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Wednesday, March 20, 2024

मुस्लिम-बहुल रामपुर में बीजेपी ने झंडा फहराया


पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रामपुर शहर रूहेलखंड की संस्कृति का केंद्र और नवाबों की नगरी रहा है. एक दौर में अफगान रूहेलों के आधिपत्य के कारण इस इलाके को रूहेलखंड कहा जाता है. रोहिल्ला वंश के लोग पश्तून हैं; जो अफगानिस्तान से उत्तर भारत में आकर बसे थे. रूहेलखंड सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध क्षेत्र रहा है. साहित्य, रामपुर घराने का शास्त्रीय संगीत, हथकरघे की कला, और बरेली के बाँस का फर्नीचर इस इलाके की विशेषताएं हैं. अवध के नवाबों की तरह रामपुर के नवाबों की तारीफ गंगा-जमुनी संस्कृति को बढ़ावा देने के कारण होती है.

रूहेलखंड का एक महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र है रामपुर, जहाँ से 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में देश के पहले शिक्षामंत्री अबुल कलाम आज़ाद जीतकर आए थे. मौलाना आज़ाद के अलावा कालांतर में रामपुर नवाब खानदान के सदस्यों से लेकर फिल्म कलाकार जयाप्रदा और खाँटी ज़मीनी नेता आजम खान तक ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है.

सपा नेता आजम खां का कभी रामपुर में इतना दबदबा था कि जनता ही नहीं,  बड़े सरकारी अफसर भी उनसे खौफ खाते थे। उनकी दहशत के किस्से इस इलाके के लोगों की ज़ुबान पर हैं. बताते हैं कि एक अफसर उनकी डाँट के कारण उनके सामने ही गश खा गया. वक्त की बात है कि आज आजम खान और जयाप्रदा जैसे सितारों के सितारे गर्दिश में हैं.  

अबुल कलाम आज़ाद

इस सीट से 1952 में पहली बार कांग्रेस के मौलाना अबुल कलाम आज़ाद लोकसभा में गए थे. हालांकि उनका परिवार कोलकाता में रहता था, पर उन्हें रामपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया. उनका मुकाबला हिंदू महासभा के बिशन चंद्र सेठ से हुआ. उस चुनाव में कुल दो प्रत्याशी ही मैदान में थे. मौलाना आज़ाद को कुल 108180 यानी 54.57 प्रतिशत और उनके प्रतिस्पर्धी को 73427 यानी कि कुल 40.43 प्रतिशत वोट मिले.

पहले चुनाव को लेकर रामपुर में कुछ विवाद भी खड़े हुए थे. 1957 में मौलाना आज़ाद को रामपुर के बजाय तत्कालीन पंजाब के गुड़गाँव से टिकट दिया गया जहाँ से वे जीते. रामपुर में 1957 के चुनाव में नवाब रजा अली खां के प्रयास से पीरपुर के राजा सैयद मोहम्मद मेहदी को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया गया. उस चुनाव में भी केवल दो प्रत्याशी थे. दूसरे प्रत्याशी थे जनसंघ के सीताराम. कांग्रेस को उस चुनाव में 127864 यानी कि 68.39 प्रतिशत और जनसंघ के प्रत्याशी को 59107 यानी 31.61 प्रतिशत वोट मिले.

1962 के चुनाव में रामपुर से कुल सात प्रत्याशी मैदान में थे. राजा सईद अहमद मेंहदी को 92636 और जनसंघ के शांति शरण को 48941 वोट मिले. 1967 के चुनाव में नवाब खानदान से सैयद ज़ुल्फ़िकार अली खान स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी के रूप में उतरे और उन्होंने जनसंघ के सत्य केतु को हराया. कांग्रेस के राजा सईद अहमद मेहदी तीसरे स्थान पर रहे. ज़ुल्फिकार अली खान 1971 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बनकर जीते. उन्होंने जनसंघ के कृष्ण मुरारी को हराया. 1977 की जनता लहर में कांग्रेसी प्रत्याशी ज़ुल्फिकार अली खान को जनता पार्टी के प्रत्याशी राजेंद्र कुमार शर्मा ने 57.19 प्रतिशत वोट पाकर हराया.

