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Friday, March 29, 2024

समस्या राजनीतिक-वंशवाद से ज्यादा ‘राजवंशवाद’ की है


लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और इसके साथ ही परिवारवाद या वंशवाद की बहस फिर से चल निकली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कई बार वंशवाद की आलोचना करते हुए कहा है कि राजनीति में नए लोगों को आना चाहिए.

राजनीति में नए लोगों का आना यानी पोलिटिकल रिक्रूटमेंट ऐसा विषय है, जिसपर हमारे देश में ज्यादा विचार नहीं हुआ है. हमने मान लिया है कि कोई राजनीति में है, तो कम से कम उसका एक बेटा या बेटी को राजनीति में जाना ही है. इसे समझना होगा कि नए लोग राजनीति में कैसे आते हैं, क्यों आते हैं और वे सफल या विफल क्यों होते हैं?

दुनिया में लोकतंत्र अपेक्षाकृत नई व्यवस्था है. राजतंत्र और सामंतवाद आज भी कई देशों में कायम है और हम अभी संक्रमणकाल से गुज़र रहे हैं. लोकतंत्र अपनी पुष्ट संस्थाओं के सहारे काम करता है. विकसित लोकतांत्रिक-व्यवस्थाओं में भी भाई-भतीजावाद, दोस्त-यारवाद, वंशवाद, परिवारवाद वगैरह मौज़ूद है, जिसका मतलब है मेरिट यानी काबिलीयत की उपेक्षा. जो होना चाहिए, उसका न होना.   

वंशवाद पर मोदी जब हमला करते हैं, तब सबसे पहले उनके निशाने पर नेहरू-गांधी परिवार होता है. इसके बाद वे तमिलनाडु के करुणानिधि, बिहार के लालू और यूपी के मुलायम परिवार वगैरह को निशाना बनाते हैं. इस बात से ध्यान हटाने के लिए जवाब में मोदी की पार्टी पर भी प्रहार होता है.

बीजेपी के घराने

हाल में बीजेपी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी होने के बाद किसी ने ट्वीट किया: प्रेम धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर, बीएस येदियुरप्पा के पुत्र राघवेंद्र, रवि सुब्रमण्य के भतीजे तेजस्वी सूर्या, वेद प्रकाश गोयल के बेटे पीयूष गोयल, एकनाथ खडसे की पुत्रवधू रक्षा खडसे, गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे, बालासाहेब विखे पाटील के पौत्र और राधाकृष्ण विखे के पुत्र सुजय को टिकट मिला है.

Thursday, March 28, 2024

जोखिमों से घिरी पाकिस्तान की नई सरकार


पाकिस्तान में नई सरकार बन जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान, ईरान की सीमा और बलोचिस्तान से चिंताजनक खबरें आई हैं. देश की स्थिरता के जुड़े कम से कम तीन मसलों ने ध्यान खींचा है. ये हैं अर्थव्यवस्था, विदेश-नीति और आंतरिक तथा वाह्य सुरक्षा. गत 26 मार्च को खैबर-पख्तूनख्वा में एक काफिले पर हुए हमले में पाँच चीनी इंजीनियरों की मौत ने भी पाकिस्तान को हिला दिया है.

इन सब बातों के अलावा सरकार पर आंतरिक राजनीति का दबाव भी है, जिससे वह बाहर निकल नहीं पाई है. शायद इसी वजह से पिछले हफ्ते 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस समारोह में वैसा उत्साह नहीं था, जैसा पहले हुआ करता था. चुनाव के बाद राजनीतिक स्थिरता वापस आती दिखाई पड़ रही है, पर निराशा बदस्तूर है. इसकी बड़ी वजह है आर्थिक संकट, जिसने आम आदमी की जिंदगी में परेशानियों के पहाड़ खड़े कर दिए हैं.

कई तरह के संकटों से घिरी पाकिस्तान सरकार की अगले कुछ महीनों में ही परीक्षा हो जाएगी. इनमें एक परीक्षा भारत के साथ रिश्तों की है. हाल में देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सभी राजनीतिक दलों से मौजूद समस्याओं से निपटने के लिए मतभेदों को दरकिनार करने का आग्रह किया है.

अब वहाँ के विदेशमंत्री मोहम्मद इसहाक डार ने कहा है कि हम भारत से व्यापार को बहाल करने पर ‘गंभीरता’ से विचार कर रहे हैं. यह महत्वपूर्ण इशारा है. ब्रसेल्स में परमाणु ऊर्जा शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद डार ने लंदन में शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में बात कही. उन्होंने कहा, पाकिस्तानी कारोबारी चाहते हैं कि भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू हो. हम इसपर विचार कर रहे हैं.

