहाँ अस्थिरता होगी तो हमारे लिए भी
परेशानी खड़ी होगी। पाकिस्तान इस वक्त बदलाव के दौर में है। वहाँ यदि आधुनिकता की जीत हुई तो हमारे फायदे में ही होगी।
पाकिस्तान से आज जो खबरें आ रहीं है
वे परेशान करने वाली हैं। वहाँ बलूचिस्तान में जो बम धमाके हुए हैं उनमें मरने
वालों की तादाद 100 से भी ज्यादा है। सबसे ज्यादा लोग बलूचिस्तान प्रांत की
राजधानी क्वेटा में एक भीड़भाड़ वाले स्नूकर क्लब में हुए दोहरे बम धमाके में मारे
गए। मरने वालों में ज्यादातर शिया लोग हैं. एक सुन्नी चरमपंथी लश्कर-ए-झांगवी ने
इन हमले की जिम्मेदारी स्वीकारी है। कबायली इलाके स्वात घाटी में भी हुए विस्फोट में
20 से ज्यादा लोग मारे गए हैं।
सोशल मीडिया पर युद्द करो युद्ध करो के शोर में आपका यह लेख बहुत संतुलित है बधाई स्वीकारें ...इसे फेसबुक पर शेयर कर रहा हूँ !
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