आज़ादी के सपने-03
1942 से 1947 के बीच 1945 के अगस्त की दो
तारीखें मानवता के इतिहास की क्रूरतम घटनाओं के लिए याद की जाती हैं. 6 अगस्त 1945
को जापान के हिरोशिमा शहर पर एटम बम गिराया गया. फिर भी जापान ने हार नहीं मानी तो
9 अगस्त को नगासाकी शहर पर बम गिराया गया.
इन दो बमों ने विश्व युद्ध रोक दिया. इस साल
दुनिया उस बमबारी की 78वीं सालगिरह मना रही है. इन दो घटनाओं ने वैश्विक
नागरिक-समुदाय के सामने कई सवाल खड़े किए थे. राष्ट्रों के हित क्या नागरिकों के
हित भी होते हैं?
नागरिकों की ताकत
जापान के नागरिकों को श्रेय जाता है कि उन्होंने
द्वितीय विश्व युद्ध की पराजय और विध्वंस का सामना करते हुए पिछले 77 साल में एक
नए देश की रचना कर दी. वह दुनिया की तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था है. भले ही चीन उससे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर
तकनीकी गुणवत्ता में चीन उसके करीब नहीं हैं.
भारत और जापान की संसदें दो तरह के अनुभवों से
गुजर रही हैं. जापान की संसद पिछले 76 साल के इतिहास का सबसे
लंबा विमर्श कर रही है, वहीं हमारी संसद में शोर है. यह राजनीति है और इसकी ताली
भी दो हाथ से बजती है. एक नेता की, दूसरी जनता की.
शोर ही सही, पर
क्या हमारे विमर्श में गम्भीरता है? क्या हम भविष्य
को लेकर सचेत हैं? हम माने कौन? देश
के संविधान की उद्देशिका का पहला वाक्य है: ‘हम, भारत के लोग…’ और अंतिम वाक्य है: ‘,अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी)
को एतदद्वारा इस संविधान को
अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.’ कौन हैं भारत के वे लोग, जिन्होंने
संविधान को ‘आत्मार्पित’ किया है?
भारत भाग्य विधाता
रघुवीर सहाय की कविता है:- राष्ट्रगीत में भला कौन वह/ भारत भाग्य विधाता
है/ फटा सुथन्ना पहने जिसका/ गुन हरचरना गाता है. कविता की अंतिम पंक्तियाँ हैं:- कौन-कौन है वह जन-गण-मन/ अधिनायक वह महाबली/ डरा हुआ मन बेमन जिसका/
बाजा रोज़ बजाता है.
वह भारत भाग्य विधाता इस देश की जनता है. क्या
उसे जागी हुई जनता कहना चाहिए? जागने का मतलब आवेश और तैश नहीं है.
अभी हम या तो खामोशी देखते हैं या भावावेश. दोनों ही गलत हैं. सही क्या है,
यह सोचने का समय आज है. आप सोचें कि 9 और 15 अगस्त की दो क्रांतियों
का क्या हुआ.
15 अगस्त, 1947
को जवाहर लाल नेहरू ने कहा, ‘इतिहास के प्रारंभ से ही भारत ने अपनी
अनंत खोज आरंभ की थी. अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार
सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं…हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं. आज
भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है.’
इस भाषण के दो साल बाद 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में भीमराव आंबेडकर ने कहा, ‘राजनीतिक लोकतंत्र तबतक विफल है, जबतक उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र नहीं हो.’ इस सामाजिक-लोकतंत्र के केंद्र में है भारतीय जनता, जो जागती है, तो बहुत कुछ बदल जाता है.
एस्पिरेशनल इंडिया
कुछ साल पहले अमिताभ बच्चन ने ‘कौन बनेगा
करोड़पति’ के एक एपिसोड को शुरू करते हुए कहा, ‘मैंने
इस कार्यक्रम में एक नया हिन्दुस्तान महसूस किया। हँसता-मुस्कराता हिन्दुस्तान. यह
हिन्दुस्तान अपना पक्का घर बनाना चाहता है, लेकिन
उसके कच्चे घर ने उसके इरादों को कच्चा नहीं होने दिया…यह हिन्दुस्तान कपड़े सीता
है, ट्यूशन करता है, दुकान
पर सब्जियाँ तोलता है…इसके बावजूद वह अपनी कीमत जानता है. उसका मनोबल ऊँचा और लगन
बुलंद है. हम सब इस नए हिन्दुस्तान को सलाम करते हैं.’
यह है ‘एस्पिरेशनल इंडिया.’ अपने हालात सुधारने को व्याकुल भारत. यह व्याकुलता जैसे-जैसे बढ़ेगी
वैसे-वैसे हमें दोष भी दिखाई पड़ेंगे. इनका निराकरण व्याकुलता के बढ़ते जाने में
है. दो राय नहीं कि देश नेतृत्व और प्रशासनिक नीतियों से बनता है, पर वह अपने लोगों
से भी बनता है.