Monday, March 25, 2024

रंगों के इस पर्व को सार्थक भी बनाएं


पिछला हफ्ता राजनीतिक तूफानों का था तो यह हफ्ता होली का है। गिले-शिकवे मिटाने का पर्व। केवल गिले-शिकवों की बात ही नहीं है, होली हमें ऊँच-नीच की भावनाओं से भी दूर ले जाती है। वह मनुष्य-मात्र की एकता का संदेश देती है। इस दिन हम सबको गले लगाते हैं। उसकी जाति-धर्म, अमीर-गरीबी देखे बगैर। इसका मतलब है हुड़दंग,
मस्ती और ढेर सारे रंग। हम अपने पर्वों और त्योहारों में उस जीवन-दर्शन को खोज सकते हैं, जो हजारों वर्षों की विरासत है।

इसके पहले कि इस विरासत की परिभाषा बदले, उसे अक्षुण्ण बनाने के प्रयास भी होने चाहिए। दुर्भाग्य से होली के साथ भी कुछ फूहड़ बातें जुड़ गईं हैं, जिन्हें दूर करने का प्रयास होना चाहिए। परंपराओं के साथ नवोन्मेष और विरूपण दोनों संभावनाएं जुड़ी होती हैं। आधुनिक जीवन और शहरीकरण के कारण इनके स्वरूप में बदलाव आता है। पर मूल-भावना अपनी जगह है। बाजारू संस्कृति ने इस आनंदोत्सव को कारोबारी रूप दिया है। वहीं कल्याणकारी भावनाएं इसे सकारात्मक रास्ते पर ले जा सकती है, बशर्ते वे कमज़ोर न हों।  

संयोग से होली के इस आनंदोत्सव के दौर के साथ हम लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव भी मना रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय लोकतंत्र है। यह लोकतंत्र यदि 130 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या के जीवन में खुशहाली लाने का काम करने में कामयाब हो गया, तो यह हमारे लिए सबसे बड़े गौरव की बात होगी। विचार करें कि क्या आप अपने इस पर्व का लोकतंत्र के पर्व को सही रास्ता दिखाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। क्या ऐसा करेंगे?

Saturday, March 23, 2024

पहले चुनाव में हुए थे, मतदान के 68 चरण

पहले आम चुनाव में 25 अक्तूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक मतदान के कुल 68 चरण हुए थे। पहले आम चुनाव के बाद चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सबसे ज्यादा समय पंजाब में लगा, जहाँ केवल होशियारपुर चुनाव-क्षेत्र का मतदान होने में ही 25 दिन लगे। ज्यादातर मतदान 1952 में हुआ, पर, मौसम को देखते हुए सबसे पहले 1951 में  चुनाव का पहला वोट 25 अक्तूबर, को हिमाचल प्रदेश की चीनी और पांगी में सबसे पहले मतदान हुआ। उस समय परिवहन की स्थिति यह थी कि मतदान के बाद चुनाव क्षेत्र के मुख्यालय चंबा और कसुंपटी तक मतपेटियों को लाने में एक हफ्ता लगा।

हर पार्टी के अलग बैलट बॉक्स

इन दिनों चुनाव ईवीएम मशीनों के माध्यम से होते हैं, पर इसके पहले बैलट के माध्यम से होते थे। इन मतपत्रों पर सभी प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिह्न होते थे। मतदाता, जिसे चुनना चाहता था उसके सामने मुहर लगाता था। उसके बाद मतपत्र को एक बक्से में डाल दिया जाता था, जिसे बैलेट बॉक्स कहते थे।

देश में सबसे पहले जो चुनाव हुए उसमें भी बैलट बॉक्स होते थे, पर वे कुछ अलग थे।
उस दौर में हरेक प्रत्याशी के लिए अलग बैलट बॉक्स होते थे, जिनपर चुनाव चिह्न होते थे. मतदाता को अपनी पसंद के प्रत्याशी के बक्से में मतपत्र डालना होता था। पहले लोकसभा चुनाव में करीब 25 लाख बैलट बॉक्स का इस्तेमाल किया गया। इन बक्सों में विशेष तरह के ताले का प्रयोग किया गया था। यह व्यवस्था इसलिए क गई थी ताकि बॉक्स को खोल कर वोट से छेड़छाड़ कर पुनः बंद न किया जा सके।

