फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की दो दिन की राजकीय-यात्रा को आकस्मिक कहना उचित होगा. ऐसी यात्राओं का कार्यक्रम महीनों पहले बन जाता है, पर इस यात्रा का कार्यक्रम अचानक तब बना, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की भारत-यात्रा रद्द हो गई.
इस यात्रा से बहुत कुछ निकले या नहीं निकले,
फ्रांस ने बहुत नाज़ुक मौके पर भारत की लाज बचाई है. इस यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता
नहीं हुआ. अलबत्ता इस दौरान टाटा और एयरबस के बीच हल्के हेलीकॉप्टर के भारत
में निर्माण के समझौते की घोषणा जरूर हुई है.
इसके पहले भी फ्रांस ने भारत का साथ दिया है. मैक्रों फ्रांस के छठे ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो भारत में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बने हैं. गणतंत्र परेड में सबसे ज्यादा बार मुख्य अतिथि बनने का गौरव भी फ्रांस के नाम है.
असाधारण रिश्ते
यह तथ्य बताता है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते
असाधारण रूप से अच्छे हैं. मैक्रों इससे पहले मार्च 2018
में राजकीय-यात्रा पर भारत आए थे. पिछले साल सितंबर में वे जी-20 शिखर सम्मेलन में
आए थे. उसके पहले जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस गए थे और दोनों देशों ने
2047 तक के एक रोडमैप की घोषणा की थी.
इस बात की उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि छह महीने
के भीतर उस रोडमैप में कोई बड़ी बात जुड़ जाएगी. अलबत्ता कुछ ऐसे समझौतों का संकेत
मिल सकता है, जो अगले कुछ महीनों के भीतर होने वाले हैं.
गज़ा और लाल सागर में चल रहे टकराव और
दिन-प्रतिदिन बदलती वैश्विक राजनीति की पृष्ठभूमि में हुई यह यात्रा बेहद
महत्वपूर्ण है. राफेल विमानों की एक और खरीद और जेट विमानों के इंजन भारत में ही
बनाने के लिए फ्रांस की कंपनी सैफ्रान के साथ समझौते पर बातचीत भी इन दिनों चल रही
है.
दोनों देशों के बीच राजनयिक और खासतौर से
रक्षा-सहयोग हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है. वस्तुतः रूस का साथ क्रमशः छूटने के
दौर में अब भारत को फ्रांस का तकनीकी सहारा मिल रहा है.
2047 तक का रोडमैप
पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी और
राष्ट्रपति मैक्रों के बीच वार्ता के बाद जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया था,
उसमें 2047 तक दोनों देशों के सहयोग के रोडमैप का उल्लेख है. इसमें
खासतौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त-कार्रवाई का रोडमैप है.
विश्व-शांति की दिशा में और हिंद-प्रशांत
क्षेत्र और उससे भी आगे नियम-आधारित व्यवस्था की स्थापना के लिए दोनों देश मिलकर
काम करने को प्रतिबद्ध हैं. दोनों देशों ने कहा है कि न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पॉलीनीशिया के फ्रांसीसी
क्षेत्रों की भूमिका के साथ प्रशांत क्षेत्र में अपना सहयोग देंगे.
दोनों देशों के सहयोग में हिंद महासागर और
प्रशांत क्षेत्र में स्थित फ्रांसीसी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. फ्रांस
एकमात्र देश है, जिसके साथ मिलकर भारत इस इलाके में
गश्त का काम करता है.
रक्षा-सहयोग
पिछले वर्ष, भारत-फ्रांस
रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ मनाई गई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले
साल 14 जुलाई को पेरिस में आयोजित ‘बास्तील डे परेड' में
सम्मानित अतिथि के रूप में भाग लिया था. यह कार्यक्रम फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस
समारोह का हिस्सा था.
रक्षा मंत्रालय ने पिछले साल प्रधानमंत्री की
फ्रांस यात्रा के ठीक पहले जुलाई में ही फ्रांस से (नौसेना के इस्तेमाल के लिए) 26
राफेल लड़ाकू विमान खरीदने को मंजूरी दी थी, जिनकी
तैनाती देश में ही निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर की जाएगी.