मुस्लिम बहुल क्षेत्र

रामपुर उत्तर प्रदेश की उन चुनींदा सीटों में शामिल है, जहाँ 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है. जनगणना डेटा के आधार पर राज्य के जिन 14 माइनॉरिटी कंसेंट्रेशन जिलों को चिह्नित किया जाता है, उनमें रामपुर भी एक है. 2011 की जनगणना के अनुसार रामपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 50.57 फीसदी मुस्लिम आबादी है.

1952 से लेकर 1971 तक एकबार छोड़कर हमेशा इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी ही जीतते रहे. 1977 की जनता लहर में पहली बार यहाँ से गैर-कांग्रेसी प्रत्याशी को जीत मिली. नवाबी खानदान से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के ज़ुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियाँ कुल पाँच बार इस सीट से सांसद रहे. पहली बार स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी के रूप में और फिर कांग्रेसी प्रत्याशी के रूप में. उनकी बेगम नूरबानो दो बार यहाँ से सांसद चुनी गईं, जबकि उनके बेटे नवाब काज़िम अली खां उर्फ नवेद मियां लगातार पांच बार विधायक निर्वाचित हुए.

सबसे पहले उन्होंने 1967 में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की. उसके बाद 1971,1980, 1984 और 1989. 1996 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उनकी पत्नी बेगम नूर बानो ने जीत दर्ज की. 1998 में हुए चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी मुख्तार अब्बास नकवी से वे हार गईं. उसके अगले साल 1999 में वे फिर जीतीं. उन्होंने मुख्तार अब्बास नकवी को हराकर अपना बदला पूरा किया.

कांग्रेस-युग का समापन

इसके बाद कांग्रेस को रामपुर में फिर जीत नहीं मिली. 2014 में बीजेपी के डॉ नेपाल सिंह ने जीत दर्ज की. 2004 और 2009 में समाजवादी पार्टी की तरफ से बॉलीवुड अभिनेत्री जयाप्रदा यहां से सांसद चुनी गईं. आंध्र प्रदेश की तेलुगु देसम पार्टी से शुरू करके जयाप्रदा ने कई प्रकार के राजनीतिक बदलाव देखे. उन्होंने अमर सिंह के साथ मिलकर एक अलग पार्टी भी बनाई. वे भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी बनकर भी रामपुर से चुनाव लड़ीं.  

रामपुर से अभी तक हुए लोकसभा के 18 चुनावों में से 11 बार मुस्लिम प्रत्याशी ही जीते हैं. पहली बार 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी राजेंद्र कुमार शर्मा की जीत हुई, दूसरी बार राजेंद्र कुमार शर्मा ने 1991 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की. 2004 और 2009 में जयाप्रदा जीतीं और 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेपाल सिंह ने जीत दर्ज की. उन्हें 37.5 फीसदी और समाजवादी पार्टी के नसीर अहमद खान को 35 फीसदी वोट मिले. नेपाल सिंह की जीत का अंतर मात्र 23,435 वोटों का ही था. 2014 में उत्तर प्रदेश से कोई भी मुस्लिम सांसद चुनकर नहीं गया था. ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ. 2019 में यहाँ से मोहम्मद आजम खान सांसद चुने गए. उन्होंने बीजेपी की प्रत्याशी जयाप्रदा को एक लाख से ज्यादा मतों से शिकस्त दी थी.