कई बार हम निराश होकर कहते हैं कि कुछ नहीं हो
पाएगा, पर कहानी अभी जारी है. छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों के छोटे-छोटे लोगों की
उम्मीदों, सपनों और दुश्वारियों की किताबें खुल रहीं हैं.
ड्राइंग रूमों से लेकर सड़क किनारे पड़ी मचिया पर बैठे करोड़ों लोग इसमें शामिल
हैं.
कोरोना का सामना
मार्च, 2020 में जब कोरोना का पहला झोंका आया
था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से किए गए रविवार के 'जनता
कर्फ्यू' के आह्वान का देश और विदेश में बड़ी संख्या में
लोगों ने समर्थन किया. उस अपील को राष्ट्रीय ‘संकल्प और संयम’ के रूप में देखा गया.
करीब-करीब ऐसी ही अपीलें महात्मा गांधी ने
स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में की थीं. देशभर के लाखों लोग जब चरखा चलाते थे,
तब करोड़ों लोगों की ऊर्जा एकाकार होकर राष्ट्रीय ऊर्जा में तब्दील
होती थी. ऐसी ही प्रतीकात्मकता का इस्तेमाल लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान,
जय किसान’ के नारे के साथ किया था.
यह एकता केवल संकटों का सामना करने के लिए ही
नहीं चाहिए, बल्कि राष्ट्रीय निर्माण के लिए भी इसकी जरूरत
है. ‘स्वच्छ भारत’ और ‘बेटी
बचाओ’ जैसे अभियानों को जनता ही सफल बना सकती है.
प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद
ज्यादातर प्रतिक्रियाएं सकारात्मक थीं. इनमें शशि थरूर और पी चिदंबरम जैसे राजनेता,
शेहला रशीद जैसी युवा नेता, सागरिका घोष,
राजदीप सरदेसाई और ट्विंकल खन्ना जैसे पत्रकार और लेखक तथा शबाना आज़मी
और महेश भट्ट जैसे सिनेकर्मी भी शामिल थे, जो अक्सर मोदी के खिलाफ टिप्पणियाँ भी करते
रहे हैं. लोकतंत्र ऐसे ही काम करता है.
चर्चिल का बयान
पता नहीं सही है या गलत, ब्रिटिश प्रधानमंत्री
विंस्टन चर्चिल का भारत की आजादी को एक बयान काफी चर्चित है. उन्होंने कहा,
‘धूर्त, बदमाश, एवं
लुटेरे हाथों में सत्ता चली जाएगी. भारतीय नेता सामर्थ्य में कमजोर और महत्त्वहीन
व्यक्ति होंगे…सत्ता के लिए वे आपस में ही लड़ मरेंगे और भारत राजनैतिक
तू-तू-मैं-मैं में खो जाएगा.’
चर्चिल का यह भी कहना था कि भारत सिर्फ एक
भौगोलिक पहचान है. वह कोई एक देश नहीं है, जैसे भूमध्य
रेखा कोई देश नहीं है. चर्चिल को ही नहीं 1947 में काफी लोगों को अंदेशा था कि इस
देश की व्यवस्था दस साल से ज्यादा चलने वाली नहीं है. टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो
जाएगा.
2014 में भारतीय चुनाव-संचालन की सफलता के
इर्द-गिर्द एक सवाल ब्रिटिश पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने उठाया था. उसका सवाल था कि
भारत चुनाव-संचालन में इतना सफल क्यों है? उसका एक और
सवाल था. जब इतनी सफलता के साथ वह चुनाव संचालित करता है, तब
उसके बाकी काम इतनी सफलता से क्यों नहीं होते? मसलन
उसके स्कूल, स्वास्थ्य व्यवस्था, पुलिस
वगैरह से लोगों को शिकायत क्यों है?
हमारी सफलता
ऐसा क्यों माना जाता है कि यह देश बैलगाड़ी की
गति से चलता है? पत्रिका ने एक सरल जवाब दिया कि जो काम
छोटी अवधि के लिए होते हैं, उनमें भारत के लोग पूरी शिद्दत से जुट जाते
हैं. रोज़मर्रा कार्यों की वे फिक्र नहीं करते. जनगणना के अलावा भारत ने राष्ट्रीय
पहचान पत्र ‘आधार’ बनाने का काम सफलता के साथ किया है.
बहुत से काम सरकारी कर्मचारियों ने नहीं बाहरी
लोगों ने किए. हमने साठ के दशक में ‘हरित क्रांति’ की.
नब्बे के दशक में कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर में सफलता के झंडे गाड़े. हालांकि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बहुत अच्छी नहीं है,
पर हमारे चिकित्सकों का दुनिया भर में सम्मान है. धीरे-धीरे भारत विकासशील देशों में चिकित्सा और स्वास्थ्य का ‘हब’ बनता जा रहा है.
डिजिटल इंडिया
प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस
पर लाल किले के प्राचीर से अपने संबोधन में कहा कि देश में डिजिटल पेमेंट को
बढ़ावा देना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है. उन्होंने कहा कि
दुकानों पर डिजिटल पेमेंट को 'हाँ', और
नकद को 'ना' के बोर्ड लगाने
चाहिए.
