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Friday, March 1, 2019

आतंकवाद से लड़ने की पेचीदगियाँ

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भारतीय पायलट की वापसी के कारण फिलहाल दोनों देशों के बीच फैला तनाव कुछ समय के लिए दूर जरूर हो गया है, पर आतंकवाद का बुनियादी सवाल अपनी जगह है. यह सब पुलवामा कांड के कारण शुरू हुआ था. बुधवार को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिर से प्रस्ताव रखा है कि जैशे-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाए. परिषद की प्रतिबंध समिति अगले दस दिन में इसपर विचार करेगी. पता नहीं, प्रस्ताव पास होगा या नहीं. चीन ने पुलवामा कांड की निंदा की है और बालाकोट पर की गई भारतीय वायुसेना की कार्रवाई की आलोचना भी नहीं की है, पर इस प्रस्ताव पर उसका दृष्टिकोण क्या होगा, यह देखना होगा.

पिछले दस साल में यह चौथी कोशिश है. सारी कोशिशें चीन ने नाकाम की हैं. वुज़ान में विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में हालांकि चीन ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सारी बातों का समर्थन किया, पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया. एक प्रतिबंधित संगठन के नेता पर प्रतिबंध लगाने में इतने पेच हैं. हम इस वास्तविकता की अनदेखी नहीं कर सकते.

आतंकवाद पर विजय केवल फौजी कार्रवाई से हासिल नहीं होगी. उसके लिए राजनयिक मोर्चे पर ही लड़ना होगा. और केवल मसूद अज़हर पर पाबंदी लगाने से सारा काम नहीं होगा. पर वह बड़ा कदम होगा. सफलता तभी मिलेगी, जब पाकिस्तानी समाज इसके खिलाफ खड़ा होगा. सीमा के दोनों तरफ कट्टरता का माहौल खत्म होगा और कश्मीर में शांति की स्थापना होगी. क्या यह सब आसानी से सम्भव है? 


बालाकोट स्थित जैशे-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर पर हमले के बाद पाकिस्तानी आईएसपीआर के मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर ने सुबह 5.12 मिनट पर पहला ट्वीट किया था, पर भारत सरकार की तरफ से पहली आधिकारिक जानकारी 11.30 बजे विदेश सचिव विजय गोखले ने दी. रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में काफी सोच-विचार के बाद भारत ने इसे ‘नॉन-मिलिट्री’ एक्शन बताया था. हमला पाकिस्तान पर नहीं था, बल्कि ऐसे दुश्मन पर था, जो पाकिस्तान में तो है, पर नॉन-स्टेट एक्टर है. 

‘नॉन-मिलिट्री’ डिप्लोमेसी का शब्द है. जैशे-मोहम्मद को पाकिस्तानी आईएसआई ने खड़ा किया है, पर उसे वह स्वीकार नहीं करता. हमारे पास जानकारी थी कि पुलवामा पर किसने हमला किया, पर हम कह नहीं सकते. इसलिए हमला वहाँ किया, जहाँ आतंकवाद के प्राण बसते हैं. पाकिस्तान डिनायल मोड में है. उसने जैश के उस केन्द्र की तस्वीरें जारी नहीं की हैं, जहाँ हमला हुआ है और न वहाँ अंतरराष्ट्रीय मीडिया को जाने की अनुमति दी है. 26 फरवरी को पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद उनके विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने कहा कि विदेशी पत्रकारों को हमले की जगह पर ले जाएंगे, पर वह काम ‘खराब मौसम’ की वजह से स्थगित हो गया और स्थगित है.

बालाकोट के पास जाबा शहर से जो खबरें आईं हैं, उनके अनुसार धमाके हुए थे. घने जंगल के बीच जैश के उस केंद्र तक जाने वाले सभी रास्तों को पाकिस्तानी सेना ने घेर रखा है, जिसपर हमला हुआ. अल जज़ीरा ने पत्रकार असद हाशिम की एक रिपोर्ट अपनी वैबसाइट पर प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है कि भारतीय बम आसपास के जंगल में गिरे. पर यह रिपोर्टर उस केंद्र तक नहीं पहुँच पाया है. उसने यह नहीं लिखा कि वहाँ तक क्यों नहीं गया, अलबत्ता उनकी दो बातें ध्यान खींचती हैं.

