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Sunday, June 22, 2025

बर्र के छत्ते में हाथ या ईरान के अंत का प्रारंभ?


ईरान पर अमेरिकी हमले के फौरी तौर पर दो अर्थ हैं. पहला यह कि इससे अब ईरान सहम जाएगा और पश्चिम एशिया में अमेरिकी धाक बनी रहेगी. वहीं दूसरा अर्थ है कि अमेरिका ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है, जो अंततः अमेरिकी पराभव का कारण बनेगा.

इन दो विपरीत परिस्थितियों के अलावा भी संभावनाएँ हैं, जो शेष विश्व की प्रतिक्रिया और वैश्विक नेतृत्व की समझदारी पर निर्भर करेंगी. इसमें चीन,  रूस और यूरोपीय संघ की भूमिकाएँ भी हैं. इस संकट के साथ फलस्तीन का भविष्य भी जुड़ा है. क्या दुनिया फलस्तीन के समाधान के रास्ते खोज पाएगी? दूसरी बातों के अलावा हमें भारतीय प्रतिक्रिया का इंतज़ार भी रहेगा.

ईरान की तीन नाभिकीय साइटों पर हमले के बाद रविवार को मीडिया को संबोधित करते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी कि अगर शांति स्थापित नहीं हुई, तो ईरान की दूसरी साइटों को भी अमेरिका निशाना बनाएगा. उन्होंने कहा, ईरान के लिए या तो शांति होगी या त्रासदी. ट्रंप ने पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर ईरान से बिना शर्त आत्मसमर्पण करने का आह्वान किया था.

ट्रंप ने यह भी कहा कि हमने इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ एक टीम के रूप में काम किया है। इसके पहले शनिवार की रात, ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिकी सेना ने ईरान में तीन परमाणु स्थलों-फोर्डो, नतांज़ और इस्फ़हान पर हमला किया है. फ़ोर्डो में पर्वतीय सुविधा और नतांज़ में संवर्धन संयंत्र ईरान के सबसे महत्वपूर्ण यूरेनियम संवर्धन केंद्रों में से हैं.

इसरायली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ट्रंप को बधाई देते हुए कहा कि ईरान पर हमला करने का ट्रंप का फैसला इतिहास बदल देगा. यह बमबारी ह्वाइट हाउस द्वारा यह कहे जाने के दो दिन बाद हुई कि ट्रंप इस तरह के हमले के बारे में दो सप्ताह के भीतर फैसला करेंगे. ह्वाइट हाउस के एक अधिकारी ने रविवार को कहा कि इसराइल के प्रधानमंत्री इन हमलों के बारे में जानते थे.

ईरान जवाब देगा?

ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन ने एक बयान जारी कर पुष्टि की कि ईरान के तीन परमाणु स्थलों पर "इस्लामिक ईरान के दुश्मनों द्वारा परमाणु अप्रसार संधि सहित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध हिंसक हमला किया गया." एजेंसी ने कहा कि वह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों में संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी और ईरान का परमाणु कार्यक्रम जारी रहेगा.

इस हमले के कारण पहाड़ की गहराई में स्थित संवर्धन स्थल फोर्डो तथा दो अन्य ईरानी परमाणु स्थलों पर अमेरिकी हमले से ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह तबाह तो नहीं होगा, लेकिन ईरान युद्ध को और व्यापक बना सकता है या कार्यक्रम में तेजी ला सकता है.

धार्मिक सत्ता

इन हमलों के ईरान में अप्रत्याशित परिणाम होंगे या नहीं यह भी देखना है. देश की धार्मिक-सत्ता ने, जिसने 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से लगभग आधी सदी तक शासन किया है, ने कई घरेलू विद्रोहों के बावजूद अपनी स्थिरता साबित की है. आर्थिक प्रतिबंधों और तीव्र अमेरिकी दबाव के बावजूद उसने अपनी जीवनी-शक्ति को साबित किया है.

13 जून को अचानक इसराइली हमला होने के पहले ईरान और अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम की सीमाओं पर चर्चा कर रहे थे. ईरान परमाणु हथियारों के लिए आवश्यक स्तर के करीब ईंधन का उत्पादन तेजी से कर रहा था. इस वार्ता के तहत ईरान के नाभिकीय-कार्यक्रम पर नई सीमाओं के बदले में, उसे आर्थिक प्रतिबंधों से राहत मिलती.