आजम खान का गढ़

नवाबों के बाद रामपुर की राजनीति में जिस एक नेता का बोलबाला रहा है उसका नाम है आजम खान. उन्हें मुलायम सिंह का दायां हाथ माना जाता था. 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन का श्रेय मुलायम सिंह के साथ उन्हें भी जाता है. आजम खान की कभी पूरे उत्तर प्रदेश में तूती बोलती थी, रामपुर उनका गढ़ था. उनकी बुनियादी राजनीति विधान सभा से जुड़ी हुई थी. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार जब भी बनी, वे सबसे सीनियर मंत्री बने.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ही वे सक्रिय रहना चाहते थे, पर 2019 की मोदी लहर के दौर में सपा ने उन्हें इस सीट से लोकसभा प्रत्याशी बनाया और वे जीते. यह टिकट उन्हें बीजेपी की प्रत्याशी जयाप्रदा को हराने के लिए दिया गया था. इस चुनाव में आजम खान को 559018 यानी 52.69 फीसदी और जयाप्रदा को 448630 यानी कि 42.33 प्रतिशत वोट मिले. बताते हैं कि जयाप्रदा जब सपा में थीं, तब भी आजम खान उनका विरोध करते थे. इस विरोध के कारण उन्हें कुछ समय मुलायम सिंह की बेरुखी का सामना भी करना पड़ा. जयाप्रदा के समर्थन और विरोध के कारण रामपुर आजम खान बनाम अमर सिंह की लड़ाई की गवाह भी बना. हालांकि दोनों कभी मुलायम सिंह के सिपहसालार थे.

उपचुनाव

2019 की ऐतिहासिक जीत के बावजूद 2022 में आजम खान ने संसद की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया. इसकी वजह थी रामपुर सदर क्षेत्र से विधानसभा चुनाव क्षेत्र से उनकी जीत. उनकी दिलचस्पी प्रदेश की राजनीति में थी. बहरहाल उनके इस्तीफे के कारण हुए उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी को विजय मिली. कोई सोच नहीं सकता था कि उनके रहते रामपुर से कोई दूसरा जीत सकेगा. पर 2022 के बाद उनका पराभव होना शुरू हुआ, तो वह रुका नहीं.  

दूसरी तरफ इस इलाके से बीजेपी का जीतना बड़े आश्चर्य से कम नहीं है. माना जाता है कि ऐसा मुस्लिम मतों के विभाजन के कारण हुआ. 1991, 1998 और 2014 के लोकसभा चुनाव में ऐसा ही हुआ. जब भी यहाँ से सपा ,बसपा और कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे तो उसका फायदा बीजेपी को मिला.

इस इलाके के गैर-मुस्लिम मतदाताओं में लोधी समुदाय की संख्या सबसे ज्यादा हैं. बीजेपी ने 2022 में हुए उपचुनाव में घनश्याम लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया. उन्होंने समाजवादी पार्टी के आसिम रजा को 42 हजार से अधिक मतों से पराजित किया. घनश्याम लोधी इसके पहले बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में 1999 और 2009 में भी लड़ चुके थे. वे जयाप्रदा और बेगम नूरबानो के बाद तीसरे स्थान पर रहे थे.

बीजेपी ने अब 2024 के चुनाव में भी उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित किया है. इंडिया गठबंधन के समझौते के अनुसार इस सीट पर समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा. यह चुनाव बहुत रोचक होने वाला है. 

रामपुर से लोकसभा सदस्य

1952

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (कांग्रेस)

1957

राजा सईद अहमद मेंहदी (कांग्रेस)

1962

राजा सईद अहमद मेंहदी (कांग्रेस)

1967

ज़ुल्फिकार अली खां (स्वतंत्र पार्टी)

1971

ज़ुल्फिकार अली खां (कांग्रेस)

1977

राजेंद्र कुमार शर्मा (जनता पार्टी)

1980

ज़ुल्फिकार अली खां (कांग्रेस)

1984

ज़ुल्फिकार अली खां (कांग्रेस)

1989

ज़ुल्फिकार अली खां (कांग्रेस)

1991

राजेंद्र कुमार शर्मा (भाजपा)

1996

बेगम नूर बानो (कांग्रेस)

1998

मुख्तार अब्बास नक़वी (भाजपा)

1999

बेगम नूर बानो (कांग्रेस)

2004

जयाप्रदा (सपा)

2009

जयाप्रदा (सपा)

2014

डॉ नेपाल सिंह (भाजपा)

2019

आजम खां (सपा)

2022

घनश्याम सिंह लोधी (भाजपा)

 न्यूज18 में प्रकाशित

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