पहले आम चुनावों के लिए बैलट बॉक्स की यह व्यवस्था अव्यावहारिक लगी, क्योंकि कुछ चुनाव क्षेत्रों में प्रत्याशियों की संख्या काफी ज्यादा थी। अब तो कई बार पचास या उससे भी ज्यादा प्रत्याशी होने लगे हैं। हरेक बूथ में इतने ज्यादा बक्सों की व्यवस्था करना बहुत मुश्किल है। इसलिए 1957 के दूसरे चुनाव से व्यवस्था बदल दी गई और मतपत्र पर सभी प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिह्न होने लगे। मतदाता किसी एक प्रत्याशी को वोट देकर एक सामान्य बक्से में उसे डालने लगा।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 23 मार्च, 2024 को प्रकाशित


Thursday, March 21, 2024

चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि बागपत


दिल्ली और हरियाणा की सीमा से सटे बागपत की धरती जाट-राजनीति का केंद्र है.  पहले यह क्षेत्र मेरठ का हिस्सा हुआ करता था. इस लोकसभा क्षेत्र में पाँच विधानसभा क्षेत्र आते हैं. बागपत, बड़ौत, छपरौली, मोदीनगर और सिवालखास.

इस सीट को चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि कहा जाता है, जिन्हें हाल में भारत सरकार ने  भारत रत्न अलंकरण से सम्मानित करने की घोषणा की है. पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की पहचान भूमिधर किसानों के नेता, महात्मा गांधी के अनुयायी और खेती से जुड़ी अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ के तौर पर रही है. उनकी आधा दर्जन से ज्यादा किताबें इसका प्रमाण हैं. साफगोई उनकी दूसरी विशेषता रही है. कांग्रेस में रहते हुए भी वे जवाहर लाल नेहरू की आर्थिक-नीतियों के आलोचक थे.

भारतीय राजनीति में, खासतौर से सामाजिक-न्याय से जुड़ी ताकतों को, मुखर करने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही. साठ के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने चौधरी कुंभाराम आर्य के साथ मिलकर भारतीय क्रांति दल की स्थापना की थी, जिसकी उत्तराधिकारी पार्टी भारतीय लोकदल थी, जिसके चुनाव चिह्न पर 1977 में जनता पार्टी ने चुनाव लड़ा.

पूरा थाना सस्पेंड

चौधरी चरण सिंह कठोर प्रशासक और अड़ियल राजनेता के रूप में वे प्रसिद्ध रहे हैं. उनसे जुड़ा एक प्रकरण काफी चर्चित है. 1979 में जब वे प्रधानमंत्री थे, एक व्यक्ति की शिकायत पर अचानक शाम को यूपी के इटावा में अकेले और फटेहाल, मजबूर किसान के रूप में एक थाने में पहुँचे और कहा, जेब कतरी की रपट लिखवानी है.

Wednesday, March 20, 2024

मुस्लिम-बहुल रामपुर में बीजेपी ने झंडा फहराया


पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रामपुर शहर रूहेलखंड की संस्कृति का केंद्र और नवाबों की नगरी रहा है. एक दौर में अफगान रूहेलों के आधिपत्य के कारण इस इलाके को रूहेलखंड कहा जाता है. रोहिल्ला वंश के लोग पश्तून हैं; जो अफगानिस्तान से उत्तर भारत में आकर बसे थे. रूहेलखंड सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध क्षेत्र रहा है. साहित्य, रामपुर घराने का शास्त्रीय संगीत, हथकरघे की कला, और बरेली के बाँस का फर्नीचर इस इलाके की विशेषताएं हैं. अवध के नवाबों की तरह रामपुर के नवाबों की तारीफ गंगा-जमुनी संस्कृति को बढ़ावा देने के कारण होती है.

रूहेलखंड का एक महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र है रामपुर, जहाँ से 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में देश के पहले शिक्षामंत्री अबुल कलाम आज़ाद जीतकर आए थे. मौलाना आज़ाद के अलावा कालांतर में रामपुर नवाब खानदान के सदस्यों से लेकर फिल्म कलाकार जयाप्रदा और खाँटी ज़मीनी नेता आजम खान तक ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है.

सपा नेता आजम खां का कभी रामपुर में इतना दबदबा था कि जनता ही नहीं,  बड़े सरकारी अफसर भी उनसे खौफ खाते थे। उनकी दहशत के किस्से इस इलाके के लोगों की ज़ुबान पर हैं. बताते हैं कि एक अफसर उनकी डाँट के कारण उनके सामने ही गश खा गया. वक्त की बात है कि आज आजम खान और जयाप्रदा जैसे सितारों के सितारे गर्दिश में हैं.  