रूस के बाद इस समय भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा सप्लायर फ्रांस
है. भारतीय वायु सेना में पहली पीढ़ी के दासो ऑरैगां (तूफानी) लड़ाकू विमानों से
लेकर हाल में पनडुब्बी और राफेल-एम सौदे तक भारत ने फ्रांस से कई हाई-टेक रक्षा
सामग्री की खरीद की है.
इनमें स्कोर्पिन क्लास पनडुब्बी, मिराज-2000 लड़ाकू विमान और राफेल लड़ाकू विमान प्रमुख हैं. इनके
अलावा मिस्टीयर, एलीज़ एल्वेत्त, जैगुआर
(एंग्लो-फ्रेंच) विमान इस सहयोग के गवाह हैं. तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से
फ्रांस ‘मेक इन इंडिया’ और आधुनिकीकरण में सहायता कर रहा है.
एमआरएफए कार्यक्रम
ऐसे संकेत भी हैं कि भारत के मीडियम रोल फाइटर
एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) कार्यक्रम के तहत 114 लड़ाकू विमानों की खरीद में भारतीय
वायुसेना का झुकाव फ्रांस के दासो राफेल की ओर हो रहा है. इसके पहले वायुसेना के
लिए 36 राफेल के साथ यह संकेत पहले ही मिल चुका था, नौसेना
ने भी अपने लिए राफेल-एम (मैरीटाइम) को चुना.
भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के
स्क्वॉड्रनों की संख्या कम होती जा रही है. यदि राफेल विमानों पर सहमति बनी,
तो वायुसेना की आक्रामक क्षमता में सुधार होगा. एमआरएफए के तहत 18
विमान तैयारशुदा लिए जाएंगे और 96 विमान भारत में किसी स्ट्रैटेजिक-पार्टनरशिप के
तहत बनाए जाएंगे. एक कयास है कि 114 के बजाय यह संख्या 200 भी हो सकती है.
एमआरएफए के लिए फ्रांस के दासो राफेल के अलावा
यूरोफाइटर (टायफून), स्वीडन का साब ग्रिपन-ई, रूस का मिग-35 और सुखोई-35 और अमेरिका के एफ/ए-18 तथा एफ-15ईएक्स तथा
अपग्रेडेड एफ-21 विमान प्रतियोगिता में हैं. यूक्रेन युद्ध को देखते हुए रूसी
प्रस्ताव को लेकर आशंकाएं है.
यूरोप में सबसे बड़ा मित्र
मैक्रों के इस दौरे से यह बात स्पष्ट हुई है कि
भारत और फ्रांस के रिश्तों की गहराई क्रमशः बढ़ती जा रही है और यूरोप में वह हमारा
सबसे बड़ा मित्र देश है. यह दूसरा मौका होगा, जब
अमेरिकी राष्ट्रपति का दौरा रद्द होने पर उनका स्थान फ्रांस के नेता लेंगे.
1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के कारण
अमेरिकी राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने अपनी भारत यात्रा स्थगित कर दी थी. पश्चिम
में भारत के प्रति कटुता बढ़ रही थी, इसके बावजूद
जनवरी 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री याक शिराक गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनकर
आए. शिराक के बाद निकोलस सरकोज़ी, फ्रांस्वा होलां से लेकर इमैनुएल
मैक्रों तक सभी राष्ट्रनेताओं ने भारत के साथ रिश्ते बनाकर रखे है.
संकट में सहारा
यूरोपियन यूनियन के बाहर फ्रांस ने पहली बार
जिस देश के साथ रणनीतिक-सहयोग स्थापित किया वह भारत ही है. 1974 में जब भारत ने
पहली बार परमाणु परीक्षण किया, तब अमेरिका ने तारापुर संयंत्र के लिए
यूरेनियम ईंधन की सप्लाई रोक दी. तब फ्रांस ने ईंधन उपलब्ध करवाया.
