ईरान पर अमेरिकी हमले के फौरी तौर पर दो अर्थ हैं. पहला यह कि इससे अब ईरान सहम जाएगा और पश्चिम एशिया में अमेरिकी धाक बनी रहेगी. वहीं दूसरा अर्थ है कि अमेरिका ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है, जो अंततः अमेरिकी पराभव का कारण बनेगा.
इन दो विपरीत परिस्थितियों के अलावा भी
संभावनाएँ हैं, जो शेष विश्व की प्रतिक्रिया और वैश्विक नेतृत्व की समझदारी पर
निर्भर करेंगी. इसमें चीन, रूस और यूरोपीय
संघ की भूमिकाएँ भी हैं. इस संकट के साथ फलस्तीन का भविष्य भी जुड़ा है. क्या
दुनिया फलस्तीन के समाधान के रास्ते खोज पाएगी? दूसरी बातों के अलावा हमें भारतीय प्रतिक्रिया का इंतज़ार भी रहेगा.
ईरान की तीन
नाभिकीय साइटों पर हमले के बाद रविवार को मीडिया को संबोधित करते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी
कि अगर शांति स्थापित नहीं हुई, तो ईरान की दूसरी साइटों को भी अमेरिका निशाना
बनाएगा. उन्होंने कहा, ईरान के लिए या तो शांति होगी या त्रासदी.
ट्रंप ने पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर ईरान से ‘बिना शर्त
आत्मसमर्पण’ करने का आह्वान किया था.
ट्रंप ने यह भी
कहा कि हमने इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ ‘एक टीम के रूप में’ काम किया है। इसके पहले शनिवार की रात, ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिकी सेना ने ईरान में तीन परमाणु स्थलों-फोर्डो, नतांज़ और इस्फ़हान पर हमला किया है. फ़ोर्डो में
पर्वतीय सुविधा और नतांज़ में संवर्धन संयंत्र ईरान के सबसे महत्वपूर्ण यूरेनियम
संवर्धन केंद्रों में से हैं.
इसरायली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ट्रंप को बधाई देते हुए कहा कि ईरान पर हमला करने का ट्रंप का फैसला ‘इतिहास बदल देगा.’ यह बमबारी ह्वाइट हाउस द्वारा यह कहे जाने के दो दिन बाद हुई कि ट्रंप इस तरह के हमले के बारे में दो सप्ताह के भीतर फैसला करेंगे. ह्वाइट हाउस के एक अधिकारी ने रविवार को कहा कि इसराइल के प्रधानमंत्री इन हमलों के बारे में जानते थे.