अबुल कलाम आज़ाद

इस सीट से 1952 में पहली बार कांग्रेस के मौलाना अबुल कलाम आज़ाद लोकसभा में गए थे. हालांकि उनका परिवार कोलकाता में रहता था, पर उन्हें रामपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया. उनका मुकाबला हिंदू महासभा के बिशन चंद्र सेठ से हुआ. उस चुनाव में कुल दो प्रत्याशी ही मैदान में थे. मौलाना आज़ाद को कुल 108180 यानी 54.57 प्रतिशत और उनके प्रतिस्पर्धी को 73427 यानी कि कुल 40.43 प्रतिशत वोट मिले.

नागरिकता कानून पर देशी-विदेशी आपत्तियों के निहितार्थ


भारत के नागरिकता कानून को लेकर देश और विदेश दोनों जगह प्रतिक्रियाएं हुई हैं. हालांकि ये प्रतिक्रियाएं उतनी तीखी नहीं हैं, जितनी 2019 में कानून के संशोधन प्रस्ताव के संसद से पास होने के समय और उसके बाद की थीं, पर उससे जुड़े सवाल तकरीबन वही हैं, जो उस समय थे.

उस समय देश में विरोध प्रदर्शनों का अंत दिल्ली दंगों की शक्ल में हुआ था, जिनमें 53  लोगों की मौत हुई थी. उसके बाद ही उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चलाए गए. तब की तुलना में आज देश के भीतर माहौल अपेक्षाकृत शांत है.

मंगलवार 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई और अदालत ने तत्काल इस कानून के कार्यान्वयन पर स्थगनादेश जारी नहीं किया. उसने सरकार को नोटिस जारी किया है और अब अगली सुनवाई 9 अप्रेल को होगी.

वस्तुतः नागरिकता कानून को लागू करने से जुड़ी व्यवस्थाएं भी अभी पूरी नहीं हुई हैं, इसलिए तत्काल इस दिशा में ज्यादा कुछ होने की संभावना नहीं है. उम्मीद है कि अदालत आम लोगों की चिंताओं का निराकरण करेगी. अलबत्ता कुछ विदेशी-प्रतिक्रियाओं पर भी ध्यान देना चाहिए.  

Tuesday, March 19, 2024

एक-दूसरे को नई पहचान दी, वाराणसी व मोदी ने


वाराणसी को आप देश की सबसे प्रमुख लोकसभा सीट मान सकते हैं. वहाँ से नरेंद्र मोदी दो बार जीतकर प्रधानमंत्री बने हैं. मोदी के जीवन में वाराणसी की और वाराणसी नगर के आधुनिक इतिहास में, मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका है.

दुनिया प्राचीनतम नगरों में एक शिव की यह नगरी हिंदुओं के महत्वपूर्ण तार्थस्थलों में एक है. देश के हरेक कोने से तीर्थयात्री यहाँ आते हैं. अब यह भारत की राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र है.

2014 के चुनाव में मोदी ने इस चुनाव-क्षेत्र को अपनाया, तो इसके अनेक मायने थे. देश और विदेश का हिंदू समाज वाराणसी की ओर देखता है. इसे सामाजिक-मोड़ दिया जा सकता है. माँ गंगा और बाबा विश्वनाथ के उद्घोष से एक नई सांस्कृतिक चेतना जगाई जा सकती है.

2014 के चुनाव परिणाम आने के पहले तक अनेक पर्यवेक्षकों को लगता था कि त्रिशंकु संसद भी बन सकती है. हालांकि ज्यादातर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण यह भी कह रहे थे कि एनडीए को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी, पर पूर्ण बहुमत का अनुमान बहुत कम को था.

उत्तर प्रदेश की भूमिका

एनडीए और खासतौर से बीजेपी को मिली जीत अप्रत्याशित थी. इसमें सबसे बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश की थी, जहाँ की 80 में से 73 सीटें एनडीए को मिलीं. इनमें से 71 बीजेपी के नाम थीं. उत्तर प्रदेश की इस ऐतिहासिक सफलता ने राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा उलट-फेर कर दिया.

जून 2013 में गोवा में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे. इसके पहले पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अमित शाह को पार्टी का महामंत्री बनाया और उत्तर प्रदेश का प्रभारी.