1998 के नाभिकीय परीक्षणों के बाद दुनियाभर ने
हमारी आलोचना शुरू कर दी. अमेरिका, जापान, कनाडा
और ब्रिटेन ने तो पाबंदियाँ लगा दीं. रूस जैसे मित्र ने भी हमारी निंदा की. यह
बड़ा भावनात्मक झटका था.
तत्कालीन वैश्विक-शक्तियों में फ्रांस अकेला ऐसा
देश था, जिसने भारत के कदम का समर्थन किया. जनवरी 1998
में राष्ट्रपति याक शिराक ने भारत को वैश्विक नाभिकीय-व्यवस्था से बाहर रखे जाने
को गलत बताया और कहा था कि इसे बदलने की जरूरत है.
यूरोपियन यूनियन
भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच व्यापार समझौते
की बातें भी हैं. यूरोपियन यूनियन का सदस्य होने के अलावा फ्रांस, संरा सुरक्षा
परिषद का स्थायी सदस्य है और कई मौकों पर भारत के पक्ष में हस्तक्षेप कर चुका है. वह भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थक है.
यह बात दीर्घकालीन राजनयिक रिश्तों के लिहाज से
महत्वपूर्ण है. उसके साथ हमारे न्यूनतम मतभेद हैं या कहें कि मतभेद हैं ही नहीं. वहाँ
की आंतरिक-राजनीति में भारत के प्रति नकारात्मक भावनाएं वैसी नहीं हैं, जैसी अमेरिका में हैं. अमेरिका की आंतरिक राजनीति में भारत को लेकर
जिस प्रकार का संशय है, वैसा संशय फ्रांस की राजनीति में कभी नहीं रहा.
स्वतंत्र दृष्टि
भारत को फ्रांस स्वतंत्र दृष्टि से देखता है, ‘एंग्लो सैक्सन’ यानी अंग्रेजी नज़रिए
से नहीं. इसके अलावा वह नब्बे के दशक से ही दुनिया को एक ध्रुवीय यानी
अमेरिका-केंद्रित बनाने के बजाय बहुध्रुवीय बनाने का पक्षधर है. फिर से जन्म ले
रहे शीतयुद्ध की परिस्थितियों में वह भी गुटों से अलग रहने का पक्षधर है, जो भारत
के दृष्टिकोण से मेल खाता है.
5 अगस्त, 2019 को जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में
अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाया था, चीन ने सुरक्षा परिषद में उस मामले को उठाने
की कोशिश की थी. उस कोशिश को विफल करने में फ्रांस ने भारत का साथ दिया था.
जलवायु परिवर्तन पर पेरिस संधि के बाद भारत के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के सहयोग से ही ‘इंटरनेशनल
सोलर एलायंस’ बनाया. भारत की डिजिटल पेमेंट प्रणाली ‘यूपीआई’ को स्वीकार करने वाला वह पहला यूरोपियन
देश बना.
दोनों देशों के बीच व्यापार के विस्तार में
दोनों सरकारों की रुचि है. टाटा टेक्नोलॉजी और एलएंडटी टेक सर्विस सहित कई भारतीय
कंपनियों ने संयुक्त प्रौद्योगिकी विकास के लिए फ्रांस में अपने नवाचार केंद्र
खोले हैं.
अंतरिक्ष
अंतरिक्ष-अनुसंधान एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र
है. फ्रांस की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि फ्रांस के संगठन सीएनईएस और भारत
के इसरो के बीच वैज्ञानिक और व्यावसायिक सहयोग बढ़ाया जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पेस आधारित मैरीटाइम
डोमेन अवेयरनेस (एमडीए) का भी उल्लेख किया. क्वाड ने भी समान विचारों वाले देशों
के साथ एमडीए पर काम करने की घोषणा की थी. इन सरकारी सहयोग कार्यक्रमों के अलावा पिछले
साल फरवरी में एयर इंडिया ने 250 एयर बस खरीदने का समझौता किया था.
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