उनकी रिपोर्ट में एक जगह ‘मदरसा तालीम-उल-कुरान’ तक जाने का रास्ता बताने वाले बोर्ड की तस्वीर है. इस रिपोर्टर को लोगों ने बताया कि पहाड़ी की चोटी पर घने जंगल से घिरा एक ट्रेनिंग सेंटर है. जैश का मदरसा, जहाँ युद्ध की ट्रेनिंग भी दी जाती है. सन 2002 में पाकिस्तान ने जैश को प्रतिबंधित कर दिया था, पर इस बोर्ड को देखकर कहा जा सकता है कि इसे हाल में पेंट किया गया है. जिस संगठन पर संयुक्त राष्ट्र और खुद पाकिस्तान ने प्रतिबंध लगा रखा है, वह चल कैसे रहा है?

खबरें हैं कि पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तानी सेना ने एलओसी के लांच पैडों पर तैनात जैश और लश्कर के आतंकियों को बालाकोट के इस केन्द्र में पहुँचा दिया था. इनकी संख्या 250 से 300 या इससे भी ज्यादा हो सकती है. इसी आधार पर मीडिया ने अनुमान लगाया है कि इतने लोग मारे गए होंगे. सरकार ने 27 फरवरी को जो डोज़ियर पाकिस्तान के डिप्टी हाई कमिश्नर को सौंपा है, उसमें इस अड्डे से जुड़ा विवरण है.

सरकार ने यह जानकारी इसलिए दी है, क्योंकि इमरान खान ने फिर कहा था कि सबूत दीजिए, हम कार्रवाई करेंगे. भारतीय डोजियर में उन चार रास्तों का जिक्र है, जिनसे होकर बालाकोट से तैयार होकर आतंकी एलओसी तक आते हैं और फिर जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करते हैं. सरकार ने यह जानकारी जैश के उन आतंकियों से हासिल की है, जो उसकी गिरफ्त में आए हैं.

बताया जाता है कि इस ट्रेनिंग सेंटर में कुल छह इमारतें हैं, जिनमें करीब 600 तक लोग रह सकते हैं. यह जगह पाकिस्तानी पंजाब के इलाके में है और इसमें ट्रेनिंग पाने वाले ज्यादातर लोग पंजाबी हैं, कश्मीरी नहीं. उनके दिमाग में जहर भरने के लिए बाबरी मस्जिद विध्वंस, आईसी-814 विमान-अपहरण, गुजरात-दंगों और ऐसे ही प्रसंगों की फिल्में दिखाई जाती हैं.

मोटे तौर पर कश्मीर में सक्रिय जैशे-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्करे तैयबा के नाम हैं, पर तमाम छोटी-छोटी तंज़ीमें और भी सक्रिय हैं. भारत ने बालाकोट कार्रवाई के बाद इस बात की कोशिश की कि इसे दो देशों के बीच युद्ध की स्थिति न माना जाए. यही आड़ पाकिस्तान की मददगार साबित होती है. पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान ने कश्मीर को अपनी राजनीति का केन्द्रीय विषय बना रखा है. हालांकि पुलवामा कांड के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उस कांड की निंदा करते हुए पाकिस्तान का नाम भी लिया, पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों में छिद्र के कारण वह बचता रहा है.

फौजी कार्रवाई भी निरर्थक नहीं जाएगी. इससे भारत की बेचैनी ज़ाहिर हुई है और संदेश यह गया कि भारत की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. हम बैठे-बैठे देखते नहीं रहेंगे. यह संदेश पाकिस्तान और चीन दोनों तक गया है. उसका असर कितना होगा, यही देखना है. बालाकोट पहला कदम है, आखिरी नहीं.




1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-03-2019) को "अभिनन्दन" (चर्चा अंक-3262) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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