अमित शाह को अच्छा चुनाव प्रबंधक माना जाता था, पर उस समय तक उनका अनुभव केवल गुजरात का था. यूपी गुजरात के मुकाबले बड़ा प्रदेश तो था ही, साथ में वहाँ के पार्टी संगठन की दिलचस्पी नरेंद्र मोदी में कम थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी को उत्तर प्रदेश में प्रचार के लिए बुलाया भी नहीं गया. उस चुनाव में बीजेपी को भारी विफलता का सामना करना पड़ा था.

Thursday, March 14, 2024

अलग राजनीतिक मिज़ाज का शहर लखनऊ


लोकसभा क्षेत्र: 
लखनऊ  

रायबरेली और अमेठी क अलावा मध्य उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में लखनऊ को वीआईपी सीट माना जाता है. यहाँ से चुने गए ज्यादातर राजनेताओं की पहचान राष्ट्रीय-स्तर पर होती रही है. इनमें विजय लक्ष्मी पंडित, हेमवती नंदन बहुगुणा, अटल बिहारी वाजपेयी और राजनाथ सिंह जैसे नाम शामिल हैं.

इस शहर की खासियत है कि वह जब किसी में कुछ खास बात देख लेता है, तो उसका मुरीद हो जाता है. नवाबी दौर में उसने तमाम मशहूर शायरों, गायकों, संगीतकारों और यहाँ तक कि खान-पान विशेषज्ञों तक को अपने यहाँ बुलाकर रखा. पिछले 72 साल में इस चुनाव-क्षेत्र ने जिन 12 प्रत्याशियों को लोकसभा भेजा है, उन सबमें कोई खास बात उसने देखी, तभी उन्हें चुना.

आनंद नारायण मुल्ला

सच है कि राजनीति के मैदान में तमाम फैक्टर काम करते हैं, फिर भी लखनऊ का लोकतांत्रिक अंदाज़े बयां कुछ और है. यह बात मैंने 1967 के लोकसभा चुनाव में देखी, जो इस शहर के लोकतांत्रिक-मिजाज के साथ मेरा पहला अनुभव था. उस साल यहाँ से निर्दलीय प्रत्याशी आनंद नारायण मुल्ला जीते, जो हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रह चुके थे और अपने दौर के नामचीन शायर थे.   

1967 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के वीआर मोहन और जनसंघ के आरसी शर्मा को हराया. उनके सामने खड़े दोनों प्रत्याशियों के पास संगठन-शक्ति थी, साधन थे. मुल्ला के पास जनता का समर्थन था. लखनऊ की खासियत है उसका गंगा-जमुनी मिजाज.

लंबे अरसे से लखनऊ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों को जिताकर लोकसभा में भेज रहा है, पर जीतने वाले कट्टर हिंदूवादी नहीं हैं. और यह लखनऊ की सिफत है कि यहाँ के मुसलमान मतदाताओं का एक बड़ा तबका अटल बिहारी वाजपेयी, लालजी टंडन और राजनाथ सिंह को वोट देता रहा है.

Wednesday, March 13, 2024

अफ़ग़ान-प्रशासन के साथ जुड़ते भारत के तार

 


देस-परदेस

अरसे से हमारा ध्यान अफ़ग़ानिस्तान की ओर से हट गया है, पर पिछले गुरुवार 7 मार्च को एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की, तो एकबारगी नज़रें उधर गई हैं. चीन, रूस, अमेरिका और पाकिस्तान समेत विश्व समुदाय के साथ तालिबान के संपर्कों को लेकर भी उत्सुकता फिर से जागी है.

तालिबानी सत्ता क़ायम होने के बाद भारत ने अफ़ग़ान नागरिकों को वीज़ा जारी करना बंद कर दिया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में उसने आश्चर्यजनक तरीके से काबुल के साथ संपर्क स्थापित किया है.

अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबानी शासन की स्थापना के बाद पिछले दो-ढाई साल में भारतीय अधिकारियों के दो शिष्टमंडल अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा कर चुके हैं. जून, 2022 में काबुल में भारत का तकनीकी मिशन खोला गया, जो मानवीय कार्यक्रमों का समन्वय करता है.

पिछले गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी जेपी सिंह ने तालिबान के विदेशी मामलों को प्रभारी (वस्तुतः विदेशमंत्री) आमिर खान मुत्तकी तथा अन्य अफ़ग़ान अधिकारियों के साथ बातचीत की. प्रत्यक्षतः यह मुलाकात मानवीय सहायता के साथ-साथ अफ़ग़ान व्यापारियों द्वारा चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल पर भी हुई.

कंधार दफ्तर खुलेगा?