सामान्य व्यक्ति को भले ही यह समझ में नहीं आता
हो कि भुगतान की इस प्रणाली से अर्थव्यवस्था को मजबूती किस प्रकार मिलती है,
फिर भी व्यक्तिगत रूप से उसे पहली नजर में यह प्रणाली सुविधाजनक लगती
है. आज आप सब्जी वाले को भी डिजिटल पेमेंट करते हैं. यह सुविधा अमेरिका के
नागरिकों के पास भी नहीं है. भारत के यूपीआई पेमेंट सिस्टम की दुनिया भर में तारीफ
है.
सुविधाजनक, उपयोगी,
तेज और विश्वसनीय होने के बावजूद देश में बड़ी संख्या में सामान्य
नागरिकों के लिए भी यह प्रणाली नई है. बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें ठीक से गिनती भी नहीं आती. ऐसा भी होगा, पर साक्षरता ने तभी
जन्म लिया जब अक्षर का आविष्कार हुआ.
अक्षर के पहले भाषा, बोली
और नज़र आने वाले चिह्नों का आविष्कार हुआ था. जो लोग उस नए ज्ञान से लैस नहीं थे,
वे निरक्षर रह गए. साक्षरता का अर्थ अब केवल अक्षर ज्ञान नहीं है. अब
‘टेक्नोट्रॉनिक लिटरेसी’ और ‘डिजिटल डिवाइड’ का ज़माना है.
शक्ति त्रयी
रेलवे रिज़र्वेशन, सिनेमा
का टिकट, इनकम टैक्स, सम्पत्ति
का रजिस्ट्रेशन, नेट बैंकिंग यहाँ तक कि आपके
महत्वपूर्ण दस्तावेज डिजिटल लॉकर में सुरक्षित हैं. हर चीज़ आपके करीब आ रही है.
कम्प्यूटर और मोबाइल ने आपको सारी दुनिया से जोड़ दिया है. यह पिछले दस-पन्द्रह
साल से भी कम की उपलब्धि है.
भारत में सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में इस ‘डिजिटल
क्रांति’ की बड़ी भूमिका है.
महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना वर्ष 2006 से प्रभावी हुई,
पर उसके क्रियान्वयन से जुड़ी कई तरह की शिकायतें थीं. 2015 में इसके साथ प्रौद्योगिकी को जोड़ने के बाद क्रियान्वयन में
कुशलता आती चली गई. इसमें प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के
कार्यान्वयन को सम्मिलित किया गया और आधार सम्बद्ध भुगतान (एएलपी) से जोड़ दिया
गया. इस प्रकार जन-धन, आधार
और मोबाइल फोन की ‘शक्ति-त्रयी’ ने काम को आसान और बेहतर बना दिया.
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र
मोदी ने लालकिले से डिजिटल इंडिया की बात की थी. तब
उस बात का व्यावहारिक अर्थ काफी लोगों को समझ में नहीं आया था, अब वह बेहतर समझ में आता है. इस डिजिटल
इंडिया का एक महत्वपूर्ण अंग है डिजिटल भुगतान तंत्र. विश्व
बैंक ने मोबाइल फोन को इतिहास की सबसे बड़ी मशीन बताया है.
जनता की भूमिका
इकोनॉमिस्ट का निष्कर्ष है कि उस विभाग के
सरकारी कर्मचारी बेहतर काम करते हैं, जिसपर जनता की
निगाहें होती हैं. चुनाव आयोग का अपना कोई स्टाफ नहीं
होता. चुनाव का कार्य वही प्रशासनिक मशीनरी करती है,
जो सामान्य दिनों में दूसरे काम करती है.
काम करने वालों को उचित प्रोत्साहन दिया जाए तो वे बेहतर परिणाम देंगे.
जुलाई 2021
में हुए तोक्यो ओलिम्पिक में भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता. शुरुआती मुकाबले
में हमारी टीम को ऑस्ट्रेलिया ने 7-1 से हराया तो टीम में मायूसी छा गई. ऐसे में
कोच ग्राहम रीड ने टीम से कहा, यकीन मानो आप जीत सकते हो. पौराणिक कहानी है कि बलशाली हनुमान को अपने बल
को भूल जाने का शाप था. जब उनकी ताकत की याद उन्हें दिलाई जाती है तब वे सक्रिय
होते हैं. हॉकी में भारत की कहानी भी कुछ ऐसी ही साबित हुई.
बरसों पहले
फेसबुक पर नाइजीरिया के किसी टेलेंट हंट कांटेस्ट का पेज देखने को मिला. उसका
सूत्र वाक्य था, ‘आय
थिंक आय कैन.’ सामान्य लोगों को बताना जरूरी है कि तुम नाकाबिल नहीं हो. हीन भावना
को खत्म करने के लिए रोल मॉडलों की जरूरत होती है. खेल के मैदान में हमारे
ज्यादातर नए सितारे मामूली पृष्ठभूमि से आए हैं. वे दूसरों के रोल मॉडल बन रहे
हैं.
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शिक्षित,
स्वस्थ और जागरूक नागरिक
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