समझौते की राह

हालांकि दोनों पक्ष किसी अंतिम समझौते के करीब नहीं थे, लेकिन जून की शुरुआत में संभावित समझौते के संकेत भी सामने आए थे. जब इसराइल ने ईरान पर हमला किया, तो वार्ता विफल हो गई. फिर भी, ईरान ने संकेत दिया है कि वह बातचीत करने के लिए तैयार है. अब भी लगता है कि अमेरिकी हमला भी जरूरी नहीं कि दोनों पक्षों के बातचीत की मेज पर लौटने की संभावनाओं को खत्म कर दे.

विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी और इसराइली हवाई हमलों से परमाणु सुविधाओं को जो नुकसान पहुँचा है और शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या हुई है, उसके कारण ईरान में शायद परमाणु हथियार बनाने की क्षमता नहीं है. फिर भी, वह उस दिशा में आगे बढ़ सकता है और ऐसा करने के लिए उसे बाहर से मदद भी मिल सकती है.

सभी की निगाहें फ़ोर्डो पर टिकी हैं. लेकिन यह संभव है कि ईरान के पास गुप्त परमाणु स्थल हों जिनका उद्देश्य हथियार बनाना हो, जिसके बारे में अमेरिका और इसराइल को पता न हो, हालांकि ऐसे स्थानों के बारे में कोई सार्वजनिक सबूत सामने नहीं आया है. यदि वे हैं, तो ईरान अमेरिकी हमले के मद्देनजर अपने परमाणु कार्यक्रम को गति देने के लिए अपने पास बचे हुए संसाधनों का उपयोग कर सकता है.

ईरानी परहेज़

हालाँकि ईरान ने अभी तक इसराइली हमलों का जवाब मिसाइल-प्रहारों से दिया है, लेकिन उसने पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैनिकों या ठिकानों पर हमला करने से परहेज़ किया है. उसने सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगी अरब देशों पर भी हमला नहीं किया है. अलबत्ता दक्षिण में एक महत्वपूर्ण तेल शिपिंग चैनल, होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करके या उसमें यातायात को बाधित करके वैश्विक तेल की कीमतों में तेजी जरूर पैदा कर दी है, जो अब अमेरिकी हमले के बाद और ऊँची जाएगी.

शुक्रवार को ईरानी विदेशमंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा कि अगर अमेरिका ईरान पर हमला करेगा, तो देश को जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार है, जैसा कि उसने इसराइल के खिलाफ किया है. "जब युद्ध होता है, तो दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हमला करते हैं. यह काफी समझ में आता है. और आत्मरक्षा हर देश का वैध अधिकार है," उन्होंने एनबीसी न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में कहा .

इस क्षेत्र में ईरान के सहयोगी मिलीशिया, जिनमें यमन में हूती, लेबनान में हिज़बुल्ला और इराक के सशस्त्र समूह, लड़ाई में शामिल नहीं हुए हैं. पिछले दो साल में उनमें से कई गंभीर रूप से कमज़ोर हो गए हैं, फिर भी वे ईरानी सहयोगी लड़ाई में शामिल हो सकते हैं.

शासन परिवर्तन की चर्चा

यदि ईरान के सर्वोच्च नेता की हत्या भी कर दी जाए, तो भी धार्मिक-सैन्य प्रतिष्ठान, जिसने लगभग पाँच दशकों से ईरान की सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत रखी है, शायद नहीं गिरेगा. ईरानी सेना की सबसे शक्तिशाली शाखा इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर देश पर नियंत्रण कर सकती है. वे पश्चिमी देशों के अनुकूल सरकार बना सकते हैं.

संभावना यह भी है कि आयतुल्ला अली खामनेई की जगह कोई और ज़्यादा चरमपंथी व्यक्ति देश का नेतृत्व करके लंबी लड़ाई का आधार तैयार करे. ऐसी लड़ाई के लिए भी बाहरी सहायता चाहिए. चीन और रूस उसके साथ हैं, पर वे लंबी कट्टरपंथी लड़ाई में साथ नहीं दे पाएँगे. उनकी दिलचस्पी भी कारोबार और व्यापार में है.

ईरानी सेना जल्दी से खुद को मजबूत नहीं करेगी, तो कुछ विश्लेषकों को डर है कि ईरान अराजकता या गृहयुद्ध में फँस सकता है क्योंकि विभिन्न गुट नियंत्रण के लिए संघर्ष करते हैं. वहीं ईरान के उदार विपक्ष के मजबूत होने की  संभावना बहुत कम नज़र आती, जिसे शासन ने दबाकर काफी कमजोर कर दिया है.

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