तालिबान-प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि ने अफ़ग़ान व्यापारियों को वीज़ा जारी करने के लिए जरूरी व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है. इससे क़यास लगाया जा रहा है कि कंधार में भारत अपना वाणिज्य दूतावास खोल सकता है. अफ़ग़ानिस्तान ने कारोबारियों, मरीज़ों और छात्रों को भारत का वीज़ा देने का अनुरोध किया है.

कांग्रेस के सीने पर अमेठी का जख़्म


लोकसभा क्षेत्र: अमेठी

रायबरेली से सोनिया गांधी के हट जाने के बाद दूसरा बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी भी अमेठी को छोड़ेंगे?  2019 के चुनाव से इतना स्पष्ट जरूर हो गया था कि पार्टी को अब अमेठी पर पूरा भरोसा नहीं है, इसीलिए राहुल के लिए केरल की वायनाड सीट खोजी गई. स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी में मिली हार ने पार्टी का मनोबल तोड़कर रख दिया है.

सोमवार 19 फरवरी को राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों अमेठी में थे. उस मौके पर स्मृति ईरानी ने कहा कि 2019 में राहुल ने अमेठी को छोड़ा था, आज अमेठी ने उन्हें छोड़ दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि वे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं तो वायनाड जाए बिना अमेठी से (चुनाव) लड़कर दिखाएं.

संभव है कि राहुल गांधी सामना करने को तैयार भी हो जाएं, पर वे वायनाड या किसी दूसरी सेफ सीट के बगैर ऐसा नहीं करेंगे. संभव है परिवार का कोई सदस्य यहाँ से चुनाव लड़े. राहुल गांधी की भारत-जोड़ो न्याय-यात्रा अमेठी से भी होकर गुज़री है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि यहाँ के लोग रायबरेली और अमेठी से केवल परिवार के ही किसी सदस्य को देखना चाहते हैं. वे 2019 की गलती को सुधारना चाहते हैं.

दूसरी ओर स्मृति ईरानी दुगने उत्साह के साथ मैदान में हैं. जिस दिन राहुल गांधी की यात्रा अमेठी पहुँची, उसी रोज उन्होंने भी अपना कार्यक्रम यहाँ रखा. वे चार दिन अमेठी में रहीं. यहाँ से चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी अपने नए संसदीय क्षेत्र वायनाड तो कई बार गए हैं, लेकिन उन्होंने अमेठी आना छोड़ दिया. दूसरी तरफ भाजपा ने तेजी से अपने संगठन का विस्तार किया है. स्मृति ईरानी अपने कार्यकर्ताओं के संपर्क में लगातार बनी रहती हैं.

Tuesday, March 12, 2024

नेहरू-गांधी परिवार के ‘गढ़’ में दरार


 लोकसभा क्षेत्र: रायबरेली

1977 के लोकसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था. एक शाम हमारे रायबरेली संवाददाता ने खबर दी कि आज एक चुनाव सभा में राजनारायण ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा को इंदिरा गांधी और संजय गांधी की निशानी बताया है. खबर बताने वाले ने राजनारायण के अंदाज़े बयां का पूरी नाटकीयता से विवरण दिया था. बावजूद इसके कि इमर्जेंसी उस समय तक हटी नहीं थी और पत्रकारों के मन का भय भी कायम था. बताने वाले को पता था कि जरूरी नहीं कि वह खबर छपे.

उस समय मीडिया भी क्या था, सिर्फ अखबार, जिनपर संयम की तलवार थी. सवाल था कि इस खबर को हम किस तरह से छापें. बहरहाल वह खबर बीबीसी रेडियो ने सुनाई, तो बड़ी तेजी से चर्चित हुई. मुझे याद नहीं कि अखबार में छपी या नहीं. वह दौर था, जब खबरें अफवाहें बनकर चर्चित होती थीं. मुख्यधारा के मीडिया में उनका प्रवेश मुश्किल होता था. चुनाव जरूर हो रहे थे, पर बहुत कम लोगों को भरोसा था कि कांग्रेस हारेगी.

इंदिरा गांधी का चुनाव

रायबरेली पर पूरे देश की निगाहें थीं. चुनाव परिणाम की रात लखनऊ के विधानसभा मार्ग पर स्थित पायनियर लिमिटेड के दफ्तर के गेट पर हजारों की भीड़ जमा थी. दफ्तर के बाहर बड़े से बोर्ड पर एक ताज़ा सूचनाएं लिखी जा रही थीं. गेट के भीतर उस ऐतिहासिक बिल्डिंग के दाएं छोर पर पहली मंजिल में हमारे संपादकीय विभाग में सुबह की शिफ्ट से आए लोग भी देर रात तक रुके हुए थे.

बाहर की भीड़ जानना चाहती थी कि रायबरेली में क्या हुआ. शुरू में खबरें आईं कि इंदिरा गांधी पिछड़ रही हैं, फिर लंबा सन्नाटा खिंच गया. कोई खबर नहीं. उस रात की कहानी बाद में पता लगी कि किस तरह से रायबरेली के तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट विनोद मल्होत्रा ने अपने ऊपर पड़ते दबाव को झटकते हुए इंदिरा गांधी की पराजय की घोषणा की. बहरहाल रायबरेली और वहाँ के डीएम का नाम इतिहास में दर्ज हो गया.

मोदी का निशाना

इंदिरा गांधी की उस ऐतिहासिक पराजय के 47 साल बाद सत्रहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदा की भांति परिवार-केंद्रित कांग्रेस पार्टी पर निशाना लगाते हुए कहा, एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान पर ताला लगने की नौबत आ गई है.

Thursday, March 7, 2024

पाकिस्तान-भारत रिश्तों में सुधार की आहट और अंदेशे


पाकिस्तान में नई गठबंधन सरकार बन गई है, जिसके प्रधानमंत्री पद पर पीएमएल (नून) के शहबाज़ शरीफ चुन लिए गए हैं और पूरी संभावना है कि 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में पीपीपी के आसिफ अली ज़रदारी चुन लिए जाएंगे. क्या इस बदलाव से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी बदलाव आएगा?

बाहरी सतह पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिससे कहा जा सके कि अब भारत-पाकिस्तान रिश्ते सुधरेंगे. दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज़ शरीफ ने जो पहला बयान दिया है, उसमें भी ऐसी कोई बात नहीं कही है. अलबत्ता पाकिस्तान की ओर से चीजों को सामान्य बनाने के कुछ संकेत मिले हैं.

इस सरकार को सेना का समर्थन भी हासिल है, इसलिए माना जा रहा है कि भारत के साथ रिश्तों में सरकारी विसंगतियाँ कम होंगी. फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्ते इसलिए सुधर जाएंगे, क्योंकि वहाँ नवाज़ शरीफ फिर से ताकतवर हो गए हैं. रिश्ते तभी सुधरेंगे, जब शांति-स्थापना की समझदारी पक्के तौर पर जन्म ले लेगी. या फिर मजबूरियाँ ऐसे मोड़ पर आ जाएंगी, जहाँ से निकलने का रास्ता ही नहीं बचेगा. 

संबंध-सुधार की धीमी गति

पाकिस्तान में भारत से दोस्ती की बात करना राजनीतिक-दृष्टि से आत्मघाती माना जाता है. नवाज़ शरीफ एकबार इसके शिकार हो चुके हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा उम्मीद यही की जा सकती है कि नई सरकार इस मामले में बड़े जोखिम उठाने के बजाय धीरे-धीरे रिश्ते बेहतर बनाने का प्रयास करेगी. बहुत कुछ दोनों देशों के मीडिया-कवरेज पर भी निर्भर करेगा.

Saturday, March 2, 2024

बीजेपी की पहली सूची जारी

 


भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए 195 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है। इस सूची में 34 नाम ऐसे हैं, जो केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य हैं। इसमें वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गांधी नगर से अमित शाह, लखनऊ से राजनाथ सिंह, नागपुर से नितिन गडकरी चुनाव लड़ेंगे। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का नाम इस लिस्ट में शामिल हैं। वहीं पहली सूची में 28 महिला उम्मीदवारों को नाम है। इसके साथ ही 50 से कम उम्र के 47 उम्मीदवारों का नाम ऐलान किया है।

बीजेपी के उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में अजा के 27, अजजा के 18 और ओबीसी के 57 उम्मीदवार हैं। इसमें यूपी से 51, बंगाल से 20, एमपी से 24, गुजरात से 15, राजस्थान से 15, केरल से 12 तेलंगाना से 9, असम से 11 झारखंड से 11, छत्तीसगढ़ से 11 उम्मीदवारों को टिकट मिला है। दिल्ली से पाँच, जम्मू कश्मीर दो, उत्तराखंड तीन, गोवा एक, त्रिपुरा एक, अंडमान और निकोबार एक और दमन दीव एक सीट पर नाम की घोषणा की गई है।

उत्तर प्रदेश

यूपी में मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान को टिकट दिया गया है। इसके साथ नोएडा से महेश शर्मा, मथुरा से हेमा मालिनी, आगरा से एसपी सिंह बघेल, एटा से राजवीर सिंह, आंवला धर्मेंद्र कश्यप, शाहजहाँपुर से अरुण सागर, खीरी अजय मिश्रा टेनी, सीतापुर से राजेश वर्मा, हरदोई से जयप्रकाश रावत, उन्नाव से साक्षी महाराज, लखनऊ से राजनाथ सिंह, अमेठी से स्मृति ईरानी, फर्रुखाबाद से मुकेश राजपूत, कन्नौज से सुब्रत पाठक, जालौन से भानुप्रताप वर्मा, झांसी से अनुराग शर्मा, बांदा आरके सिंह पटेल और फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति को उम्मीदवार बनाया गया है। इसके साथ ही गोरखपुर से रवि किशन, आजमगढ़ से दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' और चंदौली से महेंद्र नाथ पांडेय को टिकट दिया गया है।

काजल की कोठरी में चुनावी-चंदे का मायाजाल

भारतीय आम चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक गतिविधि है। यह गतिविधि काले धन से चलती है। काले धन की विशाल गठरियाँ इस मौके पर खुलती हैं। चंदा लेने की व्यवस्था काले पर्दों से ढकी हुई है। लोकसभा के एक चुनाव में 543 सीटों के लिए करीब आठ हजार प्रत्याशी खड़े होते लड़ते हैं। तीस से पचास हजार करोड़ रुपए की धनराशि प्रचार पर खर्च होती है। शायद इससे भी ज्यादा। राजनीतिक दलों का खर्च अलग है। जो पैसा चुनाव के दौरान खर्च होता है, उसमें काफी बड़ा हिस्सा काले धन के रूप में होता है। यह सोचने की जरूरत है कि यह काला धन कहाँ से और क्यों आता है।

ज्यादातर प्रत्याशी अपने चुनाव खर्च को कम करके दिखाते हैं। चुनाव आयोग के सामने दिए गए खर्च के ब्यौरों को देखें तो पता लगता है कि किसी प्रत्याशी ने खर्च की तय सीमा पार नहीं की। जबकि अनुमान है कि सीमा से आठ-दस गुना तक ज्यादा खर्च होता है। जिस काम की शुरूआत ही गोपनीयता, झूठ और छद्म से हो वह आगे जाकर कैसा होगा? इसी छद्म-प्रतियोगिता में जीतकर आए जन-प्रतिनिधि कानून बनाते हैं। चुनाव-सुधार से जुड़े कानून भी उन्हें ही बनाने हैं। 

हाल में उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे की व्यवस्था यानी इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। अदालत ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी है। अदालत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में पाँच जजों के संविधान पीठ ने इस बारे में 15 फरवरी को फैसला सुनाया। इसके पहले नवंबर 2023 में संविधान पीठ ने लगातार तीन दिन तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

Friday, March 1, 2024

केरल में ‘इंडिया’ बनाम ‘इंडिया’, वायनाड में असमंजस

 


2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र के अलावा केरल के वायनाड क्षेत्र से भी चुनाव लड़ा था। अमेठी में वे स्मृति ईरानी से मुकाबले में हार गए थे, पर वायनाड में वे जीत गए। इसबार वायनाड की सीट पर राहुल गांधी के सामने कम्युनिस्ट पार्टी ने एनी राजा को प्रत्याशी बनाया है, जो सीपीआई की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य हैं। एनी पार्टी के महासचिव डी राजा की पत्नी हैं। उनकी इस इलाके में अच्छी खासी प्रतिष्ठा है। राहुल गांधी के लिए इस मुकाबले को जीतना आसान नहीं होगा। सवाल है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसा क्यों किया, जबकि वह इंडिया गठबंधन में शामिल है?

इसके पहले कांग्रेस की ओर से कहा जा चुका है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ राज्य की 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगा, जिनमें से 16 पर कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे। वामपंथी दल इंडिया गठबंधन में शामिल जरूर हैं, पर उनके सामने सबसे बड़ा अस्तित्व का संकट है। वे बंगाल से बाहर हो चुके हैं और 2019 के चुनाव में लोकसभा से भी तकरीबन बाहर हो गए। वाममोर्चा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने 2019 में राज्य की सभी 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें  माकपा के 14 और भाकपा के 4 प्रत्याशी थे। दो सीटों पर लेफ़्ट समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार खड़े किए गए थे।